RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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ये सिर्फ़ एक गाना नही, मेरे दिल के वो अहसास थे. जो इस समय मैं प्रिया को लेकर महसूस कर रहा था. वक्त जैसे हम लोगों के लिए रुक सा गया था. सब के लब खामोश थे, लेकिन आँखे आँसू बहा कर अपने ज़ज्बात जाहिर कर रही थी.
थोड़ी देर किसी ने किसी से कुछ भी नही कहा. फिर निक्की ने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए, हमारे पास आते हुए, हम से कहा.
निक्की बोली “ये देखो, तुम दोनो ने मुझे भी रुला कर रख दिया.”
निक्की की बात सुनकर, मुझे पहली बार वहाँ पर निक्की के भी होने का अहसास हुआ और मैने अपनी आँखों को सॉफ करते हुए, निक्की से कहा.
मैं बोला “मैने क्या किया. मैं तो सिर्फ़ प्रिया को मना रहा था.”
ये कहते हुए, मैने निक्की को प्रिया की तरफ इशारा किया. प्रिया अब भी मुझसे लिपट कर रोए ही जा रही थी. उसने जैसे हम दोनो की, बात सुनी ही ना हो. निक्की ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर प्रिया को छेड़ते हुए कहा.
निक्की बोली “क्या इतना मनाने के बाद भी, तेरा गुस्सा ख़तम नही हुआ है. जो अभी तक रोए जा रही है.”
ये कहते हुए निक्की ने प्यार से प्रिया के सर पर हाथ रखा तो, प्रिया मुझे छोड़ कर, निक्की से लिपट गयी. निक्की ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
निक्की बोली “अब बस भी कर ना, मुझसे तेरा रोना नही देखा जाता है. अब यदि तू चुप नही हुई तो, मैं भी रोने लग जाउन्गी.”
निक्की की इस बात ने प्रिया के उपर जड़ी की तरह असर किया और उसका रोना धीरे धीरे सिसकी मे बदल गया. लेकिन वो अभी भी निक्की से लिपटी हुई थी. निक्की ने मुझे बोलने का इशारा किया तो, मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “सॉरी, मैने अंजाने मे तुम्हारे दिल को बहुत चोट लगा दी. मैं जानता हूँ कि, मैं उस वक्त ग़लत था और यदि खालिद अजय का दोस्त ना निकला होता तो, मेरे साथ कुछ भी बुरा हो सकता था.”
“लेकिन अब एक बात मैं तुमसे पुछ्ता हूँ. तुम तो खालिद के बारे मे सब कुछ पहले से जानती हो. ऐसे मे यदि आज रास्ते मे किसी बात को लेकर, मेरा झगड़ा खालिद से हो गया होता तो, तब तुम क्या करती. क्या तुम खालिद के डर से मुझे अकेला छोड़ कर भाग जाती.”
मेरी ये बात सुनते ही प्रिया का सिसकना बंद हो गया और वो पलट कर मेरी तरफ गौर से देखने लगी. वो शायद ये जानने की कोसिस कर रही थी कि, मैं उस से ये सवाल क्यो कर रहा हूँ.
लेकिन जब उसे मेरे इस सवाल को करने का मतलब समझ मे आया तो, उसने गुस्से मे मुझे घूरते हुए कहा.
प्रिया बोली “ज़्यादा चालाक बनने की कोसिस मत करो. तुम मुझको मेरे दिए गये जबाब मे ही फसाना चाहते हो. लेकिन एक बात कान खोल कर सुन लो. मैं जो चाहे कर सकती हूँ. तुम मेरी बराबरी करने की कोसिस मत करो.”
प्रिया की ये बात सुनते ही, मेरी और निक्की की हँसी छूट गयी. थोड़ी देर मैं और निक्की मिलकर प्रिया को इसी बात को लेकर परेशान करते रहे और फिर धीरे धीरे प्रिया भी अपने मूड मे वापस आ गयी.
