Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:22 AM,
#88
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
फरहत कुछ देर के लिए कमरे से बाहर गयी हुई थी – मालिश के लिए तेल लाने। रूद्र दीदी की अक्सर ही मालिश करते थे – ख़ास तौर पर सप्ताहांत में। मालिश के साथ साथ दीदी के साथ जम कर सम्भोग भी करते थे। दीदी भले ही थक कर चूर हो जाती थी, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव, रहस्य भरी मंद मंद मुस्कान मुझसे छिपी नहीं रहती थी। वाकई, रूद्र इस कार्य में बहुत कुशल थे। मुझे बगल के कमरे से रूद्र और फरहत की दबी हुई आवाजें सुनाई दे रही थीं। न जाने क्या कह रही होगी ये उनसे! खैर, कोई पांच मिनट के बाद फरहत वापस कमरे में आई। जब उसने मुझे अपने पूरे कपड़ों में देखा तो उसने मुझे कपडे उतारने को कहा। मैं शरम के कारण दोहरी हो रही थी और मेरा चेहरा लाल सा हो गया था।

फरहत मुझे ऐसे देख कर मेरे पास आई, और मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर बहुत ही धीमे स्वर में बोली, “नीलू, मुझसे शरमाओ मत! मैं तुम्हारी दोस्त हूँ! और, तुमने मुझे आज नंगा देखा है... और वो सब करते देखा है, जो नहीं देखना चाहिए! इसलिए, अब इतना तो बनता है न?”

फरहत की बात तो सही थी। मैंने अपने सूखे गले को थूक की एक घूँट से तर किया, और अपने कपडे उतार दिए। अन्दर कुछ पहना हुआ था नहीं, इसलिए मैं तुरंत ही पूर्ण नग्न हो गयी। मुझे इस हालत में देख कर फरहत भी एक बार हतप्रभ हो गयी। 

“क्या बात है नीलू! सचमुच तुम बहुत सुन्दर हो – न केवल तुम्हारी सूरत, बल्कि ये (मेरे स्तनों की तरफ इशारा करते हुए) तेरी छातियाँ भी! और ये (फिर मेरी योनि की तरफ), तेरी चूत भी! जब चूत की फांके ऐसे दिखती हैं, तो क्या सुन्दर लगती हैं!” 

बिकिनी वैक्स द्वारा बाल निकालने के बाद मेरी योनि पर बालों के हलके हल्के रोयें ही उगे हुए थे। ऐसे में मेरे योनि के दोनों होंठ स्पष्ट दिख रहे थे।

“मन करता है की इनको चूम लूं!”

कह कर उसने वाकई मेरी योनि के होंठों को चूम लिया।

“ईईश्श्श्ष! फरहत, मैंने इसे धोया नहीं था!” उसके इस काम से मुझे हलकी सी घिन आ गयी।

“धोया नहीं था? ह्म्म्म.. इसीलिए इतनी नमकीन थी!”

उसकी ऐसी बातों से मेरी शर्म और हिचकिचाहट कम तो नहीं होने वाली थी। इसलिए मैं बिस्तर पर मुँह छुपा कर लेट गयी। और फरहत ने हँसते हुए मेरी पीठ पर तेल डाल कर मालिश करना शुरू किया। हलके हाथों से धीरे धीरे मालिश होना – मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। कुछ ही देर में मेरे मुँह से सुख भरी आवाजें निकलने लगीं। कोई दस मिनट के बाद उसने मेरे पैरों मालिश शुरू करी। मालिश करते हुए उसके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ आ रहे थे – यह मुझे मालूम हो रहा था। ऐसा नहीं है की वो मुझसे छुपा कर कुछ भी कर रही हो।

खैर, जाँघों की मालिश करते हुए जब तब उसके हाथ मेरे नितम्बों के बीच में छू जाते थे। वैसे भी कुछ देर पहली की घटनाओं के कारण मैं वैसे ही गर्म हो गयी थी – अब तक मेरी योनि से रस भी रिसने लगा था। मेरी सिसकारियाँ अभी भी निकल रही थीं, लेकिन अब मुझे ही नहीं मालूम था की वो मालिश की संतुष्टि के कारण थी, या फिर कामुक! 

अचानक ही फरहत ने मेरे हाथों की मालिश शुरू कर दी। एक तरह से मुझे राहत ही हुई। लेकिन जब दो मिनट बाद वो वापस मेरे पुट्ठों को मसलने लगी, तो मैं समझ गयी की बाहों की मालिश तो महज़ एक खाना पूरी थी। मेरे नितम्बों की मालिश वो ऐसे कर रही थी, जैसे आटा गूंथ रही हो। बीच बीच में रह रह कर वो दोनों पुट्ठों पर अपनी मुट्ठी से प्रहार भी करती। इस कारण से मीठा मीठा दर्द उभर कर निकल रहा था। मैं मीठी पीड़ा, आनंद, सुख और काम – इन न जाने कितने मिले जुले भावों के सागर में गोते लगाने लगी। अचानक ही फरहत की आवाज़ सुन कर मेरिन तन्द्रा भंग हुई,

