Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-15-2018, 01:40 AM,
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरा ऐसा मानना था कि आराधना मुझसे नाराज़ होगी ,मुझपर चीखेगी,चिल्लाएगी...यहाँ तक कि गुस्से मे हाथ भी उठा सकती है इसलिए आराधना को हॉस्टिल से बाहर आते देख मैने अपने हाथो को किसी भी अचानक हमले से निपटने के लिए तैयार कर लिया और डाइलॉग्स का तो जानते ही हो कि ,मैं लंबी-लंबी दे सकता हूँ....
"क्या हुआ सर, इतनी रात को...क्या विचार है..."हमेशा की तरह चुदने के मूड मे आते हुए आराधना बोली...
"बस ऐसे ही..."(थोड़े देर रुक हवासी, ऐसा लवडा घुसाउन्गा की ज़िंदगी भर दर्द नही जाएगा)
"फिर कहिए...क्यूँ कष्ट किया यहाँ तक आने का..."
"मुझे कुच्छ कहना है तेरे को..."
"नर्वस क्यूँ हो रहे हो..."मेरा मज़ाक उड़ाते हुए आराधना हँसी...
"मैं नर्वस नही हूँ, नर्वस होने की आक्टिंग कर रहा हूँ ,ताकि जो मैं आगे कहने वाला हूँ, उसे सुनकर तेरा दर्द कुच्छ कम हो और मैं ये कहना चाहता हूँ कि मैं तुझसे प्यार नही करता...वो सब तो ऐसे ही बस टाइम पास करने के लिए मैने ये सब नाटक किया...."
मैने सोचा कि अभिच...अभिच आराधना रोएगी, मुझपर हाथ उठाएगी...लेकिन उसने वैसा कुच्छ नही किया .वो रोने की बजाय ऐसे हँसने लगी जैसे मैने उसकी चूत मे गुदगुदी की हो.....
"तू हँस क्यूँ रही है...मैं सच बोल रहा हूँ "
"मुझे यही बताने के लिए हॉस्टिल से बाहर बुलाए हो..."आराधना ने थोड़े देर के लिए अपनी हँसी रोकी और फिर हँसने लगी.....
"हंस ले,मेरा क्या है...लेकिन मैं कुच्छ चीज़े क्लियर कर दिए देता हूँ...अब से ना तो तू मुझे कॉल करना और ना ही मेस्सेज...वैसे भी अगर तू ये सब फूटियापा करना भी चाहेगी तो कर नही पाएगी ,क्यूंकी मैं कल अपना नंबर चेंज कर लूँगा और अपना पुराना नंबर हॉस्टिल के किसी लौन्डे को दे दूँगा...इसलिए सोच-समझकर ही मेस्सेज करना..."
"ह्म्म्म...."ये सुनकर आराधना की हँसी अबकी रुक गयी...."मैं समझी नही कुच्छ...आप कहना क्या चाहते हो..."
"मैं डाइरेक्ट्ली जो कहना चाहता हूँ,उसे इनडाइरेक्ट्ली ही समझ ले ना...तुझे ही फ़ायदा होगा..."
"हुह...."
"इनडाइरेक्ट्ली नही समझी ना...तो फिर डाइरेक्ट्ली सुन .मैने तेरे दूर के भाई कालिए से शर्त लगाई थी कि मैने तुझे पटा के छोड़ूँगा...जिसमे मैं कामयाब रहा. लेकिन अब मेरा मन भर गया है,इसलिए...आज से हम कभी नही मिलेंगे और यदि कभी मिले तो बात नही करेंगे और यदि कभी बात भी करनी पड़ी तो ,इस बारे मे तो बिल्कुल भी बात नही करेंगे...."थोड़े देर के लिए मैं रुका ,क्यूंकी जैसे-जैसे मैं बोलते जा रहा था,आराधना की आँखे धीरे-धीरे बड़ी होती जा रही थी...वो रोना चाहती थी,या फिर कहे कि वो बस रो ही देती ,यदि मैं उस वक़्त चुप ना हुआ होता तो....इसलिए मैं थोड़ी देर के लिए रुका और जब मुझे यकीन हो गया की ,आराधना अब थोड़ा नॉर्मल हो गयी है तो मैने आगे बोलना शुरू किया....