प्रिया की नाराज़गी दूर होते देख, मैने भी राहत की साँस ली. कुछ देर हम लोग ऐसे ही एक दूसरे से हँसी मज़ाक करते रहे. फिर एक दूसरे को गुड नाइट बोल कर अपने अपने कमरे की तरफ चल दिए.
कमरे मे आकर मैने भी सुकून की साँस ली. अब मेरे दिल मे जल्द से जल्द सिर्फ़ कीर्ति से मिलने की तड़प थी और मैं इसी तड़प के साथ कीर्ति को याद करते हुए गहरी नींद के आगोश मे खो गया.
सुबह 7 बजे मेरी नींद निक्की के जगाने पर खुली. उसने हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए मुझे जगाया और फिर मुझे तैयार होने का बोल कर वापस चली गयी. उसके जाने के बाद, मैं भी फ्रेश होने चला गया.
फ्रेश होने के बाद मैं तैयार हुआ और अपने बाकी के समान की पॅकिंग करने लगा. तभी निक्की और प्रिया चाय नाश्ता लेकर आ गयी. मैने उनके साथ चाय नाश्ता किया और फिर उनसे बात करते करते अपने समान की पॅकिंग करने लगा.
कुछ ही देर मे मेरा पॅकिंग करना भी हो गया. उसके बाद मैं प्रिया और निक्की के साथ बाहर हॉल मे सबके पास आ गया. हॉल मे घर के सभी लोग बैठ कर गॅप शॅप कर रहे थे.
आज मोहिनी आंटी सब से दिल खोल कर बातें कर रही थी. मेहुल भी उनसे बात करने का कोई मौका नही छोड़ रहा था. मुझे मेहुल की इस हरकत को देख कर, कुछ हैरानी सी हो रही थी और मैं खामोशी से उसकी बातों को सुनने लगा.
मेरे पास ही नितिका और प्रिया भी बैठी हुई थी. प्रिया को भी मेहुल का मोहिनी आंटी की हर बात मे साथ देना, कुछ अजीब सा लग रहा था. थोड़ी देर तक तो, वो उसकी बातें सुनती रही. लेकिन जब उस से ना रहा गया तो, उसने धीरे से मुझसे कहा.
प्रिया बोली “मुझे तो दाल मे कुछ काला नज़र आ रहा है. तुमको ऐसा नही लग रहा कि, मेहुल चाची को ज़रूरत से ज़्यादा ही मस्का लगा रहा है.”
मैं बोला “हां, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा कि, ये ऐसा क्यो कर रहा है.”
हम दोनो आपस मे धीरे धीरे बातें कर रहे थे. लेकिन हमारी इस बात को नितिका भी सुन रही थी. उसने मेरी बात सुनते ही धीरे से हम दोनो से कहा.
नितिका बोली “वो अपने आगे का रास्ता तैयार कर रहा है.”
नितिका की बात सुनते ही, हम दोनो का ध्यान उसकी तरफ चला गया. उसने हम दोनो की हैरानी को दूर करते हुए कहा.
नितिका बोली “इसमे चौकने वाली क्या बात है. मेहुल की गर्लफ्रेंड शिल्पा मेरी सहेली है और वो मेरे घर आती रहती है. मम्मी के बिगड़े हुए स्वाभाव की वजह से मेहुल हमारे घर आने से भी डरता था.”
“लेकिन अब मम्मी के इस बदले हुए रूप को देख, वो मम्मी को पटाने मे लगा है. ताकि यहाँ से जाने के बाद भी मम्मी के साथ उसका मेल जोल ऐसे ही बना रहे और उसका हमारे घर आना जाना सुरू हो जाए.”
नितिका की ये बात सुनकर, मुझे और भी ज़्यादा हैरानी हुई और मैने नितिका से कहा.
मैं बोला “ये तो आप ठीक कह रही है. लेकिन मैं ये नही मान सकता कि, ये आइडिया मेहुल के दिमाग़ मे आ सकता. ये ज़रूर किसी और के दिमाग़ की उपज है.”
मेरी बात के जबाब मे नितिका ने मुस्कुराते हुए कहा.
