Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-15-2018, 01:22 AM,
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
प्लॅटिनम बार के अंदर ना जा पाने के कारण दिल दुखी तो था लेकिन मेरे दोनो खास दोस्त मुझसे कही ज़्यादा नाराज़ लग रहे थे,जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ,बार से वापस कॅंप की तरफ आते वक़्त उन दोनो ने मुझे नोन-स्टॉप गालियाँ बकि.... 

"यार ,यदि मेरे पास कोई सूपर पवर होती तो बाई चोद देता उन कल्लुओ की... साले बीसी"पुल पर चलते हुए मैने उदास मन से कहा.."सालो ने रोल मे होल कर दिया..."

"तू...तू चुप रह और यदि अगली बार से कुच्छ उल्टा-सीधा काम हमसे करवाया तो मुँह मे सीधे लवडा दे दूँगा...एक तो पहले कॅंप से भागवाया ,फिर पैदल चलवाया इतना ही नही तूने हमे गे भी बना दिया...लेकिन इन सबके बावजूद दारू की एक बूँद भी नसीब नही हुई...."बार के अंदर ना घुस पाने की सारी खुन्नस मुझपर उतारते हुए अरुण चीखा....

"मैने क्या तेरे सर मे बंदूक रख कर साथ चलने को बोला था ...तू खुद अपनी मर्ज़ी से आया था..."जब अरुण के ताने वित रेस्पेक्ट टू दा टाइम,लगातार बढ़ते गये तो मैं भी उसपर चिल्लाया"और अब यदि तूने ,मुझे कुच्छ भी कहा तो मैं..."

"तो मैं...क्या,...क्या उखाड़ लेगा बोल.."

"तो मैं...तो मैं...तो मैं...."

"रहने दे तेरे गान्ड मे इतना दम नही है,जो तू मुझे धमका सके..."

"तो मैं अपना वॉलेट नीचे पानी मे फेक दूँगा...जिसमे तेरे ढाई हज़ार रुपये है..."अपनी जेब से वॉलेट निकाल कर मैं पुल के किनारे की तरफ बढ़ा....

"अरे सॉरी यार...मैं तो मज़ाक कर रहा था.तू तो भाई है अपना...आइ लव यू यार...चल एक पप्पी दे इसी बात पे..."

"तेरे गाल को तो मैं अपने लंड से ना टच करू....फिर होंठ से छुने का तो सवाल ही पैदा नही होता..."
.
इसके बाद एक-दूसरे को गालियाँ देने का जो सिलसिला चालू हुआ,वो बढ़ते समय के साथ बढ़ता ही गया ,हम तीनो के मन मे जो आता वो हम तीनो एक-दूसरे को पुल पर आगे बढ़ते हुए बके जा रहे थे....
.
"अबे चुप..."हमारी सूपरफास्ट गालियों की बौछार को रोकते हुए अरुण बोला"अरमान लंड, मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि...सामने से जो लड़किया आ रही है ,वो वही लड़किया है..जिनसे आज तू बात कर रहा था..."

"हां यार ये तो वही माल है,जिसे तूने अपना 2051 वाला चश्मा एक दिन के लिए उधार मे दिया है..."अरुण के सुर मे सुर मिलाते हुए सौरभ भी बोला....

मैने सामने नज़र मारी तो पाया कि आंजेलीना अपनी उन्ही दो बदसूरत सहेलियो के साथ हँसते-खेलते पुल पर हमारी तरफ चले आ रही थी...
.
"कही तुम दोनो वो तो नही सोच रहे जो मैं सोच रहा हूँ... "अरुण और सौरभ को अपने दाँत दिखाते हुए मैने अपनी आँख मारी....

"वो तीनो मान जाएगी क्या..."सौरभ ने अपनी शंका जाहिर की...

"अबे मानेगी कैसे नही...मुझ जैसे स्मार्ट लड़के के साथ तो आंजेलीना जौली भी जोड़ी बना ले फिर तो ये आंजेलीना सिल्वा ही है और भूल मत कि मैने इसे गॉगल उधार मे दिया था..."मैने अरुण और सौरभ को जहाँ खड़े थे,वही खड़े रहने के लिए कहा और चींकी,पिंकी के साथ आ रही सिल्वा डार्लिंग की तरफ बढ़ा....
.
"कल की तरह आज फिर कॅंप से भाग गयी...एक लड़की को ये सब शोभा नही देता क्यूंकी आज कल जमाना बहुत खराब है...कौन ,कब पकड़ ले कुच्छ नही कह सकते..."आंजेलीना के ठीक सामने खड़े होकर मैने उसे छेड़ा"सारे लड़के मुझ जैसे शरीफ नही होते...वैसे जा किधर रही हो..."