"माँ कसम, आराधना...मैं तुझसे बिल्कुल भी प्यार नही करता.मैं किसी और से प्यार करता हूँ लेकिन सेक्यूरिटी रीज़न के कारण मैं तुझे उसका नाम नही बताउन्गा.मैं जानता हूँ कि तुझे बहुत बुरा लग रहा होगा,लेकिन मैं क्या करू....वैसे भी तुझे सोचना चाहिए था कि मुझ जैसे लड़का कॉलेज की बाकी लड़कियो को छोड़ कर तेरे पीछे क्यूँ पड़ेगा .मैं जानता हूँ कि मैं बहुत बुरा कह रहा हूँ लेकिन मुझे इस वक़्त बिल्कुल भी बुरा नही लग रहा है ,जो इस बात की गवाह है कि मेरे कलेजे मे तेरे लिए ज़ीरो पॉइंट ज़ीरो ज़ीरो ज़ीरो ज़ीरो वन(0.00001) के बराबर भी कोई फीलिंग नही है और गूगल मे जाकर ये सर्च ज़रूर करना कि 'हाउ टू फर्गेट एक्स-बाय्फ्रेंड'. उम्मीद है,कुच्छ काम की चीज़ मिल जाएगी...."बोलकर मैं चुप हुआ और याद करने लगा कि और कुच्छ बोलना बाकी है या फिर खीसकू यहाँ से....

"एक और बात....आज के बाद किसी से भी पंगे मत लेना और यदि कोई सीनियर इंट्रो वगेरह ले तो शांति से दे देना...क्यूंकी अब मैं तुझे बचाने नही आने वाला...अब चलता हूँ.ऑल दा बेस्ट..."

इसके बाद मैं वहाँ एक सेकेंड के लिए भी नही रुका और वापस तेज़ कदमो के साथ हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....क्यूंकी मैं नही चाहता था कि आराधना मेरे पीछे आ जाए....

"वाउ ! आराधना का मॅटर तो बड़ी आसानी से सुलझ गया....उसने तो कोई रिक्ट ही नही किया. मुझे ऐसे ही लड़किया पसंद है,जो मेरी बात सुने और बस सुने...कोई जवाब या सवाल ना करे...."

