Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-14-2018, 02:30 AM,
#56
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
अरुण ने जो अड्रेस मेरे मोबाइल पर मेस्सेज किया था ,वहाँ पहूचकर मैने एक रूम का दरवाज़ा खटखटाया और जब एक लड़का बाहर निकला तो मैने उससे विश्वकर्मा के बारे मे पुछा....
"आप कौन हो..."
"मैं विश्वकर्मा का दोस्त हूँ...विश्वकर्मा कहाँ है..."
"मालूम नही है क्या, विश्वकर्मा सर यहाँ दो महीने पहले रहते थे...अब उनकी पढ़ाई कंप्लीट हो गयी है तो ये रूम छोड़ कर जा चुके है..."
"उनका कोई नंबर वगेरह है क्या..."उसके रूम पर नज़र डालते हुए मैने कहा....
जिस रूम मे विश्वकर्मा रहता था ,वो एक छोटा सा रूम था,जैसा कि अक्सर बाहर पढ़ने वाले लड़के को होता है...दीवारो पर एक तरफ कयि बिकनी पहने हुए लड़कियो की फोटोस लगी हुई थी तो दूसरी तरफ एक बड़े से दिल मे विश्वकर्मा और निशा का नाम लिखा हुआ था....
"एक नंबर है...दूं क्या"
मैने हां मे सर हिलाया तो उसने विश्वकर्मा का नंबर मुझे दे दिया और जब मैं वहाँ से वापस जाने लगा तो वो लड़का बोला...
"लेकिन ये नंबर तो एक साल से बंद है..."

"फिर मैं इस नंबर का क्या आचार डालूँगा...कोई दूसरा नंबर दे ,जो चालू हो..."

"वो मेरे रूम पार्ट्नर के पास होगा,लेकिन वो अभी है नही....एक काम करो आप कल आकर मिलो..."

"ये सही रहेगा..."मैने कुच्छ सोचा और फिर अपना नंबर उस लड़के को देकर कहा "सुन ना यार,ये मेरा नंबर है...यदि तेरा वो दोस्त आ जाए ,जिसके पास विश्वकर्मा का नंबर है तो...प्लीज़ उसे बोल देना कि वो विश्वकर्मा का नंबर मुझे सेंड कर दे..."

"ठीक है बोल दूँगा...और कुच्छ..."

मेरी नज़र एक बार फिर दीवार पर ठीक उसी जगह पड़ी,जहाँ पर बड़े से दिल के अंदर विश्वकर्मा और निशा का नाम लिखा हुआ था....

"ये विश्वकर्मा के साथ किस लड़की का नाम लिखा हुआ है..."

"इसको बारे मे मत पुछो भाया...जोश आ जाता है..."

"ठीक है,मैं चलता हूँ...और ध्यान से अपने दोस्त को बोल देना..."


.
उस लड़के से मिलने के बाद मैं पूरे दिन बीच-बीच मे अपना मोबाइल चेक करता रहा कि कही कोई मेस्सेज तो नही आया है...लेकिन मेरी इस मेहनत का रिज़ल्ट ज़ीरो निकला...ना ही किसी का कॉल आया और ना ही कोई मेस्सेज....
"पक्का भूल गया होगा उल्लू..."

फ्रस्टेशन मे मैने कहा और बाल्कनी के पास आकर एक सिगरेट जलाई....सिगरेट के कश मारते हुए मैने एक नज़र निशा के घर की तरफ डाली....पूरे कॉलोनी मे निशा का घर अलग से ही दिख रहा था, उसके घर का स्ट्रक्चर ही कॉलोनी के दूसरे फ्लॅट से अलग और बड़ा था...जिस वजह से यदि कोई उस तरफ से गुज़रे तो उसकी नज़र निशा के आलीशान घर पर पड़ ही जाती थी.खानदानी रहीस होना भी बहुत सुकून देता है...ना तो कोई टेन्षन और ना ही कोई डिप्रेशन की मेरा फ्यूचर क्या होगा...मैने अपनी ज़िंदगी के चार साल इसी डिप्रेशन मे गुज़ारे थे कि इंजिनियरिंग कंप्लीट होने के बाद मैं क्या करूँगा....लेकिन निशा के साथ ऐसा नही था वो तो अपने माँ-बाप की पूरी जयदाद की अकेली वारिस थी....
.
"अबे तू कब आया..."वरुण ने रूम के अंदर आते ही पुछा...

