Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:08 AM,
#12
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
"आआह्ह्ह ..." रश्मि की गहरी चीख निकल गयी। मुझे तो मानो काटो तो खून नहीं! मैं एकदम से सकपका गया, 'कहीं इसको चोट तो नहीं लग गयी?' मैंने एक दो पल ठहर कर रश्मि की प्रतिक्रिया भांपी - लेकिन भगवान् की दया से उसने आगे कुछ नहीं कहा। बाहर लोगों ने सुना तो ज़रूर होगा ... 

'भाड़ में जाएँ सुनने वाले! लड़की के साथ यह तो होना ही है आज तो...' मैंने रुकने का कोई उपक्रम नहीं किया। मैंने अपना लिंग रश्मि की योनि से बाहर निकालना शुरू किया, लेकिन पूरा नहीं निकाला ... इसके बाद पुनः थोडा सा और अन्दर डाला और पुनः निकाल लिया। 

ऐसे ही मैंने कम से कम पांच छः बार किया। रश्मि चीख तो नहीं थी, लेकिन मेरी हर हरकत पर कराह ज़रूर रही थी। लेकिन इस समय मेरे पास इन सब के बारे में सोचने का धैर्य बिलकुल भी नहीं था। मैंने अपना लिंग रश्मि के अन्दर और भीतर तक घुसा दिया और सनातन काल से प्रतिष्ठित पद्धति से काम-क्रिया आरम्भ कर दी। रश्मि का चेहरा देखने लायक था - उसकी आँखें बंद थीं, लेकिन मुंह पूरा खुला हुआ था। इस समय उसके लिए साँसे लेने, हिचकियाँ लेने और सिसकियाँ निकालने का यही एकमात्र साधन और द्वार था। मेरे हर धक्के से उसके छोटे स्तन हिल जाते। और नीचे का हिस्सा, जहाँ पेट और योनि मिलते हैं, मेरे पुष्ट मांसल लिंग के कुटाई से लाल होता जा रहा था।

मैंने रश्मि को भोगने की गति तेज़ कर दी । रश्मि अपनी उत्तेजना के चरम पर थी, लेकिन अभी उसको इसकी अभिव्यक्ति करनी नहीं आती थी - बस उसने मेरे कन्धों को जोर से जकड रखा था। संभवतः उसको अपनी कामाभिव्यक्ति करने में लज्जा आ रही हो। मुझको भी महसूस हुआ की उसका खुद का चरम-आनंद भी पास में है। हमारे सम्भोग की गति और तेज़ हो गई - रश्मि की रस से भीगी योनि में मेरे लिंग के अन्दर बाहर जाने से 'पच-पच' की आवाज़ आने लग गई थी। पलंग के पाए ज़मीन पर थोड़ा थोड़ा घिसटने से किकियाने की लयबद्ध आवाज़ निकाल रहे थे, उसी के साथ हमारी कामुकता भरी आहें भी निकल रही थीं। कमरे में एक कामुक माहौल बन चला था। 

इस पूरे काम में इतना समय लग चुका था की मेरा कुछ क्षणों से अधिक टिकना संभव नहीं था। और हुआ भी वही। मेरे लिंग से एक विस्फोटक स्खलन हुआ, और उसके बाद तीन चार और बार वीर्य निकला। हर स्खलन में मैंने अपना लिंग रश्मि की योनि के और अन्दर ठेलने का प्रयत्न कर रहा था। मेरे चरमोत्कर्ष पाने के साथ ही रश्मि पुनः चरम आनंद प्राप्त कर चुकी थी। इस उन्माद में उसकी पीठ एक चाप में मुड़ गयी, जिससे उसके स्तन और ऊपर उठ गए। मैंने उसका एक स्तनाग्र सहर्ष अपने मुह में ले लिया और उसके ऊपर ही निढाल होकर गिर गया। 