"प्लॅटिनम बार..."

"फिर तो वापस अपने कॅंप का रास्ता नापो,क्यूंकी बिना कपल के साले अंदर नही जाने दे रहे...."

"तुम्हे कैसे पता चला और मैं तुम्हारी बात कैसे मान लूँ..."

"तुम्हे क्या लगता है कि मैं और मेरे दोस्त,नया शर्ट-पॅंट पहनकर...तेल-कंघी करके...क्रीम-पाउडर लगाकर ,पुल के दूसरी तरफ बीड़ी पीने गये थे... हम तीनो भी बार से ही आ रहे है और वैसे भी तुम तीनो कोई स्वर्ग की उतरी अप्सरा नही हो जो तुम्हारे साथ कपलिंग करने के लिए हम मर जाए....वो तो हमे बस बार के अंदर जाना है,इसलिए तुम तीनो से कह रहा हूँ..क्यूंकी इधर तुम तीन,उधर हम तीन...."

"मेरे पास बार के अंदर जाने का दूसरा तरीका है..."मुझे रास्ते से हटने का इशारा करते हुए आंजेलीना बोली....

मैं तुरंत सामने से हट गया और ये सोचने लगा कि आंजेलीना का दूसरा तरीका क्या हो सकता है....और जब मुझे कुच्छ-कुच्छ हिंट मिला तो मैं ज़ोर से चिल्लाया...

"गेज़ आंड लेज़्बियन्स आर ऑल्सो नोट अलोड... "

"तुम्हे कैसे क्या पता कि मैं ये सोच रही थी..."जबारजस्ट झटका खाते हुए आंजेलीना पीछे पलटी...

"मैं अंतर्यामी हूँ...मेरी बात मान लो और कपलिंग कर लो...एक बार बार मे एंट्री हो जाए...फिर तुम तीनो अपने रास्ते और हम तीनो अपने रास्ते..."
.
आंजेलीना को डिसिशन लेने मे कुच्छ समय तो ज़रूर लगा लेकिन रिज़ल्ट हमारे फ़ेवर मे रहा...वो हां बोलने मे थोड़ा हिचकिचा रही थी और उसने हां बोलने के तुरंत बाद एक शर्त रखी की बार के अंदर जाने के बाद हम सब अलग-अलग हो जाएँगे....

"ऐज युवर विश..."आंजेलीना के पास जाकर मैने अपना फेस उसकी तरफ किया तो वो हड़बड़ा कर पीछे हो गयी...

"डरो मत, किस नही कर रहा...बस कान मे कुच्छ कहना है"

"क्या कहना है..."मुझसे दो कदम और पीछे जाते हुए आंजेलीना घबराई..

"कहा ना कान मे कहना है,और तुम इतनी घबरा क्यूँ रही हो...."

"देखो अरमान ऐसा है कि..."

"कैसा है..."

"तुम तीनो हम तीनो से दस कदम आगे चलना और हम लोग पीछे..नही तो.."आंजेलीना ने अपना हाथ पीछे किया और एक बड़ा सा चाकू मुझे दिखाते हुए बोली"सीधे सीने मे गाड़ दूँगी..."

"तुम मे इतनी हिम्मत नही है..."

"लॅब मे मैने बहुत चीरा-फाडी की है...मैं इन सब कामो मे बहुत एक्सपर्ट हूँ..."

"ठीक है...ठीक है..मैं आगे जा रहा हूँ ,मैं तो बस ये कहना चाहता था कि मेरे दोस्तो को भूल से भी ये मत बताना कि तुमने मुझे आज गॉगल वाले मामले मे मुझे हरा दिया था...वरना मेरे रोल मे होल हो जाएगा..."बोलते हुए मैं आगे बढ़ा"और चाकू जहाँ से निकाला है ,वही घुसा लो..."
.
स्कूल मे जब मैं पूरी क्लास मे फर्स्ट आता था तो रिपब्लिक डे के दिन मुझे स्टेज पर बुलाकर मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल हमेशा यही कहता कि "मैं पढ़ने वाला स्टूडेंट बिल्कुल भी नही लगता...मतलब कि ना तो मेरी आँखो मे बड़े-बड़े गोल मटोल चश्मे कभी लगे और ना ही कभी मेरी हरकते एक पढ़ने वाले स्टूडेंट की तरह थी....और इसका अश्चर्य मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल हमेशा प्रकट करता ,वो भी सबके सामने.....उस समय मैं सबके सामने स्टेज मे खड़ा होकर मुस्कुराता रहता और प्रिन्सिपल के पैर छुकर वापस आ जाता था...लेकिन अक्सर रात को मैं सोने से पहले आईने मे अपनी शकल ज़रूर देखता कि मुझे लोग मेरी शकल देखकर पढ़ने वाला लड़का क्यूँ नही समझते....? 

