Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
12-15-2018, 01:42 AM,
RE: Porn Hindi Kahani दिल दोस्ती और दारू
लोग कहते है मुझे घमंड नही करना चाहिए लेकिन मेरे साथ सिचुयेशन ही ऐसी पैदा हो जाती है कि मैं घमंडी होने पर मज़बूर हो जाता हूँ.अब आज के खूनी ग्राउंड के खेल को उदाहरण के तौर पर ले लो....कॉलेज के एक से एक सूरमाओ को पानी पिलाने के बाद अब बंदा घमंड ना करे तो क्या शरम करे. वैसे भी लाइफ मे मज़ा हवा की तरफ बहकर नही आता ,उसके खिलाफ जाकर आता हैं,ये बात अलग है की कभी-कभी यहिच मज़ा...सज़ा दे जाता है.

लोग कहते है कि मैं ज़्यादा हवा मे उड़ता हूँ लेकिन उन बक्लोलो को कौन समझाए कि दुनिया उपर से ही खूबसूरत दिखती है,नीचे से तो लगभग सब कुच्छ बदसूरत ही है.ऐसी लाइन्स मैं घंटो बोल सकता हूँ, लेकिन अभी आराधना हॉस्पिटल मे अड्मिट थी ,इसलिए मैं अपने सपने से निकलकर वास्तविक दुनिया मे आया....जहाँ मैं , पांडे जी और अरुण बाइक पर हॉस्पिटल की तरफ तेज़ी से बढ़ रहे थे.

"देख कर चलाओ ,अरुण भाई...वरना अभी तो हमलोग किसी का हाल चाल पुछने हॉस्पिटल जा रहे है ,कही थोड़ी देर बाद लोग हमारा हाल-चाल पुछने ना आ जाए..."

"लवडे, तुझे भाई की ड्राइविंग पर शक़ है...रुक अभी तुझे मैं अपना कंट्रोल दिखाता हूँ...."कहते हुए अरुण ने स्पीड बढ़ा दी....

"एक बात बताओ बे, तुमलोग उधर कैसे पहुँचे..."

"किधर...ग्राउंड पर..."

"ह्म..."

"वो तो लवडा मुझे कल ही हॉस्टिल के एक लौन्डे ने बता दिया था कि ,तुझे पेलने का प्लान महंत और यशवंत बना रहे है.जो मैं तुझे कल बताना भूल गया और सुबह-सुबह वही लौंडा आया और हम सबको जगा कर बोला कि तुझे ग्राउंड पर घेरने का प्लान है ,बस फिर क्या था...पहुच गये हम लोग..."

"और ये लड़का कौन था,जिसने मुझे बचा लिया...उसे तो ऑस्कर मिलना चाहिए..."

"महंत के ग्रूप का ही लड़का है ,जिसने ऐन वक़्त पर दल बदल लिया,वरना अभी मैं और पांडे आराधना को नही, तुझे देखने जा रहे होते...."

"यदि वो महंत के ग्रूप का था तो फिर ग्राउंड पर क्यूँ नही था...."

"तुझे क्या लगता है, बहाने सिर्फ़ तू ही बना सकता है...उसने भी कुच्छ बहाना बना दिया होगा और उसे ये सब इतना एग्ज़ॅक्ट इसलिए पता था क्यूंकी हमे ये सब इन्फर्मेशन देने वाला और कोई नही बल्कि कालिया-महंत के रूम मे रहने वाला उनका रूम पार्ट्नर था..."

"लवडे के बाल ,आलुंद...जब तुझे मालूम था कि वो लोग मुझे पेलने का प्रोग्राम बना रहे थे तो तूने मुझे रात को क्यूँ नही बताया....मैं पेला जाता तो, तुझे मालूम है कि मेरी कितनी फट गयी थी..."

"अब लवडा मुझे क्या मालूम था कि रोज 10 बजे उठने वाला ,आज 8 बजे उठकर बीड़ी पीने जाएगा...एक तो साले सुबह जल्दी उठकर घोर पाप करता है ,उपर से इल्ज़ाम मेरे उपर डाल रहा है...हट लवडा, बात मत कर तू मुझसे, उतार बाइक से..."

