RE: Chudai Story ज़िंदगी के रंग
इस दौरान असलम साहब ने अपना वादा पूरा किया और हर महीने ना सिर्फ़ किरण को मोना का कराया पहुचाते रहे बल्कि मोना के लाख माना करने के बावजूद उसे जेब खरच भी देने लगा. मोना जो कुछ अब नौकरी से कमाती थी वो अपने घर भेजने लगी. उसके पिता को शुरू मे तो अच्छा नही लगा लेकिन बेटी के इसरार पर मान गये. कुछ ही आरसे बाद मोना को एक और अछी खबर भी मिली जब उसकी छोटी बेहन के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया. बड़ी बेहन की शादी किए बिना छोटी के हाथ केसे पीले कर दें ये चिंता तो देना नाथ जी को हुई पर आज कल के ज़माने मे अच्छे रिश्ते वो भी ग़रीबो को मिलते ही कहाँ हैं? फिर क्या था उन्हो ने बात पक्की कर दी. लड़का लंडन मे अछी नौकरी पे लगा हुआ था और उसके घर वाले जल्द ही उसकी शादी एक अछी लड़की से करना चाहते थे के कहीं बिगड़ ना जाए और परदेस से किसी दिन बहू की जगह अपने साथ उनके लिए दामाद ना ले आए. मास्टर दीना नाथ जी भी खुश थे के एक बेटी शहर मे अपने पैरों पे खड़ी हो गयी है और साथ साथ पढ़ाई भी मुकामल कर रही है तो दोसरि की शादी होने वाली है. रही सही चिंता इस बात ने दूर कर दी थी के लड़के वालो ने दहेज लेने से मना कर दिया था. इतना अंदाज़ा तो उनको भी था के बेचारे मास्टर जी देना चाहे भी तो दे ही क्या सकते हैं? एक तो लड़के वालो को शादी की जल्दी थी दोसरा मास्टर जी भी इस ज़िमदारी से मुक्ति चाहते थे. 2 महीने बाद की शादी की तारीख पक्की कर दी गयी जब लड़के ने सर्दियों की छुट्टी पे शादी करने आना था. सब कुछ ठीक हो रहा था पर ग़रीबो की ज़िंदगी मे खुशियाँ भी गम की चादर ओढ़ कर आती हैं. रिश्ता पक्का किए अभी 2 हफ्ते भी नही गुज़रे थे के मास्टर साहब को दिल का दौड़ा पड़ा और वो बेटी की खुशियाँ देखने से पहले ही भगवान को प्यारे हो गये. मोना और उसके घर वालो पर तो जैसे गम का पहाड़ ही टूट गया. खबर मिलते साथ ही वो पहली ट्रेन से नैनीताल की पोहन्च गयी. जब इस बात का असलम सहाब को पता चला तो वो भी अपनी गाड़ी से नैनीताल किरण को ले कर पोहन्च गये. वहाँ पोहन्च कर मास्टर जी के क्रिया करम की सारी ज़िम्मेदारी उन्हो ने खुद ही उठा ली. मोना और उसकी मा बेहन को तो उनका अपना होश ना था तो भला ये सब कहाँ से कर पाते? खुद असलम सहाब ने पास ही के एक होटेल मे अपने लिए कमरा ले लिया था. ना तो मोना के घर मे महमानो के लिए कोई कमरा था और ना ही उन्हो ने ठीक समझा ऐसे उन पे बोझ बनना. वैसे भी लोगो का क्या है? ना जाने क्या क्या बाते बनाने लग जाय? मास्टर जी के क्रिया करम के 2 दिन बाद असलम सहाब मोना के घर बैठे चाइ पी रहे थे और ऐसे मे उन्हो ने मोना की मा से वो बात कर दी जो वो भी अपने ज़ेहन मे सौच रही थी.
असलम:"इतने जल्दी ये कहते ठीक तो नही लग रहा पर आप तो समझती ही होंगी के इन बातो से मुँह भी फेरा नही जा सकता. आप ने मेघा की शादी के बारे मे क्या सौचा है?"
पूजा:"पता नही भाई सहाब कुछ समझ ही नही आ रही. उन्हे भी तैयारियाँ करते मुस्किल हो रही थी तो भला मैं कैसे ये सब कर पाउन्गी? समझ ही नही आ रहा क्या करूँ? तारीख भी तो आगे नही कर सकती के लड़के वालों ने तो कार्ड तक छपवा लिए हैं. डरती हूँ के आगे करने का कहूँ तो कहीं रिश्ता ही ना टूट जाए. वैसे भी आज कल अच्छे रिश्ते मिलते ही कहाँ हैं भला?"
असलम:"आप ठीक कहती हैं. वैसे भी चाहे अब करो या साल बाद, काम तो उतना ही है. अगर आप बुरा ना माने तो मैं ये ज़िम्मेदारी संभालना चाह रहा था. पेसों वग़ैरा की आप फिकर ना करो मैं सब संभाल लूँगा." जहाँ ये सुन कर एक तरफ तो पूजा की आँखे चमक उठी वहाँ साथ ही ये अहसास भी हो गया के ये ठीक नही है. मोना असलम सहाब के बारे मे सब कुछ पूजा को बता चुकी थी. होने वाले संबंधी से ऐसे काम लेना और फिर उसी को पेसे खरचने देना पूजा को ठीक नही लग रहा था. साथ ही साथ ये भी सच है के हर मा की तरहा दिल तो उसका भी था के बेटी की शादी धूम धाम से करे. ग़रीब होने से कोई खावहिशे मर तो नही जाती बल्कि ग़रीबों के लिए तो ये चंद खुशियाँ जैसे के बच्चों की शादी से बढ़ के कुछ और होता ही नही.
क्रमशः....................
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