RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--8
गतान्क से आगे..................
मोना:"मैं घर के पास जो पार्क है वहाँ तुम्हारा इंतेज़ार करोओण्घेए. प्लीज़ अली जल्दी आना."
अली:"मैं बस 2 मिनिट मे पोहन्च रहा हूँ." ये उसने कह तो दिया पर कोई उड़ान खटोला तो पास था नही, वहाँ पहुचने मे कोई 15 मिनिट तो लग ही गये. अब तक मोना अपने आप पे थोडा बहुत काबू भी कर चुकी थी. वो पार्क के बेंच पे अपने सूटकेस के साथ बैठी हुई थी. ऊसे ऐसे गमजडा बैठे देख कर अली को बहुत दुख हुआ. जिस लड़की के सपने वो दिन रात देखता था और जिस के लिए वो कुछ भी कर सकता था उससे ऐसे भला केसे वो देख सकता था?
अली:"मोना सब ठीक तो है ना और तुम ऐसे सूटकेस के साथ यहाँ क्यूँ बैठी हो?" उससे देख कर एक बार फिर जैसे ममता की कही सब बाते मोना को याद आ गयी और एक बार फिर आँखौं से आँसू बहने लगे. अली फॉरून उसके पास बैठ गया और उसके आँसू सॉफ करने लगा.
अली:"मोना प्लीज़ मत रो. सब कुछ ठीक हो जाएगा. मैं हूँ ना?"
मोना:"क्या ठीक होगा अब? मैने वो घर छोड़ दिया है."
अली:"क्यूँ क्या हुआ?"
मोना:"क्यूँ के उन्हे मैं बदचलन लगती हूँ और कहते हैं के तुम्हारे साथ अपना मुँह काला कर वा रही हूँ." अली ये सुन के गुस्से से पागल हो गया.
अली:"चलो मेरे साथ देखता हूँ किस की जुर्रत हुई तुम्हे ये कहने की?" वो ये कह कर उठने लगा लेकिन मोना ने हाथ पकड़ के बिठा लिया.
मोना:"नही अली पहले ही बहुत तमाशा हो गया है. वैसे भी वो तो कब से मुझे घर से निकालने का मौका देख रही थी. अब तो मैं भी वहाँ जाना नही चाहती."
अली:"ठीक है फिर चलो मेरे साथ. मेरे घर चलो सब ठीक हो जाएगा."
मोना:"पागल हो गये हो क्या? किस रिश्ते से साथ चालू? क्या हर दोस्त को उठा के घर ले जाते हो?"
अली:"पर हम सिर्फ़ दोस्त ही तो नही. इससे बढ़ के भी तो एक रिश्ता है हम मे."
मोना:"क्या और कैसा रिश्ता?" दोनो एक दूजे की आँखो मे खो चुके थे और समय था के बस थम सा गया था.
अली:"प्यार का रिश्ता."
मोना:"क्या और कैसा रिश्ता?"
अली:"प्यार का रिश्ता." ये बात बिना सौचे समझे उस केमुंह से निकली थी. यौं कह लो के दिल मे जो आरमान पहली बार ही मोना को देख कर पैदा हो गये था आज लबौं पे आ ही गये. ये सुन कर चंद लम्हो के लिए मोना चुप रही. पहली बार किसी ने यौं इज़हार-ए-मौहबत की थी. इन खामोश लम्हो मे जो मौहबत के पाक आहेसास को वो दोनो महसूस कर रहे थे और जो वादे आँखौं ही आँखौं मे किए जा रहे थे वो भला शब्दो मे कहाँ कहे जा सकते थे? आख़िर मोना ने ही इस खमौशी को तोड़ा धीरे से ये कह कर के
मोना:"पागल हो गये हो क्या?"
अली:"सच पूछो तो वो तो तुम्हे पहली बार ही देख कर हो गया था. फिर भी अगर किसी को पागलौं की तरह चाहना और उसी के ख्यालो मे खोए रहना और चाहे दिन हो या रात उसी के सपने देखना पागल पन है तो हां मे पागल हो गया हूँ."
मोना:"तुम ने आज तक तो ऐसा नही कहा फिर आज ये सब केसे?"
अली:"भला इतना आसान है ये क्या? तुम सौच भी नही सकती के कितनी ही बार कहने को दिल किया पर तुम्हे खो देने का डर इतना था के अपने आरमानो को दिल ही दिल मे मारता रहा और उम्मीद करता रहा उस दिन की जब तुम्हे अपना दिल दिखा सकू जिस की हर धड़कन मे तुम ही बसी हुई हो." वो ये सब सुन कर एक बार फिर पार्क के बेंच पर बैठ गयी. एक अजब आहेसास था ये. किसी को ऐसा कहते सुना के वो आप को इतना चाहते हैं. साथ ही साथ अभी तक वो ममता के दिए घाव भूल भी ना पाई थी के अली ने इतनी बड़ी बात इस मौके पे कह दी.
मोना:"तो क्या ये सही मौका है? तुम जानते हो ना के अभी कुछ ही देर पहले मेरे साथ क्या हुआ है? और अब ये सब? मुझे समझ नही आ रही के क्या कहू?"
अली:"मैं तो आज भी ना कह पाता लेकिन दिल की बात पे आज काबू ना रख सका जब तुम ने हमारे बीच क्या रिश्ता है पूछ लिया. मैं जानता हूँ तुम पे क्या बीत रही है मोना और इसी लिए तुम्हारा हाथ थामना चाहता हूँ. हो सके तो मेरा अएतबार कर लो. वादा करता हूँ के ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर तुम्हे ठोकर नही खाने दूँगा."
मोना:"ये सब इतना आसान नही है जितना तुम समझ रहे हो. इस प्यार मौहबत से बाहर भी एक दुनिया बसती है जिस दुनिया मे मैं एक ग़रीब टीचर की वो बेटी हूँ जो कल को अपने बुढ्ढे माता पिता और अपनी बेहन के लिए भी कुछ करना चाहती है. आज ये हाल है के मेरे पे ही कोई छत नही तो अपनी ज़िमेदारियाँ केसे निभा पवँगी? और ऐसे मे इस प्यार मौहबत के लिए कहाँ जगह है? अली तुम बहुत अच्छे लड़के हो. कौनसी ऐसी लड़की होगी जो तुम्हारे जैसा जीवन साथी नही पाना चाहेगी? पर मैं वो लड़की नही जिसे तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे लिए पसंद करेंगे. ज़रा फरक तो देखो हम दोनो के परिवारो मे. क्यूँ ऐसा कोई रिश्ता शुरू करना चाहते हो जिस का अंजाम बस दुख दर्द पे ही ख़तम हो?"
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