Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-15-2018, 01:35 AM,
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
"बीसी,गाली देता है..."मेरे हाथ को और ज़ोर से मरोड़ कर वो बोला....

तब तक अरुण और सौरभ को बाकी दोनो हवलदारो ने ढूँढ लिया और उन दोनो को पकड़ कर गेट के पास बिठा दिया.....

"इधर ही बैठ ,ज़रा सा भी हिला तो गान्ड मे गोली मार दूँगा...."अरुण और सौरभ को गेट के पास बैठाते हुए उन पोलीस वालो ने कहा....

लेकिन लगता है मेरा खास दोस्त अरुण , अब भी राजा आरूनोड के कॅरक्टर मे था, उसने बिना कुच्छ सोचे -समझे ,बिना आगे-पीछे की परवाह किए...आव ना देखा ताव और हवलदार को एक तमाचा जड़ दिया...

अरुण के इस तमाचे से कुच्छ देर तक तो खुद तमाचा खाने वाला हवलदार भी शॉक्ड रहा...लेकिन उसके बाद जो रियेक्शन उन तीनो पोलीस वालो का हुआ, वो बताने लायक नही है.....हम तीनो को पेल-पेल के वो पोलीस वाले हमारी जान ही ले लेते, यदि गेट के दूसरी तरफ से किसी ने उन्हे आवाज़ देकर रुकने के लिए ना कहा होता तो......

"उन दोनो को छोड़ कर खड़े हो जाओ ,लगता है साहब आ रहे है..."मेरे उपर इतनी देर से जो हाथी का वजन लिए हुए बैठा था, वो आवाज़ सुनते ही मेरे उपर से हट गया और एस.पी. को सलाम करने की पोज़िशन मे आ गया.....

डांगी जी हाथो मे एक रिवॉल्वर लिए हुए गेट से बाहर आए और हम तीनो को देखकर सवालिया नज़रों से अपने गार्ड्स की तरफ देखा....

"वो...वो साहब, ये तीनो ने गाड़ी से गेट को टक्कर मार दी थी और जब हम इन्हे उठाने आए तो हम पर हमला कर दिया और गालियाँ भी बकने लगे....."
.
अब तो मेरी हालत ऐसे होने लगी,जैसे हफते पहले नही बल्कि महीनो पहले किसी ने बिना पानी के रेगिस्तान मे घुसेड दिया हो...डर इतना लगा कि पुछो मत और अंदर से सिर्फ़ एक ही आवाज़ आ रही थी कि "बस एक बार इन सबसे छुटकारा मिले ,उसके बाद तो दारू का नाम तक नही लूँगा...."

"इन तीनो को थाने लेजा कर बंद कर दो, जीईसी कॉलेज के लड़के लगते है..."

इतना बोलकर एस.प. अंदर खिसक लिया और 5 मिनिट के अंदर पोलीस जीप ने हमे लेजा कर जैल के अंदर पटक दिया.....
.
मेरे बर्तडे के दिन मेरी ऐसी दुर्गति होगी मैने सोचा तक नही था...हमे सलाँखों के पीछे फेक दिया गया वो भी बिना किसी कंबल और रज़ाई के....ठंड तो इतनी थी कि यदि दुनिया की सबसे हॉट लौंडिया भी हमारे सामने नंगी खड़ी हो जाए तो ठंड के मारे लंड तक खड़ा ना हो....वैसी ठंड मे मैं और मेरे दोस्त पूरी रात पोलीस स्टेशन मे बंद रहे....

कुच्छ शराब के नशे का असर था तो कुच्छ हमे पड़ी मार का असर था, जिसके कारण मेरी पलकें भारी होकर घंटे-दो घंटे मे बंद हो गयी....वरना ऐसी ठंड मे तो मैं हफ़्तो तक नही सो पाता.....
.
बचपन मे मैं एक जादू हर रोज देखा करता था...मैं जब बहुत छोटा था तब मैं अक्सर रात को टी.वी. देखते हुए या तो सोफे पर सो जाता था या फिर अपने भाई के साथ खेलते हुए नीचे ज़मीन पर ही सो जाता था, लेकिन जब दूसरे दिन सुबह मेरी आँख खुलती तो मैं बिस्तर मे पड़ा होता....उस वक़्त मैं इसे एक मॅजिक मानता था लेकिन जैसे-जैसे बड़ा हुआ तो सब कुच्छ समझने लगा.दरअसल वो कोई मॅजिक नही था वो तो मेरे मम्मी-पापा थे जो मुझे उठाकर बिस्तर पर सुला देते थे...

और आज जब मेरी आँख ठंड मे मरते हुए बंद हो रही थी तो मैं बचपन का वो जादू फिर से देखने की चाहत मे था. मैं चाहता था कि अगली सुबह जब मेरी आँख खुले तो मैं यहाँ जैल मे ना होकर अपने बिस्तर पर रहूं और उठते ही अपना सर खुजा कर अपनी माँ से इस बारे मे पुछु कि"मैं इधर कैसे आया...."
.
दूसरे दिन वो मॅजिक तो नही हुआ, जो बचपन मे अक्सर होता था,लेकिन पता नही रात को किसी ने मेरे उपर कंबल डाल दी थी...दूसरे दिन जब मेरी आँख खुली तो समय का कोई अता-पता नही था, बस इतना मालूम था कि सूरज निकल चुका है....

मैं उठकर बैठ गया और अरुण, सौरभ की तरफ देखा....फिर जैल की सालाँखों की तरफ देखा और याद करने लगा कि कल रात आक्चुयल मे हुआ क्या था...