“गुड़िया रानी, अब सामने की बारी!” कह कर उसने मुझे पीठ के बल लेटने को कहा।

मुझे सिहरन सी होने लगी। फरहत ने मेरे सामने की तरफ मालिश शुरू कर दी थी। पहले तो उसने मेरी गर्दन और कंधे की मालिश करी, और फिर दोनों स्तनों पर काफी तेल लगा कर कुछ ज्यादा ही जोर शोर से मालिश करने लगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरी उत्तेजना अब काफी बढ़ गयी थी। फरहत के हाथों की हरकतों के साथ साथ मेरी सिसकारियाँ भी बढती जा रही थीं। 

लेकिन, फरहत का मन भरा नहीं था – उसका खेल जारी रहा। कुछ देर तबियत से मेरे स्तनों की मालिश करने के बाद वो मेरे चूचकों के साथ भी खिलवाड़ करने लगी। वो कभी उनको अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच पकड़ कर मसलती, तो कभी उनको बाहर की तरफ हल्के से खींचती । उसने ऐसा न जाने कितनी बार किया – लेकिन मेरी हालत खराब हो गयी। मेरी आहें और भी भारी और तेज हो गई। हार कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक दिया। तब कहीं जा कर उसके मेरे स्तनों का पीछा छोड़ा।

अगली बारी पेट की थी। मैंने राहत की सांस ली। कोई पांच मिनट के बाद उसने आखिरकार मेरी योनि की मालिश आरम्भ कर दी। डर के मारे मैंने अपने दोनों पैर एकदम सटा लिए थे, जिससे वो योनि से खिलवाड़ न कर सके। लेकिन उसकी उंगली रह रह कर जाँघों की बीच की दरार में लुका छिपी खेल रही थी। रूद्र के साथ रह रह कर फरहत को कुछ तरीके तो आ ही गए थे। उसकी इन हरकतों से मैं फिर से उत्तेजित हो गई, और मेरे पैर खुद ब खुद खुलते चले गए। फरहत को मेरी योनि साफ़ साफ़ दिखने लगी।

“कितने पतले पतले होंठ हैं...” फरहत अपनी ही दुनिया में थी और इस समय मेरे योनि के होंठों को हलके से मसलते हुए कहा, “गुलाबी गुलाबी! सच में! गुलाब की कली जैसी!”
मुझे योनि से काम-रस बहता हुआ महसूस हुआ! उस स्थान पर गीला गीला और ठंडा ठंडा लग रहा था।

“मज़ा आ रहा है न नीलू?” उसने धीरे धीरे से मेरे भगनासे सहलाते हुए पूछा। 

मैं क्या ही कहती? मेरी फिर से आहें निकलने लगीं, और मैं अपना सिर इधर-उधर कर के छटपटाने लगी। फरहत को मेरी हालत तो साफ़ पता चल ही रही होगी! उसने अगले कोई दो मिनट तक अनवरत उस हिस्से को कुछ तेज़ गति से रगड़ा। देखते ही देखते मैं मस्त आहें भरते हुए चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए स्खलित हो गई।

जब मैंने वासना की मस्ती में चूर आँखें खोलीं, तो फरहत ने कहा,

“मज़ा आया?”

मैं मुस्कुरा दी। 

“तुम जन्नत की हूर हो, नीलू!”

उसने कुछ देर मेरे एक स्तन को सहलाया और फिर कहा, “तुम हिम्मत कर के उनको अपने दिल की बात बता दो! तुमको भी खुश रहने का पूरा हक़ है!”

फिर उसने मेरे माथे को चूमते हुए कहा, “हमेशा खुश रहो!”

फरहत की हरकतों से मेरे शरीर में आग लग गयी। वो मुझे उकसाने का प्रयास कर रही थी, जिसमे वो शत प्रतिशत सफल रही। उसके कहने के बाद मैंने मन में ठान लिया कि मैं रूद्र से अपने प्रेम का इज़हार करूंगी।

मैंने इंतज़ार किया जब रूद्र नहा धो कर बाहर निकलेंगे, तब मैं उनसे बात करूंगी। कमरे की आहात से पता चल गया कि वो कुछ ही देर में बाहर आ जायेंगे... उसके पहले मैं ही कमरे में चली गयी।


“आप कैसे हैं?”

“एकदम बढ़िया, नीलू!”

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा किया, जो तुम मुझसे बात करने चली आयीं। मुद्दत हो गयी, तुमसे आराम से बात किया हुए।“

“हाँ! मैं भी चाहती थी की हम फॉर्मल जैसी बाते न करें!”

मेरी इस बात ने ज़रूर उनके दिल को कहीं न कहीं कचोट दिया होगा। फॉर्मल बाते ही तो होती हैं हमारे बीच! उनका सुन्दर चेहरा उतर गया.. वो कुछ कह न पाए! मैंने बात सम्हालने की कोशिश करी,

“म्म्मेरा वो मतलब नहीं था..”

“नहीं नीलू! तुम सही ही तो कह रही हो! मेरी हरकतों के लिए मेरे पास कोई बहाना नहीं है.. हो सके तो माफ़ कर दो!”