और ऐसा ही कुच्छ अभी-अभी हुआ था...जब मैं आंजेलीना की तरफ बढ़ा तो उसने मुझे मारने के लिए सीधे चाकू ऐसे निकाल लिया, जैसा साला मैं कोई साइको रेपिस्ट हूँ . खैर ,आंजेलीना की इस हरकत से मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि वो भी मेरी तरह हमेशा प्लान के साथ चलती है और उसके साथ ग़लत बात करना मतलब अपने पेट मे साढ़े सात इंच का चाकू घुस्वाना है...इसलिए मैं चुप चाप आगे अपने दोस्तो के पास आया और मोबाइल की फ्लश लाइट जलाकर आंजेलीना आंड ग्रूप ,से दस कदम आगे चलने लगा....पुल से बार तक के इस पैदल सफ़र मे मैं एक बार भी पीछे नही मुड़ा,क्या पता साली कब चाकू फेक कर मार दे...लड़कियो का क्या भरोसा......
.
"अब पास आउ या यूँ 10 कदम की डिस्टेन्स मे रहकर ही बार मे एंट्री करवानी है...."उखड़े-उखड़े अंदाज मे मैं पीछे मुड़कर आंजेलीना से बोला...

"ओके...आ जाओ.."

आंजेलीना की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद मैं अरुण और सौरभ के साथ उन तीनो की तरफ बढ़ा....

"कान खोलकर सुन लो बे लवडो..आंजेलीना के साथ मैं रहूँगा."उन तीनो की तरफ आगे बढ़ते हुए अरुण धीरे से बोला...

"तू रहने दे, वो बहुत तेज़ आइटम है...रेप कर देगी तेरा.उसे मेरे साथ रहने दे..."मैने कहा

"तू चुप कर बे, मेरे सामने सब कम है...तू देखना आज रात बार मे ही वो मुझे आइ लव यू बोल देगी..."

"ठीक है,जैसी तेरी मर्ज़ी...लेकिन क्यूँ ना ये फ़ैसला आंजेलीना डार्लिंग पर छोड़ दिया जाए कि वो किसके साथ जाना पसंद करती है..."मुस्कुराते हुए मैने अरुण की तरफ देखा...

अरुण को भी शायद ये लगने लगा था कि आंजेलीना, उसके साथ ना जाकर मेरे साथ बार के अंदर आएगी...इसीलिए वो अगले पल ही मुझे धिक्कारने लगा...

"साले तू एक एमबीबीएस वाली के लिए अपने दोस्त को धोखा देगा..."

"हां...वो भी एक बार नही सौर बार धोखा दूँगा..."

"तू आज के बाद बात मत करना मुझसे...बोसे ड्के..."
.
आंजेलीना की तरफ जाते हुए मैने ये सोच लिया था कि मेरी जोड़ी तो उसी के साथ बनेगी और अरुण, सौरभ उसकी बदसूरत सहेलियो चींकी और पिंकी के साथ रहेंगे....अपनी इसी सोच को सच का रूप देने के लिए मैं आंजेलीना के ठीक सामने खड़ा हो गया इस आस मे कि अब वो अपना कदम आगे बढ़ाएगी और मेरे हाथ मे हाथ डालकर बार की तरफ बढ़ेगी....लेकिन उसने ऐसा नही किया, वो मेरी तरफ आने के बजाय ,सीधे अरुण के तरफ बढ़ गयी और बोली"चलो..."

"तेरी माँ की फिल इन दा ब्लॅंक्स..."जब मेरी अरमानो को ज़ोर का झटका लगा तो मैं खुद पर चीखा...चिल्लाया.लेकिन अब खुद पर चीखने,चिल्लाने से कुच्छ नही हो सकता था,क्यूंकी लड़की तो अरुण ले गया था...और मेरी फूटी किस्मत मे आंजेलीना की बदसूरत फ्रेंड पिंकी फँसी थी.....

आंजेलीना के साथ बार की तरफ जाते वक़्त अरुण बीच-बीच मे पीछे पलट कर मुझ पर हँसता और साइलेंट मोड मे अपना मुँह चलाकर मुझसे कहता कि"मैं,तुझसे ज़्यादा हॅंडसम और स्मार्ट हूँ..." 