कल रात की घटना याद करते ही मेरे हाथ-पैर फूल गये, सर चकराने लगा...कुच्छ समझ मे ही नही आ रहा था कि क्या करू, किससे क्या बोलू...जिससे हम सब वहाँ से निकल सके....

मैं,अरुण और सौरभ वैसे थे तो एक ही जगह, लेकिन होश मे आने के बहुत देर बाद तक लगभग घंटे भर बाद तक हम तीनो मे से कोई कुच्छ नही बोला...हम तीनो सिर्फ़ एक-दूसरे का मुँह ताक रहे थे...
.
"तुम मे से कोई एक बाहर आओ...साहब को बात करनी है..."सलाँखो के दूसरी तरफ से हवलदार ने गेट खोला और हमसे बोला....

"अरमान तू जा और जाते ही पैर पकड़ लेना...."सौरभ ने अपना कंबल समेट कर मुझसे कहा...

सौरभ के बोलते ही मैं कंबल से बाहर निकला और हवलदार के पीछे-पीछे जाने लगा....हवलदार मुझे सीधे पोलीस स्टेशन के बाहर ले गया और जब मैने आस-पास देखा तो समझ गया कि ये हमारे कॉलेज के पास वाला पोलीस स्टेशन है....

बाहर धूप की छान्व मे दो कुर्सिया रखी हुई थी ,जिसमे से एक पर डांगी जी बैठ कर चाय की चुस्किया ले रहे थे और दूसरी कुर्सी शायद मेरे लिए थी....हवलदार के पीछे चलते हुए मैं डांगी के पास पहुचा और सर झुका कर खड़ा हो गया...डांगी ने हवलदार को वहाँ से जाने के लिए कहा और मुझे अपने सामने वाली चेयर पर बैठने का इशारा किया....

"कल रात मैने इन्हे कंबल देने के लिए कहा था...इन्होने कंबल दिया था क्या..."

"ह..."

"क्या..."

"ह..हा..हां...दिया था.."

"किस कॉलेज मे पढ़ते हो..."

"जीईसी...जीईसी मे..."

"कल रात क्या हुआ था..."

मैने पहली बार एस.प. की तरफ देखा और बोला"सर, 2 मिनिट दीजिए...याद करके बताता हूँ..."

जवाब मे डांगी जी चाय की सिर्फ़ चुस्किया लेते रहे...वैसे तो मुझे पूरा याद था कि कल रात क्या हुआ था...लेकिन एस.पी. के सामने मैं ऐसे ही कुच्छ भी बोलने का मतलब था कि खुद के गले मे फाँसी का फँदा फसाना....इसलिए मैने उनसे दो मिनिट का समय माँगा ,ये सोचने के लिए कि मुझे क्या बोलना चाहिए.

दो मिनिट का बोलकर मैं पूरे 5 मिनिट तक चुप बैठा रहा.तब तक डांगी जी की चाय भी ख़त्म हो चुकी थी और वो अब मेरी तरफ ही देखे जा रहे थे.....

"ज़य माँ काली, जय भद्रा काली...हर-हर महादेव...."अंदर ही अंदर भगवानो के नाम का उच्चारण करते हुए मैने बोलना शुरू किया"कल मेरा बर्तडे था, इसलिए हम लोग पार्टी मनाने एक होटल गये थे..."

"बर्तडे था...ओह, हॅपी बर्तडे..."

"थॅंक यू सर..."एस.पी. ने जब मुझे बर्तडे विश किया तो मेरे दिल की घबराहट और जीभ की लड़खड़ाहट थोड़ी कम हुई, बोले तो अपुन थोड़ा रिलॅक्स फील करने लगा क्यूंकी एस.पी. अपुन को एक अच्छा इंसान लगा...मैने आगे कहा"तो जब हम लोग पार्टी करके आ रहे थे तो गाड़ी मेरा दोस्त पांडे चला रहा था और उसकी आँख लग गयी,जिसके कारण बाइक सीधे आपके बंग्लॉ के गेट से टकरा गयी..."

ये बोलने के तुरंत बाद मुझे राजश्री पांडे का ख़याल आया, क्यूंकी वो बाइक और गेट के बीच हुई टक्कर के बाद से मुझे नही दिखा था....

"साले का कहीं उपर का टिकेट तो नही कट गया...."मैने सोचा और इनोसेंट सी शक्ल बनाते हुए डांगी जी से पुछा कि मेरा चौथा साथी कहाँ है...

"वो बेहोश हो गया था ,अभी फिलहाल ठीक है..."

"वो है कहाँ...."

"हॉस्पिटल मे...कल रात ही मैने उसे हॉस्पिटल मे अड्मिट करवा दिया था..."

"बहुत भलामानुस पोलीस अधीक्षक है यार...खम्खा मैं इसे गाली देता रहता था..."जब मुझे पता चला कि डांगी ने पांडे जी को हॉस्पिटल मे अड्मिट करा दिया है तो मैने सोचा और एस.एल. डांगी के लिए इज़्ज़त मेरे दिल मे अपने आप आ गयी....
डांगी जी ने चाय ख़त्म करने के बाद एक हवलदार को अपने पास बुलाया..

"इन तीनो का नाम, पर्मनेंट अड्रेस,मोबाइल नंबर लेकर इन्हे जाने दो और कोई केस फाइल मत करना...."अपनी जगह पर खड़े होते हुए उन्होने कहा"और हां, इनकी बाइक भी छोड़ देना, स्टूडेंट है...ज़ुर्माना शायद ना भर पाए..."
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