Antarvasna kahani माया की कामुकता
12-13-2018, 02:41 AM,
RE: Antarvasna kahani माया की कामुकता
"पैसा चीज़ ही ऐसी है बादशाह.. इसकी माया से कौन बच पाया है... इनस्पेक्टर को अपना घर चलाना है, तुझे अपना घर बनाना है.. और मुझे इस शहेर पे राज करना है.... इसके लिए पैसा ही लगेगा..." मैने अपनी नज़र समंदर के चारो और घुमा के कही... उस दिन राजू और मेरी पहली कामयाबी थी.. हम ने दो दो हज़ार रुपये बनाए, जो हमारी रोज़ की मेहनत से कहीं ज़्यादा थे... उस दिन से लेके पिछले एक साल तक, जब भी ऐसा कुछ काम आता तो राजू और मैं उसे बिना कुछ सोचे ही ले लेते.. जैसे जैसे काम बढ़ता गया, वैसे वैसे हमारा पैसा और पोलीस का हिस्सा भी.. स्मग्लर्स भी खुश, हम भी खुश और पोलीस भी खुश.. ऐसे बहुत कम मौके आते हैं जब काम से जुड़े सब लोग खुश हो...



29 डिसेंबर 1979... उस रात भी राजू और मैं समान को अनलोड कर रहे थे ताकि दूसरी बोट आने तक उसे संभाल सकें और उसमे लोड कर सकें.... मैं आखरी बॉक्स उठा ही रहा था, कि बोट के अंदर बैठे एक लड़के ने मुझे देखा और बुलाया



"सुनो.. इधर आओ.." उस लड़के ने मुझे कहा.. मैने ध्यान से देखा तो वो कोई अमीर लड़का लग रहा था, उमर शायद मेरे जितनी या मुझसे एक या दो साल बड़ी बस.. मैं सीधा उसके पास गया और जाके चुप चाप खड़ा हो गया



"मैं काफ़ी दिनो से देख रहा हूँ तुम्हे, इस काम से डर नहीं लगता " उस आदमी ने अपनी सिगर्रेट जला के कहा



"अगर डरुन्गा तो पैसे कैसे बनाउन्गा.." मैने चौड़ा होके कहा



"यह पकडो मेरा अड्रेस.. अगर ज़्यादा पैसे बनाने हो तो मुझे यहाँ आके मिलो..." उस आदमी ने एक पेज निकाला और उसपे कुछ लिख के दिया



"करना क्या होगा.." मैने पेज देखे बिना अपनी जेब में डाल दिया



"काम यही है.. बस ज़रिया बदल जाएगा, पानी के बदले यह काम तुम्हे रोड से करना होगा.. अगर हिम्मत हो तो कल 12 बजे आ जाना..."



मैं बिना कुछ बोले वहाँ से निकल गया और राजू को बताए बिना दूसरी बोट का इंतेज़ार करने लगा.. जब तक दूसरी बोट आती तब तक मैं बस यही सोच रहा थे कि राजू को उस बात के बारे में बताऊ के नहीं... जब तक मैं कुछ सोच पाता, तब तक दूसरी बोट भी आ गयी और हम फिर अपने काम में लग गये... अंत तक मैं इसी दुविधा में था कि राजू को बताया जाए कि नहीं... लेकिन काफ़ी देर हो चुकी थी, मैने इसलिए राजू के सामने खामोश रहना ही ठीक समझा.. दूसरे दिन सुबह को मैं जल्दी अच्छे से तैयार हुआ और उस आदमी के दिए हुए अड्रेस पे चला गया.. क्यूँ कि पैसे थे काफ़ी, इसलिए आराम से टॅक्सी पकड़ी और निकल गया बांद्रा की तरफ.... बांद्रा पहुँच के मैं सीधा उस आदमी से मिलने गया.. काफ़ी देर तक इंतेज़ार करने के बाद मुझे अंदर बुलाया गया..