आंजेलीना ने सच कहा था कि कभी-कभी लंगूर के हाथ मे भी अंगूर लग जाते है . 
.
"तुम्हारा नाम अरमान है ना..."मेरे हाथ मे अपना हाथ फसाते हुए पिंकी ने अपना मुँह फाडा...

"हां..."दूसरी तरफ देखकर मैने पहले हज़ार गालियाँ उसे दी और फिर हां मे जवाब दिया...

"मेरा नाम पिंकी..."

"कोई फ़र्क नही पड़ता..."

"फ़र्क पड़ता है..ये बताओ मैं तुम्हे कैसे लगती हूँ..."

शुरू मे दिल किया कि उसे अपना गला फाड़-फाड़ कर बताऊ कि वो मुझे एक नंबर की चोदु लगती है..लेकिन इस समय मुझे बार के अंदर जाना था ,जिसके लिए उसका मेरा साथ रहना ज़रूरी था..इसलिए मैने अपने दिल पर हज़ार टन का पत्थर रखकर उसकी बढ़ाई कर दी कि'उससे खूबसूरत लड़की मैने आज तक कही नही देखी...'
.
"ओह सच मे..."शरमाते हुए पिंकी ने मेरा दिल और दिमाग़ खाना जारी रखा.वो आगे बोली"लेकिन तुम तो आवरेज दिखते हो..."

"आवरेज... "मैं जहाँ था वही रुक गया और पिंकी की तरफ देखकर उसे बोला"शुक्रिया..."(म्सी ,मुझे आवरेज कहती है..लवडी पहले खुद को देख...मेरे कॉलेज की मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की लड़कियो के झान्ट जैसी दिखती है तू...चेहरा तो ऐसे है जैसे अभी-अभी किसी ने मूठ मार कर गिरा दिया हो..बीसी अब चुप हो जा वरना बाल पकड़ कर 360 डिग्री पर घुमा दूँगा...बकल...रंडी..)

"क्या हुआ ,रुक क्यूँ गये...तुम मुझे लाइन तो नही मार रहे ना.."
.
"ये ले...अब यही कसर बाकी थी...बोसे ड्के अरुण... ,तू मिल बेटा आज मुझे..."

आर.पिंकी की बकवास सुनते-सुनते आख़िरकार हम लोग एंट्री गेट के पास पहुँचे और मैने चैन की साँस ली कि अब इस आर.पिंकी से छुटकारा मिलेगा...जो बआउनसर्स एंट्री गेट के पास खड़े थे उन्होने अबकी बार हमे नही रोका और 'वेलकम टू प्लॅटिनम बार...' बोलते हुए अंदर जाने का इशारा किया....
.
प्लॅटिनम बार के अंदर आते ही मैने आर.पिंकी का हाथ डोर झटका और वहाँ से तुरंत दूसरी तरफ भागा...ताकि आर.पिंकी मेरे पीछे ना पड़ जाए...आंजेलीना की उस बदसूरत फ्रेंड से छुटकारा पाने के बाद मैने पूरे प्लॅटिनम बार पर नज़र डाली...साला क्या महॉल था..तेज आवाज़ मे बज रहे ड्ज और ड्ज के साउंड पर नाच रही लड़कियो को देखकर दिल झूम उठा....एक पल मे वो सारी परेशानी मेरे जेहन से उतर गयी,जो कि मुझे यहाँ तक आने के लिए झेलनी पड़ी थी और सबसे ज़्यादा खुशी मुझे जिससे हो रही थी वो ये कि बार मे आने का कोई एंट्री फीस नही था 

उस बार का रंग ही कुच्छ अलग था..मैने देखा कि वहाँ हर सेकेंड कितने बदलाव हो रहे थे...कयि प्रेमी जोड़े जब तक कर डॅन्स फ्लोर से उतर जाते तो उनकी जगह तुरंत अभी-अभी जोश मे आए दूसरे कपल ले रहे थे...कभी किसी थप्पड़ की गूँज सुनाई देती तो कभी किसी के प्यार के बोल सुनाई पड़ते...दारू के काउंटर भी इस बीच काफ़ी भरा पड़ा था...जब एक टल्ली होकर वहाँ से उठ कर जाता तो दूसरा उसकी जगह टल्ली होने आ जाता और इन सबके बीच ड्ज का मदमस्त म्यूज़िक लगातार मेरे अंदर जोश भर रहा था कि मैं भी वो सब कुच्छ करू ,जो बाकी लोग रहे थे....

और इसकी शुरुआत मैने दारू से शुरू करने का सोचा...
.
"ला भाई कुच्छ पॅक बना..."शराब के काउंटर पर बैठकर मैं बोला...