नितिका बोली “आप ठीक सोच रहे हो. ये मेहुल का नही, रिया दीदी का आइडिया है. उन्हो ने ही कल मेहुल को ये सलाह दी थी और वो कल से इसी तरह मम्मी के आगे पिछे लगा हुआ है. हम लोगों के आपके साथ वापस चलने मे भी मेहुल का ही हाथ है.”
नितिका की ये बात सुनकर, मेरी और प्रिया की हँसी छूट गयी. हम फिर से मेहुल और मोहिनी आंटी की बातों का मज़ा लेने लगे. ऐसे ही बातों और हँसी मज़ाक का दौर चलते चलते 11 बज गये.
मैने प्रिया से बरखा दीदी के घर चलने का पुछा तो, पद्मिकनी आंटी ने मुझसे खाना खा कर जाने को कहा. मैने उनको समझाना चाहा, लेकिन आज मेरा उनके घर मे आख़िरी दिन था.
जिस वजह से वो मुझे आज खाना खाए, बिना कही जाने नही देना चाहती थी. आख़िर मे मुझे उनकी बात मान कर, सबके साथ खाना खाना पड़ गया. खाना खाते खाते हमे 12 बज गये.
उसके बाद, मैं प्रिया और निक्की के साथ बरखा दीदी के घर आ गया. हम लोग वहाँ पहुचे तो, नेहा और सीरू दीदी लोग वहाँ पहले से मौजूद थी. हम लोगों के पहुचते ही, वहाँ खाने की तैयारी चलने लगी.
प्रिया और निक्की ने तो, घर से खाना खा कर आने की बात कह कर, बरखा दीदी से खाना खाने से सॉफ सॉफ मना कर दिया. लेकिन मैं बरखा दीदी के बोलते ही, सबके साथ खाना खाने के लिए बैठ गया.
मुझे यहाँ आकर फिर से खाना खाने के लिए बैठते देख कर, निक्की ने हैरान होकर, मुझसे कहा.
निक्की बोली “अरे आप अभी तो घर से खाना खा कर आए है और अब फिर से यहाँ खाना खाने बैठ गये. क्या आंटी का बना हुआ खाना आपको पसंद नही आया या फिर वहाँ के खाने से आपका पेट नही भरा था.”
निक्की की इस बात को सुनकर, मैं मुस्कुरा कर रह गया. लेकिन प्रिया ने निक्की की इस बात का जबाब देते हुए कहा.
प्रिया बोली “जैसा तू सोच रही है, ऐसी कोई बात नही है. इसने बरखा दीदी से वादा किया था कि, जब तक ये यहाँ है, इसका खाना बरखा दीदी के साथ ही होगा. जिस वजह से खाना खा लेने के बाद भी, इसे अपने वादे को निभाने के लिए, बरखा दीदी के साथ भी खाना खाने बैठना पड़ा है.”
प्रिया की ये बात सुनते ही, सीरू दीदी लोग मेरी इस हालत पर हँसने लगी. लेकिन बरखा दीदी ने फ़ौरन मुझे टोकते हुए कहा.
बरखा बोली “मेरे भाई, तुम्हे किसी बात का संकोच करने की ज़रूरत नही है. यदि तुमने प्रिया के घर खाना खा लिया तो, इसमे क्या ग़लत हो गया. जैसे ये तुम्हारा घर है, वैसे ही वो भी तुम्हारा घर है.”
“तुम यहाँ खाना खाओ या वहाँ खाना खाओ, एक ही बात है. तुम अपने किए गये, किसी वादे के लिए, खुद को तकलीफ़ मत दो. मुझे तुमसे किसी बात की कोई शिकायत नही है और तुम्हे ज़बरदस्ती यहाँ खाना खाने की कोई ज़रूरत नही है.”
बरखा दीदी की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, यदि मुझे यहाँ खाना नही खाना होता तो, मैं आपको कॉल करके, पहले ही मना कर देता. लेकिन मैने प्रिया के घर खाना खाते हुए भी, अपने पेट मे इतनी जगह बचा कर रखी थी कि, आपके साथ भी खाना खा सकूँ. आप यकीन रखिए, मैं कोई संकोच नही कर रहा हूँ.”