"बस अभी 2-3 घंटे हुए होंगे आए हुए "उसके हाथ मे पॅक किए हुए खाने की तरफ देखते हुए मैने कहा....

"काम हुआ..."

"1 % हुआ ,99 % बाकी है..."

"मतलब..."

"मतलब कि ये वही विश्वकर्मा है,जिसकी तालश मुझे थी...लेकिन वो अब ये शहर छोड़ कर जा चुका है..."
"तो अब आगे क्या..."

"एक लड़के के पास नंबर है विश्वकर्मा का...उसी के मेस्सेज का इंतज़ार कर रहा हूँ..."

"मैं क्या बोलता हूँ..."खाने की पॅकेट्स को खोलते हुए अरुण ने कहा"पहले खाना खा लेते है..."

"और खाना खाने के बाद सो जाते है और सोने के बाद सब कुच्छ भूल जाते है...है ना ,साले भुक्कड़ "

"अबे मेरी पूरी बात तो सुन...पहले खाना खाइंग देन गोयिंग टू उस चूतिया के रूम देन माँगिंग उससे विश्वकर्मा का मोबाइल नंबर देन कॉलिंग विश्वकर्मा को और अट दा एंड कॉलिंग विश्वकर्मा आंड आस्किंग अबाउट निशा...क्या बोलता है अरमान ,सॉलिड प्लान है ना..."

"खाने मे क्या है..."एक चेयर खीचकर अरुण के बगल मे बैठते हुए मैने पुछा....
.
खाना खाने के बाद हम तीनो वरुण की कार मे सवार होकर ,विश्वकर्मा के अड्रेस की तरफ बढ़े , उसके रूम का दरवाज़ा बंद था और जब मैने दरवाज़ा खटखटाया तो एक दूसरे लड़के ने दरवाज़ा खोला.....
"यस..."
"विश्वकर्मा का नंबर है ना आपके पास..."
"हां..लेकिन आप कौन..."
"मैं उसके कॉलेज का दोस्त हूँ...मुझे उसका नंबर देना तो..."

उस लड़के से विश्वकर्मा का नंबर लेने के बाद मैने उसे थॅंक्स कहा और वापस वरुण की कार मे बैठकर अपने फ्लॅट की तरफ चल पड़े....मुझसे अब एक पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था इसलिए मैने कार मे बैठे-बैठे ही विश्वकर्मा को कॉल किया...
.
"हेलो..."

"हेलो..विश्वकर्मा जी बोल रहे है क्या..."

"यस...आप कौन..."दूसरी तरफ से आवाज़ आई...

"आपसे कुच्छ पुछना था..."
"क्या..."
"निशा के बारे मे..."
निशा के बारे मे सुनकर दूसरी तरफ कुच्छ देर तक खामोशी छाइ रही...
"हू आर यू..."
"आक्च्युयली मैं आपसे आगे बात करूँ उसके पहले मैं कुच्छ पॉइंट क्लियर कर देना चाहता हूँ...जैसे कि मेरी निशा से शादी होने वाली है लेकिन मुझे वो पसंद नही और मैं कुच्छ ऐसा करना चाहता हूँ,जिससे कि निशा से मेरी शादी टूट जाए....अब आप समझ ही गये होंगे कि मैं किस बारे मे बात कर रहा हूँ..."

कुच्छ देर तक विश्वकर्मा फिर शांत हो गया और मैं इधर हेलो...हेलो की धुन चिल्लाता रहा....