"ज़्यादा होशियारी मत झाड़...नही तो उठाकर नीचे फेक दूँगा..."
.
जब मुझे पता चला था कि आराधना ने स्यूयिसाइड किया है तो मैं बहुत टेन्षन मे आ गया था लेकिन जब मुझे ये मालूम चला कि वो ज़िंदा है तो मैं उतना ही रिलॅक्स भी हो गया....लेकिन जो मैं सोच रहा था..हालात उससे ज़्यादा खराब थे, बहुत ज़्यादा खराब....जिसका पता मुझे हॉस्पिटल पहुच कर लगा....

हॉस्पिटल मे पहुचने वाला मैं अकेला नही था ,वहाँ मेरे पहुचने से पहले ही कॉलेज के बहुत से लोग मौज़ूद थे, जिसमे गर्ल्स हॉस्टिल की वॉर्डन, उसकी फ्रेंड्स और कुच्छ लड़के थे,जिनका रूम हॉस्पिटल से थोड़ी दूरी पर ही था...

"जाओ बे ,पुछ्कर आओ कि वो अब कैसी है और ये ज़रूर पुछ्ना की आराधना ने स्यूयिसाइड क्यूँ किया...."

"चल पांडे..."अरुण ने कहा...

"तू मत जा...राजश्री पांडे को अकेले भेज...जा बे पांडे ए टू Z ,सब कुच्छ पता करके आना...."

मैं और अरुण कॉलेज के बाकी लोगो से बहुत दूर ही बैठे और राजश्री पांडे ,उन सबकी तरफ जानकारी इकट्ठा करने गया....राजश्री पांडे, बहुत देर तक उनलोगो से बात करता रहा और जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता ,पांडे जी की शक्ल की रंगत ख़तम होती जा रही थी...जिसके कारण मेरा भी गला सुख़्ता जा रहा था की तभी अरुण ने मुझसे पुछा...

"अबे ,अरमान...कही आराधना तेरी वजह से तो....."

"हट साले...इस टाइम पर मज़ाक मत कर..."

"मैं मज़ाक नही कर रहा...तूने ,उसे छोड़ दिया कही इसलिए तो उसने स्यूयिसाइड नही किया....."

"पा...पागल है क्या बे.प्यार मे भी कोई स्यूयिसाइड करता है...यहाँ यूनिवर्स हर एक सेकेंड मे मिलियन्स माइल एक्सपॅंड हो रहा है और तू उन पुरानी बातों को लेकर पड़ा है...."मैने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हड़बड़ाहट मे बोला"और ये भोसड़ीवाले, पांडे...वहाँ लड़कियो को लाइन मारने लगा क्या...जो अभी तक वापस नही आया..."

मेरी ये गाली तुरंत असर कर गयी और राजश्री पांडे अपनी बात-चीत ख़तम करके हमारी तरफ आने लगा....शुरू-शुरू मे जब मैं हॉस्पिटल के अंदर आया था तब मैने सोचा था कि आराधना बिल्कुल ठीक होगी और बेड पर शरम के मारे अपना सर झुकाए पड़ी होगी...जहाँ जाकर मैं उससे कहूँगा कि'कैसे बे...ज़िंदा कैसे बच गयी...' लेकिन यहाँ आकर मैने जो सीन देखा उसे देखकर मैं इतना बेचैन हो गया कि पांडे जी के हमारे पास पहुचने से पहले ही मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ और तुरंत पांडे जी कि तरफ चल दिया.....जिसके कारण कॉलेज से जो-जो लोग वहाँ मौज़ूद थे, उन सबकी नज़र मुझपर पड़ गयी.....
.
"अरमान भाई, अभी आप चुप-चाप मेरे साथ बाहर चलो, बाहर सबकुच्छ बताता हूँ..."

"हुआ क्या...वो ठीक तो है ना..."

"आइ.सी.यू. मे है...डॉक्टर्स बोल रहे है कि 50-50 का चान्स है...अभी आप बाहर चलो, वरना यदि कॉलेज के लड़कियो ने आपको यहाँ देख लिया तो कही बवाल ना मचा दे...आप मेरे साथ सीधे बाहर चलो..."
.
वहाँ से बाहर आने के बाद राजश्री पांडे ने वो सब कुच्छ बताया, जो उसे आराधना की सहेलियों से पता चला था...जिसके अनुसार...आराधना ने कल सुबह रॅट पाय्सन खाया था, लेकिन रॅट पाय्सन ने तुरंत असर नही किया और दोपहर तक उसकी तबीयत जब कुच्छ डाउन हुई तो उसे हॉस्टिल मे ही ग्लूकोस के कुच्छ बॉटल चढ़ा दिए गये, जिसके बाद वो कुच्छ देर तक ठीक रही और फिर आधे-एक घंटे के लिए फेरवेल पार्टी मे भी आई.फेरवेल पार्टी से आने के बाद उसकी तबीयत फिर खराब हुई और जब उसकी सहेलियो ने वॉर्डन को इसकी खबर दी तो वॉर्डन ने उसे हॉस्पिटल मे अड्मिट होने के लिए कहा...लेकिन आराधना ने ही हॉस्पिटल जाने से मना कर दिया और फिर रात को नींद की कयि गोलिया खाकर सो गयी लेकिन आज सुबह होते ही उसकी हालात बहुत ज़्यादा खराब हो गयी....जिसके बाद एमर्जेन्सी मे उसे यहाँ हॉस्पिटल लाया गया.