"आओ.... मुझे यकीन थे तुम ज़रूर आओगे राकेश.." उस आदमी ने कुर्सी पे बैठे बैठे ही कहा.. आस पास नज़र घुमाई तो रूम की चका चोंध देख के मैं हैरान हो गया... झूमर, आलीशान खाने की टेबल, महेंगे कालीन, पर्दे.. सब कुछ था जो एक अमीर आदमी के घर होना चाहिए..



"ना ना.. यह सब इतना आसानी से नहीं मिलता... इसके लिए काफ़ी ख़तरा उठाना पड़ेगा तुम्हे... मंज़ूर है तो मिलाओ हाथ.." उस लड़के ने मेरे पास आके कहा... काफ़ी देर तक मैं बस कुछ सोचता रहा, और फिर कहा



"मंज़ूर है.."



"आए शाबाश... मेरा नाम रॉकी है.. आज से जो करेंगे मिल के करेंगे.." रॉकी ने मुझसे कहा और मुझे सब समझाने लगा.... सब काम समझ के मैने रॉकी के साथ काम करना शुरू किया.. पैसे के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार रहता था.. काफ़ी बार पोलीस ने पकड़ा और फिर कुछ सबूत ना मिलने पे छोड़ दिया... रॉकी के साथ मैने करीब 3 साल काम किया. 3 साल में ड्रग्स से लेके इल्लीगल एलेक्ट्रॉनिक गूड्स, हम सब स्मगल करते थे... जब सरकार ने गोल्ड पे इम्पोर्ट ड्यूटी भी बढ़ाई, हम ने उसके बिस्किट्स की स्मगलिंग भी स्टार्ट की... काला काम करते करते मैं इतना अँधा हो चुका था, कि मुझे सही ग़लत की पहचान ही नहीं रही थी.. बस पैसा, और खुद सारा पैसा.. मेरा यही लक्ष्य था... स्मगलिंग में काफ़ी सारे दुश्मन बनते गये हमारे, लेकिन रॉकी और मैने हर एक दुश्मन को या तो दोस्त बना लिया या तो उसे रास्ते से हटा दिया... मुंबई, पुणे, नासिक, कोल्हापुर, एक जगह नहीं थी महाराष्ट्रा की जहाँ हम स्मगलिंग का माल ना पहुँचाते..... 1979 से लेके 1985.... 7 साल मैने बिना कुछ सोचे समझे रॉकी के साथ काम किया... पैसा अछा ख़ासा बन चुका था.. कभी कभी कोई मुश्किल काम भी आते, तो रॉकी पीछे कदम हटाता, पर मैं नहीं..



"राकेश.. धीरे, अभी पैसा काफ़ी है हमारे पास..." मुझे ऐसे मौके पे हमेशा रॉकी कहता



"अगर धीरे चलूँगा तो रुक ही जाउन्गा दोस्त.. इसलिए चलने दे मुझे.." मैं हमेशा रॉकी को यह जवाब देता और काम में लग जाता..



इसी बीच रॉकी और मैने एक साथ शादी कर ली... सीमी मुझसे प्यार करती थी, मैं क्या काम करता हूँ यह जानते हुए भी उसने मुझसे शादी की.. शादी के बाद भी सीमी मुझे रोज़ बोलती यह सब काम छोड़ने के लिए.. सीमी के साथ उसकी सहेली रोज़ा, जो रॉकी की पत्नी थी.. दोनो हमे सुबह शाम एक ही बात बोलती, रॉकी रोज़ा की बात सुन के धीरे धीरे इस काम से निकलने लगा था, पर मैं बेलगाम घोड़े की तरह था.. सीमी की बातों को अनसुना करके दिन रात यही काम करता और बस पैसा पैसा करता रहता....



"ठीक है बस.. आप दोनो की बात मैं मानता हूँ.. आप दोनो सही हो, पर कुछ काम तो करना पड़ेगा ना...." मैने एक दिन सीमी और रोज़ा से कहा जब हम रॉकी के घर खाने पे मिले थे
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