Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
03-26-2019, 12:14 PM,
RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
मैं बैठा बैठा काकी से इधर उधर की बाते करता रहा....

वो मेरे सामने उकडू बैठ कर आटा गूँथ रही थी.....साडी थोड़ी सी ऊपर की हुयी थी जिस से उनकी गोरी गोरी चिकनी पिण्डलिया दिख रही थी.
बैठ कर ज़ोर लगाने से जांघो से चिपकी पिण्डलिया फ़ैल गयी थी....मक्खन जैसी मुलायम ......

एक बात थी....काकी की पिण्डलिया बिलकुल चिकनी थी....बिना बाल की......अब काकी गांव में वैक्सिंग कराती हो ये तो संभव नहीं था. मतलब काकी की खाल इन्ही बिना बालों की थी......भेनचोद....बाबूराव सर उठाने लगा.

काकी ज़ोर से आटे को मसलती और उनके चुच्चे दब कर ब्लाउस में से बाहर आने लगते....उनके मम्मों की बिच की गहराई.

कसम उड़न छल्ले की.....मैं तो गांव में ही बस जाऊंगा.

दिन भर इधर उधर की बातें करते करते शाम हो गयी....मैं मस्ती से काकी के रूप का रसपान करता रहा. उन्हें काम में हाथ बंटाता रहा. कई बार मेरे उनके शरीर में रगड़ हुयी मगर जहाँ काकी इन सब से अनजान थी वहां अपनी तो हालत ख़राब थी. दिल कर रहा था की बाथरूम में जाके मुठ मार लूँ और हल्का हो लूँ मगर काकी काम पे काम बताती जा रही थी और मुझे भी इस बहाने उनके करीब होने का मौका मिल रहा था. 

शाम ढले किवाड़ बजा....मैं और काकी दोनों एक साथ चिल्लाये....."कौन है....?"

काकी की मुस्कराहट फूट पड़ी. वो मुस्कुराते हुए बोली," देख तो बेटा कौन है......पहले पूछ लेना...."

मैंने आवाज़ लगाई " कौन...."

बाहर से खनखनाती हुयी आवाज़ आयी, ''अरे हम है....छोटे बाबू...."

अब ये कौन कॅरक्टर आया ?

मैंने काकी से पूछा...."काकी......ये...?"

काकी बोली " अरे हाँ बेटा खोल्दे......धन्नो....आयी है...."

मैंने किवाड़ खोला और धन्नो आंधी तूफान के जैसे घर में घुसी....उसने अपनी कमर पर एक छोटे से बच्चे को टिकाया हुआ था....पीली साड़ी में लिपटी धन्नो मेरे सामने रुकी...और बोली, " अरे वाह.....बताओ.....कितने लम्बे हो गए .....हाँय.......जब पहले देखी थी तो कितने छोटे थे.....६-७ साल हुए होंगे....क्यों काकी......अरे...हाँ तो.....बाबू तुम्हारी अम्मा कैसी है......बहुत पुन्न आत्मा है.....और अनीता भाभी कैसी है.......उनकी गोद भरी क्या......हम को तो बहुत याद आती है उनकी.....भाभी तो बहुत मज़ाक करती थी हमसे भी....अब हम भी चलते इटावा काकी के साथ .....मगर.....एक तो ये राजू छोटा है फिर खेत भी देखना पड़ता है न....."

भोसड़ी के .....पति पत्नी दोनों बगैर ब्रेक की बैलगाड़ी है .....

काकी मुस्कुराते हुए बोली, " आ इधर आ......ला राजू को मुझे दे...."

धन्नो ने अपने बच्चे को काकी को दिया,. काकी उसको दुलारने लगी.

धन्नो चौक के बीच कड़ी कमर पर हाथ रखे हुए पुरे घर का मुआयना करने लगी.

और मैं धन्नो का.....

30 -35 साल की सांवली सी औरत....नाटी मगर सुतां हुआ बदन.....धन्नो का बदन तो छरहरा था. मगर थन बड़े बड़े थे.
बल्कि साडी को यूँही कंधे पर डाले होने से दोनों बोबों के बिच की गली....नहीं गलियारा....मस्त दिख रहा था. 

अपुन ठहरे अकाल की पैदाइश.....अपनी नज़रे वहीँ जाके के जाम हो गयी. धन्नो ने गहरी सांस ली...और बोली, " ओ हो...काकी....अपने तो पूरी तैयारी कर ली जाने की.....सब खाली खाली दिख रहा है.....हैं....पुरा सामान कमरों में ठूंस दिया क्या....?'

"अरे तो पागल....यूँही बाहर पटक क्र चली जाती क्या.....कौन जाने महीना लगे या दो महीना...."

"काकी...मैं बोल देती हूँ.....जल्दी से आ जाना.....हमारा मन नहीं लगेगा....."

" तो तू साथ चल...."

"अब बताओ...छोटे बाबू....काकी ने तो कह दिया साथ चल....यहाँ कितना काम है....हमें नहीं पता जल्दी से ऑंखें ठीक करा लो और आ जाओ." 

काकी बोली, " अच्छा सुन....ये मरे बंदरों ने नाक में दम क्र रखा है.....आज फिर आये थे......मेरी साड़ी और सब कपडे ले गए....बताओ..."

धन्नो अपनी कजरारी ऑंखें गोल गोल कर के बोली, " हैं.....फिर आये थे.....सब कपडे ले गए मतलब......सब....?"

काकी ने धीरे से कहा, " अरे छोरी......एक कपडा न छोड़ा मेरा.....साड़ी हैं नहीं....सब फाड़ कर अनाज बांध दिया.....बाकि दूसरे उस दिन वो तेरी बहन आयी थी उसको दे दिए थे.....मैंने कहा था ना तुझसे .......नई साड़ी लुंगी.......अब मेरे तो कपडे भी ना बचे.....कल क्या पहनूंगी...."

धन्नो अचरज से बोली, " हैं....काकी.....सारे...कपडे.....मतलब......सब........अरे...अंदर के कपडे भी ले गए मरे ......?"

काकी का मुंह शर्म से लाल हो गया. वो चुप रही. मगर धन्नो तो धन्नो थी.

"अरे काकी.....अंदर के कपडे तो होंगे....."

काकी ने अपनी गर्दन निचे करके धीरे से कहाँ, " ना.....रे.....वो भी ना है....सोचा था इटावा से......"

धन्नो बोली, " तो क्या काकी मैं अभी अपने कपडे ला देती हूँ........"

काकी थोड़ा चिढ़ कर बोली, " अरे गधी .....तेरे कपडे मुझे किस तरह आएंगे....पागल....."

"हाँ काकी...ये तो है.....फंस ना जायँगे आपको......." और खी खी हंसने लगी.

"चल फालतू बातें छोड़......एक काम कर... एक साड़ी और कपडे दे जा...."

"साड़ी और क्या......कपडे दूँ काकी..."

"अरे करमजली.....बाकि के कपडे...." काकी दबी ज़ुबान में बोली..

" ओ......चोली और साया.....पर काकी...." 

"तुझसे जितना कहा उतना कर...." 

धन्नो अभी आयी कह कर निकल ली.
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