राजश्री पांडे ने मुझे आराधना के स्यूयिसाइड की वजह भी बताई और वो वजह मैं था...जिसका उल्लेख आराधना ने बाक़ायदा स्यूयिसाइड लेटर लिखकर किया था, जो पहले आराधना की सहेलियो को मिला और फिर उसकी सहेलियो के द्वारा वॉर्डन को......
.
"अबे महान चूतिए....."अपना माथा पकड़ कर अरुण बोला"ये क्या किया तूने.....उधर कलेक्टर के लड़के का केस और इधर ये आराधना का स्यूयिसाइड केस...."

"ऐसा थोड़े होता है...कॉलेज के कितने लड़के-लड़किया एक-दूसरे को ऐसे धोखा देते है...तो क्या सब स्यूयिसाइड कर ले....इसमे मेरी क्या ग़लती है..."

"तेरी पहली ग़लती ये है कि तूने एक ग़लत लड़की को धोखा दिया और दूसरी ग़लती ये की उसने तेरा नाम भी मेन्षन कर दिया है....."

"रुक जा...कुच्छ नही होगा.सोचने दे मुझे..."इधर-उधर चलते हुए मैने अपने 1400 ग्राम के दिमाग़ पर ज़ोर डाला कि मुझे अब क्या करना चाहिए....लेकिन मैं जब भी कुच्छ सोचने की कोशिश करता, मैं जब भी इन सबसे निकलने के बारे मे सोचता तो आराधना की फेरवेल की रात वाली सूरत मुझे दिखने लगती....जिसके कारण मेरा सोचना तो दूर ,आँख बंद करके लंबी साँसे तक लेना दुश्वार हो गया...

"बीसी...कुच्छ समझ नही आ रहा....बचा ले उपरवाले, अब से नो दारू...नो लड़की...एसा से भी ब्रेक-अप कर लूँगा...नही ब्रेक-अप नही, कही उसने भी आराधना की तरह स्यूयिसाइड किया तो ,तब तो मैं चूस लूँगा....एसा...एसा से याद आया, उसने भी तो एक बार स्यूयिसाइड करने की कोशिश की थी, जिसकी वज़ह गौतम था....लेकिन उसे कुच्छ नही हुआ था....एसस्स...अरुण ,इधर आ भी...इस प्राब्लम से बाहर निकालने का सल्यूशन मिल गया.. .किसी वकील से जान-पहचान है क्या तेरी...मेरी एक से है ,लेकिन वो सला दूसरे स्टेट मे रहता है...जल्दी बता...किसी वकील को जानता है क्या..."

"हां...एक है..."

"कॉल कर उसे जल्दी और सारी बात बता..."

"अबे, तूने सोचा क्या है पहले ये तो बता और ऐसे फटी मे मत रह...ऐसे घबराते हुए तुझे पहले कभी देखा नही ,इसलिए मुझे बेकार लग रहा है...."

"ठीक है..."मैने अपनी आँखे बंद की और जैसा कि मैने पहले भी बताया कि आराधना की तस्वीर मेरी आँखो के सामने तांडव कर रही थी...उसके बावज़ूद मैने एक लंबी साँस भरी और आँख बंद किए हुए बोला"एक बार एश ने स्यूयिसाइड किया था गौतम की वज़ह से...लेकिन गौतम को कुच्छ नही हुआ था...इसलिए प्लान ये है कि हम भी वही करेंगे ,जो गौतम ने किया था...."

"लेकिन गौतम ने क्या किया था...ये कौन बताएगा...."