"क्यूँ बे अरमान ,सुना है कि फेरवेल के दिन तेरा और एश का कुच्छ प्रोग्राम है...."रात को सोते समय सौरभ ने पुछा....
वैसे तो हॉस्टिल मे बहुत कम ही ऐसी रातें गुज़रती थी,जो कि बिना पिए गुज़रे...और वो रात उन्ही रातों मे से एक थी.यानी कि मैं बिल्कुल होश-ओ-हवास मे था और मेरे रूम मे उस वक़्त सिर्फ़ हम तीनो ही थे.
"क्या..."सौरभ की बात सुनकर अरुण ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और हँसते-हँसते बिस्तर से नीचे गिर गया.....
"इतना क्यूँ मुँह फाड़ रहा है बे..."
"लवडा, ऐसे इंपॉसिबल बात करोगे तो हँसी तो आनी ही है ना..."बिस्तर पर वापस लेट कर अरुण बोला"मुझे ये तो मालूम था कि अरमान, हवा मे सारी बातें करता है,लेकिन सौरभ...तू...तू कब्से इसकी तरह नीच प्राणी बन गया. आइ हेट बोत ऑफ यू.निकल जाओ लवडो मेरे रूम से.मैं तुम्हारी बदसूरत शकल तक नही देखना चाहता..."
"अबे सच है ये....खाने के टाइम पर उमेश बता रहा था..."
उन दोनो की बातें सुनकर मुझे ऐसा अंदाज़ा हो रहा था कि अब ये दोनो मुझसे पुछेन्गे कि सच क्या है और इसीलिए वो दोनो मेरी तरफ देखते उसके पहले ही मैने अपनी आँखे बंद कर ली...ताकि उनको लगे कि मैं सो गया हूँ...
"अरमान...अरमान लंड...अरमान-चूत...सो गया क्या बे..."सौरभ ने अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े ही मुझे आवाज़ दी और मैं यथावत सोने की आक्टिंग करता रहा.
"रुक लवडा...ये ऐसे नही उठेगा.अभी मैं इसका मोबाइल खिड़की से बाहर फेक्ता हूँ..."
"चोद दूँगा ,यदि किसी ने ऐसा किया भी तो...."भकाभक कर मैं उठा और चीखा.
"तू आंकरिंग मे कैसे सेलेक्ट हुआ इसका सचित्र वर्णन कर..."मेरी आँख खुलते ही सौरभ ने पुछा...
"चल बे, पुछ तो ऐसे रहा है ,जैसे मैं बता ही दूँगा...,रास्ता नाप अपना..."
"अरुण...उठा इसका मोबाइल और फेक दे खिड़की के बाहर..."
"ओययए....किसी ने मेरे मोबाइल की तरफ अपनी नज़र भी डाली तो....तो तुम दोनो का लंड काट कर तुम दोनो के गान्ड मे घुसा दूँगा...."
"देखो...ज़्यादा बोलो मत और सिर्फ़ काम की ही बात करो.क्यूंकी एक तो वैसे भी कुच्छ देर बाद सुबह होने वाली है ,उपर से सुबह जल्दी उठकर प्रेज़ेंटेशन की तैयारी भी करनी है.इसलिए....."
"वो अपुन ने छत्रपाल को धमकी दी कि यदि उसने मुझे सेलेक्ट नही किया तो उसको पेल्वा दूँगा...और उसने मुझे सेलेक्ट कर लिया..."
"ऐसा क्या...हमे जो जानना था ,वो तो तूने बता दिया.लेकिन फिर भी मैं तेरा मोबाइल खिड़की से बाहर फेकुंगा...."बोलकर अरुण उठा और मैं समझ गया कि लवडे को मालूम है कि मैं झूठ बोल रहा था.इसलिए अरुण खिड़की के पास पहुचता उससे पहले ही मैने एक दम सौ प्रतिशत शुद्ध कारण बताया ,जो कि मेरे और एसा के सेलेक्षन की वजह थी....मैं बोला.

"तूने अंग्रेज़ो के शासन करने वाली उस नीति के बारे मे तो सुना ही होगा ना कि 'फुट डालो और शासन करो'....उसी को मैने थोड़ा मॉडिफाइ किया और अपना एक अलग नियम बनाया,जो ये था कि'फोड़ डालो और शासन करो' और मेरे इसी नीति पर चलते हुए मैने अपना और एश का सेलेक्षन करवाया..."
"सब उपर से गया..."
"वेल,अब जब तूने मुझे नींद से उठाया ही है तो मैं अब तुम दोनो की लिए बगैर तो रहूँगा नही इसलिए एक बात बताओ कि यदि किसी रेस मे 5 लोग पार्टिसिपेट करने वाले है और उन पाँचो मे से एक तू भी है तो रेस जीतने के लिए तू क्या करेगा...."
"मैं अपनी पूरी जान लगा दूँगा "अरुण तेवर चढ़ाते हुए बोला...
"लेकिन मैं अपना दिमाग़ लगाउन्गा और यही....बस यही तुम जैसे छोटे लोग और मेरे जैसे बड़े, महान ,पुरुषार्थी लोगो मे फरक होता है की तुम लोग गान्ड से सोचते हो और हमलोग दिमाग़ से...मैं उन चारो को रेस मे उतरने ही नही दूँगा और बड़े आराम से गॉगल लगाकर, सिगरेट के छल्ले उड़ाकर, दारू पीते हुए...रेस जीतूँगा..."

