MmsBee कोई तो रोक लो
09-10-2020, 01:49 PM,
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मैं अपने आपको इस सब से बाहर निकालने की कोसिस कर रहा था. लेकिन चाह कर भी ऐसा कर नही पा रहा था. अभी मैं अपने आँसू रोकने की नाकाम कोसिस मे लगा था कि, तभी छोटी माँ और प्रिया आ गयी.

उन्हो ने मुझे ऐसी हालत मे देखा तो, वो दोनो भी मेरे पास ज़मीन पर ही बैठ गयी. छोटी माँ को अपने पास पाकर मैं अपने आपको संभाल नही पाया और उनसे लिपट कर रोने लगा. तभी बरखा भी वहाँ नेहा के साथ आ गयी. उसने मुझे फिर से रोते देखा तो, उसने छोटी माँ से कहा.

बरखा बोली “आंटी, ये दीदी के जाने के पहले से ही, इसी तरह से यहाँ बैठ कर रो रहा है. मैं तो इसे समझा समझा कर थक चुकी हूँ. अब आप ही इसे कुछ समझाइये कि, ये लड़कियों की तरह इस तरह रोना बंद करे. ऐसा तो कोई लड़की भी नही रोती है, जैसा ये रो रहा है.”

बरखा की बात सुनकर, छोटी माँ ने मेरे आँसू पोन्छे, लेकिन उन्हो ने मुझे कुछ समझने की जगह, उल्टे बरखा को ही समझाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “जैसा तुम सोच रही हो, ऐसा नही है. मेरा पुन्नू बहुत बहादुर है. लेकिन इसके साथ साथ ये बहुत भावुक भी है. शिखा को ये दिल से अपनी बहन मानता है. इसलिए उसकी दूरी इस से सहन नही हो रही है.”

“जिसे तुम मेरे बेटे की कमज़ोरी समझ रही हो, वो ही उसकी असली ताक़त है. जिसकी वजह से इसके अंदर किसी भी रिश्ते को समझने और उस रिश्ते को निभाने की क़ाबलियत हम सब से ज़्यादा है. मुझे अपने बेटे की इस क़ाबलियत पर बहुत नाज़ है.”

ये कह कर छोटी माँ ने मेरे माथे को चूमा और मुझे अपने गले से लगा लिया. छोटी की माँ की बातों को सुनकर, मैं भी अब कुछ सामान्य सा महसूस कर रहा था. वही बरखा को लगा कि छोटी माँ को उसकी बात बुरी लग गयी है. इसलिए उसने अपनी बात पर छोटी माँ को सफाई देते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी आंटी, मैं अपनी किसी बात से आपको या पुन्नू को चोट पहुचाना नही चाहती थी. मैने तो वो बात सिर्फ़ मज़ाक मे और इसको चुप करने के लिए बोली थी.”

बरखा की इस बात पर छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “मुझे तुम्हारी किसी भी बात का बुरा नही लगा है. क्योकि मैं जानती हूँ कि, तुमने वो बात सिर्फ़ पुन्नू को चुप करने के लिए कही थी. मैं तो तुमको सिर्फ़ ये समझाना चाहती थी कि, भले ही ये अपनी भावनाओं पर काबू नही रख पाता है, मगर इसकी यही बात इसे एक बेहतर इंसान बनाती है और इस से मिलने वाले हर एक को इस से प्यार करने पर मजबूर कर देती है.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और बरखा ने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “आंटी, आपने इसके बारे मे ये बात तो बिल्कुल सही कही है. मेरे इस भाई मे ये खूबी तो ज़रूर है कि, ये एक बार जिस किसी से मिल ले, वो इसे जिंदगी भर भुला नही सकता.”

बरखा की इस बात पर सब एक बार फिर से मुस्कुरा दिए. लेकिन छोटी माँ ने सबकी इस मुस्कुराहट पर विराम लगाते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “लेकिन इसके अंदर एक बुरी आदत भी है.”

छोटी माँ की इस बात ने सबके साथ साथ मुझे भी हैरान कर दिया था और सब हैरानी से उनकी तरफ देख रहे थे. वही प्रिया ने हैरत से कहा.

प्रिया बोली “वो बुरी आदत क्या है.”

प्रिया की इस बात पर छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.

छोटी माँ बोली “वो आदत ये है कि, यदि इसे समय पर चाय ना मिले तो, इसका सर भारी हो जाता है और फिर ये पूरे समय सर दर्द से परेशान रहता है.”

छोटी माँ की ये बात सुनकर, सब हँसने लगे. लेकिन बरखा ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा.

बरखा बोली “ओह्ह शिट, दीदी ने मुझे ये बताया भी था, लेकिन मेरे दिमाग़ से ये बात निकल गयी. आंटी आप फ्रेश हो जाइए, मैं अभी चाय लेकर आती हूँ.”

ये कह कर बरखा, नेहा को खिचते हुए अपने साथ नीचे ले गयी. उनके जाने के बाद, छोटी माँ ने मुझे कुछ बातें समझाई और फिर वो फ्रेश होने चली गयी. छोटी माँ के जाने के बाद, मैने प्रिया से पद्मिकनी आंटी के बारे मे पुछा तो, उसने बताया कि, वो लोग घर चली गयी है.

अभी मेरी और प्रिया की बातें चल ही रही थी कि, तभी मेहुल आ गया. उसने राज के घर जाने की बात बताते हुए कहा.

मेहुल बोला “मैं राज के साथ घर जा रहा हूँ. आंटी की फ्लाइट 11 बजे की है और वो जाने के पहले पापा से मिलना चाहती है. इसलिए तुम आंटी को लेकर पहले हॉस्पिटल आ जाना. फिर वही से एरपोर्ट के लिए निकल जाना.”

मैने उसकी बात सुनकर, हां मे अपनी सहमति दी. इसके बाद उसने प्रिया से घर चलने का पुछा तो, वो फ्रेश होने की बात कह कर, उसके साथ चली गयी. उनके जाने के बाद, मैं भी फ्रेश होने चला गया.

मैं जब फ्रेश होकर आया तो, छोटी माँ तैयार हो चुकी थी और बरखा के साथ चाय नाश्ता कर रही थी. मैने भी तैयार होते हुए चाय नाश्ता करने लगा. छोटी माँ का चाय नाश्ता हो चुका था और अब वो अपने समान की पॅकिंग कर रही थी.

उनके समान की पॅकिंग होते होते, मेरा तैयार होना और चाय नाश्ता करना भी हो गया. इसके बाद, हमारी आपस मे बातें चलती रही. फिर 9:बजे मेहुल का कॉल आया कि, वो लोग हॉस्पिटल के लिए निकल रहे है.

मेहुल की बात सुनकर, छोटी माँ ने मुझसे समान नीचे लेकर चलने को कहा और वो नीचे आकर आंटी से मिलने लगी. इस बीच मैने और बरखा ने आकर उनका समान कार मे रख दिया.

छोटी माँ के आंटी से मिल लेने के बाद, मैं बरखा और नेहा उनके साथ हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े. मैने बरखा से हीतू का पुछा तो, उसने बताया कि, हीतू को बहुत नींद आ रही थी. इसलिए वो विदा के बाद, ही घर चला गया. फिर कुछ ही देर मे हम हॉस्पिटल पहुच गये.

हम वहाँ पहुचे तो, हमे वहाँ निक्की, रिया, प्रिया, नितिका खड़ी नज़र आई. लेकिन अंकल, मेहुल और राज नज़र नही आए. हमने निक्की से मेहुल लोगों का पुछा तो, उसने बताया कि, वो अंकल को डॉक्टर को दिखा रहे है. निक्की की बात सुनकर हम सब उनके आने का इंतजार करने लगे.

कुछ ही देर मे मेहुल लोग बाहर आते दिखाई दिए. उनके आते ही छोटी माँ, राजेश अंकल से उनका हाल चाल पुच्छने लगी. उन्हो ने कुछ देर तक अंकल से बात की और फिर उनसे इजाज़त लेकर हम फ्लाइट पकड़ने के लिए निकल पड़े.

हम लोग 10:45 बजे एरपोर्ट पहुच गये. इस थोड़ी से समय मे ही छोटी माँ ने मुझे ढेर सारी बातें समझा दी. जब उनकी फ्लाइट का समय हो गया तो, वो सबसे मिलने लगी. इसके बाद उन्हो ने मुझे गले लगा कर, मेरा माथा चूमा और फिर हम सबको बाइ कह कर अपनी फ्लाइट की तरफ बढ़ गयी.

छोटी माँ के जाने से एक बार फिर मेरी आँखों मे नमी छा गयी थी. मैं उन्हे जाते हुए देख रहा था. अचानक उन्हो ने पलट कर हमारी तरफ देखा, उनकी आँखों मे नमी सी नज़र आ रही थी.

लेकिन उन्हो ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए, मुझे आँसू ना बहाने का इशारा किया. जिसे देख कर मैने फ़ौरन अपनी आँखों को पोछ लिया. उन ने मुझे एक प्यारी सी मुस्कान दी. मगर फिर अचानक ही उनकी आँखे छलकने लगी. उन्हो ने फ़ौरन ही अपनी आँखों को पोन्छा और पलट कर तेज कदमो से अपनी फ्लाइट की तरफ बढ़ गयी.

कुछ ही देर मे वो हमारी नज़रो से ओझल हो गयी. मगर मेरा दिल अभी भी वहाँ से जाने का नही कर रहा था और मैं अपनी नम आँखें लिए, अभी भी उसी तरफ देखे जा रहा था, जिस तरफ छोटी माँ गयी थी. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि छोटी माँ फिर से मुस्कुराती हुई वापस आ जाएगी.
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09-10-2020, 06:02 PM,
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मैं बहुत देर तक वहाँ वैसे ही खड़ा रहा और मेरे साथ साथ बाकी लोग भी वहाँ खड़े रहे. जब सबको वहाँ खड़े हुए काफ़ी देर हो गयी तो, बरखा ने मुझसे कहा.

बरखा बोली “आंटी की फ्लाइट तो कब की जा चुकी है. अब हम लोगों को भी यहाँ से चलना चाहिए.”

बरखा की बात सुनकर, मैं भारी दिल से सब के साथ बाहर आ गया. बाहर आने के बाद, निक्की ने हम सब को बाइ कहा और वो वापस अजय के घर के लिए निकल गयी. निक्की के जाने के बाद, हम सब भी वापस बरखा के घर जाने के लिए निकल पड़े. कुछ ही देर मे हम बरखा के घर पहुच गये.

मेहुल हमारे पहुचने के पहले ही, वहाँ पहुच चुका था और सबका हिसाब करने मे लगा था. राज उसके पास चला गया और रिया, नितिका नेहा बरखा के साथ अंदर जाकर हम सब के खाना खाने की तैयारी मे लग गयी.

मैं प्रिया के साथ उपर आ गया और अपने कपड़े पॅक करने मे लग गया. मुझे अपने समान की पॅकिंग करते देख, शायद उसे मेरे जाने की बात सताने लगी थी. जिस वजह से उसका चेहरा कुछ मुरझा सा गया था.

मैं उसके मन की इस हालत को समझ सकता था. इसलिए मैने उसका दिमाग़ इस बात से हटाने के लिए, बात बनाते हुए उस से कहा.

मैं बोला “मुझे अमि निमी और घर के बाकी लोगों के लिए कुछ खरीदी करनी है. क्या तुम मेरे साथ शॉपिंग करने चलोगि.”

मेरी बात सुनते ही प्रिया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उसने फ़ौरन मुझसे कहा.

प्रिया बोली “हां, ज़रूर चलूगी. लेकिन शॉपिंग पर सिर्फ़ हम दोनो ही जाएगे. हम दोनो के अलावा कोई तीसरा हमारे साथ शॉपिंग पर नही जाएगा.”

प्रिया की इस बात पर मैने भी मुस्कुराते हुए हां कह दिया. अभी मेरी प्रिया से बात चल ही रही थी कि, तभी बरखा आ गयी. उसने मुझे अपने कपड़े पॅक करते हुए देखा तो, अचानक ही उसके चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी और उसने मुझसे कहा.

बरखा बोली “क्या अब तुम हमारे यहाँ नही रुकोगे.”

मैं बोला “दीदी, ऐसी कोई बात नही है. लेकिन अब कल हम लोगों को घर के लिए निकलना है. उसके पहले मैं अमि निमी और घर के बाकी लोगों के लिए थोड़ा शॉपिंग करना चाहता हूँ. शॉपिंग करने के बाद, मुझे अपने समान की पॅकिंग भी करनी है. इसलिए अपने ये कपड़े ले जा रहा हूँ, ताकि रात को आराम से अपनी पॅकिंग कर सकूँ. अब रही बात आपके साथ रहने की, तो आप बिल्कुल फिकर मत कीजिए, मैं जब तक यहाँ हूँ, तब तक मेरा खाना आपके साथ ही होगा.”

मेरी बात सुनकर, बरखा के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “चलो कोई कोई बात नही. सबके लिए शॉपिंग ना भी करो, तब भी चल जाएगा. लेकिन अमि निमी के लिए शॉपिंग करना बहुत ज़रूरी है. तो फिर तुम शॉपिंग के लिए कब जाने वाले हो.”

मैं बोला “बस दीदी, खाना खाने के बाद, मैं और प्रिया शॉपिंग के लिए निकल जाएगे.”

मेरी बात सुनकर बरखा ने मुझसे कहा.

बरखा बोली “मुझे भी अमि, निमी और आंटी के लिए कुछ समान भेजना था. यदि तुम लोगों को बुरा ना लगे तो, क्या मैं भी तुम्हारे साथ शॉपिंग के लिए चल सकती हूँ.”

मैं बोला “दीदी, इसमे बुरा लगने वाली कौन सी बात है. मैने तो आपसे साथ चलने के लिए सिर्फ़ इसलिए नही बोला था, क्योकि मुझे लगा था कि, कहीं आपको यहा पर कोई काम ना हो. यदि आप हमारे साथ चलना चाहती है तो, ज़रूर चल सकती है.”

मेरी बात सुनते ही बरखा ने कहा.

बरखा बोली “तो ठीक है, तुम लोग जल्दी से नीचे से आ जाओ. तब तक मैं सबके लिए खाना लगाती हूँ. फिर उसके बाद हम लोग शॉपिंग पर चलते है.”

मैने भी बरखा की बात मे, हां मे हां मिला दी और मेरी बात सुनते ही वो नीचे चली गयी. लेकिन बरखा के भी हमारे साथ जाने की बात को लेकर, प्रिया का मूह बन गया. मैं उसकी इस नाराज़गी को समझ सकता था.

लेकिन बरखा को अपने साथ जाने से रोकना मेरे बस मे नही था. मैं बरखा का दिल दुखाने की बात सोच भी नही सकता था. जिस वजह से मुझे प्रिया का दिल दुखाना पड़ गया था. मैने उसका बना हुआ मूह देख कर, उस से कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैं जानता हूँ कि, तुम्हे बरखा दीदी का हमारे साथ जाना अच्छा नही लग रहा है. लेकिन मैं उनको जाने के लिए मना करके उनका दिल दुखाना नही चाहता था. मेरे पास उनको साथ लेकर चलने के अलावा कोई रास्ता नही था.”

मैने अपनी बात प्रिया को समझाने के लिए कही थी. लेकिन उसके उपर मेरी इस बात का उल्टा ही असर हुआ. मेरी बात सुनते ही, उसकी आँखों मे आँसू चमकने लगे और उनसे मेरे उपर भड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुमको सबकी खुशी का ख़याल रहता है. लेकिन तुम्हे कभी मेरी किसी खुशी का ख़याल नही रहता. मेरे लिए तुमने खुद तो कभी अपने मन से कुछ किया ही नही और आज जब मैने खुद तुमसे कुछ करने को कहा तो, तुमसे मेरे लिए वो भी ना हो सका. मुझे तुम्हारे साथ किसी शॉपिंग पर नही जाना. तुम बरखा दीदी के साथ ही जाकर अपनी शॉपिंग कर लो. आज के बाद मैं कभी तुमसे कुछ भी नही कहुगी.”