मेरी बात सुनकर, बरखा दीदी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और फिर हम सब खाना खाने लगे. सीरू दीदी बात बात पर मेरी खिचाई करने मे लगी थी और सेलू दीदी भी उनका साथ दे रही थी.
ऐसे ही हँसी मज़ाक करते करते हमारा खाना खाना हो गया. अब सब लोग खीर खा रहे थे. तभी सीरू दीदी ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा.
सीरत बोली “एक बात बताओ, तुम्हारी दीदी तो, हमारे घर मे है. फिर तुम उनको छोड़ कर, रोज यहाँ बरखा के साथ खाना क्यो खाते हो.”
सीरू दीदी की इस बात पर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, आपका ऐसा सोचना ग़लत नही है. असल मे बात ये है कि, मुझे इस घर की हर जगह पर दीदी की ही छाप नज़र आती है. सिर्फ़ ये ही नही, बल्कि अभी मैं जो खीर खा रहा हूँ, मुझे तो इसमे भी दीदी के हाथों का ही स्वाद नज़र आ रहा है. जब मैने पहली बार यहाँ खाना खाया था, तब दीदी ने मुझे बिल्कुल ऐसी ही खीर बना कर खिलाई थी.”
मेरी ये बात सुनकर, सीरू दीदी लोग हैरानी से मुझे देखने लगी. वही आंटी के चेहरे पर मुस्कान मगर आँखों मे आँसू झिलमिला गये. आंटी ने मेरे पास आकर, मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
आंटी बोली “तुमने खीर के स्वाद को बिल्कुल सही पहचाना है. ये खीर शिखा ने ही, तुम्हारे लिए बनाकर भेजी थी. जैसे तुम्हारी खाने के बाद, चाय पीने की आदत है. वैसे ही शेखर को भी खाने के बाद, मीठा खाने की आदत थी. उसे खीर बहुत ज़्यादा पसंद थी. इसलिए शिखा ने आज तुम्हारे लिए, ये खीर बना कर भेजी थी.”
शेखर भैया का नाम सुनकर, महॉल एक दम से भावुक सा हो गया था. शेखर भैया से मैं कभी मिला नही था. लेकिन उनसे मुझे इतना ज़्यादा अपनापन हो गया था कि, उनकी कमी के अहसास ने मुझे भी भावुक कर दिया था.
कुछ पल के लिए वहाँ गहरी खामोशी छा गयी. फिर आंटी ने ही इस खामोशी को तोड़ते हुए मुझसे कहा.
आंटी बोली “बेटा, जब कभी तुम्हे यहाँ आने का मौका मिले, तो वो मौका अपने हाथ से जाने मत देना और हम से मिलने चले आना. हम सबको तुमसे इतना अपनापन हो गया है कि, तुम्हे यहाँ से जाने देने का, मन ही नही कर रहा है.”
मैं बोला “आंटी ये भी भला कोई कहने की बात है. यकीन मानिए, जब मैं अपने घर से यहाँ के लिए निकला था, तब मुझे अपने घर वालों से दूर होते हुए, जितना दुख हुआ था, उतना ही दुख, आप सब से भी दूर होते हुए हो रहा है.”
“मुझे आप सब से इतना अपनापन मिला है कि, मेरा आप सब से दूर होने का दिल ही नही कर रहा है. इस समय मुझे अपने घर वापस लौटने की खुशी नही, बल्कि आप सब से दूर होने का दुख हो रहा है.”
ये बात कहते कहते मैं कुछ उदास सा हो गया. मेरी इस उदासी को देख कर, बरखा दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा.
बरखा बोली “मेरे भाई, ऐसा नही कहते. हम लोग तो सिर्फ़ इतना चाहते है कि, तुम कभी कभी हम से मिलने यहाँ आते रहो. लेकिन इसका ये मतलब नही कि, तुम यहाँ से दुखी होकर जाओ. तुम यहाँ से खुशी खुशी अपने घर जाओ. वहाँ पर भी मेरी दो छोटी बहने बड़ी बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही है. वो इतने दिन बाद, तुमको अपने पास पाकर बहुत खुश होगी.”
