RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
कॉल सेंटर पे काम करते उस दिन दोनो लड़कियाँ चहक रही थी. "ये कैसा दिन है आज?" मोना सौच रही थी. 1 ही दिन मे पहले ममता का घर छोड़ कर ऐसी राह पे चल देना जहाँ कि मंज़िल का ही नही पता था तो फिर अली का ऐसे इज़हार-ए-मोहबत. जब लगा के अब वो ज़िंदगी के सफ़र मे अकेली नही तो फिर ऐसे उसका पहले ही मोड़ पे साथ ना दे पाना. फिर उसकी सहेली का ऐसे उसका साथ देना तो आख़िर मे असलम सहाब का ऐसे आ जाना और उसे अपनी होने वाली बहू मान लेना. ये सब एक ख्वाब ही की तरहा तो था. और वो जागती आँखौं से ये सपने बैठे बैठे काम पे देख रही थी. दोसरि ओर किरण उपर वाले का लाख लाख शूकर अदा कर रही थी के उसने इस तरहा से उसकी मदद की. जहाँ मनोज से छुटकारे का रास्ता ही कोई नही दिखता था तो अब वो उस लम्हे का इंतेज़ार कर रही थी जब वो घर जा के मनोज को उठा के घर से बाहर फेंकेगी. वो अपने सपनो मे यौं ही खोई हुई थी जब सरहद उसके पास आया.
सरहद:"क्या बात है किरण आज किन ख्यालो मे खोई हुई हो?"
किरण:"बस तुम्हारे बारे मे ही सौच रही थी. क्या करू तुम ने मेरी रातो की नींद जो उड़ा दी है." उसका शोख चंचल्पन भी आज वापिस आ गया था. ये सुन कर सरहद का मुँह तो शरम से लाल हो गया. वो जानता था के मज़ाक कर रही है लेकिन फिर भी इस तरहा का मज़ाक पहले तो कभी उसने नही किया था.
सरहद:"टांग खेंचने के लिए मैं ही मिला हूँ?"
किरण:"तो बता दो ना किसी और को ढूँढ लूँ क्या?"
सरहद:"नही." उसने जल्दी से जवाब दिया और फिर अपनी बेवकूफी का आहेसास हुआ. ये सुन कर किरण खिलखिला कर हँसने लग गयी. जाने सरहद ने कहाँ से थोड़ी हिम्मत कर के पूछ ही लिया
सरहद:"किरण वो मैं सौच रहा था के......क्या मेरे साथ डिन्नर पे चलो गी?" अब तक किरण को अंदाज़ा तो हो ही गया था के सरहद को उसपे प्यार है और इतने दिन उसके साथ काम कर के अंदाज़ा भी हो गया था के वो देखने मे जैसा भी हो, दिल का अच्छा बंदा है. कॉलेज के दिल फेंक आशिक़ो और मनोज जैसे दरिंदे के बाद वो सरहद की खूबियो को सॉफ देखने लगी थी.
किरण:"ज़रूर." दोनो एक दूजे की आँखौं मे देखने लगे और अन कहे वादे आँखौं ही आँखौं मे करने लगे.
सरहद:"मैं आज रात को आठ बजे आप को घर पे लेने आ जाउन्गा."
किरण:"मैं इंतेज़ार करूँगी." किरण ने मुस्कुरा कर कहा.
सरहद जल्दी से वहाँ से चला गया इससे पहले के ख़ुसी से वो कोई बेवकूफी ना वहाँ कर बैठे. मोना जो कुछ दूर ये सब देख रही थी किरण के पास आ गयी.
मोना:"क्या बात है! दोनो तरफ है आग बराबर लगी हुई."
किरण:"चल चुप कर. ऐसा कुछ नही है."
मोना:"वो तो तेरा दीवाना है ये सब ही जानते हैं. क्यूँ क्या तुझे पसंद नही? "
किरण:"शायद."
रात को जब किरण आंड मोना घर पोहन्चे तो मनोज की गाड़ी पहले ही खड़ी थी. जिसे देख किरण सौचने लगी "आज तो इसका कुछ करना ही पड़ेगा" जैसे ही वो घर मे दाखिल हुए तो देखा के मनोज ड्रॉयिंग रूम मे बैठा हुआ था..
मोना को यौं किरण के साथ देख कर उसे अजीब सा लगा. जिस दिन उसने किरण को मारने के बाद उसे घर पे कभी भी किसी लड़के के साथ यां बाहर घूमने फिरने से मना किया था उस के बाद तो कभी वो किसी लड़की के साथ भी उसे घर के आस पास नज़र नही आई. उसने जो गौर से मोना को देखा तो उसके अंदर का शैतान जाग गया. "ये तो किरण से भी ज़्यादा गर्म माल है. लगती भी अमीर घर से नही. साली किरण को कहता हूँ के इसको भी मेरी रंडी बना दे. चार पेसे लग भी गये तो कोई बात नही." वो मोना को हवस भरी नज़रौं से देखते हुए ये सौच रहा था के किरण ने उसको ख्वाबो की दुनिया से वापिस खेंचा.
क्रमशः....................
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