ये कहते कह कर वो गुस्से मे मेरे पास से उठ कर नीचे चली गयी और मैं हैरानी से उसे जाते हुए देखता रह गया. मैं ये तो जानता था कि, प्रिया को मेरी ये बात बुरी लगेगी. लेकिन मुझे इस बात की ज़रा भी उम्मीद नही थी कि, वो मुझसे इस हद तक नाराज़ हो जाएगी कि, मेरे साथ जाने से ही मना कर देगी.

हमेशा हर किसी की बात पर हंसते रहने वाली लड़की का, मेरी ज़रा सी बात पर इस तरह से नाराज़ हो जाने की, मुझे बस एक वजह नज़र आ रही थी और वो वजह थी कि, उसने अपने दिल का सारा हाल मेरे सामने खोल कर रख दिया था.

इसके बाद भी उसने मुझे अपने साथ हमदर्दी जताने तक का मौका नही दिया था. ऐसे मे मेरा उसकी कही एक छोटी सी बात को भी पूरा ना कर पाने से, उसके दिल को चोट पहुचि थी.

ये बात चाहे मेरे लिए बहुत छोटी थी. लेकिन जिस लड़की ने अपने लिए, कभी किसी से कुछ माँगा ही ना हो, उसके लिए एक बहुत बड़ी बात थी. ये ही वजह थी कि, मेरी बात से प्रिया के दिल को चोट पहुचि थी और अब मेरे साथ शॉपिंग पर जाना नही चाहती थी.

मैं अभी प्रिया के ख़यालों मे खोया हुआ था कि, तभी बरखा ने खाना खाने के लिए नीचे आने की आवाज़ लगा दी और मैं नीचे आ गया. मेरे आते ही सब खाना खाने बैठने लगे. मैं भी सबके खाना खाने बैठ गया.

लेकिन प्रिया जो मेरे पास बैठने का कोई भी मौका नही छोड़ती थी. आज मुझसे गुस्सा होने की वजह से नितिका के पास जाकर बैठ गयी. वो एक बार भी नज़र उठा कर मेरी तरफ नही देख रही थी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं उसे कैसे समझाऊ. जब मुझे कुछ समझ मे नही आया तो, मैने खाना खाते खाते एक एसएमएस प्रिया को भेज दिया.

मेरा एसएमएस
“आज कुछ कमी सी है तेरे बैगर.
ना रंग है ना रोशिनी है तेरे बगैर.
वक़्त अपनी रफ़्तार से चल रहा है,
बस धड़कन थमी हुई है तेरे बैगर.”

मेरा एसएमएस पहुचते ही प्रिया ने अपना मोबाइल निकाल कर देखा और फिर एसएमएस पढ़ने लगी. मेरे एसएमएस को पढ़ने के बाद, उसने मेरी तरफ देखा तो नही, लेकिन उसकी उंगलियाँ मोबाइल पर चलने लगी. जिसे देख कर नितिका ने उसे टोकते हुए कहा.

नितिका बोली “मोबाइल के साथ बाद मे खेल लेना. पहले अच्छे से खाना तो खा ले.”

नितिका की बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

प्रिया बोली “कुछ नही, बस एक फालतू का एसएमएस आ गया था. उसे डेलीट कर रही थी.”

ये कह कर, वो फिर से खाना खाने लगी. उसके इस तरह मेरे एसएमएस को डेलीट कर देने से ही पता चल रहा था कि, उसका गुस्सा कम नही हुआ है. लेकिन मेरे पास उसको मनाने के लिए ना तो अभी समय था और ना ही एसएमएस करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता था. इसलिए मैने उसे फिर से एसएमएस भेज दिया.

मेरा एसएमएस
“वो एक दोस्त जो प्यारा सा लगता है.
बहुत पास है फिर भी जुड़ा सा लगता है.
आया नही कोई पैगाम उसका,
शायद किसी बात पे खफा सा लगता है.”

लेकिन प्रिया ने मेरे इस एसएमएस का भी वो ही हाल किया, जो उसने मेरे पहले एसएमएस का किया था. उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि, वो इतनी आसानी से नही मानेगी. फिर भी मैने एक आख़िरी कोसिस करते हुए उसे एक एसएमएस ऑर भेज दिया.

मेरा एसएमएस
“नज़र से नज़र चुराओगे कब तक.
दोस्ती हमारी भुलाओगे कब तक.
यू ही मिलते रहेंगे पैगाम हमारे,
इन पैगमों को मिटाओगे कब तक.”

मगर मेरे इस एसएमएस का भी वो ही हाल हुआ, जो मेरे पिच्छले एसएमएस का हुआ था. प्रिया को मनाने की मेरी सारी कोसिस बेकार हो चुकी थी. इसलिए मैं भी अब हार मान कर खाना खाने लगा.

खाना खाने के बाद, बरखा तैयार होने चली गयी. मैं प्रिया से बात करने की कोसिस मे लगा था. लेकिन वो मुझे बात करने का कोई मौका नही दे रही थी. तभी कीर्ति का कॉल आ गया और मैं बाहर आकर कीर्ति से बात करने लगा.

मैने उसे छोटी माँ के घर वापस लौटने की बात बताई. उसके बाद मैं उसे प्रिया की नाराज़गी की बात भी बताने लगा. जिसे सुनते ही कीर्ति हँसने लगी. उसे हंसते देख मैने उस पर गुस्सा करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “मैं बरखा दीदी और प्रिया के बीच फसा हुआ हूँ और तुझे मेरी इस हालत पर हँसी आ रही है.”

कीर्ति बोली “मैं हंसु नही तो ऑर क्या करूँ. तुम मुझे तो कभी मना नही पाते हो और प्रिया को मनाने चले हो.”

मैं बोला “चल अब अपनी बक बक बंद कर, बरखा दीदी आ रही है. मैं कॉल रखता हूँ.”

कीर्ति बोली “ओके, मैं कॉल रख रही हूँ. लेकिन मैं तुमको एक एसएमएस भेजती हूँ. तुम उसको भेज कर देखना, शायद तुम्हारा काम बन जाए.”

ये कह कर कीर्ति ने कॉल रख दिया और मैं उसका एसएमएस आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी ही देर मे कीर्ति का एसएमएस आ गया और मैने वो एसएमएस प्रिया को भेज दिया.

कीर्ति का एसएमएस
“हो जाए कोई भूल तो ना दिल से लगाना.
जो भी शिकायत हो मिल के बताना.
समझो जो अपना तो हक़ हम पे जताना,
सच्ची है अगर दोस्ती तो दिल से निभाना.”

मैने कीर्ति का एसएमएस प्रिया को भेज तो दिया था. लेकिन मुझे प्रिया के मान जाने की ज़रा भी उम्मीद नही थी. मैं अभी घर के बाहर था, इसलिए मैं ये जान नही पा रहा था कि, प्रिया पर मेरे इस स्मस का क्या असर पड़ा है.

लेकिन हुआ वो ही, जिसकी मुझे ज़रा उम्मीद नही थी. मेरे एसएमएस भेजने के कुछ ही देर बाद, प्रिया का एसएमएस आ गया और मैं उसका एसएमएस पढ़ने लगा.

प्रिया का एसएमएस
“पंछी कह रहे है कि हम चमन छोड़ देंगे.
सितारे कह रहे है कि हम गगन छोड़ देंगे.
अगर हम तुम्हारी दोस्ती मे मर भी जाए तो,
तुम दिल से पुकार लेना हम कफ़न छोड़ देंगे.”

प्रिया का ये एसएमएस पढ़ते ही, मैं घर के अंदर जाने को हुआ. मगर तभी प्रिया और बरखा मुझे बाहर आती दिख गयी. उन्हे आते देख मेरा चेहरा खुशी से खिल गया. बरखा मेरे पास आकर मुझसे बात करने लगी. लेकिन प्रिया आते ही, सीधे गाड़ी मे जाकर बैठ गयी.

शायद उसकी नाराज़गी अभी भी कम नही हुई थी और वो अभी भी मुझसे नज़र नही मिला रही थी. लेकिन फिर भी मुझे इस बात की खुशी थी कि, वो हमारे साथ जाने को तैयार हो गयी है. अब मुझे इस मौके का फ़ायदा उठा कर, किसी ना किसी तरह उसकी इस नाराज़गी दूर करना थी.

प्रिया के गाड़ी मे बैठते ही, मैं और बरखा भी गाड़ी मे बैठ गये. कुछ ही देर मे हमारी गाड़ी एक शॉपिंग माल के सामने जाकर रुक गयी और हम लोग माल मे अपनी शॉपिंग करने चले गये.

मैने पापा के अलावा घर के सभी लोगों के लिए कुछ ना कुछ खरीदी की और उसके बाद अमि निमी के लिए खिलोने देखने लगा. इस बीच बरखा और प्रिया भी अमि निमी और छोटी माँ के लिए कुछ खरीदी करने लगी.

हम लोगों को अपनी शॉपिंग करने मे 3 बज गये. हमारी शॉपिंग तो अच्छी ख़ासी हो गयी थी. उसके बाद हम लोग घर के लिए वापस निकल पड़े. लेकिन इस सब मे मेरे हाथ से प्रिया को मानने का ये मौका भी निकल चुका था और प्रिया की नाराज़गी अभी भी मुझसे कम नही हुई थी.

हम घर पहुचे तो, मेहुल लोग राज के साथ घर वापस जा चुके थे. मैं और प्रिया कुछ देर वहाँ रुके और फिर हम भी प्रिया के घर के लिए निकल पड़े. प्रिया के घर वापस पहुचने मे हमे 4 बज गये.

घर पहुचते ही प्रिया, सीधे अपने कमरे मे चली और मैं शॉपिंग का समान लेकर अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आने के बाद मैने अपने कपड़े बदले और लेट कर प्रिया की नाराज़गी के बारे मे सोचने लगा.

मैं चाह कर भी प्रिया की नाराज़गी को दूर नही कर सका था. यही बात सोचते सोचते पता नही कब मेरी नींद लग गयी. दो रात लगातार जागने की वजह से मुझे इतनी गहरी नींद आई कि, मुझे किसी बात का होश ही रहा.

मेरी नींद शाम को 7 बजे प्रिया के जगाने पर खुली. मैने उठ कर, दरवाजा खोला तो, प्रिया ने बेमन से कहा.

प्रिया बोली “ज़रा अपना मोबाइल देखो, कौन कौन तुमको, कब से कॉल लगाए जा रहा है.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने अपना मोबाइल उठा कर देखा तो, उसमे छोटी माँ, कीर्ति, बरखा, शिखा दीदी, अजय और सीरू दीदी के ढेर सारे कॉल थे. उन सबके कॉल देखने के बाद, मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, ये लोग मुझे इतना कॉल क्यो लगा रहे है.”

प्रिया बोली “शिखा दीदी और बाकी सब तुम्हे वहाँ बुला रहे है. बरखा दीदी, कुछ ही देर मे हमे लेने यहाँ आने वाली है. इसलिए अब तुम जल्दी से तैयार हो जाओ.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने उसे चाय का बताया और फिर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद, मैं तैयार होने लगा. अब मैं अमन के दिए कपड़े पहन रहा था. मेरे तैयार होते ही प्रिया भी चाय ले आई और हम दोनो चाय पीने लगे.

अभी हमारा चाय पीना हुआ ही था कि, तभी नितिका ने आकर बताया कि, बरखा आ गयी है. बरखा के आने की बात सुनकर, हम दोनो बाहर आ गये. बाहर राज, मेहुल, रिया भी तैयार खड़े थे. बरखा के साथ, नेहा और हीतू भी थे.

मेरे उनके पास पहुचते ही बरखा ने जल्दी चलने की बात कही और हम सब बाहर आ गये. बाहर आकर सब अलग अलग कार मे बैठने लगे. लेकिन मैं बाइक उठाने लगा तो, बरखा ने इसकी वजह पुछि, तो मैने उसे बताया कि, ये बाइक मुझे अजय के बंग्लो मे वापस रखना है.

इसके बाद सब कार मे बैठ कर आगे बढ़ गये और मैने भी अपनी बाइक आगे बढ़ा दी. अजय के बंग्लो मे कार रखने के बाद, मैने एक नज़र बंग्लो को देखने लगा. यहाँ मैने अपना बहुत ही कीमती समय बिताया था. इसलिए इस बंग्लो से दूर जाते हुए मुझे कुछ दुख भी हो रहा था.

मैं अभी बंग्लो को निहार ही रहा था कि, तभी प्रिया लोग आ गयी. मैने बंग्लो मे ताला लगाया और फिर प्रिया लोगों के साथ अमन के घर की तरफ बढ़ गया. कुछ ही देर मे हम अमन के घर पहुच गये.

अमन का घर किसी राजमहल से कम नही लग रहा था. हमारे वहाँ पहुचते ही हमारा स्वागत सीरू दीदी ने किया. वो हम लोगों को सीधे वहाँ लेकर आ गयी, जहाँ अजय और अमन के साथ घर के बाकी लोग थे.

मैने अमन की मोम और चाचा चाची के पैर छुकर, उनसे आशीर्वाद लिया. इसके बाद, मेरी नज़र शिखा दीदी को यहाँ वहाँ तलाश करने लगी. शायद सीरू दीदी मेरी नज़रो का मतलब, समझ गयी थी. उसने फ़ौरन ही मुझे टोकते हुए कहा.

सीरत बोली “तुम बेकार मे अपनी दीदी को यहाँ वहाँ ढूँढ रहे हो. वो तो शाम को ही आरू, हेतल और धीरू अंकल लोगों के साथ सूरत चली गयी है. वो बेचारी जाने से पहले तुमसे मिलना चाहती थी. इसलिए तुमको कॉल लगा रही थी. लेकिन तुमने उनका कॉल नही उठाया और उन्हे तुमसे मिले बिना ही जाना पड़ा.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, मेरा चेहरा छोटा सा हो गया और अब मुझे वहाँ कुछ अच्छा सा नही लग रहा था. मैने अजय को उसके बंग्लो की चाबी दी और उसे बताया कि, मैने बाइक वही रख दी है.

इतना कह कर मैं बेमन से वही बैठ गया. मेरी बात सुनकर, अजय कुछ बोलने को हुआ. लेकिन तभी सेलू ने उसे टोकते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया, हमने आपसे कुछ करने को कहा था. यदि आप वो नही कर सकते तो, आप यहाँ से चले जाइए.”

सेलू की बात सुनकर, अजय ने मुझे बैठने को कहा और मैं उसके पास बैठ कर चुप चाप सबकी बातें सुन ने लगा. मुझे चुप चाप देख कर, अमन की मोम ने कहा.

आंटी बोली “क्या बात है बेटा, यहाँ सब कुछ ना कुछ बात कर रहे है. लेकिन तुम बिल्कुल चुप हो. तुम्हे शरमाने की ज़रूरत नही है. ये तुम्हारा ही घर है.”

आंटी की बात सुनकर, मैने कहा.

मैं बोला “आंटी, ऐसी कोई बात नही है. बात असल मे ये है कि, दो दिन से मेरी नींद पूरी नही हो पाई है. इसलिए सर मे थोड़ा सा दर्द है.”

मेरी ये बात सुनते ही सीरू दीदी ने कहा.

सीरत बोली “अरे इसमे परेशानी वाली क्या बात है. हमारी भाभी डॉक्टर है, वो अभी चुटकी बजाते ही तुम्हारा सारा सर दर्द दूर कर देगी.”

मैं सीरू दीदी को ऐसा करने से रोकना चाहता था. लेकिन उन्हो ने मेरी बात को अनसुना करते हुए, घर के अंदर की तरफ आवाज़ लगाते हुए कहा.

सीरत बोली “भाभी यहाँ आपका छोटा देवर सर दर्द से परेशान हो रहा है और आप हो कि किचन से बाहर निकलने का नाम नही ले रही है. सारा काम छोड़ कर जल्दी से यहाँ आइए.”

सीरू दीदी की आवाज़ सुनते ही, निशा भाभी अपने हाथ पोछ्ते हुए हमारे पास आ गयी. वो शायद सच मे ही किचन से आ रही थी. उनको देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैं खड़ा होने लगा तो, उन्हो ने मुझे टोकते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “अरे बैठे रहो हीरो और ये बताओ कि, तुम्हारे सर को क्या हुआ.”