बरखा दीदी की ये बात सुनकर, मेरी आँखों मे अमि निमी का मासूम चेहरा घूम गया. अभी मैं बरखा दीदी की किसी बात का कोई जबाब दे पाता कि, तभी शिखा दीदी और निशा भाभी अंदर आती हुई नज़र आई.
उनको देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वो दोनो भी हमारे पास आकर बैठ गयी. निशा भाभी ने आते ही, मुझे छेड़ते हुए कहा.
निशा भाभी बोली “क्यो हीरो, यहाँ सबका खाना हो गया है. लेकिन तुम्हारा खाना है कि, अभी तक चल ही रहा है.”
उनकी ये बात सुनकर, मैं मुस्कुरा कर रह गया और फिर से खीर खाने लगा. लेकिन सीरू दीदी का दिमाग़ कब कहाँ चल जाए, ये कोई नही जानता था. उन्हो ने फ़ौरन ही निशा भाभी की, इस बात का जबाब देते हुए कहा.
सीरत बोली “क्या भाभी, आपको मज़ाक के सिवा कभी कुछ सूझता भी है या नही. ये बेचारा इतने दिन यहाँ रहा. लेकिन शिखा भाभी ने उसे उसकी मनपसंद चीज़ बना कर ही नही खिलाई है. अब तो अपने घर जाकर ही इसका पेट भर पाएगा.”
सीरू दीदी की ये बात सुनते ही, मैं उनकी तरफ देखने लगा. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, अब इनके दिमाग़ मे क्या चल रहा है. वही शिखा दीदी ने हैरानी से सीरू दीदी से कहा.
शिखा दीदी बोली “मैं समझी नही, आप क्या बोल रही हो.”
सीरत बोली “भाभी, इसमे समझने वाली क्या बात है. प्रिया बता रही थी कि, आपके भाई को आलू के पराठे बहुत पसंद है. क्या आपने आज तक इसे आलू के पराठे खिलाए है. अब तो इसे आलू के पराठे अपने घर जाकर ही खाने को मिलेगे.”
सीरू दीदी की ये बात सुनकर, मैने प्रिया की तरफ घूर कर देखा. लेकिन वो ना मे अपना सर हिला कर बताने लगी कि, उसने ऐसा कुछ भी नही कहा है. वही सीरू दीदी की ये बात सुनते ही, शिखा दीदी ने फ़ौरन उठ कर खड़े होते हुए कहा.
शिखा दीदी बोली “भैया, मुझे ये बात पता नही थी. लेकिन आप बस थोड़ी देर रूको, मैं अभी आपके लिए आलू के पराठे बना कर लाती हूँ.”
शिखा दीदी की ये बात सुनते ही, मेरे पेट की तो जान ही निकल गयी. मैने फ़ौरन ही शिखा दीदी को रोकते हुए कहा.
मैं बोला “नही दीदी, अब मेरा खाना हो चुका है. आप बेकार मे परेशान मत होइए, मैं अगली बार जब आउगा, तब ज़रूर आपके हाथ के आलू के पराठे खाउन्गा.”
मगर शिखा दीदी ने मेरी इस बात को अनसुना करते हुए कहा.
शिखा दीदी बोली “नही भैया, आप चाहे एक पराठा खाइए, लेकिन मैं आपको आलू के पराठे खाए बिना यहाँ से नही जाने दुगी. आप बस 5 मिनट रुकिये, मैं अभी पराठे बना कर लाती हूँ.”
इतना बोल कर शिखा दीदी, मेरी कोई बात सुने बिना ही किचन की तरफ चली गयी और मैं गुस्से मे सीरू दीदी को देखने लगा. वही प्रिया सीरू दीदी से इस बात को लेकर बहस करने लगी की, उन्हो ने इस बात मे उसका झूठा नाम क्यो लिया.