"हां मैं सुन रहा हूँ..."
"तो बताओ फिर..."
"क्या बताऊ..."
"अपने और निशा के बारे मे..."
"ह्म्म...एक नंबर की रापचिक आइटम है वो बीड़ू...शादी कर ले उससे मस्त चोदने मे मज़ा आएगा..."
"मेरा सवाल कुच्छ दूसरा था..."थोड़ा वजन देकर मैने कहा...
"अब क्या बताऊ यार तेरे को,तू उसका होने वाला हज़्बेंड है...तू मत ही पुच्छ तो बेटर रहेगा..."
"मैं चाहता हूँ कि उससे मेरी शादी ना हो...तो प्लीज़ कोई ऐसी बात बताओ,जिसको सुनने के बाद मेरा काम हो जाए..."
..
विश्वकर्मा फिर कुच्छ देर तक चुप रहा और मैं एक बार फिर कुच्छ देर तक हेलो...हेलो का राग गाता रहा....
"सब बता दूं..."
"हां ..."
"तो सुनो मेरे लाल...जिससे तेरी शादी होने वाली है ना निशा...उसको अपुन ने सेट किया था और उसकी सील कॉलेज के बाथरूम मे तोड़ी थी...साली बहुत नखरे करती थी..मुझपर हुकुम चलाती थी....कुच्छ महीनो तक मुझे जब भी मौका मिलता तो मैं उसे रगड़ता...लेकिन फिर बाद मे वो नाटक करने लगी...अकेले मे मैं जब भी उसके दूध और चूत सहलाता तो गुस्सा हो जाती...और एक लड़के का नाम लिया करती कि वो उसे बहुत अच्छा लगता है..."
"किस लड़के का..."
"मालूम नही..कुच्छ अरखान..अर्जन करके नाम था उस लौन्डे का..."
"अरमान...."मैने उसकी याददाश्त को सही करने के लिए अपना नाम बताया...

"हां...हां यही नाम था उस लड़के का जिसका ज़िकरा निशा हमेशा करती थी...लेकिन तेरे को उसके बारे मे कैसे मालूम..."
"ठीक वैसे ही जैसे तेरे बारे मे मालूम...आगे बता..."
"तो आगे ये हुआ कि,साली वो कुच्छ-कुच्छ पागल होने लगी...बिस्तर पर अचानक ही वो अरमान नाम लेकर मुझे पुकारती और फिर एक दिन उससे मेरा ब्रेक अप हो गया..."
"उसके बाद..."
"उसके बाद क्या...मैने उसे पूरे कॉलेज मे बदनाम कर दिया कि वो सबसे चुदवाती रहती है...मैने ये तक कॉलेज मे बोला कि उसको तो उसका बाप भी चोदता है....बोले तो एक दम उस साली की गान्ड फाड़ दी..."
"उसके बाद..."मैने कहा...
ये सब सुनते हुए मेरे बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने लगा था और यदि विश्वकर्मा इस वक़्त मेरे सामने होता तो वरुण की पूरी कार उसके पिछवाड़े मे घुसा देता.....

"उसके बाद क्या...साली पागल हो गयी और जब तक मैं कॉलेज मे रहा उसकी बराबर लेता रहा...आलम तो ये था मेरे लाल कि पूरा कॉलेज उसे रंडी तक कहने लगा था...."

"और तूने कुच्छ नही किया..."

"ना...मैं क्यूँ कुच्छ करूँगा...मुझे तो ये सब देखकर बहुत मज़ा आता था....मेरा मन करता था कि साली को सबके सामने नंगा करके बेल्ट से खूब मारू और फिर उसके मुँह मे मूठ मार दूं....वैसे तेरा नाम क्या है..."

"अरमान...और सुन बे बीसी यदि दोबारा ये सब किसी और से कहा तो तेरे बॉडी मे जहाँ-जहाँ छेद दिखेगा वही चोदुन्गा...फोन रख म्सी ,"
.
कॉल डिसकनेक्ट करने के बाद मैं थोड़ा उदास हो गया था क्यूंकी एक तरफ निशा झूठी साबित हो गयी थी तो वही दूसरी तरफ उसने इतना कुच्छ झेला...मुझे यकीन नही हो रहा था....एक तरफ मैं उसपर बहुत गुस्सा था तो दूसरी तरफ उसके अतीत के बारे मे जानकार दिल छल्ली हुआ जा रहा था....एक तरफ दिल निशा से ये पुछने के लिए बेचैन था कि उसने मुझसे झूठ क्यूँ बोला तो दूसरी तरफ उसके ज़ख़्मो को फिर से हरा करने का डर मुझे ऐसा करने से रोक रहा था....
.
"चलता है यार,रिलॅक्स...बी आ मॅन"अरुण ने कहा....