मैं बोला “कुछ नही भाभी, बस नींद पूरी ना होने की वजह से ज़रा सा सर मे दर्द है. नींद पूरी होते ही वो भी चला जाएगा.”

मेरी बात सुनकर, निशा भाभी ने कहा.

निशा भाभी बोली “फिकर मत करो. मेरे पास तुम्हारे इस सर दर्द की दवा भी है. मैं चुटकी बजाते ही, तुम्हारा सारा सर दर्द गायब कर दूँगी”

निशा भाभी की ये बात सुनकर, मैं कुछ कहने ही वाला था कि, तभी उन्हो ने किचन की तरफ देख, कर आवाज़ लगाते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “निधि, ज़रा वहाँ से सर दर्द की दवा तो लेकर आना.”

निशा भाभी की आवाज़ सुनते ही किचन से निधि बाहर निकली. लेकिन उसके हाथ मे खाने का बर्तन था. वो उसे लेकर सीधे डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ गयी और उसे वहाँ रख कर हमारी तरफ मुस्कुरा कर देखने लगी.

अभी मैं हैरानी से निधि को देख रहा था कि, तभी मुझे फिर से किचन की तरफ से किसी के आने की आहट हुई. मैने पलट कर देखा तो ये निक्की थी. उसके हाथ मे भी एक खाने का बर्तन था और वो भी उसे लेकर सीधे डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ गयी और उसे वहाँ रख कर, मुझे देख कर, मुस्कुराने लगी.

मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि, ये सब क्या हो रहा. लेकिन अभी मेरा ऑर ज़्यादा हैरान होना बाकी था. क्योकि कुछ ही देर बाद, किचन से हेतल और आरू निकल आई. उन्हो ने भी वो ही किया, जो निधि और निक्की ने किया था.

हेतल और आरू को देखने के बाद, मेरी नज़र इस बार खुद ब खुद बेचेनी से किचन की तरफ चली गयी. क्योकि हेतल और आरू को देख कर, अब मुझे ऐसा लग रहा था कि, मेरे साथ मज़ाक किया जा रहा है और शिखा दीदी यही पर है.

मुझे इस तरह किचन की तरफ देखते देख कर, सीरू दीदी ने मुझे टोकते हुए कहा.

सीरत बोली “अरे अब किचन की तरफ क्या देख रहे हो. सारा खाना तो डाइनिंग टेबल पर सज चुका है और सजाने वाले भी सब यही है.”

लेकिन मुझे सीरू दीदी की बात पर यकीन नही आ रहा था. मैने अजय की तरफ देखा तो, उसने मुझे किचन मे देख लेने का इशारा किया. अजय का इशारा पाकर मैं उठ कर किचन की तरफ जाने लगा.

मुझे किचन की तरफ जाते देख कर, सीरू दीदी और सेलू ने रोकने की कोसिस की, मगर मैं उनकी बात को अनसुना करके किचन की तरफ बढ़ गया. वहाँ पहुचते ही मुझे शिखा दीदी दिखाई दे गयी.

वो मन लगा कर पूरियाँ तल रही थी. शायद उन्हे मेरे आने की खबर नही दी गयी थी. उन्हे देखते ही मेरे चेहरे की रौनक वापस आ गयी. मैने उनसे धीरे से कहा.

मैं बोला “दीदी.”

मेरी आवाज़ सुनते ही, उन्हो ने पलट कर देखा और मुझे अपने सामने पाते ही, उनके चेहरे पर सारे जमाने की खुशियाँ सिमट कर आ गयी. उन्हो ने मेरे उपर सवालों की बौछार करते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया पता है, मैने आपको कितने कॉल लगाए थे. इनके यहाँ नियम है, कि शादी के बाद, पहली रसोई नयी दुल्हन ही पकाती है. इसलिए मैने आप सब को भी यहाँ बुलाने की इजाज़त ले ली थी. लेकिन आप का कॉल था कि, उठ ही नही रहा था. इसलिए मैने प्रिया और बरखा को आपको साथ लाने कहा था. मगर आप लोग कब आए. बरखा और प्रिया लोग कहाँ है. क्या वो लोग आपके साथ नही आई है.”

शिखा दीदी को अपने सामने देख कर, मुझे भी ऐसा लग रहा था कि, जैसे मैं उन्हे बरसो बाद देख रहा हूँ. उनके सारे सवालों का मैने मसूकुराते हुए एक छोटा सा जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, सब लोग आए है. आप खुद ही देख लीजिए.”

मेरी बात सुनकर, शिखा दीदी मेरे साथ बाहर सबके पास आ गयी. बरखा और नेहा उन से मिलने लगी. निशा भाभी ने निधि और हेतल को किचन का काम देखने के लिए भेजते हुए मुझसे कहा.

निशा भाभी बोली “कहो हीरो, अब तुम्हारा सर दर्द कैसा है.”

निशा भाभी की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “भाभी, अब मेरा सर दर्द अच्छा है. लेकिन आप लोगों ने तो मुझे सच मे डरा ही दिया था.”

मेरी बात सुनकर, सब हँसने लगे और बरखा शिखा दीदी को सारी बातें बताने लगी. इसके बाद हम सबने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर उसके बाद बहुत देर तक हमारी बातें चलती रही.
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09-10-2020, 06:02 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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हमारे घर वापसी की टिकेट्स अजय ने करवाई थी. इसलिए उसने बातों बातों मे सबको बताया कि, कल शाम को 5 बजे की फ्लाइट से हम लोग घर वापस जा रहे है. वैसे तो ये बात सभी जानते थे कि, कल हम लोगों को वापस जाना है. बस हमारे जाने का कोई समय तय नही था. लेकिन जैसे ही अजय ने ये बात सबको बताई, वैसे ही सबके चेहरे उतर गये.

अजय, शिखा दीदी, निशा भाभी, बरखा, निक्की, प्रिया और रिया का मुझसे बहुत लगाव होने की बात तो मैं जानता था. लेकिन अजय के ये बात कहने से सबके चेहरे उतर जाने से, मुझे ये बात भी समझ मे आ रही थी, बाकी सब को भी मुझसे कम लगाव नही था.

उन सबका अपने लिए इतना लगाव देख कर, मैं समझ नही पा रहा था कि, मैं क्या कहूँ और क्या ना कहूँ. वही निशा भाभी ने अचानक ही इस हँसी खुशी के महॉल को संजीदा होते देखा तो, सबका ध्यान अपनी तरफ खिचते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “अरे आप सब ने इसके जाने की बात सुनकर, इस तरह से अपना चेहरा क्यो उतार लिया है. हम सबको तो खुश होना चाहिए कि, ये जिस काम से यहाँ आया था, उसे पूरा करके जा रहा है.”

उनकी इस बात मे सीरू दीदी ने भी, उनका साथ देते हुए सब से कहा.

सीरत बोली “भाभी ठीक ही तो कह रही है और ये हम से कौन सा ज़्यादा दूर है. तुम सब लोगों का जब इसको देखने का मन करे, मुझे बताना. मैं पालक झपकते ही इसको वहाँ से उठवा लुगी.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, सबके साथ साथ मेरे चेहरे पर भी हँसी आ गयी और हम लोगों मे इसी बात को लेकर बातों का दौर सुरू हो गया. हमारी बातों का ये सिलसिला देर रात तक चलता रहा.

फिर 11 बजे राज ने घर वापस चलने की बात कही तो, हम सब ने अजय लोगों से घर जाने की इजाज़त ली और राज के साथ वापस उसके घर के लिए निकल पड़े. कुछ ही देर मे हम राज के घर पहुच गये.

जब हम वहाँ पहुचे तो, पद्मिकनी आंटी और मोनिनी आंटी बैठी बातें कर रही थी. हमारे पहुचते ही पद्मि नी आंटी ने हमारी आज की पार्टी के बारे मे पुछा तो, रिया उन्हे पार्टी के बारे मे बताने लगी.

सब बैठ कर पद्मिीनी आंटी से बातें करने लगे. लेकिन प्रिया की नाराज़गी अभी भी मुझसे दूर होते नज़र नही आ रही थी. अब रात के 12 बजने वाले थे और दो रातों से जागने की वजह से मुझे अब नींद सताने लगी थी. इसलिए मैने सबको गुड नाइट कहा और अपने अपने कमरे मे आ गया.

अपने कमरे मे आकर, मैने अपने कपड़े बदले और फिर बेड पर लेटते हुए कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरे कॉल लगाते ही, कीर्ति ने मेरा कॉल काट दिया और फिर उसका कॉल मेरे मोबाइल पर आने लगा.

लेकिन उसका ये कॉल उसके पहले वेल मोबाइल से आ रहा था. इसलिए मैं थोड़ा सोच मे पड़ गया. मगर फिर मैने मौके की नज़ाकत को समझते हुए, उसका कॉल उठा लिया. मेरे कॉल उठाते ही, कीर्ति ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी जान, उस मोबाइल मे कुछ नेटवर्क प्राब्लम हो गयी है. जिस वजह से, उस से कॉल नही जा रहा है.”

मैं बोला “कोई बात नही, तू रुक, मैं तुझे वापस कॉल करता हूँ.”

इतना कह कर, मैने कीर्ति का कोई जबाब सुने बिना ही, उसका कॉल काट कर, उसे वापस कॉल लगा दिया. उसने मेरा कॉल उठाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तुमने मेरा कॉल क्यो काट दिया. मेरे मोबाइल मे बहुत बॅलेन्स है.”

मैं बोला “मेरे मोबाइल मे भी बहुत बॅलेन्स है और अभी तो मेरे पास तेरे दिए हुए, रीचार्ज कार्ड भी जैसे के तैसे ही रखे हुए है. इसलिए अब तू मेरे बॅलेन्स की चिंता करना छोड़ दे और ये बता कि, अब तेरी तबीयत कैसी है.”

कीर्ति बोली “मेरी तबीयत तो अच्छी है. लेकिन मैं तुमसे नाराज़ हूँ.”

मैं बोला “क्यो, क्या हुआ.? मैने ऐसा क्या कर दिया, जो तू मुझसे नाराज़ है.”

कीर्ति बोली “ज़्यादा भोले मत बनो. शाम को मैने तुम्हे कितने कॉल लगाए थे. तुमने एक भी कॉल नही उठाया.”

मैं बोला “सॉरी, मेरी बहुत गहरी नींद लगी थी. इसलिए मुझे तेरा कॉल आने की बात पता ही नही चली.”

कीर्ति बोली “लेकिन सोकर, उठने के बाद तो, तुम कॉल लगा कर, ये बात पुछ सकते थे ना की, मैं तुमको इतने कॉल क्यो लगा रही थी.”

मैं बोला “हां, मुझसे ये ग़लती ज़रूर हुई है.”

ये बोलते हुए, मैने कीर्ति को अपने जागने से लेकर अभी तक की सारी बातें बताई और फिर उसके कॉल करने की वजह पुछि तो उसने कहा.

कीर्ति बोली “वो कॉल मैं नही, अमि लगा रही थी. पहले उसने मौसी के मोबाइल से कॉल लगाया था. लेकिन जब तुमने कॉल नही उठाया तो, मौसी ने उसको बार बार कॉल लगाने से मना कर दिया था. इसलिए फिर वो मेरे पास उपर आकर तुमको कॉल लगा रही थी. लेकिन तुमने मेरे मोबाइल से भी कॉल नही उठाया.”

मैं बोला “क्या वो अभी जाग रही है.”

कीर्ति बोली “नही, वो सो गयी है. लेकिन तुम उसकी फिकर मत करो. जब तुमने उसका कॉल नही उठाया तो, मैने नितिका को कॉल लगा कर, उसकी बात नितिका से करवा दी थी. नितिका ने उसे बता दिया था कि, तुम सो रहे हो और शिखा दीदी लोग भी तुमको कॉल लगा लगा कर परेशान हो गयी है. क्योकि रात को उन्हो ने सबको खाने के लिए बुलाया है.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, पहले तो मैने सुकून की साँस ली. फिर उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “झूठी, चार सौ बीस, तुझे सब पहले से ही पता था. फिर भी मुझसे नाराज़ होने का नाटक कर रही थी.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति हँसने लगी. फिर अचानक उसे प्रिया की बात याद आ गयी और उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “प्रिया का क्या हुआ. वो तुम्हारे साथ शॉपिंग पर गयी थी या नही गयी.”

मैं बोला “तूने जो मेसेज भेजा था. उस मेसेज भेजने के बाद, उसने मुझे मेसेज भी किया और मेरे साथ गयी भी थी. लेकिन वो अभी भी मुझसे कोई बात नही कर रही है.”

कीर्ति बोली “इसमे इतना ज़्यादा नाराज़ होने वाली बात तो नही है. वो तुमसे बेवजह ही नाराज़ है.”

मैं बोला “नही, वो बेवजह नाराज़ नही है. अभी तुम उसकी नाराज़गी की पूरी वजह नही जानती हो.”

ये कहते हुए, मैने कीर्ति को मेरी रात को प्रिया से हुई सारी बातें बता दी. जिसे सुनकर, कीर्ति भी सोच मे पड़ गयी. जब थोड़ी देर तक, जब वो कुछ नही बोली तो, मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ.? अब तू किस सोच मे पड़ गयी.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने एक ठंडी सी साँस भरते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैं ये सोच रही थी कि, प्रिया तुमको तब से चाहती है. जब तुमने शिल्पा को देखा तक नही था. यदि तुमको उसी समय प्रिया के इस प्यार का पता चल गया होता तो, आज शायद मैं प्रिया की जगह पर और प्रिया मेरी जगह पर होती.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मैने चिड़चिड़ाते हुए कहा.

मैं बोला “तू ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रही है. यदि तुझे ऐसी ही बातें करना है तो, तू फोन रख, मुझे नींद आ रही है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने घबराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तुम फोन मत रखना. मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी.”

अभी मेरी कीर्ति से बात चल ही रही थी कि, तभी दूसरे मोबाइल पर उसका कॉल आने लगा और उसने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “देख क्या रहे हो. बड़ी मुश्किल से कॉल लगा है. जल्दी से कॉल उठाओ.”

मैने फ़ौरन उसका कॉल उठाया और उसने मेरा कॉल काटते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “आख़िर कॉल लग ही गया. कितनी देर से कॉल लगाने की कोसिस कर रही थी.”

मैं बोला “तू मुझसे बात कर रही थी या तेरा सारा ध्यान कॉल लगाने पर ही लगा हुआ था.”

कीर्ति बोली “अरे मैं बात करते करते कॉल भी लगा कर देख रही थी कि, कॉल जा रहा है या नही. आख़िर इतनी देर बाद कॉल लग ही गया.”

मैं बोला “हां, तेरे लिए मुझसे बात करने से ज़्यादा ज़रूरी काम, मेरा बॅलेन्स बचाना था. इसलिए तेरा ध्यान मेरी बातों पर नही बल्कि कॉल लगाने पर लगा हुआ था.”

कीर्ति मेरे इस तरह ज़रा सी बात पर चिड़चिडाने का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उसने मुझे अपनी पहले की बात को समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी बाबा, लेकिन तुम मेरी बात का ग़लत मतलब मत निकालो. असल मे मुझे प्रिया की ये बात सुनकर, वो दिन याद आ गया, जब मुझे तुम्हारे शिल्पा को पसंद करने की बात चली थी. उस दिन मैं रात भर बहुत रोई थी.”

“उस दिन मुझे मेरे बचपन का प्यार, मुझसे दूर होते नज़र आ रहा था और मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी जिंदगी से सब कुछ ख़तम हो गया हो. मैं इस बात को सह नही पा रही थी और रो रो कर, उपर वाले से अपने लिए सिर्फ़ मौत ही माँगे जा रही थी.”