अभी प्रिया और सीरू दीदी और प्रिया मे इस बात को लेकर बहस चल ही रही थी कि, तभी राज, रिया, मेहुल और नितिका आ गये. जब उन्हे प्रिया और सीरू दीदी की इस बहस के बारे मे पता चला तो, मेहुल ने बताया कि, ये बात तो सीरू दीदी को कल नितिका से पता चली थी.
मेहुल की ये बात सुनते ही सबको पूरी बात समझ मे आ गयी और सब हँसने लगे. लेकिन सीरू दीदी के इस मज़ाक ने मुझे परेशानी मे डाल दिया था. कुछ ही देर मे शिखा दीदी आलू के पराठे बना कर, ले आई.
मेरे पेट मे अब खाने के लिए ज़रा भी जगह नही बची थी. फिर भी उनका दिल रखने के लिए मैं पराठे खाने लगा. अब ये उनके हाथों का जादू था या फिर उनका मेरे लिए प्यार था, जो मैं ना ना करते हुए भी पराठे खाते चला जा रहा था.
मुझे इस तरह पराठे खाते देख, सीरू दीदी लोग भी हैरानी से मुझे देख रही थी और जब सीरू दीदी से ना रहा गया तो, उन्हो ने मुझे टोकते हुए कहा.
सीरत बोली “अब बस भी कर पेटु. ना ना करते हुए भी दो पराठे खा गया है. इतना खाएगा तो, अब तेरा पेट ही फट जाएगा.”
सीरू दीदी की बात सुनकर, एक बार फिर सबके क़हक़हे गूँज गये और इस बीच मेरा पराठे खाना भी हो गया. इसके बाद हम सबके बीच हँसी मज़ाक का दौर चलता रहा. इस सब मे हमे पता ही नही चला कि, कब 3:15 बज गये.
मेहुल ने हमे इस बात का ध्यान दिलाया और जल्दी से वापस प्रिया के घर चलने को कहने लगा. लेकिन तभी आंटी ने हमे रुकने को कहा और वो अंदर वाले कमरे मे चली गयी.
कुछ देर बाद, जब उस कमरे से वापस लौटी तो, उनके हाथ मे एक बॅग था. ये वो ही बॅग था, जो छोटी माँ के यहाँ आते समय नितिका के हाथ मे था और नितिका इसे छोटी माँ के साथ आंटी के कमरे मे लेकर गयी थी. आंटी ने वो बॅग मेहुल को देते हुए कहा.
आंटी बोली “तुम अपना ये बॅग तो, भूल ही जा रहे हो. पुनीत की मोम ने इसकी ज़िम्मेदारी तुमको ही दी थी.”
आंटी की बात सुनकर, मेहुल ने मुस्कुराते हुए, वो बॅग आंटी से ले लिया और फिर वो बॅग बरखा की तरफ बढ़ते हुए कहा.
मेहुल बोला “दीदी, आंटी ने जाते समय मुझसे कहा था कि, उन्हो ने शिखा दीदी के लिए तो, थोड़ा बहुत कर दिया है. लेकिन जल्दबाज़ी मे वो आपके लिए कुछ नही कर पाई है. इसलिए उन्हो ने ये बॅग आपको दे देने को कहा था.”
मेहुल की ये बात सुनकर, बरखा आंटी की तरफ देखने लगी. वही आंटी ने मेहुल को टोकते हुए कहा.
आंटी बोली “बेटा, ये उनका बड़प्पन है कि, शिखा के लिए इतना सब करने के बाद भी, वो इसे थोड़ा मान रही है. मगर इस बॅग मे उन्हो ने बहुत पैसे रख छोड़े है. बरखा भला इतने पैसो का क्या करेगी.”
मेहुल बोला “आपकी इसी बात की वजह से उन्हो ने जाते समय आप से कहा था कि, आप ये बॅग मुझे दे देना. क्योकि वो जानती थी कि, आप इसके लिए कभी तैयार नही होगी. मगर उनका मानना था कि, पुनीत पर जितना हक़ शिखा दीदी का है, उतना ही हक़ बरखा दीदी का भी है. इसलिए उन्हो ने ये पैसा बरखा दीदी को पुनीत की तरफ से दिया है. अब ये बरखा दीदी की मर्ज़ी पर है, वो इस पैसे का जो चाहे, वो कर सकती है.”