"रिलॅक्स और इतना सब कुच्छ जानने के बाद..."

"मेरे पास एक आइडिया है...जा मूठ मार के आ..."

"अब यदि तूने कुच्छ और कहा तो मैं तुझे मार दूँगा..."

"मैने क्या किया "

कुच्छ देर तक हम तीनो मे से कोई कुच्छ नही बोला...अरुण और वरुण अंदर बैठकर एक-दूसरे के बारे मे एक-दूसरे से पुछते रहे और मैं सिगरेट का पॅकेट उठाकर बाल्कनी पर खड़ा हो गया और निशा के घर की तरफ देखने लगा....इस वक़्त दिल और सिगरेट दोनो साथ-साथ जल रहे थे....
.
"मेरे पास एक आइडिया है,अरमान.... अतीत के समुंदर मे चलकर मज़े करते है...बोले तो, कहानी आगे बढ़ा ...इस तरह तेरा माइंड भी रिलॅक्स हो जाएगा "

"मेरे पास एक आइडिया है,अरमान.... अतीत के समुंदर मे चलकर मज़े करते है...बोले तो, कहानी आगे बढ़ा...इस तरह तेरा माइंड भी रिलॅक्स हो जाएगा "
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"सर जॉब कंप्लीटेड..."टर्निंग शॉप के फ़ौजी की तरफ देखकर मैने कहा...
"क्या..."
"सर जॉब कंप्लीटेड..."मैं एक बार और चीखा...
"नेटवर्क खराब है, पास आकर बोलो...ओवर..."
"ये साला खुद को आर्मी का सिपाही समझता है..."टर्निंग शॉप वाले बूढ़े को गाली बकते हुए मैने अरुण को उसके पास जाने के लिए कहा....
.
"सर हमारा एक्सपेरिमेंट कंप्लीट हो गया..."उसके पास जाकर अरुण बोला और जॉब उसके सामने वाली टेबल पर रख दिया....

टर्निंग शॉप वाले फ़ौजी की उम्र और उसके आँख मे नंबर वाला चश्मा देखकर मैने सोचा था की थोड़ी-बहुत माइनर मिस्टेक वो नही देख पाएगा...लेकिन जब अरुण ने जॉब उसको दिखाया तो वो एक दम ताव से उठा...
"यहाँ का मोर्चा संभाले रखना मैं गन लेकर आता हूँ..."
"तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा"साइलेंट मोड मे अरुण ने अपना मुँह चलाया....
.
कुच्छ देर तक वो फ़ौजी ना जाने अंदर क्या ढूंढता रहा और फिर जब वापस आया तो उसके हाथ मे एक स्केल थी...जिसमे सेंटिमेटेर के काई यूनिट घिस चुके थे...उसके स्केल की जर्जर हालत देखकर मेरे खास दोस्त अरुण ने अपनी नयी-नवेली स्केल उसकी तरफ बढ़ाई...जिससे वो फ़ौजी भड़क गया...
"दुश्मनो और उनके हथियारो पर कभी यकीन नही करना चाहिए...दो कदम पीछे हट..."

"तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा..."अरुण एक बार फिर साइलेंट मोड मे आ गया....
.
मेरा अनुमान था कि फ़ौजी हमे गुड वर्क कहकर यहाँ से जाने देगा,लेकिन हमारे जॉब की डाइयामीटर को अपनी जर्जर स्केल से नापते हुए वो ना जाने कहाँ खो गया..वो कभी बाहर जाकर डाइयामीटर चेक करता तो कभी वहाँ लगे बल्ब की रोशनी मे चेक करता....और 15-20 मिनिट्स की कशमकश के बाद उसने अरुण को घूरा...
"डाइयामीटर 1 मिल्लीमीटर ज़्यादा है.."
"इतना तो चलता है सर..."
"जंग के मैदान मे 1 मिल्लीमीटर से निशाने का चूक जाना मतलब जंग हार जाना..."