“उस दिन के बाद, मैं जब भी तुम्हे देखती, मेरा दिल रोने लगता था. लेकिन तुम मेरे दर्द से अंजान, मुझसे पुछ्ते रहते कि, मुझे क्या हुआ, क्या मैं तुमसे किसी बात को लेकर नाराज़ हूँ. तब मुझे ना चाहते हुए भी, तुमसे कहना पड़ जाता कि, मुझसे कुछ नही हुआ और तुम्हारी खुशी के लिए, तुम्हारे सामने मुस्कुराना पड़ जाता.”

“मगर अंदर ही अंदर तुमको खो देने के दर्द से मेरा दिल रोता रहता. मेरा दिल करता कि, मैं एक बार तुम्हे अपने गले से लगा कर खूब रो लूँ. अपने दिल का सारा हाल तुम्हे सुना दूं. लेकिन ऐसा करने की मेरी हिम्मत ही नही होती थी. मैं बस अंदर ही अंदर रात दिन घुटती रहती थी.”

“शायद मेरी इस घुटन को देख कर, उपर वाले को भी मुझ पर रहम आ गया. उसने तुम्हे शिल्पा का नही होने दिया और मेरी इस दर्द भारी घुटन का अंत हो गया. लेकिन आज भी जब मैं उस दिन की बात सोचती हूँ तो, मेरी आँखों मे आँसू आ जाते है.”

इतनी बात कह कर कीर्ति चुप हो गयी. शायद सच मे उसकी आँखों मे आँसू आ गये थे. लेकिन उसकी इस बात को सुनकर, मैं उन दिनो की याद मे खो गया. उन दिनो वो अक्सर ज़रा ज़रा सी बात पर मेरे घर आ जाया करती और मेरे आस पास मढ़राती रहती थी. मेरे कमरे मे तान्क झाँक करना और मुझे चोर नज़रों से देखते रहना, उसकी आदत सी बन गयी थी.

मैं उसकी इस बेचैनी को कभी समझ ही नही सका कि, वो ऐसी हरकत क्यो कर रही है. मैं तो बस उसकी इस हरकत को देख कर, उस से यही कहता कि, तू क्या यहाँ पर मेरी जासूसी करने आती है. मेरी इस बात को सुनकर, वो हँसने लगती और ये बात वही पर आई गयी हो जाती.

मगर आज जब मुझे उसकी उन हरकतों और उसकी उन बुझी बुझी आँखों का मतलब समझ मे आया तो, मैं अपनी आखों को छलकने से ना रोक सका. मैं भी उस समय कितना नादान था, जो उसके इस प्यार को कभी महसूस ही ना कर सका.

मैं अपनी आँखों मे आँसू लिए, उन दिनो को याद कर रहा था. तभी कीर्ति की आवाज़, मुझे उन यादों से बाहर खिच लाई. कीर्ति ने खुद को संभालते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “सॉरी, मैं तुम्हारे दिल को कोई ठेस लगाना नही चाहती थी. मैं जानती हूँ कि, तब तुम मेरे दिल की बातों से पूरी तरह से अंजान थे. लेकिन इसके बाद भी तुम मुझे बहुत प्यार करते थे. मेरे तुमसे इतना लड़ने झगड़ने और परेशान करने के बाद भी, तुम मेरे एक बार बुलाने पर ही दौड़े चले आते थे.”

“मुझे तुम्हारा इस तरह, मेरी इतनी ज़्यादा परवाह करना बहुत अच्छा लगता था और इसलिए मैं जान बुझ कर, तुम्हे परेशान किया करती थी. हमेशा तुम्हारे साथ रहने के बहाने ढूँढा करती रहती थी. तुम्हारे साथ ये सब करते करते, मुझे बस रात दिन बस तुम्हारी ही सोच रहने लगी थी.”

“मैं तुम मे इतना खो गयी थी कि, मुझे ये पता ही नही चला कि, कब मेरी तुम्हे देखने वाली नज़र बदल गयी और मैं तुम्हे दिल ही दिल प्यार करने लगी हूँ. मुझे तुमसे इतना ज़्यादा प्यार हो गया था कि, मुझे तुम्हारे बिना जीने से अच्छा, मरना लगने लगा था.”

“आज किस्मत से मुझे मेरा प्यार मिल गया है. मगर आज भी जब कभी मेरे मन मे तुमसे दूर होने का ख़याल आता है तो, मेरी जान निकलने लगती है. इसलिए जब मैने प्रिया की बात सुनी तो, मेरा दिल उसके दर्द को महसूस करके तड़प उठा था. अपनी किसी बात से तुमको दुख पहुचाने का मेरा कोई इरादा नही था.”

मैं खामोशी से कीर्ति की ये बातें सुन था और उसकी बातें सुनते सुनते मेरे चेहरे पर खुद ही मुस्कुराहट आ गयी. उसकी बात ख़तम होते ही, मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं ये तो नही कहता कि, मैं भी तेरी तरह, तुझे शुरू से ऐसे ही प्यार करता था. क्योकि मेरे मन मे ये बात कभी आई ही नही थी कि, हमारे बीच ऐसा कुछ हो सकता है. लेकिन ये बात सच है कि, तू मुझे शुरू से ही सबसे अच्छी लगती थी और मैं हर लड़की की सुंदरता की तुलना भी शुरू से, तुझसे ही करता आ रहा हूँ.”

“तू बस मुझे बहुत अच्छी लगती थी और तेरा साथ मुझे बहुत सुकून देता था. इसलिए तेरे लड़ने, झगड़ने और परेशान करने के बाद भी, मैं तेरे एक बार बुलाने पर ही दौड़ा दौड़ा तेरे पास पहुच जाता था.”

“मैं जब कभी भी तुझे देखता तो, एक बात ज़रूर मेरे मन मे आती थी कि, काश तू मेरी बहन ना होती तो, मैं तुझे जिंदगी भर के लिए अपना बना कर रख लेता. लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नही था कि, मैं तेरे बारे मे कुछ उल्टा सीधा सोचता था. मैने तेरे बारे मे कभी कुछ ग़लत नही सोचा. बस तू मेरे लिए………..”

अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, कीर्ति मेरी बात पर खिलखिला कर हँसने लगी. उसे हंसते देख मुझे लगा कि, शायद उसे मेरी इस बात पर यकीन नही है. इसलिए मैने उसे अपनी बात का यकीन दिलाने की कोसिस करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, क्या तुझे मेरी इस बात विस्वास नही हो रहा है. मेरा यकीन मान, मैं सच कह रहा हूँ. मेरे मन मे आज तक तेरे लिए कभी कोई बुरा विचार नही आया. तू चाहे तो, मुझसे किसी की भी कसम ले सकती है.”

मेरी इस बात को सुनते ही कीर्ति की हँसी रुक गयी और उसने मुझ पर गुस्सा होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “आए तुम्हे किसी की भी कसम खाने की ज़रूरत नही है. मुझे खुद से ज़्यादा तुम पर विस्वास है. तुम नही जानते, मुझे सबसे सुकून भरी नींद तब आई, जब मैं पहली बार तुम्हारे पास सोई थी. तुमने प्यार से मेरे माथे को चूमा और फिर बहुत देर तक मेरे सर पर हाथ फेरते रहे. उस रात को मैं अपने जीवन मे कभी नही भूल सकती और यही चाहती हूँ कि, वैसी रात मेरे जीवन मे रोज आए.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही, मेरी नज़र मे उस रात का नज़ारा घूम गया और मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला “जब उस समय तू जाग रही थी तो, फिर यू सोने का नाटक क्यो करती रही. मूह से कुछ बोली क्यो नही.”

कीर्ति बोली “जब तुमने मेरे माथे पर किस किया, तब मैं अपनी आँख खोलने ही वाली थी कि, उसके बाद तुम प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरने लगे. तुम्हारा ऐसा करने से मुझे इतना सुकून मिला कि, मैं आँख खोलना ही भूल गयी और फिर मुझे पता ही नही चला कि, कब मैं मीठी नींद मे सो गयी.”

“वो रात मेरी जिंदगी की सबसे यादगार रात बन गयी और फिर मैं तुम्हारे इसी प्यार के लालच मे रोज तुम्हारे पास आकर सोने लगी. अब दोबारा कभी ऐसा मत सोचना कि, मुझे तुम पर विस्वास नही है. मेरे तो विस्वास का दूसरा नाम ही तुम हो. जिस दिन मेरा ये विस्वास टूट जाएगा, उस दिन मेरी सांसो की ये डोर भी टूट जाएगी.”

कीर्ति की इन बातों को सुनकर, मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था. यदि इस समय वो मेरे पास होती तो, अब तक मैने उसे अपनी बाहों मे भर लिया होता. मगर इस समय उसके मेरे पास ना होने से मैं एक ठंडी सी आह भर कर रह गया. ये ही हाल वहाँ शायद कीर्ति का भी था. इस बात के बाद, वो भी खामोश सी हो गयी थी.

हम दोनो ही खामोश थे कि, तभी मेरे मोबाइल की एस एमएस टोन बज उठी. मैने मोबाइल उठा कर देखा तो, प्रिया का एसएमएस था. कीर्ति ने एसएमएस पढ़ कर सुनाने को कहा तो, मैं वो एसएमएस कीर्ति को पढ़ कर सुनाने लगा.

प्रिया का एसएमएस
“मैने उसे इशारा किया.
उसने “सलाम” लिख भेजा.

मैने पुछा तुम्हारा नाम क्या है.
उसने “चाँद” लिख भेजा.

मैने पुछा तुम्हारी आँखें कैसी है.
उसने “जाम” लिख भेजा.

मैने पुछा तुम्हे क्या चाहिए.
उसने “सारा आसमान” लिख भेजा.

मैने पुछा कब मिलोगे.
उसने “कयामत की शाम” लिख भेजा.

मैने पुछा किस से डरते हो.
उसने “मोहब्बत का अंजाम” लिख भेजा.

मैने पुछा तुम्हे नफ़रत किस से है.?
कम्बख़्त ने “मेरा नाम” लिख भेजा.”

प्रिया का एसएमएस कीर्ति को पढ़ कर सुनाने के बाद, मैने उस से कहा.

मैं बोला “तूने इसका एसएमएस सुना ना. ये लड़की खुद भी पागल है और मुझे भी पागल करके रहेगी. मुझे तो याद ही नही कि, मैने उस से ये नफ़रत करने वाली बात कब कह दी.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे मुझे तो इस एसएमएस मे ऐसी कोई बात नज़र नही आ रही. ये तो उसने मज़ाक मे भेजा है.”

मैं बोला “मैं उस से कह चुका हूँ कि, मुझे शायरी समझ मे नही आती तो, फिर उसे ऐसा एसएमएस करना ही नही चाहिए था.”

कीर्ति बोली “हो सकता है कि, उसने तुमको परेशान करने के लिए ये शायरी वाला एसएमएस किया है. चलो आज तुम्हारी तरफ से मैं उस से बात करती हूँ.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने चौुक्ते हुए कहा.

मैं बोला “तेरा दिमाग़ तो ठिकाने है. तू उस से क्या बात करेगी और उसे क्या बताएगी कि, तू कौन है.”

कीर्ति बोली “इसमे इतना परेशान होने की बात नही है. वो खुद ही समझ जाएगी कि, मैं कौन हूँ. तुम बस उस से मेरी कान्फरेन्स मे बात करवाओ. पहले अपने मोबाइल से मुझे कॉल करो और उसके बाद उसको कॉल लगाओ. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.”

मैं बोला “यहाँ एक पागल कम है, जो तुझे भी पागलपन करने की सूझ रही है.”

कीर्ति बोली “तुम डरो मत, कुछ नही होगा. तुम बस कॉल करो.”

मैने कीर्ति को समझाने की बहुत कोसिस की, मगर अब उसने भी प्रिया से बात करने की ज़िद पकड़ ली थी. जब वो मेरी बात सुनने को तैयार नही हुई तो, फिर मुझे उसकी बात माननी ही पड़ गयी.

मैने पहले अपने दूसरे मोबाइल से कीर्ति को कॉल किया. उसके कॉल उठा लेने के बाद, मैने धड़कते दिल से प्रिया को कॉल लगा दिया. कीर्ति होल्ड पर थी और प्रिया के मोबाइल पर कॉल जा रहा था. जैसे जैसे प्रिया के मोबाइल की रिंग बज रही थी. वैसे वैसे अब क्या होगा, ये सोच सोच कर मेरे दिल की धड़कने भी बढ़ रही थी.
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09-10-2020, 06:03 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं बोला “मैं उस से कह चुका हूँ कि, मुझे शायरी समझ मे नही आती तो, फिर उसे ऐसा एसएमएस करना ही नही चाहिए था.”

कीर्ति बोली “हो सकता है कि, उसने तुमको परेशान करने के लिए ये शायरी वाला एसएमएस किया है. चलो आज तुम्हारी तरफ से मैं उस से बात करती हूँ.”

कीर्ति की बात सुनकर, मैने चौुक्ते हुए कहा.

मैं बोला “तेरा दिमाग़ तो ठिकाने है. तू उस से क्या बात करेगी और उसे क्या बताएगी कि, तू कौन है.”

कीर्ति बोली “इसमे इतना परेशान होने की बात नही है. वो खुद ही समझ जाएगी कि, मैं कौन हूँ. तुम बस उस से मेरी कान्फरेन्स मे बात करवाओ. पहले अपने मोबाइल से मुझे कॉल करो और उसके बाद उसको कॉल लगाओ. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.”

मैं बोला “यहाँ एक पागल कम है, जो तुझे भी पागलपन करने की सूझ रही है.”

कीर्ति बोली “तुम डरो मत, कुछ नही होगा. तुम बस कॉल करो.”

मैने कीर्ति को समझाने की बहुत कोसिस की, मगर अब उसने भी प्रिया से बात करने की ज़िद पकड़ ली थी. जब वो मेरी बात सुनने को तैयार नही हुई तो, फिर मुझे उसकी बात मानना ही पड़ गयी.

मैने पहले अपने दूसरे मोबाइल से कीर्ति को कॉल किया. उसके कॉल उठा लेने के बाद, मैने धड़कते दिल से प्रिया को कॉल लगा दिया. कीर्ति होल्ड पर थी और प्रिया के मोबाइल पर कॉल जा रहा था. जैसे जैसे प्रिया के मोबाइल की रिंग बज रही थी. वैसे वैसे अब क्या होगा, ये सोच सोच कर मेरे दिल की धड़कने बढ़ रही थी.

मैं मान ही मान ये ही दुआ कर रहा था की, प्रिया कॉल ना उठाए और कीर्ति का प्रिया से बात करना ताल जाए. लेकिन मेरी ये दुआ काम नही आई और प्रिया ने कॉल उठाते हुए कहा.

प्रिया बोली “हेलो, हां बोलो, तुमको क्या बोलना है.”

प्रिया के कॉल उठा लेने के बाद, मेरे पास उसकी कीर्ति से बात करने के अलावा कोई रास्ता नही बचा था. इसलिए मैने सीधे अपनी बात पर आते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “मुझे तुमसे कुछ नही बोलना है. लेकिन कोई तुमसे बात करना चाहता है. बस उसी की तुमसे बात करने के लिए मैने तुमको कॉल किया है.”

मेरी बात सुनकर, ने कुछ सोचते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं अभी किसी से कोई बात नही करना चाहती. तुम सुबह जिस से चाहो, उस से मेरी बात करवा देना.”

प्रिया शायद समझ गयी थी कि, मैं इस समय उसकी किस से बात करवाना चाहता हूँ. मगर वो शायद खुद को अभी इसके लिए तैयार नही कर पा रही थी. इसलिए इस समय बात करने से मना कर रही थी.

लेकिन कीर्ति मुझे पहले ही दम दे चुकी थी कि, यदि प्रिया कॉल उठाती है और मैं उसकी बात कीर्ति से नही करवाता हूँ तो, उस से बुरा कोई नही होगा. मेरे सामने अब प्रिया को इसके लिए तैयार करने के सिवा कोई रास्ता नही था. इसलिए मैने प्रिया को अपनी बात समझाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं खुद तुम्हे इतनी समय परेशान करना नही चाहता था. लेकिन मुझसे बात करते करते, वो अचानक ही तुमसे बात करने की ज़िद करने लगी. मैने उसे समझाने की बहुत कोसिस की मगर जब वो नही मानी तो, फिर मैने उसका कॉल होल्ड पर रख कर, तुमको कॉल लगा दिया.”