"धत्त तेरी की...अब एक और झंझट...रुक थोड़ी देर सोचने दे मुझे...."मैं फिर अरुण से थोड़ी दूर आया और वहाँ पास मे लगे छोटे-छोटे पौधो की पत्तियो को मसल्ते हुए ये सोचने लगा कि अब क्या करू....कैसे मालूम करू, वो सब कुच्छ...जो गौतम ने फर्स्ट एअर मे किया था.....

मुझे कोई आइडिया तो नही मिला,लेकिन अंजाने मे मेरे द्वारा पौधो की पत्तियो का टूटना देख, वहाँ से थोड़ी दूर पर खड़े वर्कर ने मुझे आवाज़ देकर डंडा दिखाते हुए वहाँ से दूर हटने की सलाह दी....

"इसकी माँ का...यहाँ इतना सीरीयस मॅटर चल रहा है और इसे ग्लोबल वॉरमिंग की पड़ी है..."बड़बड़ाते हुए मैने उस पौधे को जड़ से पूरा उखाड़ कर उस वर्कर के सामने वही फेक दिया....जिसके बाद वो वर्कर दौड़ते हुए मेरी तरफ आने लगा....

"माँ चोद दूँगा तेरी...नही तो जहाँ खड़ा है ,वही रुक जा...बीसी आंदु-पांडु समझ रखा है क्या, जो मुझे डंडा दिखा रहा था...गान्ड मे दम है तो आ लवडा. पहले तुझ से ही निपटता हूँ, बाकी बाद मे देखूँगा...."

गुस्से से मेरी दहाड़ सुनकर वो वर्कर रुक गया और अपने साथियो को बुलाने के लिए चला गया...

"पांडे ,चल गाड़ी निकाल....ये सटक गया है अब..."बोलकर अरुण मुझे हॉस्पिटल से बाहर ले आया.....
.
ऐसे मौके पर मुझे एक शांति का महॉल चाहिए था, जहाँ कोई मुझे डिस्टर्ब करने वाला ना हो लेकिन वही शांति का महॉल मुझे नसीब नही हो रहा था.हॉस्पिटल के गेट के बाहर दूसरी साइड कयि चाय-पानी वालो ने अपना डेरा जमा रखा था...जिसमे से एक पर आराधना की कुच्छ सहेलिया अपना सर पकड़ कर बैठी हुई थी....और मुझे अरुण के साथ ,बाहर खड़ा देख,सब मुझे देखकर मन मे गालियाँ देने लगी...जिससे मेरा माइंड और डाइवर्ट हुआ...

"अरमान...एक दम शांत रहना.सोना आ रही है इधर...इसलिए वो जो कुच्छ भी बोले, चुप-चाप सुन लेना...."एक लड़की को अपनी तरफ आते देख अरुण ने खुस्पुसाते हुए कहा....

"अब यार तू ,ऐसे सिचुयेशन मे ऐसी ठर्की बात कैसे कर सकता है...इधर मैं इतनी परेशानी मे हूँ और तू सोना...चाँदी की बात कर रहा है..."बोलते हुए मैने आँखे बंद की...आराधना मुझे फिर दिखी और मैने लंबी साँस ली....

"कैसा बाकलोल है बे....तू बस उससे बहस मत करना...."

"अभी मेरा दिमाग़ बहुत ज़्यादा खराब है ,यदि उसने कुच्छ आंट-शन्ट बका तो ,दो चार हाथ जमा भी दूँगा...दो केस हो ही चुका है, तीसरा भी झेल लूँगा..."

"मेरे बाप...कुच्छ देर के लिए चार्ली चॅप्लिन बन जा...."

"चार्ली चॅप्लिन...मतलब कुच्छ ना बोलू..."

"मतलब...जिस दिन चार्ली चॅप्लिन के घर मे ट्रॅजिडी हुई थी उस दिन का उसका आक्ट अब तक का बेस्ट आक्ट माना गया है...इसलिए तू भी एक दम वैसिच कूल रहना...अब चुप हो जा..वो आ गयी..."
.
अरुण के कारण मैं चुप हो गया.सोना हमारे पास आकर कुच्छ देर तक अपने कमर मे हाथ रखकर मुझे देखती रही और मैं कभी बाए तो कभी दाए देखता.मैने कुच्छ देर तक इंतज़ार किया कि वो मुझे अब गाली देगी...अब गाली देगी.लेकिन जब वो मुझे कुच्छ बोलने के बजे सिर्फ़ घूरती रही तो मैं बोला...
"जो बोलना है ,बोल ना जल्दी...."
"शरम आ रही है थोड़ी ,बहुत..."
"शरम ही तो मुझे नही आती...."
"डिज़्गस्टिंग....जब से आराधना के स्यूयिसाइड के बारे मे उसके पापा को पता चला है, उन्हे होश तक नही...इधर आराधना अपनी ज़िंदगी से लड़ रही है और उधर उसके पापा....क्या बिगाड़ा था उसने तेरा, जो उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया.जब प्यार था ही नही ,तब क्यूँ उसके साथ संबंध रखा तूने....ब्लडी हेल...."