"समझ गया सर "बोलते हुए अरुण ने उसके हाथ से जॉब लिया और मेरी तरफ आया,...
.
जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स की रॅगिंग भी परवान चढ़ रही थी...कुच्छ सीनियर गार्डन मे तो कुच्छ रिसेस के वक़्त क्लास मे....कुच्छ कॅंटीन मे तो कुच्छ सिटी बस मे....मुझे इन सब चूतिया कामो मे कोई इंटेरेस्ट नही था,इसलिए फिलहाल तो मैं इस चूतियापे से दूर था...लेकिन मेरे खास दोस्त अरुण की राय इस मामले मे कुच्छ अलग ही थी और ख़तरनाक भी...अलग इसलिए क्यूंकी वो हॉस्टिल के लड़को से ना भीड़कर सिटी के स्टूडेंट्स की रॅगिंग लेता था और ख़तरनाक इसलिए क्यूंकी ये एक नये कॉंबॅट की नीव रख रहा था...अरुण जानता था कि यदि मुझे उसकी इस हरकत के बारे मे मालूम चलेगा तो मैं उसे बहुत पेलुँगा इसीलिए काई दिन तक तो अरुण की इस हरकत का मुझे कोई खबर नही थी और फिर एक दिन....
"अरमान...लोचा हो गया है,चल जल्दी कॅंटीन मे..."
"अभी नही..."बीएफ को एग्ज़िट मारते हुए मैने कहा,ताकि जब वो मेरे पास आए तो ये ना जान पाए कि मैं बाथरूम को स्पर्म डोनेट करने की तैयारी मे लगा था 

"अबे मज़ाक का टाइम नही है...लड़ाई हो गयी फर्स्ट एअर के एक लड़के से..."

"तो जाना पेल दे उसे..."

"वो सिटी का है और कहता है कि गौतम को वो जानता है..."
"चल..."
हॉस्टिल से बाहर कॅंटीन की तरफ आते हुए मैने अरुण को गालियाँ दी की उसने इन सबकी शुरुआत ही क्यूँ की...
"मैने सिर्फ़ कॅंटीन मे उसे देखकर उसका नाम पुछा तो साले ने अकड़ कर मुझे आँख दिखाई..."
"फिर..."
"फिर मैने साले को एक झापड़ पेल दिया...तो रिप्लाइ मे उसने मुझे ज़ोर से धक्का दिया..."
"और धक्का खाने के बाद तू यहाँ मेरे पास आ गया, क्या सोच कर आया था कि सरदार बहुत खुश होगा "
"अबे 7-8 लौन्डे खड़े हो गये उस वक़्त उसके साथ..."

"और ये तू मुझे अभी बता रहा है बक्चोद...पहले बताया होता तो और लौन्डो को साथ मे ले आता..."बोलते हुए मैने अरुण के साथ कॅंटीन मे एंट्री मारी....
.
वहाँ बैठे स्टूडेंट्स को देखकर मैं तुरंत समझ गया कि वो 7-8 लड़के कौन है...वो सब एक ही टेबल पर बैठे थे और अरुण की तरफ देखकर हंस रहे थे....

"अबे ये तुझे देख कर हँस रहे है क्या..."मैने अरुण से पुछा...
"हां..."
इसके बाद जब उन लड़को ने अरुण को हाथ से गंदा इशारा किया...तो अरुण उनकी तरफ जाने लगा....
"अरुण तू कुच्छ मत करना..."
"*** चोद दूँगा सालो की..."
"फिर मैं जाऊ... आख़िरी बार बोल रहा हूँ ,शांत ही रहना..."
.
वो लड़के मुझे देखकर भी बिंदास बैठे हँस रहे थे,..मैने बगल वाली टेबल से एक चेयर खिसकाई और उन्ही के पास बैठ गया....
"बहुत उचक रहे हो बे..."
"अब तू हमारी रॅगिंग लेने आया है..."
"रॅगिंग नही मैं तो तुम लोगो से रिश्ता बनाने आया हूँ...आओ कौन बनेगा करोड़पती खेलते है..तो पहला सवाल ये रहा आपके थोबडे के सामने...
तुम सब गौतम के दम पर उचक रहे हो या फिर वरुण के..."
"खुद के दम पर..."उनमे से एक ने जवाब दिया...
"ये समझ लो कि अभी जो मैने क्वेस्चन पुछा वो 1 करोड़ का है..तो प्लीज़ अपने उस आन्सर को एक्सप्लेन करोगे..."
"आक्च्युयली बात ये है बेटे कि ठीक एक साल पहले एक अरमान नाम के लड़के ने फोर्त एअर के कयि सीनियर्स को ठोका था ,तो हम लोग उसी से इन्स्पाइयर्ड होकर ये सब कर रहे है..हम 7-8 लड़को का ग्रूप ने डिसाइड किया है कि यदि कोई भी सीनियर हमारी रॅगिंग लेने आएगा तो हम उसकी ही रॅगिंग लेंगे....साथ मे गौतम का थोड़ा सपोर्ट भी है ,इसलिए सिटी के सीनियर्स हमे कुच्छ नही बोलते..लेकिन हॉस्टिल के सीनियर्स की गान्ड मे कीड़ा मचल रहा है,जिसे हम मार कर रहेंगे..."