“वो तुमसे कान्फरेन्स मे बात करना चाहती थी. यदि तुम उस से अभी बात नही करना चाहती हो तो, कोई बात नही है. तुम उस से कान्फरेन्स मे ये ही बात बोल दो कि, तुम उस से कल बात करोगी. तुम्हारे ऐसा करने से उसकी तुमसे बात भी हो जाएगी और उसे ये भी नही लगेगा कि, मैं उसकी तुमसे बात करवाना नही चाहता था. अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी, तुम जो ठीक समझो, कर सकती हो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने कुछ देर की खामोशी के बाद, एक ठंडी सी साँस छोड़ते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “ओके, मैं उस से बात कर लेती हूँ. तुम उसके साथ मेरी कान्फरेन्स करवाओ.”

प्रिया की बात सुनते ही, मैने प्रिया को थॅंक्स कहा और फ़ौरन कीर्ति को कान्फरेन्स मे लाते हुए, कीर्ति से कहा.

मैं बोला “ये लो, प्रिया कॉल पर है. तुम उस से बात कर सकती हो.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे ओके कहा और फिर प्रिया से कहा.

कीर्ति बोली “हेलो प्रिया, मेरे बारे मे तो तुम समझ ही गयी होगी कि, मैं कौन हूँ.”

कीर्ति की इस बात पर प्रिया ने भी मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “हाई, हां मैं ये तो समझ गयी हूँ कि, तुम कौन हो. लेकिन पुन्नू ने कभी मुझे तुम्हारा नाम नही बताया. क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकती हूँ.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैं भी कीर्ति के जबाब का बेचैनी से इंतजार करने लगा. उधर कीर्ति ने प्रिया का ये सवाल सुना तो, उसने प्रिया से हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “हहेहहे, मेरा नाम तुम्हारी तरह प्यारा नही है ना, इसलिए पुनीत ने तुम्हे मेरा नाम नही बताया होगा. मेरा नाम तृप्ति है.”

कीर्ति के मूह से तृप्ति का नाम सुनते ही, मुझे एक झटका सा लगा. मुझे उम्मीद थी कि, प्रिया के इस सवाल के जबाब मे कीर्ति अंकिता का नाम बताएगी. लेकिन कीर्ति के मूह से तृप्ति नाम सुनकर, मैं हैरान रह गया.

मगर ये हैरानी सिर्फ़ मुझे ही नही हो रही थी. बल्कि प्रिया भी इस नाम को सुनकर चौके बिना ना रह सकी और उसने भी हैरान होते हुए कीर्ति से कहा.

प्रिया बोली “क्या तुम वो ही तृप्ति हो, जिसकी कविताएँ पुन्नू पढ़ता है.”

प्रिया की इस बात पर कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नही, मैं वो तृप्ति नही हूँ. मगर मैने पुनीत से उसकी कविताएँ सुनी ज़रूर है और मुझे खुद भी शेर और शायरी बहुत पसंद है. लेकिन मैं जब भी इसको शायरी भेजती हूँ तो, ये मेरे उपर चिड़चिडाने लगता है.”

कीर्ति की बात सुनकर, प्रिया ने भी हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “मुझे भी शायरी करना बहुत पसंद है. मेरी तो बात बात पर शायरी करने की आदत है और ये मेरे उपर भी इसी तरह चिड़चिड़ाता है.”

कीर्ति बोली “लेकिन मेरे उपर इसके चिड़चिडाने का ज़रा भी असर नही पड़ता. मैं तो इसके बाद भी इसे शायरी भेज ही देती हू.”

प्रिया बोली “मैं भी ऐसा ही करती हूँ. मैने अभी तो अभी थोड़ी देर पहले ही इस एक शायरी भेजी है.”

ये बात बोल कर प्रिया खिलखिलाने लगी और उसकी इस हँसी मे कीर्ति भी उसका साथ निभाने लगी. दोनो मिल कर इस बात को लेकर मेरा मज़ाक उड़ाने लगी. वो दोनो पहली बार एक दूसरे से बात कर रही थी. मगर उनकी बातों से कही से भी ऐसा नही लग रहा था कि, वो पहली बार एक दूसरे से बात कर रही है.

लेकिन उन दोनो की इन बातों मे सबसे अजीब बात ये थी कि, दोनो मे से कोई भी ना तो किसी से मेरी बुराई सुन सकती थी और ना ही किसी को मेरा मज़ाक उड़ाते हुए देख सकती थी. मगर आज दोनो खुद ही एक दूसरे से मेरा मज़ाक भी उड़ा रही थी और मेरी बुराई भी कर रही थी.

शायद दोनो ही ऐसा करके एक दूसरे को खुश करने मे लगी थी. उनकी इस हरकत पर मुझे भी हँसी आ रही थी. इसलिए मैने उन दोनो की इस बात चीत मे बीच मे पड़ना ठीक नही समझा और मैं खामोशी से उनकी बातों का मज़ा लेता रहा. कुछ देर तक वो दोनो ऐसे ही मेरा मज़ाक उड़ाती रही. फिर बात ही बात मे कीर्ति ने प्रिया से कहा.

कीर्ति बोली “ये सब तो ठीक है. लेकिन मुझे तुमसे भी एक शिकायत है. पुनीत इतने दिनो तक मुंबई मे रहा. लेकिन अब बिना मुंबई देखे ही, कल घर वापस आ रहा है. क्या तुम उसे मुंबई की कुछ खास खास जगह भी नही दिखा सकती थी.”

कीर्ति की ये बात सुनते ही प्रिया ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

प्रिया बोली “इस सब मे मेरी ग़लती ज़रा भी नही है. इसके पास खुद ही मेरे साथ कहीं आने जाने का समय नही था और जब मैने इसे मुंबई घुमाने की बात सोची तो, इसने मेरा भी मूड खराब करके रख दिया.”

ये कहते हुए प्रिया ने कीर्ति को कल की शॉपिंग वाली सारी बातें बता दी. जिसे सुनकर कीर्ति ने प्रिया की तरफ़दारी करते हुए मुझसे कहा.

कीर्ति बोली “ये तो तुमने सच मे बहुत ग़लत काम किया है. तुमको समझना चाहिए था कि, प्रिया ने यदि तुमसे किसी को अपने साथ ना ले चलने की बात कही थी तो, उस समय उसके मन मे कोई तो बात रही होगी. तुम्हे अपनी इस ग़लती के लिए प्रिया से अभी सॉरी बोलना होगा. वरना अब मैं भी तुमसे बात नही करूगी.”

कीर्ति की ये बाद सुनकर, मैं हड़बड़ा गया और प्रिया की हँसी च्छुत गयी. मेरी हड़बड़ाहट की वजह ये थी की, सब कुछ जानने के बाद भी, कीर्ति ने प्रिया को ज़रा भी समझने की कोसिस नही की थी और मुझे अपनी सफाई देने का मौका दिए बिना ही सॉरी बोलने की शर्त रख दी थी.

लेकिन इस सब के बाद भी मुझे प्रिया से सॉरी बोलने मे कोई परेशानी नही थी. मुझे तो बस प्रिया की नाराज़गी को दूर करना था. इसलिए मैने भी बिना कोई बहस किए हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैं अपनी ग़लती के लिए माफी चाहता हूँ.”

लेकिन प्रिया भी कीर्ति से कुछ कम नही थी. उसने मेरे इस सॉरी को एक सिरे से नकारते हुए कहा.

प्रिया बोली “मुझे तुम्हारे इस सॉरी की कोई ज़रूरत नही है. तुम्हे इस ग़लती की सज़ा ज़रूर मिलेगी और तुम्हारी सज़ा ये ही है कि, तुम मुझे शायरी मे मनाओ.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मुझे फिर एक झटका लगा. दोनो ही लड़कियाँ मुझे झटके पर झटके दिए जा रही थी और मेरी ज़रा भी परवाह नही कर रही थी. यदि यही काम मुझे वो एसएमएस मे करने को कहती तो, मेरे मोबाइल मे ढेर सारी शायरी थी. मैं आसानी से प्रिया को शायरी भेज सकता था.

लेकिन अभी मेरे दोनो ही मोबाइल अभी बिज़ी थे और ऐसे मे मेरे कोई शायरी बोल पाने का सवाल ही पैदा नही होता था. कीर्ति शायद मेरी इस परेशानी को समझ गयी थी. इसलिए उसने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “वैसे तो प्रिया ने तुमको बिल्कुल ठीक सज़ा दी है. लेकिन मैं प्रिया की इस सज़ा से तुमको कुछ रियायत दे देती हूँ. तुम यदि प्रिया को शायरी मे नही मना सकते हो तो, उसे कोई गाना गा कर भी मना सकते हो.”

कीर्ति की बात सुनकर, एक बार फिर प्रिया के हासणे की आवाज़ गूँज गयी और उसने भी कीर्ति की इस बात पर अपनी सहमति देते हुए कहा.

प्रिया बोली “ओके, मुझे तृप्ति की ये बात मंजूर है. अब तुम देर मत करो, जल्दी से मुझे मनाना सुरू करो.”

प्रिया और कीर्ति की इस बात के बाद, मेरे पास उनकी बात मनाने के अलावा कोई रास्ता नही था. मगर फिर भी मैने उन्हे सफाई देते हुए कहा.

मैं बोला “मुझे तुम लोगों की इस को मानने मे कोई परेशानी नही है. लेकिन मुझे कोई भी गाना पूरा नही आता.”

प्रिया बोली “कोई बात नही, तुम्हे जितना भी गाना आता है. तुम उतना ही गाना गा दो. लेकिन जल्दी करो, वरना फिर तुम्हे रात भर गाना ही गाने पड़ेंगे.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैने बहस करना ठीक नही समझा और फिर अपना गला सॉफ करते हुए सुर मे गाना गाना सुरू कर दिया.

मेरा गाना
“मुसु मुसु हसी, देऊ मलाई लाई
मुसु मुसु हसी देऊ
ज़रा मुस्कुरा दे, मुस्कुरा दे
ज़रा मुस्कुरा दे, आए खुशी

गम बाँट ले तू अपने
हमसे तू ले हसी
हो गये हम अभ तेरे
तू हो गयी अपनी

मुसु मुसु हसी, देऊ मलाई लाई
मुसु मुसु हसी देऊ
ज़रा मुस्कुरा दे, मुस्कुरा दे
ज़रा मुस्कुरा दे, आए खुशी

माना हमसे हो गयी
एक छोटी सी खाता
हंस दो ना तुम ज़रा
दो ना हमको तुम सज़ा

माना हमसे हो गयी
एक छोटी सी खाता
हँस दो ना तुम ज़रा
दो ना हमको तुम सज़ा

तुम जो हँस पड़े तो
अब हम भी मुस्कुरायें
आओ मिल के साथ गायें
दिल से दिल भी मिलायें

हे हे, मुसु मुसु हसी, देऊ मलाई लाई
मुसु मुसु हसी देऊ
ज़रा मुस्कुरा दे, मुस्कुरा दे
ज़रा मुस्कुरा दे, आए खुशी
मुसु मुसु हसी, देऊ मलाई लाई
मुसु मुसु हसी देऊ
हे, ज़रा मुस्कुरा दे, मुस्कुरा दे
ज़रा मुस्कुरा दे, आए खुशी.”

मेरे गाना ख़तम होने के बाद, मैं कीर्ति और प्रिया के कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. मुझे कीर्ति की तो कोई आवाज़ सुनाई नही दी. लेकिन मेरे चुप होते ही प्रिया की खिलखिलाहट गूँज गयी और उसने चहकते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “ओह माइ गॉड, तुम तो बहुत अच्छा गाते हो. मैं तो तुम्हारा गाना सुनकर, उसमे खो सी गयी थी.”

मैं बोला “तो अब तुम्हारी मुझसे नाराज़गी दूर हुई या नही.”

प्रिया बोली “हां, मेरी नाराज़गी दूर हो गयी है. अब यदि तुम चाहो तो, मैं कल तुम्हे मुंबई की कुछ खास जगह दिखाने ले चल सकती हूँ.”

मैं बोला “ओके, तो हम कल सुबह सुबह ही चलते है. लेकिन सुबह उठने के लिए सोना भी ज़रूरी है. इसलिए अब हम लोगों को सोना चाहिए.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने भी इस बात की हामी भरी और फिर उसने कीर्ति से एक दो बातें करने के बाद कॉल रख दिया. प्रिया के कॉल रखने के बाद, मैने उस मोबाइल से कीर्ति का कॉल भी काट दिया और फिर दूसरे मोबाइल पर आते हुए कीर्ति से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, तू अचानक चुप क्यो हो गयी थी. क्या तुझे मेरी किसी बात का बुरा लगा है.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली “नही, ऐसी कोई बात नही है. मुझे तुम्हारी कोई बात का बुरा नही लगा.”

मैं बोला “तो फिर तू मेरा गाना सुनने के बाद से चुप चुप सी क्यो है. उसके पहले तो मेरा कितना मज़ाक उड़ा रही थी.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने ठंडी सी साँस भरते हुए कहा.

कीर्ति बोली “वो इसलिए, क्योकि प्रिया सच कह रही थी. मैं भी तुम्हारा गाना सुनकर, उसी मे खो सी गयी थी. मुझे तो पता ही नही था कि, तुम इतना अच्छा गाते हो. अब से तुम्हे मुझे मनाने के लिए भी इसी तरह से गाना गाना पड़ेगा.”

कीर्ति की इस बात पर मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “अब मैं कभी कोई गाना वाना नही गाने वाला हूँ. ये तो तूने ही मुझे फसा दिया था. लेकिन अब तू मुझे ये बता कि, तूने प्रिया को अपना नाम अंकिता की जगह तृप्ति क्यो बताया. अंकिता को तूने मेहुल से मिलने के लिए तैयार किया था. अब मेहुल से मिलने के लिए तृप्ति को कहाँ से लाएगे.”

मेरी इस बात पर कीर्ति ने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे तुम बेकार मे परेशान हो रहे हो. इस मे कौन सी परेशानी वाली बात है. हम मेहुल से अंकिता को ही तृप्ति कह कर मिलवा देगे.”

मैं बोला “लेकिन तुझे एक झूठ के उपर ये दूसरा झूठ बोलने की क्या ज़रूरत थी. तूने प्रिया को अपना नाम अंकिता ही क्यो नही बता दिया.”

कीर्ति बोली “मुझे प्रिया को अपना नाम अंकिता बताने मे कोई परेशानी नही थी. लेकिन अंकिता के साथ तुम्हारा नाम जोड़ा जाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. इसलिए मैने ये नाम बता दिया.”

मैं बोला “जब तुझे अपनी सहेली अंकिता के साथ मेरा नाम जोड़े जाने मे तुझे परेशानी थी तो, फिर किसी अंजान लड़की के साथ मेरा नाम क्यो जोड़ दिया.”

कीर्ति बोली “क्योकि तृप्ति नाम की किसी लड़की को हम दोनो मे से कोई भी नही जानता है और फिर तृप्ति नाम को सुनकर, ऐसा ही लगता है, जैसे कि ये मेरा ही नाम हो. अब समझ मे आया कि, मैने ये ही नाम क्यो लिया.”

मैं बोला “तू पूरी पागल है. हमेशा कुछ ना कुछ उल्टा सीधा सोचती रहती है. अब पता नही, तेरे इस एक झूठ के पिछे, हमे ऑर कितने झूठ बोलने पड़ेंगे.”

कीर्ति बोली “हमे इस झूठ के लिए, कोई ऑर झूठ नही बोलना पड़ेगा. अब तुम ये फालतू की बातें मत सोचो. रात बहुत हो गयी है और तुम्हारी दो दिन से नींद भी पूरी नही हुई है. इसलिए अब तुम सिर्फ़ मेरे बारे मे सोचते हुए मीठी नींद मे सो जाओ.”

कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे भी हँसी आ गयी और फिर उसने मुझे गुड नाइट कह कर कॉल रख दिया. उसके कॉल रखने के बाद, मैने आँख बंद की और कीर्ति के बारे मे सोचते सोचते मैं गहरी नींद मे सो गया.