"अब तेरी सेल्फ़-प्रेज़िंग बंद हो गयी तो अब पॉइंट पर आए..."अपने हाथ बंद करके मुक्के का रूप देकर सौरभ बोला...
"अपुन ने बाकी लड़को को धमकाया कि वो छत्रपाल से कोई भी बहाना करके आंकरिंग से हट जाए, वरना मैं उनकी खटिया खड़ी कर दूँगा और दूसरे दिन से उन्होने ऑडिटोरियम मे जाना बंद कर दिया,जिसके परिणाम स्वरूप तुम लोगो के आइडल यानी कि मेरा सेलेक्षन हुआ..."
"हाउ बॅड आर यू ..."
"बट आइ लाइक इट...गुड नाइट वित बॅड ड्रीम्स..."
.
आराधना का चॅप्टर क्लोज़ करके मैं आगे बढ़ा और ऐसे आगे बढ़ा,जैसे आराधना को मैं जानता ही नही हूँ,कभी उससे बात भी ना की हो...उसके साथ इतने दिन रहकर मैं ये तो जान ही चुका था कि वो कितने टाइम कहाँ रहती है...इसलिए उतने टाइम वहाँ भटकना तो दूर मैं उस जगह के बारे मे सोचता भी नही था.मैं नही चाहता था कि आराधना मेरे सामने आए और कोई एमोशनल ड्रामा हो...

मुझे आराधना के क्लासमेट ,आराधना के आस-पास रहने वालो से उसकी खबर लेते रहना चाहिए था कि मेरे उस बर्ताव का उसपर क्या असर हुआ है...मुझे उसकी फिकर करनी चाहिए थी.लेकिन सच तो ये था कि मुझे उसकी परवाह ही नही थी, उसकी छोड़ो...मुझे तो उन दिनो किसी की भी परवाह नही थी.

अक्सर मैं जो करता हूँ ,उसका कुच्छ पर बहुत बुरा असर पड़ता है तो कुच्छ इतना खुश होते है कि उनका बस चले तो मुझे 'भारत-रत्न' दे दे...लेकिन अबकी बार मैं जो होशियारी छोड़ रहा था वो सिर्फ़ मुझे ही अच्छा लगने वाला था यानी कि कोई दिल पर लेने वाला था ,तो कोई मुँह मे और ले भी क्यूँ ना, मैने आराधना के रूप मे उस सुलगती चिंगारी को छोड़ दिया था जो या तो खुद को जला कर शांत होती है या फिर सबको जला कर रख कर देती है,लेकिन फिर भी वो नही भुझती....लेकिन इन सबसे अंजान मैं उन दिनो फेरवेल मे मगन था और मगन भी क्यूँ ना होता...बीसी तीन साल से फेरवेल दे-दे कर जेब खाली हो चुकी थी और अबकी बार मौका मिला था कि कुच्छ वसूल किया जाए.....
.
मैने कितने अच्छे काम किए ,ये तो मुझे याद नही लेकिन मेरी नज़र मे जो एक अच्छा काम याद आता है ,वो ये कि उस साल पहली बार सिटी वाले और हॉस्टिल वालो ने मिलकर वेलकम पार्टी और फेरवेल का मज़ा लिया...लेकिन मेरे इस अच्छे काम मे बुराई की परत तब चढ़ जाती है,जब मैं देखता हूँ कि मैने इसकी शुरुआत क्यूँ की थी. 