"सही जवाब...अगला सवाल आपके थोबडे के सामने ये रहा....क्या तुम लोग अरमान को जानते हो या फिर उसे कही देखा है..."
"नही.."इसका भी जवाब उसी लड़के ने दिया जिसने मेरे पहले सवाल का जवाब दिया था"हम लोगो को आए हुए दो-तीन दिन ही हुए है...इसलिए हम उसे नही जानते..."

"अरुण....इधर आकर बता तो तुझे धक्का किसने दिया था..."
.
जिस टेबल पर मैं उन 7-8 लड़को के साथ बैठा था ,वहाँ आकर अरुण ने एक लड़के की तरफ इशारा किया और मैने अरुण को कहा कि वो जोरदार मुक्का उसके चेहरे मे मारे....

"अबे ओये,बाप का राज है क्या...निकल ले वरना तुझे भी धक्के मार के निकाल दूँगा..."उनमे से एक खड़ा होते हुए बोला...
"पहली बात तो ये बेटा कि ,दोबारा मुझे कभी बेटा मत बोलना."ताड़ से एक झापड़ मारते हुए मैने उसकी कॉलर पकड़ ली"दूसरी बात ये की जिससे तुम इनस्पाइर होकर वो सब कर रहे हो...वो मैं ही हूँ...."

मैं अरमान हूँ ये जानकार उन लड़को का सारा जोश ठंडा पड़ गया और फिर अरुण को सॉरी बोलकर वो वहाँ से खिसक लिए....
.
कॅंटीन मे ये सब करते वक़्त मुझे ये अंदाज़ा नही था कि मेरी ये हरकत इतना बड़ा रूप लेने वाली है...लेकिन उसके दूसरे दिन जब दंमो रानी क्लास मे खुद की तारीफ कर रही थी तो कॉलेज के पीयान ने आकर मेरा और अरुण का नाम लिया और कहा कि हम दोनो को प्रिन्सिपल ने बुलाया है....प्रिन्सिपल का बुलावा मिलने के तुरंत बाद ही मैं समझ गया कि हो ना हो ये कल कॅंटीन वाली हरकत का नतीजा है....और यदि हम दोनो रॅगिंग मे फसे तो फिर प्रीसिपल हमारा सेमेस्टर बॅक लगा सकता था,जैसा कि उसने पिछले कयि साले से कयि लड़को के साथ किया था.....
.
सेमेस्टर बॅक...ये एक ऐसा शब्द था जिसने उस वक़्त हम दोनो को अपने डर के साए मे जकड रखा था, दिल पूरी तरह दहल रहा था कि यदि सेमेस्टर बॅक लगा तो मैं क्या करूँगा....घरवाले तो जान ही ले लेंगे, और अरुण का इनस्पेक्टर बाप तो हम दोनो को गोली ही मार देगा....यहाँ एग्ज़ॅम मे एक सब्जेक्ट पास करने मे पसीने छूट रहे है और ये प्रिन्सिपल डाइरेक्ट सेमेस्टर बॅक लगा रहा है.... घर पर कितनी बदनामी होगी, मेरे फर्स्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बाद जिन लोगो के मुँह खुल चुके थे वो और भी खुल जाएँगे...