सुबह 6 बजे मेरी नींद प्रिया के जगाने पर खुली. लेकिन उसकी आँखों से मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि वो रात भर सोई ना हो. आज उसकी जानी पहचानी मुस्कान भी उसके चेहरे से गायब थी.

वो मुस्कुराने की भरपूर कोसिस कर रही थी. मगर आज उसका चेहरा, उसकी मुस्कुराहट का साथ नही दे रहा था और उसके चेहरे से, उसकी उदासी सॉफ झलक रही थी. वो मुस्कुराते हुए मुझे तैयार होने का कह रही थी.

उसको रात को हंसते बोलते देख कर, मुझे बहुत राहत मिली थी. लेकिन अब सुबह सुबह उसका ऐसा मुरझाया हुआ चेहरा देख कर, मेरा दिल बैठ गया. मुझसे बात करते करते एक पल ऐसा भी आया, जब मुझे लगा कि, प्रिया अभी रो देगी. लेकिन तभी प्रिया पलट कर मेरे पास से चली गयी.

उसके जाने के बाद भी, मैं उसके ही बारे मे सोचता रहा. उसकी ये उदासी, शायद आज मेरे वापस चले जाने की वजह से थी. लेकिन मैं चाहते हुए भी उसके लिए कुछ नही कर सकता था. मैं थोड़ी देर तक बैठा प्रिया की इसी उदासी के बारे मे सोचता रहा और फिर उठ कर फ्रेश होने चला गया.
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09-10-2020, 06:03 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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फ्रेश होने के बाद मैं तैयार होने लगा. मैं अभी तैयार हुआ ही था कि, तभी प्रिया चाय नाश्ता लेकर आ गयी. वो भी तैयार होकर आई थी. इस समय उसने पिंक सलवार सूट पहना हुआ था और अब उसके चेहरे पर उसकी जानी पहचानी मुस्कान भी वापस आ चुकी थी.

उसके चेहरे की ये मुस्कान शायद मेरे साथ घूमने जाने की वजह से वापस आई थी. मगर शायद ये ही उसकी सबसे बड़ी खूबी भी थी कि, वो हर बात मे अपने आपको बहुत जल्दी ढाल लेती थी. ऐसा ही कुछ अभी भी हुआ था.

जहा अभी कुछ देर पहले अभी उसका चेहरा किसी फूल की तरह मुरझाया हुआ था. वही अब उसका चेहरा किसी कली की तरह खिला हुआ था. उसे खुश देख कर, मुझे भी बहुत राहत महसूस हुई.

मैं नही चाहता था कि, आज भी कल के जैसे कुछ हो और फिर से कोई हमारे साथ जाने के लिए पिछे लग जाए. मैं ऐसा कुछ होने से पहले ही घर से निकल जाना चाहता था. इसलिए मैं जल्दी जल्दी चाय नास्टा करने लगा. मुझे इस तरह हड़बड़ी मे चाय नाश्ता करते देख, प्रिया ने हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “अरे नाश्ता करने की इतनी जल्दी क्या है. नाश्ता कही भागा नही जा रहा है. आराम से नाश्ता करो.”

मैं बोला “मुझे पता है कि, नाश्ता कहीं नही भगेगा. मगर किसी के हमारे पिछे लगने से पहले, मैं ज़रूर यहाँ से भागना चाहता हूँ. इसलिए तुम भी बेकार की बातों मे समय बर्बाद मत करो और जल्दी से नाश्ता करो.”

प्रिया मेरी इस बात का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उसने मुझसे सवाल करते हुए कहा.

प्रिया बोली “लेकिन जल्दी नाश्ता करने से क्या होगा. ड्राइवर तो 8 बजे के बाद ही आएगा और उसके आने तक तो हमको यही रुकना पड़ेगा.”

मैं बोला “नही, हम इतनी देर तक ड्राइवर के आने का इंतजार नही कर सकते. हम राज की बाइक लेकर चलते है. राज को कहीं जाना होगा तो, वो कार से चला जाएगा.”

मेरी बात सुनते ही प्रिया नाश्ता करना छोड़ कर खड़ी हो गयी और कमरे से बाहर जाने लगी. मुझे उसकी इस हरकत का मतलब समझ नही आया तो, मैने उसे टोकते हुए कहा.

मैं बोला “अब तुमको क्या हुआ. तुम कहाँ जा रही हो.”

मेरी बात सुनकर प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं राज भैया की बाइक की चाबी लेकर और हमारे घूमने जाने के बारे मे मोम को बता कर आती हूँ.”

मैं बोला “लेकिन पहले तुम चाय नाश्ता तो कर लो.”

प्रिया बोली “अब मैं चाय नाश्ता बाहर ही करूगी. तुम अपना चाय नाश्ता करो, तब तक मैं वापस आती हूँ.”

इतना कह कर, प्रिया कमरे से बाहर निकल गयी. अब प्रिया ने बाहर नाश्ता करने की बात सोच ली थी तो, मैने भी जल्दी से चाय पी और उठ कर बाहर हॉल मे आ गया. तभी प्रिया भी मेरे पास आ गयी और उसने कहा.

प्रिया बोली “क्या हुआ, क्या तुमने भी चाय नाश्ता नही किया.”

मैं बोला “मेरे लिए सिर्फ़ चाय ज़्यादा ज़रूरी थी. वो मैने पी ली है. अब नाश्ता तो मैं तुम्हारे साथ ही करूगा.”

मेरे बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए मुझे बाइक की चाबी थमा दी और फिर हम दोनो घर से बाहर आ गये. मैं राज की बाइक बाहर निकल ही रहा था कि, तभी निक्की की कार हमारे पास आकर रुकी.

निक्की ने इतनी सुबह सुबह हम दोनो को कहीं जाने की तैयारी मे देखा तो, वो कार से उतर कर सीधे हमारे पास आ गयी और फिर हम से कहा.

निक्की बोली “अरे आप दोनो इतनी सुबह सुबह कहाँ जा रहे है.”

मैं निक्की की इस बात का जबाब देने ही वाला था कि, प्रिया ने उस पर भड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली “क्या तुझे इतनी भी अकल नही है कि, कही जाते समय किसी को टोकना नही चाहिए. जो तूने आते ही हम लोगों को टोकना सुरू कर दिया.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैं हैरत से उसको देखने लगा. लेकिन निक्की ने मुस्कुराते हुए प्रिया से कहा.

निक्की बोली “मैने तुम्हारे जाने पर कोई टोक नही लगाई. मैं तो बस इतना कहना चाहती थी कि, यदि तुम लोग चाहो तो, मेरी कार लेकर जा सकते हो.”

प्रिया शायद कार मे जाना नही चाहती थी. इसलिए मेरे मूह से बाइक की बात सुनते ही, चलने की जल्दी करने लगी थी कि, कही मेरा इरादा ना बदल जाए. लेकिन निक्की की अपनी कार ले जाने वाली बात सुनते ही वो निक्की को गुस्से मे घूर्ने लगी.

निक्की भी शायद इस बात को समझ चुकी थी. लेकिन वो अब भी प्रिया को देख कर, मुस्कुरा ही रही थी. निक्की की इस हरकत से सॉफ समझ मे आ रहा था कि, वो जान बुझ कर प्रिया को तंग कर रही है.

शायद निक्की को हमारे घूमने जाने की बात पहले से ही पता थी. इसलिए शायद वो इतनी सुबह सुबह यहाँ आ गयी थी. लेकिन अभी मैं इन सब बातों मे उलझना नही चाहता था. इसलिए मैने बाइक मे बैठते हुए निक्की से कहा.

मैं बोला “नही, हम लोगों को आपकी कार नही चाहिए. आज हम लोगों ने बाइक से मुंबई घूमने की बात सोची है.”

मेरी बात सुनते ही प्रिया जल्दी से बाइक मे आकर बैठ गयी. लेकिन निक्की भी उसका पिछा छोड़ने के मूड मे नही लग रही थी. उसने फ़ौरन ही हमारी बाइक के सामने आते हुए कहा.

निक्की बोली “अरे मुझे छोड़ कर कहाँ भागे जा रहे हो. मुझे भी आप लोगों के साथ बाइक पे घूमना है.”

निक्की की बात सुनकर, प्रिया ने उस पर भड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली “कामिनी, यदि अब तूने हमारे पिछे लगने की कोसिस की तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा और यदि इसके बाद तूने अपने मूह से एक शब्द भी बाहर निकाला तो, मैं तेरा मूह तोड़ दुगी.”

प्रिया की ये बात सुनकर, निक्की के साथ साथ मेरी भी हँसी छूट गयी. निक्की मुस्कुराते हुए बाइक के सामने से हट कर प्रिया के पास आ गयी. उसने प्रिया की पीठ पर प्यार से एक मुक्का मारा और फिर हम दोनो से बाइ कहा. हमने दोनो ने भी उसे बाइ किया और फिर मैने बाइक आगे बढ़ा दी.

मुंबई की सड़कें मेरे लिए अंजान थी. इसलिए मेरे बाहर निकलते ही प्रिया मुझे रास्ता बताने लगी. वो बहुत खुश नज़र आ रही थी और उसकी ये खुशी उसकी बातों से ही झलक रही थी. अभी हम कुछ ही दूरी पर पहुचे तो, प्रिया ने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “तुमने अपना पर्स तो रख लिया है ना. वरना कुछ खरीदी करने के समय कहने लगो कि, मैं अपना पर्स भूल आया हूँ.”

प्रिया की इस बात पर मेरी हँसी छूट गयी. मैने हंसते हुए कहा.

मैं बोला “तुम फिकर मत करो, मेरा पर्स मेरे पास है. लेकिन सोच समझ कर खर्च करवाना. क्योकि अब मेरे पास ज़्यादा पैसे नही बचे है.”

प्रिया बोली “फिर भी तुम्हारे पास अभी कितने पैसे होगे.”

मैं बोला “मुश्किल से चार पाँच हज़ार होगे. लेकिन 4-5 घंटे घूमने के लिए इतने पैसे बहुत होगे.”

प्रिया बोली “नही, इतने पैसे से कुछ नही होगा. हमे थोड़ी बहुत शॉपिंग भी करनी है. तुम कुछ पैसे ऑर निकाल लो.”

मैं बोला “हमने कल ही तो इतनी सारी शॉपिंग की है. अब तुमको ऑर किस चीज़ की शॉपिंग करनी है.”

प्रिया बोली “जब मैं शॉपिंग करूगी, तब तुमको समझ मे आ जाएगा. अभी तो तुम सिर्फ़ कोई एटीएम देख कर, पैसे निकालो.”

मैने उस से पैसे निकालने के बारे मे कोई बहस नही की, लेकिन उस से शॉपिंग कर ज़रूर पुछ्ता रहा और वो मुझे टालती रही. इसी बीच एक एटीएम नज़र आ गया और मैने उसके सामने आकर बाइक रोक दी.

एटीएम रूम मे आकर मैने प्रिया से पुछा कि कितने पैसे निकालना है और उसके कहने पर मैने दस हज़ार रुपये निकाल लिए. इसके बाद जैसे ही ट्रांजेक्सन स्लिप लेने को हुआ तो, प्रिया ने फ़ौरन मेरे हाथ से वो स्लिप ले ली और देखने लगी. स्लिप देखने के बाद, प्रिया ने चौकते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, तुमको पता है की, तुम्हारे खाते मे कितना पैसा है.”

प्रिया की इस बात पर मैने ना मे अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा.

मैं बोला “नही, मुझे बस इतना पता है कि, जब मैं घर से चला था तो, मेरे खाते मे तीन लाख रुपये थे. फिर बाद मे शिखा दीदी की शादी की बात सुनकर, छोटी माँ ने भी कुछ पैसे मेरे खाते मे डाले थे. लेकिन उनके खुद ही यहाँ आ जाने से मुझे पैसे निकालने की ज़रूरत ही नही पड़ी.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने ऑर भी ज़्यादा हैरान होते हुए कहा.

प्रिया बोली “लेकिन इन पैसों को निकाल लेने के बाद तो, तुम्हारे खाते मे सिर्फ़ 500 रुपये ही बचे है. फिर तुम्हारे बाकी के पैसे खाते मे से कहाँ गये.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “ओये सुबह सुबह ऐसा मज़ाक मत करो. मैं जानता हूँ कि, तुम झूठ कह रही हो.”

ये कहते हुए मैं प्रिया के हाथ से ट्रॅन्सॅक्षन स्लिप छीन कर देखने लगा. लेकिन स्लिप को देखते ही, मैं भी हैरान होकर रह गया. मुझे हैरान होते देख प्रिया के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और उसने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “तुम्हारे खाते मे पूरे 25 लाख ज़्यादा है. जिसका मतलब है कि, आंटी ने पहले तुम्हे शिखा दीदी की शादी मे खर्च करने के लिए 25 लाख रुपये दिए थे. लेकिन फिर उनके खुद ही यहाँ आ जाने से, उनका खर्चा ऑर भी बढ़ गया. सच मे तुम्हारी मोम बहुत ग्रेट है.”

प्रिया की इस बात ने मुझे एक बार फिर सोच मे डाल दिया. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मेरा बाप इतना पैसा खर्च करने के लिए कैसे तैयार हो गया. मैं अभी ये बात सोच ही रहा था कि, तभी प्रिया ने मुझे टोकते हुए कहा.

प्रिया बोली “अरे अब तुम किस सोच मे पड़ गये. जल्दी चलो, हमारे पास इतना टाइम नही कि, हम एक ही जगह पर इतनी देर तक रुके रहे.”

प्रिया की बात सुनते ही मैं उसके साथ एटीएम रूम से बाहर निकल आया. बाहर आकर मैने बाइक चालू की और प्रिया के बैठते ही बाइक आगे बढ़ा दी. प्रिया मुझे रास्ता बताती जा रही थी और मैं उसके बताए रास्ते पर बाइक दौड़ाता जा रहा था.

वो रास्ते मे पड़ने वाली खास जगह और इमारतों के बारे मे भी मुझे बताती जा रही थी. ऐसे ही घूमते फिरते हम लोग सिद्धि विनायक मंदिर पहुच गये. वहाँ पहुच कर मैं बाइक पार्क करने लगा और प्रिया प्रसाद लेने चली गयी.

अभी सिर्फ़ 7:45 बजे थे और ये पहला मौका था, जब मैं किसी मंदिर मे इतनी सुबह सुबह दर्शन करने के लिए पहुचा था. मगर इतनी सुबह सुबह ही, वहाँ की भीड़ भाड़ और लंबी कतार को देख कर, मेरी हालत खराब होने लगी.

तभी प्रिया प्रसाद और फूल माला लेकर आ गयी. उसने प्रसाद और फूल माला मुझे पकड़ाते हुए, दर्शन करने चलने के लिए कहा तो, मैने उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “यार, हम बप्पा को यहीं से प्रणाम कर लेते है. यदि इतनी भीड़ भाड़ मे हम दर्शन करने अंदर गये तो, हमे सिर्फ़ यहीं पर 4-5 घंटे लग जाएगे और फिर हमे यही से घर वापस लौटना पड़ जाएगा.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम इसकी फिकर मत करो. हमे दर्शन करने मे मुस्किल से 15 मिनट ही लगेगे. तुम बस मेरे साथ साथ चलते रहो.”

प्रिया की बात सुनकर, मैं प्रसाद की डलिया हाथ मे थामे, उसके साथ साथ चलने लगा. कुछ दूर चलने के बाद, वो एक पंडित जी के पास आकर रुक गयी और फिर उसने उन पंडित जी से कहा.

प्रिया बोली “हम दोनो को ही दर्शन करना है.”

प्रिया की बात सुनते ही पंडित जी ने, मेरे हाथ से प्रसाद की डलिया ले ली. प्रिया ने मुझसे उन पंडित जी को 500 रुपये देने की बात बोली तो, मैने 500 रुपये निकाल कर उनको दे दिए.

पंडित जी ने पैसे लेकर अपने कुर्ते की जेब मे डाले और फिर हम लोगों से अपने पिछे पिछे आने की बात बोल कर, प्रसाद की डलिया को दोनो हाथों से उपर उठा कर, राजधानी एक्सप्रेस की तरह, तेज़ी से कभी दाएँ तो कभी बाएँ भागने लगे.