सिटी वाले और हॉस्टिल वालो का एक साथ मिलकर इन दो एवरग्रीन सूपर ड्यूपर हिट रहने वाले प्रोग्राम की शुरुआत करने के पीछे सिर्फ़ एक वजह थी और वो ये कि मेरी तरह हॉस्टिल के बाकी लड़के भी यही चाहते थे कि लौंडिया उनके उस सुनहरे दिन मे साथ रहे और ऐसा तभी हो सकता था जब पूरे कॉलेज वाले मिलकर किसी प्रोग्राम का आयोजन करे....क्यूंकी एक इंसान को सिर्फ़ दो बार खुश होना चाहिए,पहले, जब वो इस दुनिया मे आता है और दूसरा तब ,जब वो इस दुनिया से जाता है....अब इन दोनो टाइम मे किसी को होश तो रहता नही,इसलिए इन दोनो को मैं फ्रेम ऑफ रेफरेन्स का फेनोमेनन इस्तेमाल करके वेलकम और फेरवेल पार्टी से रीप्लेस कर दिया....और वैसे भी बीसी ,हम गे तो है नही,जो सिर्फ़ लड़को के साथ पार्टी करे.कुल मिलकर कहे तो मेरी नियत खराब थी लेकिन काम जबरदस्त था.
.
"तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड कौन है..."कॉलेज मे घूमते हुए एसा ने मुझसे पुछा...
"तुम उसे नही जानती..."अगल-बगल देख कर मैं बोला...वैसे मैं तो था एसा के साथ लेकिन मेरा ध्यान सिर्फ़ इसी पर था कि कही से आराधना ना टपक पड़े....
"किसे नही जानती...अरुण को या सौरभ को..."
"मेरे बेस्ट फ्रेंड तो वो दोनो है ही लेकिन एक और है,जो इस कॉलेज मे नही है..."
"तीन-तीन बेस्ट फ्रेंड...लगता है तुम्हे ग्रॅमर की नालेज नही है.बेस्ट तो सिर्फ़ एक होता है..."
"मुझे ग्रॅमर की इतनी नालेज है,जितनी की ग्रॅमर बनाने वाले को भी नही होगी और बेस्ट सिर्फ़ एक हो या हज़ार ये तुम पर निर्भर करता है ना की ग्रॅमर बनाने वाले पर..."
"फिर तो रहने दो, जब मैं उस तीसरे को जानती नही तो उसके बारे मे बात करके क्या फ़ायदा....तुम ये बताओ कि अरुण और सौरभ तुम्हारे बेस्ट फ्रेंड क्यूँ है..."
"और मैं ये क्यूँ बताऊ...प्राइवसी नाम की भी कोई चिड़िया होती है और मैं उस चिड़िया को मारना नही चाहता..."
"मैं तुम्हे फोर्स नही कर रही बताने को, वो तो मैं इसलिए पुछ रही थी क्यूंकी मेरा आज तक कोई बेस्ट फ्रेंड नही बना...शुरू मे लगा कि गौतम बेस्ट फ्रेंड है ,लेकिन फिर लगा कि दिव्या...लेकिन अब लगता है कि मेरा कोई फ्रेंड ही नही है...मैने तुम्हे कभी तुम्हे ,अपने दोस्तो से लड़ते हुए नही देखा और ना ही इसके बारे मे कभी सुना...जबकि हॉस्टिल के हर एक मूव्मेंट की खबर पूरे कॉलेज मे किसी वाइरस के तरह फैलती है...आक्च्युयली मैं ये जानना चाहती हूँ कि तुम अपने दोस्तो मे क्या देखते हो..."

"अपुन का एक सिंपल फंडा है..."अगल-बगल फिर से इसकी जाँच करते हुए की आराधना कही है तो नही, मैं बोला"और वो सिंपल फंडा ये है की मुझे जब भी मेरे दोस्तो की ज़रूरत पड़े तो वो मुझे अच्छे-बुरे का नसीहत दिए बगैर पहले मेरा साथ दे बाकी सवाल-जवाब बाद मे करे या ना भी करे...और अरुण-सौरभ दोनो ऐसे ही है...उनको बस मेरे मुँह से लड़ाई, मार-पीट,पंगा,लफडा सुनने की देरी है....अरुण तो फिर भी कभी कुच्छ नही पुछ्ता ,वो हमेशा यही सोचता है कि ग़लती मेरी नही बल्कि सामने वाले की होगी और सौरभ ,वो बाद मे अकेले मे मुझसे सब कुच्छ जान लेता है कि लफडा क्यूँ और किसलिए हुआ था..."