दिल और दिमाग़ की इस अधेड़बुन मे फसे हुए मैं और अरुण प्रिन्सिपल ऑफीस के अंदर दाखिल हुए...और जैसा कि मैने क्लास से निकलते वक़्त सोचा था,ठीक वैसा ही हुआ....दो-तीन लड़के प्रिन्सिपल सर के सामने बैठे हुए थे.....
"जैल जाने की तैयारी कर लो तुम दोनो...क्यूंकी इन्होने तुम दोनो के खिलाफ एफ.आइ.आर. कर दी है..."

"व्हाट दा हेल..."मैं अंदर ही अंदर चीखा ,चिल्लाया....क्यूंकी वहाँ बैठे दोनो लड़को मे से एक के सर मे तो एक के हाथ मे पट्टी बँधी हुई थी....

"दोनो ने बहुत लंबे से फसाया है...अब तो पक्का घरवालो को खबर होगी..."
.
अभी प्रिन्सिपल के कॅबिन मे खड़े ही थे कि दो पोलिसेवाले अंदर आए और हम सबको पोलीस स्टेशन चलने के लिए कहा.....

हमारी हिन्दी फ़िल्मो मे अक्सर ये डाइलॉग सुनने को मिलता है कि "हमारे खानदान मे आज तक किसी ने पोलीस स्टेशन का मुँह तक नही देखा और तू वहाँ बंद था..."

मेरे साथ भी कुच्छ-कुच्छ ऐसा ही हो रहा था...मेरे खानदान मे कितनो ने पोलीस स्टेशन देखा है...देखा भी है या नही, ये तो मैं जानता...लेकिन मैं पहली बार किसी पोलीस स्टेशन को अंदर से देखने वाला था...जब मैं और अरुण ,उन दोनो फर्स्ट एअर के लौन्डो के साथ पोलीस की गाड़ी मे बैठे थे,तब मुझे यही डर सता रहा था कि कही हमारी पिटाई ना हो...पोलीस के डंडे का ख़याल आते ही मैं अंदर तक कांप गया...और ये एक ऐसी सिचुयेशन थी जिसकी मैने कभी कल्पना तक नही की थी...जब पोलीस की गाड़ी कॅंपस से निकल रही थी तो सब हमे बड़े ध्यान से देख रहे थे...उस समय सबका मुझे यूँ देखना मुझे बहुत खराब लग रहा था, मैं बहुत ज़्यादा ही डिप्रेस्ड हो गया और मेरा दिल कर रहा था कि अपने हाथ से अपने चेहरे को छिपा लूँ...अरुण मेरे बगल मे शांत बैठा हुआ शायद यही सोच रहा था कि उसने ये सब शुरू ही क्यूँ किया....पोलीस की जीप जब कॉलेज के मेन गेट से बाहर निकली तो वही वरुण अपनी बाइक पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा था...जिसके जवाब मे फर्स्ट एअर के लड़को ने भी जब मुस्कुराया तो मुझे समझते देर नही लगी कि ये सब वरुण का किया धरा है...लेकिन सवाल ये नही था...सवाल ये था कि अब हम दोनो बचे कैसे...क्यूंकी यदि रॅगिंग जुर्म हम दोनो पर साबित हो गया तो हमारा करियर ही लगभग ख़त्म हो जाएगा....उपर से हमारी मिड्ल क्लास सोसाइटी के ताने....
.
"तुम दोनो वहाँ बैठ जाओ..."टी.आइ. ने फर्स्ट एअर के दोनो लड़को को एक तरफ बैठने का इशारा किया और हम दोनो को खड़े रहने के लिए कहा....
.
पोलीस स्टेशन के अंदर जाकर मैं हर एक जगह को बड़े ध्यान से देखने लगा और जो पोलीस स्टेशन फ़िल्मो मे दिखाया जाता है उससे कंपेर करने लगा...

"क्यूँ बे ज़्यादा गुंडागर्दी का भूत सवार है तुझपर"अरुण को बत्ती देते हुए टी.आइ. बोला" शर्ट का बटन बंद कर..."