"जी बोलिए..."

"प्लॅटिनम के 10-12 पेग सीधे बना के दे.."

मेरे द्वारा डाइरेक्ट 10-12 पेग का ऑर्डर मिलने के बाद वहाँ ,मेरे सामने खड़ा वेटर कुच्छ देर तक मेरा मुँह तकने लगा और फिर थोड़ी देर बाद बोला..

"मिक्स क्या करू..."

"थोड़ा सा ठंडा पानी डालना और हर पेग मे दो बर्फ के टुकड़े..."

"ओके सर.."

"और हां...पेग ना तो ज़्यादा हार्ड होना चाहिए और ना ही ज़्यादा लाइट...एक दम पर्फेक्ट होना चाहिए, और यदि तुमसे ना बने तो मुझे दारू देना ,मैं अपना पेग खुद बना लूँगा...."
.
"क्या पी रहा है बे..ज़रा मुझे भी तो टेस्ट करा..."मेरे एक साइड बैठकर अरुण बोला...

"तू लवडे चुप ही रह...तेरे कारण उस झट बराबर लौंडी ने मेरा दिमाग़ का दारू बनाकर पी गयी ,साली रंडी...दिल तो कर रहा था कि वही उठा के पटक दूं उसको..."

"ह्म्म...सेम टू सेम फ्लेवर मेरे लिए भी..."वेटर को अरुण ने ऑर्डर दिया...

"अबे तू ,मेरी बात नही सुन रहा..."

"बोल ना,सुन रहा हूँ..."

"घंटा सुन रहा है...चल निकल यहाँ से..."

"चढ़ गयी क्या बे...इधर ढंग से रह,वरना पेलाइ होगी.उन बौंसेर्स के हाथ देखे है ना...साला जितना हमारा थाइ है उतना तो उनका बाइसेप्स है..."मेरी दूसरी साइड मे बैठकर सौरभ ने वेटर से कहा"मेरा भी सेम फ्लेवर रहेगा..."
.
"बिल कितना हुआ..."जब हम तीनो ने पेट भर दारू पी ली तो मैने वेटर से कहा ,जिसके बाद उसने एक सफेद कलर की पर्ची मेरी हाथो मे थमा दी....

"अबे सौरभ...तुझे दिख रहा है क्या की इसमे कितने रुपये लिखे है...मुझे तो दिखना बंद हो गया,ऐसा लगता है..."सौरभ के हाथ मे पर्ची थमा कर मैं बोला"साला ,कुच्छ दिख क्यूँ नही रहा...वापस कॅंप भी जाना है.."

"1860.61 "

"साले चोदु बनाते है कुत्ते, 300 रुपये की दारू 600 रुपये मे बेचते है ये...खैर कोई बात नही,अभी मैं बहुत रहीस हूँ...मेरे पास बहुत पैसा है...तुम तीनो बिल की फिक्र बिल्कुल मत करना,मैं भर दूँगा...भर दूँगा मैं.."कहते हुए मैने अपने पीछे की तरफ लेफ्ट साइड वाली पॉकेट मे हाथ डाला तो मेरा वॉलेट उसमे नही था...

"कमाल है यार...मेरा वॉलेट नही मिल रहा...एक काम करो,तुम लोग मेरे दारू के पैसे दे देना...मैं कल सुबह होते ही दस गुने वापस करूँगा..."

"तेरा वॉलेट तेरे राइट साइड वाले पॉकेट मे है,अकल के अंधे..."

"ओह..सॉरी...सॉरी.."
.
मैने वेटर को डाइरेक्ट 2000 रुपये दिए और वहाँ से चलता बना...जिस काउंटर पर बैठकर मैं अरुण और सौरभ के साथ टल्ली हो रहा था,उसी के ठीक सामने बैठने का इंतज़ाम था...

"सिगरेट पिएगा..."अरुण ने मुझसे पुछा...

"अब तो एक बूँद पानी की जगह नही बची है...तुम दोनो पी लो,लेकिन..यहाँ नही...मुझे सिगरेट से आलर्जी है..आइ हेट सिगरेट्स...कुत्तो तुम लोग भी मत पिया करो,वरना तुम लोगो के माँ-बाप क्या सोचेंगे"

"तू बेटा मत पिया कर इतनी और इधर ही रहना ,हम दोनो 5 मिनिट मे आते है..."

"जाओ...जाओ, मैं अभी होश मे हूँ...बस साला आँख बंद हो रही है और किसी को चोदने का मन कर रहा है...एक काम करो तुम दोनो अपना काम निपटा कर आओ फिर मैं तुम दोनो को ठोकुन्गा..."
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