RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार जब उसने मेरी ओर देखा तो मैं उसके जिस्म की हिलडुल को भी सुन सकता था. उसके चेहरे पर वो अजीब भाव देख सकता था, डर और कामना, उम्मीद और आतंक का मिला जुला रूप था वो. उसने हमारी दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.
हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? अब इसके आगे बढ़ने की हमारी क्या संभावना थी? सामान्यतः हमारा आगे बढ़ने वाला रास्ता स्पष्ट था मगर हमारे बीच कुछ भी सामने नही था. सबसे पहले हम नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, हम यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. हम समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि हमारे आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी.
अंत में मैने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, मैने अपनी चादर हटाई और धृड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक उसकी कुर्सी थी. वो संभवत मेरा इंतेज़ार कर रही थी, मैं बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह मेरा उसके “अब क्या?” का जवाब था.
वो पहले तो हिचकिचाई, मेरे कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और मेरे हाथों में दे दिए.
वो हमारा पहला वास्तविक स्पर्श था जब मैने उसे हसरत से छुआ था, हसरत जो उसके लिए थी और उसके जिस्म के लिए थी. उसने इसे स्वीकार कर किया था बल्कि परस्पर मेरी हसरत का जबाव उसने अपने स्पर्श से दिया था. उसके हाथ बहुत नाज़ुक महसूस हो रहे थे. बहुत नरम, खूबसूरत हाथ थे माँ के और मेरे लंबे हाथों में पूरी तरह से समा गये थे.
हमारा स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मॅटर नही था, उससे कहीं अधिक था. हम ने उंगलियों के संपर्क मॅटर से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. हमारे हाथों का यह स्पर्श पिछली बार के उस स्पर्श से कहीं अधिक आत्मीय था जब उसने कॉरिडोर में मेरे हाथ थामे और दबाए थे. मैने अपनी उँगुलियों को उसकी हथेलियों पर रगड़ा. वो अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रहने का प्रयास कर रही थी क्योंकि उसका जिस्म हल्के हल्के झटके खा रहा था.
मैं उसकी उंगलियाँ उसकी हथेलियों की बॅक को अपने अंगूठो से सहला रहा था. वो गहरी साँसे ले रही थी और मैं उसके जिस्म को हल्के से काँपते महसूस कर सकता था. उसके खामोश समर्पण से उत्साहित होकर मैने बेड से उतरने और उसके सामने खड़े होने का फ़ैसला किया. मैं अभी भी उसके हाथ थामे हुए था, सो मेरे बेड से उठने के समय उसके हाथ भी थोड़ा सा उपर को उठे जिस कारण उसका बदन भी थोड़ा उपर को उठा. उसने इशारा समझा और वो भी उठ कर खड़ी हो गयी. अब हम एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे हम एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे.
वो पहले आगे बढ़ी, वो मेरे पास आ गयी और उसने अपना चेहरा मेरी और बढ़ाया. मैने अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुकाया और वो मुझे चूमने के लिए थोड़ा सा और आगे बढ़ी. मैने उसके हाथ छोड़ दिए और उसे अपनी बाहों में भर लिया. हमारे होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, हमारे अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.
हम एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. हम ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. हमने पूरी कठोरता से और गहराई से एकदुसरे को चूमा. हमारे होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और हमारी जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि हमने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.
उसके होंठ बहुत नाज़ुक थे मगर उनमे कितनी कामुकता भरी पड़ी थी. उसके चुंबन बहुत नरम थे मगर कितने आनन्ददाइ थे. उसकी जिव्हा बहुत मीठी थी मगर कितनी मादक थी.
वो लम्हे अद्भुत थे और हमारा चुंबन बहुत लंबा चला था. हमने उन सभी व्यर्थ गुज़रे पलों की कमी दूर कर दी थी जब हमारे होंठ इतने नज़दीक होते थे और हम सूखे होंठो के चुंबन से कहीं अधिक करने के इच्छुक होते थे. मुझे यकीन नही हो पा रहा था हमारे चुंबन कितने आनंदमयी थे, उसके होंठ कितने स्वादिष्ट थे, और उसने अपना चेहरा कितने जोश से मेरे चेहरे पे दबाया हुआ था.
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