"ये बेस्ट फ्रेंड कैसे हो सकते है...हुह...मतलब कि मैने कही पढ़ा था कि एक दोस्त वो होता है जो आपके साथ सिगरेट ना पिए बल्कि आपकी सिगरेट छुड़ाए..."
"ऐसे फ्रेंड ,गुड फ्रेंड होते है,बेस्ट नही और फिलहाल मेरे पास ऐसा एक भी नही है..."
"आइ लव यू, अरमान...जैसे-जैसे तुम्हारे साथ दिन बीत रहे है...तुम्हारा उतना ज़्यादा ही एफेक्ट मुझपर पड़ रहा है..."
"ये अब फिर से बोर करेगी "एश को 'आइ लव यू टू'बोलकर मैने मन मे सोचा....
सिटी और हॉस्टिल के स्टूडेंट्स का वेलकम और फेरवेल एक ही साथ एक ही दिन होगा, ये सुनकर पहले तो बहुत से सिटी मे रहने वाले भड़क गये थे...आक्च्युयली बहुत से नही बल्कि मेकॅनिकल फोर्त एअर के लड़को को छोड़ दिया जाए तो सब ही भड़क गये थे और जिसकी जितनी पहुच थी ,उसने अपनी पहुच का इस्तेमाल करके मेरे एजेंडा को मेरी पहुच से दूर करने की कोशिश की...ख़ासकर के सीयेस, इट ब्रांच के लड़को ने...क्यूंकी वो नही चाहते थे कि उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कोई और हाथ डाले....लेकिन मैं हाथ डालने का नही सीधा लंड डालने का सोच रहा था ,इसलिए मैने उन लड़को को प्यार से धमकाया...जिसका नतीज़ा ये हुआ कि वो सूपर सीनियर्स(डिटॅनर्स) को बीच मे घसीट लाए और मामले को और बिगड़ दिया....

वैसे एक हिसाब से देखा जाए तो वहाँ के लोकल लौन्डो का सोचना सही थी,क्यूंकी हमारे कॉलेज के हॉस्टिल मे स्टूडेंट्स नही जानवर रहते थे और कोई भी नही चाहेगा कि उसकी मनपसंद शाम किसी दूसरे के कारण बर्बाद हो ,उपर से जब दोनो टोलिया एक साथ बैठेगी तो किसी ना किसी टॉपिक पर वाद-विवाद तो होगा ही और फिर मार-पीट....और मार-पीट मे तो हम ही जीतने वाले थे,इसलिए जैसे-जैसे फेरवेल का दिन करीब आ रहा था, कॉलेज की आधी आबादी का गला सूखता जा रहा था और मैं हॉस्टिल की छत पर खड़ा होकर यही सोच रहा था कि "बीसी ,क्या पवर पाई है...जो बोला,मतलब वो होना ही माँगता..."
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स्कूल के दिनो मे मॅतमॅटिक्स के सिर ने एक बार सारी क्लास से एक सवाल पुछा था कि"तुम्हे पैसा चाहिए या पवर..." तब मैने हर एक की तरह पैसे के नाम पर अपना हाथ खड़ा कर दिया था, लेकिन अब मुझे समझ मे आ रहा था कि पैसा तो सच मे हाथो की मैल है, मायने रखता है तो सिर्फ़ पवर....मेरा ऐसा मानना है की पवर से हम जितना चाहे उतना पैसा बना सकते हो ,लेकिन पैसे से जितना चाहे उतनी पवर नही पा सकते...अब ज़्यादा दूर ना जाते हुए मेरे कॉलेज का ही एग्ज़ॅंपल ले लो...मेरे कॉलेज मे बहुत से रहीस लौन्डे थे, लेकिन उनकी इतनी अओकात नही थी कि वो मुझसे आँख मे आँख डाल कर बात कर सके...

पवर और पैसे के इस खेल का सबसे बड़ा एग्ज़ॅंपल ये है कि एक करोड़-पति ,जिसके पास सौ ट्रक है...वो, कुच्छ हज़ार की तनख़्वाह लेने वाले एस.आइ. को सर कहकर बोलता है यदि किसी कारणवश उस एस.आइ. ने उस करोड़-पति के ट्रक को रोक लिया हो तो....इसलिए पवर और पैसे के इस खेल मे मेरी तरफ से फर्स्ट प्राइयारिटी पवर को थी, है और रहेगी. 
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