मेहुल की ये बात सुनकर, आंटी उसको समझाने की कोसिस करने लगी. लेकिन छोटी माँ भी मेहुल को बहुत अच्छी तरह से समझा कर गयी थी. इसलिए वो आंटी की हर एक बात का जबाब देता गया.
आख़िर मे मेरे और निशा भाभी के समझाने पर आंटी ने इस बात का विरोध करना बंद कर दिया और बरखा दीदी ने खुशी खुशी वो बॅग ले लिया. इसके बाद मैने और मेहुल ने आंटी के पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया और फिर हम सब आंटी से विदा लेकर, प्रिया के घर के लिए निकल लिए.
हम सब 3:45 बजे प्रिया के घर पहुच गये. वहाँ दादा जी के साथ, राजेश अंकल और आकाश अंकल बैठे हुए थे. पद्मि्नी आंटी के साथ साथ, आकाश अंकल भी हमे एरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे. इसलिए आज वो इतनी समय घर पर थे.
हम सब 3:45 बजे प्रिया के घर पहुच गये. वहाँ दादा जी के साथ, राजेश अंकल और आकाश अंकल बैठे हुए थे. पद्मिजनी आंटी के साथ साथ, आकाश अंकल भी हमे एरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे. इसलिए आज वो इतनी समय घर पर थे.
अजय और अमन ने एरपोर्ट पर ही मिलने का कहा था. हमारी फ्लाइट का समय 5 बजे का था और अब हमारे एरपोर्ट के लिए निकालने मे ज़्यादा समय बाकी नही था. मोहिनी आंटी ने तो अपना सारा समान, पहले से ही बाहर निकाल कर रखा हुआ था.
इसलिए मैने और मेहुल ने घर आते ही, अपना अपना समान निकाल कर गाड़ियों मे रखना सुरू कर दिया. राज, रिया, प्रिया और निक्की हमारे बॅग, गाड़ियों तक पहुचने मे हमारी मदद कर रहे थे.
मैं जब यहाँ आया था तो, मेरे पास सिर्फ़ एक बॅग था. लेकिन अब जाती समय मेरे पास 4-5 बॅग हो गये थे. कुछ बॅग मे मेरे खुद का खरीदा हुआ समान था तो, कुछ बॅग मे यहाँ से मिला हुआ समान था.
कुछ ही देर मे, हम सब के बॅग अलग अलग गाड़ियों मे चढ़ा दिए गये. फिर मैने और मेहुल ने दादा जी पैर छु कर, उन से आशीर्वाद लिया और उसके बाद, हम लोग उनसे विदा लेकर, अलग अलग गाड़ियों मे 4 बजे एरपोर्ट के लिए निकल पड़े.
एक कार मे आकाश अंकल, पद्मिेनी आंटी और मोहिनी आंटी थे. दूसरी कार मे सीरू दीदी, सेलू, आरू, हेतल दीदी और निक्की थे. तीसरी कार मे बरखा दीदी, नेहा, रिया और नितिका थे. चौथी कार मे निशा भाभी और शिखा दीदी, मैं और प्रिया थे. पाँचवी कार मे राजेश अंकल, मेहुल, राज और हीतू थे.
जब हम लोग मुंबई आए थे, तब हमे स्टेशन पर लेने के लिए सिर्फ़ राज और रिया ही आए थे और हम स्टेशन से उनके घर तक टॅक्सी मे आए थे. लेकिन आज हमे राज के घर से एरपोर्ट तक छोड़ने के लिए, 5 गाड़ियाँ और इतने सारे लोग जा रहे थे.
जिनमे से हर एक के साथ, मेरा एक गहरा रिश्ता सा जुड़ गया था और हर एक के साथ मुझे दिली लगाव हो गया था. ऐसा ही कुछ शायद मुझे लेकर उन सब के साथ भी था. जिसकी गवाही मुझे विदा करने के लिए, उन सबका एरपोर्ट तक आना था.
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