टी.आइ. का बोलना ही था कि अरुण ने फटाफट अपने शर्ट के सारे बटन बंद कर लिए और मैं पोलीस स्टेशन के अंदर लॉक अप की तलास करने लगा....मैने देखना चाहता था कि उसके अंदर के कैदी कैसे रहते है...उनकी हालत क्या होती है....और जब मुझे वहाँ लॉकप नही दिखा तो मैने अपनी गर्दन टेढ़ी करके पोलीस स्टेशन के अंदर बनी एक गली की तरफ अपनी नज़र घुमाई....
.
"सीधे खड़े रह..."अबकी बार टी.आइ. मुझे धमकाते हुए बोला और मैं एक दम से सीधा खड़ा हो गया....
.
लगभग आधे घंटे तक हम दोनो को टी.आइ. ने यूँ ही खड़ा करवा के रखा...आधे घंटे बाद फर्स्ट एअर के कुच्छ स्टूडेंट्स और एक टाइपिंग करने वाला एक बंदा अपना समान लेकर अंदर आया....टाइपिंग करने वाले को टी.आइ. ने अपने से थोड़ी दूर पर रखी एक टेबल पर बैठने के लिए कहा और फर्स्ट एअर के जो स्टूडेंट्स अभी आए थे उन्हे टी.आइ. ने अपने पास खड़ा करवाया....
.
"तुम तीनो उस वक़्त कॅंटीन मे ही थे,जब ये सब हुआ..."
"जी सर..."
"नेम बोल..."
"राजश्री पाटीदार..."एक ने जवाब दिया...
उस लड़के का नेम राजश्री है,ये सुनकर टी.आइ. ने उसे घूरा और फिर टाइपिंग वाले को राजश्री का नेम और स्टेट्मेंट लिखने के लिए बोला....
"क्या हुआ था कल कॅंटीन मे..."
राजश्री ने एक बार अपने दोनो घायल दोस्तो को देखा और फिर टी.आइ. की तरफ देखकर बोला"सर हम कुच्छ दोस्त कॅंटीन मे बैठकर चाय पी रहे थे उसके बाद हमने समोसा का ऑर्डर दिया तो लखन ने कहा कि वो डोसा खाएगा...लेकिन रिसेस का टाइम ख़त्म होने वाला था इसलिए मैने कहा कि डोसा मत खा...उसमे टाइम लग जाएगा...लेकिन लखन नही माना और डोसा खाकर ही दम लिया और उसके बाद अरुण-अरमान वहाँ आए और उन्होने भी डोसा का ऑर्डर किया...और फिर हम सब क्लास मे आ गये..."

"ये हुआ था कॅंटीन मे..."टी.आइ. ने आवाज़ उची करके पुछा...जिससे राजश्री की सिट्टी-पिटी गुम हो गयी और उसने डरते हुए हां मे जवाब दिया...
.
राजश्री पाटीदार का स्टेट्मेंट टाइप करते हुए टाइपिंग वाला हँसने लगा और स्टेट्मेंट बनाकर टी.आइ. को दे दिया....जिसके बाद टी.आइ. ने दूसरे को बुलाया...
"सर,मैं लखन...मैं भी कल वही था सिर..और जैसा कि राजश्री ने बताया सब वहाँ बैठकर समोसा खा रहे थे...लेकिन मुझे समोसा नही पसंद था इसलिए मैने डोसा का ऑर्डर दिया और जल्दी-जल्दी से खाकर क्लास की तरफ भागा ,क्लास लग चुकी थी...लेकिन मैं फिर भी अंदर गया और लब अटेंड करने के बाद 5 बजे घर चला गया था..."
टाइपिंग वाला लखन का भी स्टेट्मेंट सुनकर हँसने लगा..
"फिर इन दोनो को किसने मारा..."टी.आइ. ने पीछे की तरफ बैठे फर्स्ट एअर के उन दोनो लड़को की तरफ इशारा करके पुछा...जिन्होने हम पर रॅगिंग का केस ठोका था....

"इन दोनो को कहीं देखा है..."अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुए राजश्री को अचानक कुच्छ याद आया और वो बोला"इन दोनो का कल आक्सिडेंट हो गया था कॉलेज के बाहर...सर इन दोनो ने चोरी की बाइक भी खरीदी है और फुल स्पीड से चलाते है...इनका कोई भरोसा नही कि ये कब ,किसको टक्कर मार दे..."
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