RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
हमारे बीच जो कुछ था उसके खो जाने के बाद मुझे उसकी बहुत याद आ रही थी. मगर वो जो कुछ भी कर रही थी मैने उसे कबूल कर लिया था. मुझे एहसास हो गया था वो खुद किन हालातों से गुज़र रही है. अगर मैं अपनी प्रतिक्रिया को देखता और मेरी तकलीफ़ जैसे अपनी माँ की तकलीफ़ को भी समझता तो मुझे उसके लिए भी बहुत दुख महसूस हो रहा था.
अब ना तो वो नाम शुभरात्रि चुंबन थे और ना ही वो सुखद एहसास करने वाले आलिंगन. उस रात के बाद भी आने वाली रातों को वो मेरे साथ टीवी देखने को आती मगर अच्छी रात गुज़रने की उसकी शुभकामना हमेशा जुवानी होती.
जब अगली बार मेरे पिताजी शहर से बाहर गये, तो मुझे नही मालूम था अगर हम पहले की ही भाँति कोई फिल्म देखेंगे और देर रात तक इकट्ठे समय ब्यतीत करेंगे. मुझे उम्मीद थी कि हम पहले की ही तरह समय बिताएँगे मगर मैने खुद को बदले हालातों के अनुसार छोटे से रात्रि मिलन के साथ के लिए तैयार रखा.
वाकाई में हमारे पिताजी के जाने के बाद उस रात हमारा साथ थोड़े समय के लिए ही था मगर ये मेन था जिसने हमारे उस रात्रि के साथ को छोटा कर दिया था. मैने वहाँ से जल्दी उठने और अपने कमरे में जाने का फ़ैसला कर लिया. मैं हमारे बीच की उस दूरी को बर्दाश्त नही कर सकता था और वैसे भी फिल्म देखने का मेरा बिल्कुल भी मन नही था क्योंकि पहले जैसा कुछ भी नही था या कम से कम जैसा मैं चाहता था वैसा कुछ भी नही था. मैने उसे गुडनाइट बोला और उस अकेले टीवी देखने के लिए छोड़ वहाँ से चल गया.
उसे ज़रूर मालूम था कि मैं परेशान था. उसने महसूस किया होगा कि मैं खुश नही था.
मैं अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर दिया. अपने बेड पर लेटा मैं करवटें बदल रहा था.
मेरा दिल जोरों से धड़क उठा जब उस रात कुछ समय बाद मैने अपने दरवाजे पर दस्तक सुनी.
अपने दरवाजे पर उस रात थोड़ी देर बाद दस्तक सुन मेरा दिल ज़ोरों से धड़क उठा. मैं लगभग भाग कर दरवाजा खोलने गया. वो मेरे सामने वोही उस रात वाली नाइटी पहने वोही पर्फ्यूम लगाए महकती हुई खड़ी थी, उसने हल्का सा शृंगार किया हुआ था और बहुत ही प्यारी लग रही थी.
उसने अपना हाथ आगे मेरी ओर बढ़ाया और कहा, "आओ बेटा टीवी देखते हैं. इतनी भी क्या जल्दी सोने की!"
मैने अपना हाथ उसके हाथ में दिया और वो मेरा हाथ थामे मुझे वापिस ड्रॉयिंग रूम में ले गयी. मैं इस अचानक बदलाव से अत्यधिक खुश था, हालाँकि मैं नही जानता था इस सबका मतलब क्या है या वो चाहती क्या है. हम उसी सोफे पर बैठ टीवी पर कुछ देखने लगे. मुझे याद नही हम देख क्या रहे थे. मैं अपने विचारों में खोया हुआ हालातों में आए अचानक बदलाव के बारे में सोच रहा था.
हम कुछ देर तक वहाँ बैठे रहे मगर जल्द ही हम ने फ़ैसला किया कि अब सोना चाहिए. हम दोनो एक साथ उठ खड़े हुए, ड्रॉयिंगरूम और रसोई की सभी बत्तियाँ बंद की और कॉरिडोर की ओर चल पड़े जहाँ मेरा कमरा था और जहाँ जायदातर हम एक दूसरे को सुभरात्रि की सूभकामना करते थे. मेरा दिल दुगनी रफ़्तार से धड़क रहा था और मेरा दिमाग़ हसरत पे हसरत किए जा रहा था.
मैने अपने जज़्बातों को दम घुटने की हद तक दबा कर रखा हुआ था. नाम होंठो के सुभरात्रि चुंबन या आलिंगन के दोहराने को लेकर मैं पूरी तेरह से आश्वस्त नही था. मुझे अपनी भावनाओ को इस हद्द तक दबाना पड़ रहा था कि मैं बेसूध सा होता जा रहा था.
मगर जैसा सामने आया वो खुद अपनी भावनाओ को दबाए हुए थी, एक बार जब हम मेरे कमरे के दरवाजे पर पहुँचे तो वो मेरी ओर बढ़ी. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन में डालने के लिए उपर उठाई. मैने अपनी बाहें उसकी कमर पर लपेट दीं और उसे अपनी ओर खींच कर पूर्ण आलिंगन में ले लिया. हमारी गर्दने आपस में सटी हुई थी, हमारी छातियाँ पूरे संपर्क में थी और मेरी बाहें उसे थोड़े ज़ोर से अपने आलिंगन में लिए हुए थी. मैं उसे कस कर अपने से चिपटाये हुए था. उसने ज़रूर मेरे आलिंगन में मेरी नाराज़गी महसूस की होगी.
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