मेरा रश्मि की मखमली गहराई से निकलने का मन ही नहीं हो रहा था। इसलिए मैंने अपने लिंग को उसकी योनि के बाहर तब तक नहीं निकाला, जब तक मेरा पुरुषांग पूरी तरह से शिथिल नहीं पड़ गया। इस बीच मैंने रश्मि को चूमना, दुलारना जारी रखा। अंततः हम दोनों एक दुसरे से अलग हुए। मैंने रश्मि को मन भर के देखा; वह बेचारी शर्मा कर दोहरी हुई जा रही थी और मुझसे आँखे नहीं मिला पा रही थी। उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फैली हुई थी। 

मैंने पूछा, "रश्मि! आप ठीक हैं?" उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में सर हिलाया। 

"मज़ा आया?" मैंने थोड़ा और कुरेदा - ऐसे ही सस्ते में कैसे जाने देता? रश्मि का चेहरा मेरे इस प्रश्न पर और लाल पड़ गया - वह सिर्फ हलके से मुस्कुरा सकी। मैंने उसको अपनी बांहों में कस के भर कर उसके माथे को चूम लिया, और अपने से लिपटा कर बिस्तर पर लिटा लिया।

हम लोग कुछ समय तक बिस्तर पर ऐसे ही पड़े पड़े अपनी सांसे संयत करते रहे। लेकिन कुछ ही देर में वह बिस्तर पर उठ बैठी। वह इस समय आराम में बिलकुल भी नहीं लग रही थी। मुझे लगा की कहीं सेक्स की ग्लानि के कारण तो वह ऐसे नहीं कर रही है? मैंने प्रश्नवाचक दृष्टि उसकी ओर डाली।

"क्या हुआ आपको?" 

"जी ... मुझे टॉयलेट जाना है ...." उसने कसमसाते हुए बोला।

दरअसल, रश्मि को सेक्स करने के बाद मूत्र विसर्जन का अत्यधिक तीव्र एहसास होता है। निःसंदेह उसको और मुझको यह बात अभी तक नहीं मालूम थी। हम लोग अभी तो एक दूसरे को जानने की पहली दहलीज पर पाँव रख रहे थे। उसकी इस आदत का उपयोग हम लोगों ने अपने बाद के सेक्स जीवन में खूब किया है। खैर, उसको टॉयलेट जाना था और तो और, मुझे भी जाना था। मैंने देखा की कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं था। 

"इस कमरे से लगा हुआ कोई टॉयलेट नहीं है क्या?" रश्मि ने न में सर हिलाया ... 

"तो फिर कहाँ जायेंगे ..?"

"घर में है ..."

"लेकिन ... मुझे तो अन्दर से लोगों के बात करने की आवाज़ सुनाई दे रही है। लगता है लोग अभी तक नहीं सोये।" मैंने कहा, "... और घर में ऐसे, नंगे तो नहीं घूम सकते न? सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए पूरे कपडे पहनने का मन नहीं है मेरा।"

रश्मि कुछ बोल नहीं रही थी। 

"वैसे भी सबने अन्दर से हमारी आवाजें सुनी होंगी ... मुझे नहीं जाना है सबके सामने ..." मैंने अपनी सारी बात कह दी।

"इस कमरे का यह दूसरा दरवाज़ा बाहर बगीचे में खुलता है ..."

"ओ के .. तो?"

".... हम लोग बगीचे में टॉयलेट कर सकते हैं ... वहां एकांत होगा .." एडवेंचर! लड़की तो साहसी है! इंटरेस्टिंग!

"ह्म्म्म .. ठीक है। चलिए फिर।" मैंने पलंग से उठते हुए बोला। रश्मि अभी भी बैठी हुई थी - शायद शरमा रही थी, क्योंकि उठते ही वह (मनोवैज्ञानिक तौर पर) पूरी तरह से नग्न हो जाती (बिस्तर पर चादर इत्यादि तो थे ही, जिनके कारण आच्छादित (कपड़े पहने रहने) होने का एहसास तो होता ही है)।
मैंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया, "चलो न .." रश्मि ने सकुचाते हुए मेरा हाथ थाम लिया और मैंने उसको सहारा देकर पलंग से उठा लिया।
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