मुझे और प्रिया को उन पंडित जी की चाल से, अपना साथ मिलाने के लिए, उनके पिछे पिछे दौड़ना पड़ रहा था. लेकिन जल्दी ही हमारी ये मेहनत रंग लाई और पंडित जी नाम की राजधानी एक्सप्रेस ने हमे बप्पा के बिल्कुल सामने लाकर खड़ा कर दिया.

हमने बड़े सुकून के साथ गणपति बप्पा के दर्शन किए और फिर हम लोग आराम से बाहर आ गये. बाहर आकर वहाँ की भीड़ भाड़ देख कर, मुझे ऐसा लग रहा था कि, जैसे मैं कोई बड़ी भारी जंग जीत कर बाहर आया हूँ.

जिसकी खुशी मेरे चेहरे से ही झलक रही थी और मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था कि, मैं इतनी जल्दी बप्पा के दर्शन करके आ गया हूँ. लेकिन तभी प्रिया ने मुझे टोकते हुए कहा.

प्रिया बोली “देख लो, अभी सिर्फ़ 8:30 बजा है और हम दर्शन करके भी बाहर आ गये.”

प्रिया की बात सुनकर, मैने मुस्कुरा दिया और फिर बाइक निकालने चला गया. बाइक बाहर निकालने के बाद, मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “अब कहाँ चलना है.”

प्रिया बोली “अब हम महालक्ष्मी मंदिर चलते है.”

ये बोलते हुए प्रिया बाइक मे बैठ गयी और मैने बाइक आगे बढ़ा कर, मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “क्या, मुंबई मे सिर्फ़ देखने के लिए मंदिर ही मंदिर है या तुम मुझे कोई पापी समझ कर, मेरे पाप दूर करने के लिए, मुझे भगवान के दर्शन करवाए जा रही हो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मेरी पीठ पर एक जोरदार मुक्का मारते हुए कहा.

प्रिया बोली “हे, सुबह सुबह भगवान के दर्शन करने से दिन अच्छा जाता है और फिर ये सब यहाँ के प्रसिद्ध मंदिर है. इसलिए पहले यहाँ के दर्शन करवा रही हूँ. इसके बाद बाकी की खास खास जगह भी घुमा दूँगी.”

प्रिया की ये बात सुनने के बाद भी, मैं रास्ते भर उसको इसी बात को लेकर परेशान करता रहा. ऐसे ही हँसी मज़ाक करते हुए हम महालक्ष्मी मंदिर पहुच गये. महालक्ष्मी मंदिर मे सिद्धि विनायक की तरह ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी.

हमे महालक्ष्मी मंदिर मे बहुत आराम से तीनो देवियों के दर्शन करने को मिल गये. हम 9:30 बजे दर्शन करके फ़ुर्सत हो गये. मैने प्रिया से नाश्ता करने कर लेने को कहा तो, उसने कहा कि, हाजी अली दरगाह देखने के बाद नाश्ता करेगे.

हाजी अली दरगाह महालक्ष्मी मंदिर से कुछ ही दूरी पर थी. इसलिए हमे वहाँ पहुचने मे ज़्यादा देर नही लगी. कुछ ही देर मे हम हाजी अली दरगाह पहुच गये. हमने दरगाह के दर्शन किए और फिर वहाँ का नज़ारा देखने लगे.

समुंदर मे बनी इस दरगाह को देख कर, एक अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी. इसलिए मैं यहाँ बैठ कर, कुछ देर समुंदर का नज़ारा देखना चाहता था. लेकिन प्रिया ने समय की कमी बताते हुए, मुझे वहाँ बैठने नही दिया और हम वहाँ से जल्दी ही बाहर निकल आए.

बाहर आने के बाद, फिर मैने प्रिया से नाश्ता कर लेने को कहा तो, उसने आगे एक रेस्टोरेंट होने की बात कह कर मुझे वहाँ चलने को कहा. मैं प्रिया के बताए रास्ते पर चलने लगा.

मुझे रास्ते मे जो भी रेस्टोरेंट दिखाई देता, मैं प्रिया से पुछ्ता, क्या ये वाला रेस्टोरेंट है. वो कहती नही, बस थोड़ी ऑर आयेज है. ऐसा दो तीन बार हुआ. ऐसे ही थोड़ी ऑर आगे, थोड़ी ऑर आगे करते करते, वो मुझे मुंबा देवी के मंदिर ले आई.

वहाँ पहुच कर, जब मुझे प्रिया की ये हरकत समझ मे आई तो, मैने बुरा सा मूह बना लिया. जिसे देख कर, प्रिया मेरा हाथ पकड़ कर मंदिर मे ले गयी और फिर दर्शन करने के बाद उसने बताया कि, मुंबा देवी के नाम पर बोम्बे का नाम मुंबई, पड़ा है.

मुंबा देवी के दर्शन करने के बाद, हम सीधे गटेवे ऑफ इंडिया आ गये. वहाँ आकर हमने गटेवे ऑफ इंडिया और ताज होटेल का एक साथ नज़ारा किया. लेकिन प्रिया ने वहाँ भी मुझे ज़्यादा देर नही रुकने दिया.

वहाँ पर कुछ देर रुकने के बाद हम, मरीन ड्राइव, गिरगाओं चोपॅटी और हेंगिंग गार्डन का नज़ारा करते हुए, सीधे जुहू बीच चोपॅटी पहुच गये. लेकिन जुहू बीच पहुचते ही, मैने प्रिया के सामने अपने हाथ उपर करते हुए कहा.

मैं बोला “अब बस करो मेरी माँ. मुझ ग़रीब पर थोड़ा रहम करो. सुबह 7 बजे से भूखा प्यासा मुझे अपने साथ घुमाए जा रही हो और अब दोपहर का 1 बज गया है. अब तो कुछ खा पी लेने दो, वरना मुझसे यहाँ से हिला भी नही जाएगा.”

ये कहते हुए मैं वही धम्म से वही बैठ गया. प्रिया मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोसिस करने लगी. लेकिन जब मैं उसके उठाने पर भी नही उठा तो, उसने मुझे मानते हुए कहा.

प्रिया बोली “अरे अब परेशान मत करो. चलो मैं तुमको मुंबई की सबसे मशहूर चीज़ें खिलाती हूँ.”

ये कहते हुए, उसने फिर से मेरा हाथ पकड़ कर उठाया और इस बार मैं उठ कर खड़ा हो गया. हम चलते हुए वहाँ के फुड स्टॉल्स पर आ गये. वहाँ आकर प्रिया ने एक स्टॉल के सामने पड़ी चेयर पर मुझे बैठने को कहा और वो खुद उस स्टॉल पर चली गयी.

मैं बहुत थक गया था, इसलिए मैं आराम से बैठ कर, प्रिया के वापस आने का इंतजार करने लगा. तभी प्रिया एक प्लेट मे बड़ा पाव लेकर आ गयी. उसे देखते ही, मैने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.

मैं बोला “अबे तुम 6 घंटे मुझे घूमने के बाद, यहाँ बैठा कर, बड़ा पाव खिला रही हो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “क्या तुमने कभी बड़ा पाव खाया है.”

मैं बोला “नही खाया और मुझे ये खाना भी नही है.”

प्रिया बोली “यदि मुंबई आकर तुमने ये नही खाया तो, समझ लो, तुमने कुछ भी नही खाया. अब ज़्यादा नखरे मत करो और चुप चाप खा लो. वरना कुछ भी खाने को नही मिलेगा.”

मैने बेमन से एक बड़ा पाव उठा लिया और खाने लगा. मेरे साथ प्रिया भी बड़ा पाव खाने लगी. अभी हम बड़ा पाव खा कर फ्री हुए थे कि, तभी एक लड़का भेल पूरी लेकर आ गया.

मैने प्रिया की तरफ देखा, वो मुझे ही घूर रही थी. इसलिए मैं चुप चाप भेल पूरी खाने लगा. मैं भेल पूरी खा ही रहा था कि, तभी बरखा का कॉल आ गया. वो खाना खाने के लिए घर आने की बात पुच्छ रही थी.

मैने प्रिया से पुछा कि, उसे क्या जबाब दूं तो, प्रिया ने 3 बजे आने का इशारा किया और मैने ये ही बात बरखा से बोल कर, कॉल रख दिया. इसी के साथ मेरा भेल पूरी खाना भी हो चुका था और अब मेरा पेट पूरी तरह से भर चुका था.

लेकिन तभी एक लड़के ने पाव भाजी लाकर मेरे सामने रख दी. पाव भाजी देखते ही, मैने उठ कर खड़े होते हुए कहा.

मैं बोला “तुम पागल हो गयी हो क्या. पहले भूखा रख कर मार रही थी और अब खिला खिला कर मारना चाहती हो.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने फिर मुझ पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम चुप चाप खाते हो या फिर मैं इसे ज़बरदस्ती तुम्हारे मूह मे ठूंस दूं.”

मैं बोला “कसम से यार, अब मेरे पेट मे इसके लिए ज़रा भी जगह नही है. यदि तुम ये पहले ही मॅंगा लेती तो, इतना सब खाने की ज़रूरत ही नही पड़ती.”

प्रिया बोली “इसलिए मैने पाव भाजी पहले नही मगाई थी. वरना तुम बड़ा पाव और भेल पूरी को हाथ भी नही लगाते.”

मैं बोला “लेकिन अब मैं कुछ नही खा सकता. ये तुम ही खा लो.”

प्रिया बोली “मुझे मालूम था कि, तुम इसे नही खा पाओगे. इसलिए मैने एक प्लेट पाव भाजी ही मँगवाई है. इस एक प्लेट पाव भाजी को, हम दोनो मिल कर तो, ख़तम कर सकते है ना.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैं गौर से उसका चेहरा देखने लगा. उसके चेहरे पर इस समय ना तो ज़िद करके अपनी बात मनवाने वाले भाव थे और ना ही मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती करके अपनी बात मनवाने वाले भाव थे.

उसके चेहरे पर यदि इस समय थे तो, सिर्फ़ आग्रह करने वाले भाव थे. जिन्हे मानना या ना मानना उसने मेरे उपर छोड़ दिया था. उसके चेहरे के इन भावों को देखते ही, मेरी आँखों मे अमि का चेहरा आ गया और मैं मुस्कुराते हुए वापस प्रिया के पास बैठ गया.


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पापा जब कभी अमि निमी के खाने के लिए कुछ लाते तो, निमी अपनी चटोरी जीभ से मजबूर होकर, अपनी चीज़ को फ़ौरन चाट कर जाती थी. लेकिन अमि अपनी चीज़ को बचा कर रखती और उसे मेरे पास लाकर कहती कि, “भैया मुझे ये खाना है. मगर मैं इसे पूरा नही खा पाउन्गी. क्या इसमे आधा आप खा लेगे.”


मैं उसे वो निमी को खिला देने को कहता. मगर निमी इसके लिए पहले से तैयार रहती और उसे खाने से मना कर देती. मैं दोनो की इस हरकत को समझ जाता था. लेकिन फिर भी मैं इस सब से अंजान बन कर, अमि की लाई हुई चीज़ को थोड़ा सा खा लेता था.

अपनी चीज़ मुझे खिलाने के लिए उस समय जो भाव अमि के चेहरे पर होते थे. वैसे ही कुछ भाव अभी मुझे प्रिया के चेहरे पर भी दिख रहे थे. इस समय वो पिंक सलवार सूट मे बहुत प्यारी लग रही थी और बीच पर चल रही हवाए, उसके बालों को बिखेर कर, उसे ऑर भी ज़्यादा प्यारा बना रही थी.

मैने उसके इस मनमोहक रूप को देख कर, मुस्कुराते हुए पाव भाजी का एक नीवाला उसके मूह की तरफ बढ़ा दिया. मेरे ऐसा करते ही उसके चेहरे पर चमक आ गयी और उसने फ़ौरन ही वो नीवाला खाते हुए, पाव भाजी का एक नीवाला लेकर मेरे मूह की तरफ बढ़ा दिया. मैने भी उसके हाथ से पाव भाजी का वो नीवाला खा लिया.

वो मुझे अपने हाथ से पाव भाजी खिला रही थी और मैं उसे अपने हाथ से पाव भाजी खिला रहा था. हम दोनो बस एक दूसरे को अपने हाथों से पाव भाजी खिला रहे थे और एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.

इसके अलावा इस समय ना तो मेरे मन मे ऐसा वैसा कुछ चल रहा था और ना ही शायद प्रिया के मन मे ऐसा वैसा कुछ चल रहा था. ये बस एक ऐसा लम्हा था, जो हम दोनो को सुकून दे रहा था और हम इस लम्हे को किसी बात की परवाह किए बिना, पूरी तरह से जी लेना चाहते थे.

खैर कोई लम्हा कितना भी हसीन क्यो ना हो. उस लम्हे का अंत हो ही जाता है. ऐसे ही इस लम्हे का भी अंत हमारी पाव भाजी के ख़तम होने के साथ ही हो गया. उसने मुझसे पैसे लेकर, दुकान वाले के पैसे चुकाए और फिर हम दोनो टहलते हुए बीच पर आ गये.

हमारे पास अब एक दूसरे के साथ बिताने के लिए ज़्यादा समय नही था. इसलिए ना तो, मैने प्रिया से कुछ ऑर देखने की बात कही और ना ही प्रिया ने मुझसे कहीं ऑर चलने की बात कही. हम दोनो बस ऐसे ही बीच पर बात करते हुए टहलते रहे और फिर एक जगह पर बैठ कर समुंदर का नज़ारा देखने लगे.

समुंदर का नज़ारा देखते देखते प्रिया ने अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया और मेरे हाथ को पकड़ लिया. मुझे प्रिया की ये हरकत कुछ अच्छी सी नही लगी थी. लेकिन मैं जाते जाते उसके दिल को ठेस भी लगाना नही चाहता था. इसलिए मैं उसकी इस हरकत को अनदेखा कर, फिर समुंदर की तरफ देखने लगा.

मगर शायद प्रिया मेरी इस हालत को समझ गयी थी. उसने मेरे कंधे से अपने सर को हटाया और फिर मेरी हथेली को अपनी हथेली से ऐसे सॉफ करने लगी. जैसे कि मेरी हथेली पर कुछ लग गया हो. मैं बड़े ध्यान से उसकी इस हरकत को देखने लगा. तभी उसने अपने चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान बिखेरते हुए, मुझसे कहा.

प्रिया बोली “बहुत ही मुश्किल होता है ना.”

प्रिया की ये बात सुनते ही, मेरे कानो मे निशा भाभी की बात गूँज गयी. क्योकि उन्हो ने भी मुझसे ऐसा ही कुछ सवाल किया था. लेकिन तब से अब तक हालत बहुत बदल चुके थे और शायद इस सवाल का जबाब भी बदल चुका था.

मैं प्रिया की इस बात के मतलब को अच्छी तरह से समझ गया था. लेकिन फिर भी मैने इस बात से अंजान बनते हुए कहा.

मैं बोला “क्या मुश्किल होता है.”

मेरी बात को सुनकर, प्रिया ने अपनी नज़र मेरी हथेली पर ऐसे टिका ली, जैसे कि मेरी हथेली मे कुछ दूध रही हो. फिर मेरी हथेली को अपने दुपट्टे से सॉफ करते हुए, एक फीकी सी मुस्कान के साथ कहा.

प्रिया बोली “जिस से प्यार हो, उस से दूर रहना और जिस से प्यार ना हो, उसके साथ रहना.”

मैं इस समय प्रिया के दिल की हालत को अच्छी तरह से समझ रहा था. उसे ऐसा लग रहा था कि, मैं किसी मजबूरी या किसी हमदर्दी मे इस समय उसके साथ यहाँ पर आया हूँ. लेकिन उसकी इस बात मे ज़रा भी हक़ीकत नही थी. इसलिए मैने एक ठंडी साँस भर कर, इस बात की सच्चाई प्रिया के सामने रखते हुए कहा.