“नहीं नहीं.. आप माफ़ी क्यों कह रहे हैं! मैंने आपको उलाहने देने के लिए यह नहीं कहा!”

“मुझे मालूम है नीलू! तुम्ही तो हो, जो मेरा इतना ख़याल रखती है!” उन्होंने मुस्कुराने की कोशिश करी! मुस्कुराते हुए ये कितने सुन्दर लगते हैं!!

“और भी रखूंगी.. अगर आप ऐसे ही हँसते मुस्कुराते रहें!”

“हा हा! हाँ! .. अच्छा चलो, बताओ.. कॉलेज कैसा चल रहा है?”

“बढ़िया!”

“दोस्त बनाए वहां?”

“हाँ! बहुत से हैं!”

“मुझे तो बस भानु का ही पता है!”

“उसके अलावा भी कई हैं...”

“लड़के भी?”

“हाँ!”

“ह्म्म्म... गुड! कोई ख़ास?”

“नहीं! उनमें कौन ख़ास हो सकता है!”

“अरे क्यों?”

“अच्छा.. आप मेरी नहीं अपनी बताइए! आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है?”

“मेरी गर्ल फ्रेंड? हा हा!”

“सच सच बताइयेगा?”

“हम्म.. नीलू, कोई और होता तो झूठ बोल देता.. लेकिन तुमसे झूठ नहीं कह सकता! फरहत अच्छी लगती है मुझे!”

“हाँ! फरहत तो है भी अच्छी!”

“तुमको अच्छी लगती है?”

“हाँ! उसके आने से आप कितना खुश रहने लगे हैं!”

“अरे! ऐसे क्यों कह रही हो? तुम्हारे साथ क्या मैं गुस्सा था?”

मैं चुप रही। रूद्र भी कुछ देर सोच में पड़ गए,

“या शायद था! तुमने मेरी लाइफ, और पर्सनालिटी का सबसे खराब भाग झेला है!”

“नहीं! मैं कोई शिकायत नहीं कर रही हूँ! मैं तो बस इसी बात से खुश हूँ की वो पुराने वाले रूद्र वापस आ रहे हैं!”

“हः! पुराना वाला रूद्र तो तुम्हारी दीदी के साथ ही चला गया, नीलू।“ रूद्र की आँखों से खामोश आंसूं निकलने लगे, ”वो तो मेरी आत्मा थी। अब तो बस मेरा ढाँचा ही बच रहा है!”

“हाँ! दीदी तो सबसे अच्छी थी!” मेरा दिल बैठ गया ‘थी’ कहते हुए!

“सच में... उसके बिना सब फीका फीका लगता है..”

“फरहत के रहते हुए भी?”

“नीलू, फरहत मुझे अच्छी ज़रूर लगती है, लेकिन वो मेरी गर्ल फ्रेंड नहीं है! हम लोग सेक्स करते हैं, लेकिन अभी तक दिल के सम्बन्ध नहीं बन पाए हैं! और... मुझे लगता भी नहीं की ऐसा कुछ होगा!”

“ऐसा क्या हुआ फरहत के साथ?”

“नहीं.. बात सिर्फ फरहत की नहीं है... मुझे नहीं लगता कि किसी भी लड़की के साथ मुझे अब रश्मि जैसा लग सकेगा!”

यही समय था!

“रश्मि की परछाईं के साथ भी नहीं?” मेरी आवाज़ में एक तरह की ठंडक सी आ गयी थी..

रूद्र एकदम से ठिठक गए,

“मतलब?”

मेरा गला सूख गया,

“आप.. मुझसे शादी करेंगे?” बहुत धीमी आवाज़ निकली।


“नीलू! ये तुम क्या कह रही हो?”

“रूद्र! मैं आपसे प्यार करती हूँ! और आपसे शादी करना चाहती हूँ! मैं चाहती हूँ की मैं आपके सारे दुःख बाँट सकूं, और आपको सब प्रकार के सुख दे सकूं!”

“नीलू!.. नीलू.. लेकिन तुम मुझसे .. मुझसे कितनी तो छोटी हो!”

“चौदह साल! तो क्या हुआ?”

रूद्र वाकई हक्के बक्के हो गए थे।

“लल्ल.. लेकिन.. मेरी.. ओह भगवान्!”

“रूद्र! मेरी तरफ देखिए... मुझे मालूम है, कि आपने मुझे उस नज़र से कभी नहीं देखा, लेकिन मैंने पहली ही नज़र से आपसे हमेशा प्रेम ही किया है.. हाँ – यह सच है की उस प्रेम के रूप बदलते चले गए। अगर दीदी न होती, तो मैं आपसे ही शादी करती। उनके बाद, मैंने इतने दिनों तक अपने मन में यह बात रखी हुई है.. लेकिन, अब और नहीं होगा। मैंने मन ही मन आपको अपना पति माना हुआ है! बाकी सब आपके हाथ में है!”

कह कर मैं कमरे से बाहर निकल गयी। ह्रदय का बोझ काफी हल्का हो गया।
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