Chodan Kahani छोटी सी भूल
11-13-2018, 12:48 PM,
RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
ये कह कर संजय अंदर आ गया और पूरे घर को देखने लगा ओर बोला, “अछा बड़ा घर है, काफ़ी तरक्की कर ली है तुमने. तुम ज़रूर खुस होगी ये सब पा कर, है ना. पर तुमने मुझे बर्बाद कर दिया”

“संजय प्लीज़ अब फिर से वही बाते मत करो, मैं खुद बहुत परेशान हूँ. रूको मैं कुछ पीने को लाती हूँ” ---- मैने कहा और कह कर किचन में कोल्ड ड्रिंक लेने चली गयी.

“मुझे पता चला है कि वो बिल्लू यही है, क्या अभी भी तुम उशके साथ अयाशी कर रही हो” ---- संजय ने पूछा.

“संजय प्लीज़ ऐसा मत कहो, मैं अपनी ग़लती की सज़ा भुगत चुकी हूँ. अब बार बार मुझे जॅलील मत करो” --- मैने कहा.

“मैं उस हरामी को जींदा नही छ्चोड़ूँगा” --- संजय ने गुस्से में कहा.

“संजय अगर बुरा ना मानो तो एक बात पूच्छू” ---- मैने कहा.

“वैसे तुम्हे कुछ पूछने का अधिकार नही है, पर फिर भी पूछो क्या पूछना है” ---- संजय ने कहा.

मैने पूछा, “ कविता कहा है संजय”

“देखो उशे मैने निकाल दिया था. बड़ी बचल्लन लड़की थी वो. शी वाज़ पार्ट ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन रॅकेट” --- संजय ने कहा

“पर तुमने एक बार कहा था कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी” ----- मैने पूछा.

“हां तो… इतनी गंदी बात तुम्हे कैसे बताता. आज बात दूसरी है, तुम खुद इतना गिर चुकी हो, तुम्हे ये गंदा सच बताया जा सकता है” ---- संजय ने कहा.

समझ नही आ रहा था कि संजय को क्या जवाब दूं. वैसे वो सच ही कह रहा था. दुख बस इस बात का था की एक पाप की सज़ा मुझे बार बार दी जा रही थी.

“ऋतु मेरा एक काम करो” --- संजय ने कहा

“क्या बताओ संजय, मुझे ख़ुसी होगी तुम्हारे लिए कुछ भी करने में” ---- मैने कहा.

“क्या तुम्हे पता है वो बिल्लू कहा मिलेगा” ----- संजय ने कहा.

“संजय छ्चोड़ो उस, अब उस से तुम्हे क्या लेना देना. मैं भी उष से बात नही करती हूँ. मुझे नही पता वो कहा रहता है” ----- मैने कहा

“ऋतु तुम्हे सब पता है, मुझे बताना नही चाहती.वो तुम्हारा पक्का यार है….है ना” --- संजय ने कहा.

“संजय ऐसी बात नही है प्लीज़,….. मैने अपनी ग़लती खुद स्वीकार की थी और मैं अब उस से बिल्कुल कोई भी बात नही करती हूँ. हाँ वो कभी कभी मेरे घर के सामने अपनी टॅक्सी ले कर खड़ा होता है. पर मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है.” ---- मैने कहा.

“अभी है क्या वो बाहर देखो तो” ------ संजय ने पूछा.

बड़ी अजीब बात थी. जैसे ही मैने खिड़की खोल कर देखा मुझे बिल्लू की टॅक्सी दीखाई दी. वो टॅक्सी में बैठा था. मैने देखा की वो कुछ लीख रहा था. मुझे यकीन था कि आज सुबह की झाड़ के बाद वो यहा नही आएगा पर वो फिर से टॅक्सी ले कर मेरे घर के बाहर खड़ा था.

मैने देखा की वो गेट खोल कर बाहर आ गया.

मैने संजय से कहा, “हाँ उसकी टॅक्सी खड़ी है”

मैने फिर से झाँक कर देखा तो पाया कि वो अपने हाथ में काग़ज़ का एक टुकड़ा ले कर मेरे फ्लॅट की तरफ आ रहा है.

“क्या कर रहा है वो” ---- संजय ने पूछा

“संजय वो यही घर की तरफ आ रहा है” ----- मैने कहा.

“देखा मैं कहता था ना वो तेरा पक्का यार है, अभी भी तुम्हारा चक्कर चल रहा है, मुझे झूठ बोल रही थी कि मैं उस से बात नही करती” ----- संजय ने कहा.

“संजय ये सच है कि मैं उस से बात नही करती. वही मेरे पीछे पड़ा है. अक्सर मेरे घर में एक चिट डाल जाता है. अभी भी वही डालने आ रहा है शायद. मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है” ---- मैने कहा

“आने दो उसे आज मैं उसकी यही लाश बिछा दूँगा, तुम ऐसा करो उसे अंदर बुला लो” संजय ने कहा

ये कह कर जाने कहा से संजय ने एक बंदूक निकाल ली

“क्या ?? ये क्या कह रहे हो, नही मुझ से ये नही होगा. उशे यहा क्यों बुलाना चाहते हो” ------ मैने पूछा.

“उस से कुछ पुराना हिसाब चुकता करना है ऋतु, तुम्हे नही लगता कि जिश्ने हमारे घर को बर्बाद किया उशे सज़ा मिलनी चाहिए” ---- संजय ने कहा.

“संजय इन सब बातो से क्या हाँसिल होगा मैं अब उस से बात नही करती हूँ. मुझे उस से सख़्त नफ़रत है. मैं उशे यहा नही बुला सकती” ---- मैने कहा.

“तुम्हे बुलाना पड़ेगा ऋतु. अगर तुम वाकाई में

उस से नफ़रत करती हो तो उशे यहा बुलाओ मैं उशे तुम्हारी आँखो के आगे मारूँगा. और तुम किशी बात की चिंता मत करो. तुम्हारे उपर कोई बात नही आएगी. उष्की लाश मैं ठीकने लगा दूँगा… अब उशे बुलाओ….मेरी खातिर बुलाओ”

मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ.

मैने पूछा, “संजय क्या ये सब करना ज़रूरी है”

“हाँ ज़रूरी है, अगर वो बच गया तो उमर भर परेशान करेगा. मैं किचन में छुप रहा हूँ. उसे अंदर बुला लेना. फिर मैं संभाल लूँगा…ओके”

संजय किचन में चला गया. उशके जाते ही मुझे अपने डोर के नीचे से एक चिट सरक्ति हुई दीखाई दी.

मैने तुरंत दरवाजा खोला और उष्की ओर देखा.

एक पल को वक्त जैसे ठहर गया

मैने उष्की ओर देखा और हमारी आँखे एक पल को टकराई. उशके चेहरे पर एक दर्द भरी हल्की सी मुश्कान उभर आई. फिर मैने ध्यान से देखा तो पाया कि उष्की आँखे नम थी. मैं उशे ऐसी हालत में देख कर कुछ नही कह पाई.

मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. क्या मैं उशे मरने के लिए अंदर बुला लूँ. उसने मेरे लिए साइकल वाले को मारा था. उसने उस दिन जंगल में टाइम पर आ कर मेरा रेप होने से भी बचाया था.

मन में यही विचार आया की बिल्लू को यहा से जाने दो ऋतु. ये खून ख़राबा ठीक नही है. मुझे वैसे भी अब बिल्लू से क्या मतलब.

बिल्लू की आँखो के आंशु मुझ पर कुछ अजीब सा असर कर रहे थे. पता नही वो क्यों रो रहा था.
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