सोना जैसे-जैसे मुझे सुनाती,अरुण मेरा हाथ उतनी ही ज़ोर से दबा कर शांत रहने का इशारा करता...मेरी आदत के हिसाब से तो मैं किसी का लेक्चर सुन नही सकता था ,इसलिए मैं ये सोचने लगा कि एश से कैसे मालूम किया जाए कि उसने जब स्यूयिसाइड करने की कोशिश की थी तो आगे क्या हुआ था.....

"इधर देख इधर..."बोलकर सोना ने दूसरी तरफ देख रहे मेरे चेहरे को अपने हाथो से पकड़ कर अपनी तरफ किया....

"तेरी माँ की....हाथ कैसे लगाया बे तूने...ज़्यादा कचर-कचर करेगी तो कच्चा चबा जाउन्गा.बोल तो ऐसे रही है जैसे मैने खुद ने चूहे मारने वाली दवा लाकर उसे दिया और बोला हो कि'ले खा और मर जा'...खुद तो दस-दस लौन्डे घुमाती है और मुझे यहाँ आकर नसीहत दे रही है....भूल गयी पिछले साल जब एक लड़का तेरे कारण यशवंत से मार खाया था.साली खुद तो कयि लड़को की ज़िंदगी बर्बाद कर दी और यहाँ मुझे सुना रही है..."

इस बीच अरुण ने मेरा हाथ दबाना जारी रखा इसलिए मैने उसका हाथ झटकते हुए कहा...
"हाथ छोड़ बे तू...इसे आज गोली दे ही देता हूँ, बहुत शान-पट्टी कर रही है अपुन से....तूने क्या सोचा था कि तू यहाँ आएगी और मुझे चमका कर अपने सहेलियो के सामने डींगे हाँकेगी .वो और लड़के होंगे जिनपर तू हुकूमत करती होगी...मुझसे थोड़ा दूर रहना...वरना जब पोलीस मेरे पास आएगी तो तेरा नाम ले लूँगा और कहूँगा कि'तूने मुझे ऐसा करने के लिए कहा था'...अब चल निकल यहाँ से..."

"मैने सही सुना था तेरे बारे मे...तुझे लड़कियो से बात करने की तमीज़ नही है..."

"अबे निकलती है यहाँ से...या तमीज़ सिखाऊ तुझे मैं...और बाइ दा वे, तुझे बहुत तमीज़ है लड़को से बात करने की....साली........."मेरे मुँह से आगे बस गालियाँ ही निकलने वाली थी कि मैं चुप हो गया....

"अभी चाहे कितना भी अकड़ ले ,ये सब करके तुझे रात मे बहुत टेन्षन होगी.तुझे नींद तक नही आएगी...."

"अपुन की लाइफ मे जब तक टेन्षन ना हो तो टेन्षन के बिना नींद ही नही आती...अब तू चल जा..."

"हाउ डेर यू..."

"आ गयी ना अपनी औकात पे...चार साल मे इंग्लीश की सिर्फ़ एक लाइन सीखी'हाउ डेर यू'....अब चल इसी के आगे इंग्लीश मे बोल के दिखा...."

इसके बाद सोना कुच्छ नही बोली और चुप-चाप उधर से जाने लगी....लेकिन मैं फिर भी चिल्लाते हुए बोला..
"अपने कान के साथ अपना सब कुच्छ खोल सुन ले...ये सर सिर्फ़ तिरंगे के आगे झुकने के लिए बना है...लड़कियो के सामने नही और तुझ जैसी लड़की के सामने तो बिल्कुल भी नही...अगली बार से किसी लड़के को कुच्छ बोलने से पहले सोच लेना क्यूंकी हर लड़के तेरे बाय्फरेंड्स की तरह झन्डू नही होते...कुच्छ झंडे भी गाढ देते है..."
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