मैं बोला “नही, ऐसा बिल्कुल नही है. जब मैं यहाँ आया था, तब मुझे ज़रूर ऐसा लग रहा था कि, अपने प्यार से दूर रहना एक सज़ा है. मगर यहाँ आकर मैने जाना कि, प्यार मे कभी कभी दूरी होना भी ज़रूरी है. क्योकि ये दूरी ही है, जो हमे हमारे प्यार की कीमत का अहसास करती है.”

“यदि मैं अपने प्यार से इतने दिन दूर ना रहा होता तो, शायद मुझे इसकी कीमत का अहसास कभी ना हो पाता और मैं जाने अंजाने मे अपनी किसी ग़लती से अपने प्यार को खो भी सकता था. मगर इस कुछ दिन की जुदाई ने मुझे मेरे प्यार की उस कीमत का अहसास दिलाया है. जिसे मैं साथ रह कर शायद कभी समझ ही नही सकता था.”

“मेरा मानना था कि, मैं उसे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता हूँ. लेकिन यहाँ आकर मैने जाना कि, जान से ज़्यादा प्यार करने का मतलब ये है कि, मैं उसे खुद से अलग मानता हूँ. जबकि मैं जिस लड़की से प्यार करता हूँ. वो मुझे अपनी जान से ज़्यादा प्यार नही करती, बल्कि वो तो मुझे ही अपनी जान मानती है.”

“उसके सपने, उसके अपने, उसकी खुशी, उसके गम, उसका प्यार, उसका विस्वास, जो कुछ भी हूँ, सिर्फ़ मैं ही हूँ. इसलिए उसके मुक़ाबले मे मेरा प्यार कुछ भी नही है और ये सब बातें मैने उस से दूर रह कर ही जानी है. मेरे लिए ये दूरी एक सज़ा नही, बल्कि एक सौगात थी. जिससे मैने अपने प्यार की कदर करना सीखा है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने फिर फीकी सी मुस्कान के साथ कहा.

प्रिया बोली “ये बात तो उसके लिए है, जिस से प्यार हो उस से दूर रहना पड़े. लेकिन जिस से प्यार ना हो, उसके साथ रहने वाली बात का तो, तुमने कोई जबाब नही दिया.”

प्रिया की इस बात का जबाब मैने बड़ी ही संजीदगी से देते हुए कहा.

मैं बोला “तुम्हारा ये सवाल ही ग़लत है. क्योकि जिस से प्यार ना हो, उसके साथ रहने या ना रहने से कोई फरक नही पड़ता है.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया का चेहरा उतर गया. शायद उसे मुझसे इस तरह के खुले जबाब की उम्मीद नही थी. लेकिन मैने अपनी बात को बदलते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “तुम्हारा सवाल ये होना चाहिए था कि, कोई तुम्हे प्यार करे और तुम्हे उस से प्यार ना हो. ऐसे मे उसके साथ रहना बहुत मुश्किल हो जाता है ना.”

मेरी ये बात सुनकर प्रिया हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. उसका इस तरह हैरान होना भी स्वाभाविक था. वो जिस बात को घुमा कर पुच्छ रही थी. उसी बात को मैने सीधे शब्दों मे उसके सामने लाकर रख दिया था. उसको इस तरह से हैरान होते देख कर, मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “जो अभी मैने कहा है. यदि तुम्हारा सवाल वही है तो, मेरा जबाब है कि, हाँ, बहुत मुस्किल होता है. यदि कोई आपको अपनी जान से बढ़ कर प्यार करे और आप उसके इस प्यार के बदले मे, अपना प्यार ना दे पाओ तो, बहुत तकलीफ़ होती है.”

“फिर यदि वो प्यार करने वाला तुम्हारे जैसा कोई मासूम हो तो, ये दर्द सहन करना और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाता है. तब ऐसा लगता है, जैसे कि सीने के अंदर कोई आग जल रही हो और उस आग मे दिल जल रहा हो.”

मेरी इस बात को सुनकर, शायद प्रिया के दिल को कुछ सुकून मिला था. उसने पहली बार दिल खोल कर हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “मेरे लिए तुम अपना दिल मत जलाओ. मुझे तुमको हासिल करना था, वो मैने कर लिया. अब मुझे किसी बात का कोई गम नही है.”

प्रिया की इस बात ने इस बार मुझको हैरानी मे डाल दिया. मुझे उसकी ये बात ज़रा भी समझ मे नही आई और हैरानी भरी नज़रों से उसकी तरफ देखता रह गया. लेकिन वो मेरी इस हैरानी को समझ गयी थी. इसलिए उसने मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “ज़्यादा मत सोचो, इसमे हैरानी वाली कोई बात नही है. तुम मेरे साथ हो. तुम्हे मेरे दर्द से दर्द होता है. तुम्हे मेरी फिकर रहती है. यदि इसे प्यार नही कहते है तो, फिर मुझे तुमसे तुम्हारा प्यार चाहिए भी नही है. मुझे तुम्हारा बस इतना साथ ही मिलता रहे, मेरे लिए ये ही बहुत है.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैं गौर से उसका चेहरा देखने लगा और ये समझने की कोसिस करने लगा की, ये बात कही वो मेरा दिल रखने के लिए तो, नही कह रही है. मगर उसके चेहरे की मासूमियत देख कर, मुझे यकीन हो गया कि, वो जो कुछ भी कह रही है, अपने दिल से कह रही है.

इसलिए इस समय उसके चेहरे की मुस्कान मे मुझे कही कोई दर्द नज़र नही आ रहा था. अपने दर्द की परवाह किए बिना, अपने प्यार के दर्द की परवाह करने का नाम ही तो प्यार है और यही प्रिया भी कर रही थी.

प्रिया की इस बात को सुनकर, मैं बहुत भावुक हो गया था. उसने थोड़े से ही शब्दों मे ही बहुत कुछ कह दिया था. मगर आज अपने जाने से पहले मेरे पास भी उस से कहने के लिए बहुत कुछ था. मैने उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाया और फिर उसका हाथ पकड़ कर सहलाते हुए कहा.

मैं बोला “प्रिया, मैं जानता हूँ कि, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो. लेकिन उस रास्ते पर चलने का फ़ायदा ही क्या, जिस रास्ते की कोई मंज़िल ही ना हो. तुम अच्छे से जानती हो कि, मेरी मंज़िल कोई ऑर है. ऐसे मे मुझे प्यार करके तुम्हे दर्द के सिवा कुछ नही मिलेगा.”

“तुम्हारे लिए अच्छा ये ही होगा कि, तुम मुझे हमेशा के लिए भूल जाओ और अपनी जिंदगी मे किसी ऐसे लड़के को आने का मौका दो, जो तुम्हे इतना प्यार करे कि, तुम्हे कभी भूले से भी मेरी याद ना आए.”

इतना कह कर, मैं प्रिया का चेहरा देखने लगा. मेरी बात सुनकर, वो भी कुछ गंभीर दिखने लगी थी और कुछ सोच मे पड़ गयी थी. थोड़ी देर बाद उसने अपनी खामोशी को तोड़ते हुए कहा.

प्रिया बोली “एक बात बताओ, यदि किसी वजह से तृप्ति तुम्हे ना मिल पाए तो, क्या तब ऐसी हालत मे तुम मेरे प्यार को अपना लोगे.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मेरा दिमाग़ ही घूम गया और मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम पागल हो क्या है. उसके मिलने या ना मिलने से क्या होता है. यदि किसी वजह से मैं उसके प्यार को खो भी देता हूँ. तब भी मेरे दिल से उसका प्यार तो ख़तम नही हो जाएगा. वो मुझे मिले या ना मिले, लेकिन उसके अलावा किसी के प्यार को अपनाने का सवाल ही पैदा नही होता है.”

“वो मुझे मिले या ना मिले. मगर मैं उसके अलावा किसी के बारे मे सोच भी नही सकता हूँ. इसलिए तुम अपने दिल से ये वहाँ हमेशा के लिए निकाल दो कि, उसके ना मिलने से मैं तुम्हारे प्यार को अपना सकता हूँ.”

उस समय मुझे प्रिया की इस नादानी भरी बात पर बहुत गुस्सा आ रहा था. इसलिए मुझे जो कुछ भी समझ मे आया, मैं प्रिया को बोलता चला गया. लेकिन मेरे चुप होते ही, प्रिया ने अपनी बात के लिए मुझसे माफी माँगते हुए कहा.

प्रिया बोली “सॉरी, मेरे मन मे तुम दोनो के प्यार को लेकर ऐसी कोई भी बात नही है. मुझे ये बात बोलने के लिए भगवान माफ़ करे और तुम दोनो के प्यार को कभी किसी की भी नज़र ना लगे. लेकिन अब एक बार तुम खुद ही अपनी कही बात को सोच कर देख लो.”

“एक तरफ तो तुम तृप्ति को खो देने के बाद भी, उसको भूलने या किसी ऑर के प्यार को अपनाने के लिए तैयार नही हो. वही दूसरी तरफ तुम मुझसे कहते हो कि, मेरे प्यार की कोई मंज़िल नही है, इसलिए मैं अपने प्यार को भूल जाउ. क्या सिर्फ़ तुम्हारा प्यार ही प्यार है और मेरा प्यार कुछ भी नही है. आख़िर तुम्हारी नज़रों मे प्यार का ये दोहरा माप-दंड क्यो है.”

“यदि तुम दोनो का प्यार सच्चा है तो, झूठा मेरा प्यार भी नही है. तुम्हरे मेरे पास होने ना होने का अहसास मुझे दिल से महसूस होता है. यदि मेरी आँखें बंद भी हो, तब भी मैं बिना आँखे खोले बता सकती हूँ कि, तुम मेरे पास आ रहे हो. क्योकि मुझे तुम्हारे आने की आहट मेरे कानों से नही, बल्कि मेरे दिल से सुनाई देती है.”

“तुमसे इतना प्यार होने के बाद भी, जब मुझे तुम्हारे प्यार का पता चला तो, मैने खुद ही, अपने प्यार को, अपने सीने मे दफ़न करके रख दिया. लेकिन अब यदि तुम्हे मेरा तुमको याद रखना भी एक बोझ लगता है तो, तुम्हारी खुशी के लिए मैं तुम्हारी याद को भी अपने सीने मे दफ़न कर दुगी. मगर मेरी एक बात याद रखना कि दिल पर किसी का कोई ज़ोर नही होता. कही ऐसा ना हो की, तुमको भुलाते भुलाते ये दिल धड़कना ही भूल जाए.”

ये बात कहते कहते प्रिया की आँखें छलक गयी और उसका दर्द महसूस करके मेरा दिल भी तड़प गया. उसकी कही गयी, कोई भी बात ग़लत नही थी. मैं कभी कभी खुद भी इस बात को देख कर, हैरान रह जाता था कि, वो चाहे मेरी तरफ पीठ करके ही क्यो ना खड़ी हो, मगर जब मैं उसके आस पास पहुचता था तो, वो पलट कर मुझे ही देखने लगती थी.

ऐसा क्यों होता था, इस बात को मैं कभी समझ नही सका. लेकिन मेरे साथ भी प्रिया को लेकर, एक ऐसी ही अजीब बात जुड़ी हुई थी. वो बात ये थी की, प्रिया चाहे अपने दर्द को, अपनी हँसी के पिछे छुपाने की लाख कोसिस कर ले. मगर फिर भी मुझे उसकी मुस्कान के पिछे छुपि खुशी और गम का अहसास हो जाता था.

ऐसा ही कुछ अभी भी मेरे साथ हो रहा था. उसके बहते हुए आँसुओं ने मुझे मेरी ग़लती का अहसास करा दिया और मैने उसके हाथ को थामते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का हरगिज़ नही था. मुझे तुम्हारी कोई भी बात बोझ नही लगती. तुम इतने दिन से साए की तरह मेरे साथ हो. लेकिन मुझे कभी भी तुम्हारा साथ बोझ नही लगा और ना ही मैने कभी तुमसे पिछा छुड़ाने की कोसिस की है.”

“ऐसा मैने किसी मजबूरी या हमदर्दी मे नही किया. बल्कि मुझे तुम्हारे साथ रहने से खुशी होती थी. तुम भले ही अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान का मुखौटा लगा कर, सबसे अपने दर्द को छुपा लेती हो. लेकिन जैसे तुम्हे मेरे आने का अहसास पहले से हो जाता है. वैसे ही मुझे भी तुम्हारी मुस्कान मे छुपे दर्द और खुशी का अहसास हो जाता है.”

“तुम्हे खुश देख कर मेरी खुशी दुगनी हो जाती है. लेकिन तुम्हे दुखी देख कर मेरा गम दुगना नही, बल्कि चार गुना हो जाता है. ये सच है कि, मैं बहुत ज़्यादा भावुक इंसान हूँ, इसलिए किसी के दिल मे छुपि भावना को महसूस करना मेरे लिए कोई बड़ी बात नही है.”

“मगर उस से भी बड़ा सच ये है कि, मुझे तुमसे मिले हुए, अभी सिर्फ़ 15 दिन ही हुए है. लेकिन इस 15 दिन की जान पहचान मे, मैं तुम्हारे दिल मे छुपि भावनाओ को जितना ज़्यादा महसूस कर पाया हूँ. उतना ज़्यादा मैं आज तक, किसी के दिल मे छुपि भावनाओ को महसूस नही कर पाया हूँ.”

“मेरे साथ ऐसा क्यो हुआ, ये मैं खुद भी नही जानता. मगर मुझे ऐसा लगता है कि, शायद पिच्छले जनम मे मेरा तुमसे कोई रिश्ता था. जिस वजह से तुम्हे दर्द मे देख कर, मैं भी तड़प उठता हूँ और तुम्हे खुश देख कर, मैं भी खुश हो जाता हूँ.”

“कहीं ना कहीं, तुम्हारी खुशी से मेरी खुशी और तुम्हारे गम से मेरा गम जुड़ा हुआ है. जिसकी वजह से मैने कहा था कि, तुम मुझे भूल जाओ. क्योकि यदि तुम खुश नही रहोगी तो, इसका अहसास मुझे भी खुश नही रहने देगा.”

“अब तुम चाहो तो, इन सब बातों को मेरा पागलपन कह लो या फिर चाहो तो, इसे प्यार के लिए मेरा दोहरा माप-दंड कह लो. लेकिन मैने अभी तुमसे जो भी कहा, वो ही मेरा सच है और इस पर यकीन करना या ना करना तुम्हारी मर्ज़ी पर है.”

अपनी इतनी बात कह कर, मैं चुप हो गया. लेकिन मेरी ये सब बातें सुनकर, प्रिया हैरानी से मुझे देखती रह गयी. उसे शायद अब भी इस बात पर यकीन नही आ रहा था कि, मेरे दिल मे उसको लेकर इतनी सब बातें छुपि हुई थी.
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वो बड़ी हैरानी भरी नज़रों से मुझे देख रही थी. इस समय उसकी आँखों मे आँसू भी झिलमिला रहे थे और उसके होठों पर मुस्कुन भी थिरक रही थी. उसके इस आँसू और मुस्कान से भरे चेहरे को देख कर, मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था.

मेरा दिल कर रहा था कि, मैं अपने होठों से, उसकी आँखों मे चमकने वाले इन मोतियों को पी जाउ. मगर मेरे अंदर ऐसा करने की हिम्मत नही थी. लेकिन शायद इस समय प्रिया के दिल मे भी ऐसा ही कुछ चल रहा था.

इसलिए उसने मेरी किसी बात की परवाह किए बिना, मेरे दोनो हाथों को, अपने हाथों मे थाम लिया और फिर बारी बारी से मेरे हाथो को चूम कर, अपनी आँखों से लगा कर, बहुत ही भावुक होते हुए कहा.

प्रिया बोली “मुझे पता था कि, तुमको मेरी बहुत फिकर है. लेकिन मैने ये सपने मे भी, नही सोचा था कि, तुमको मेरे दर्द का इतना ज़्यादा अहसास है. तुम नही जानते कि, आज मैं कितनी खुश हूँ. आज यदि इस खुशी के बदले मे, तुम मेरी जान भी माँग लो तो, मेरे लिए ये भी बहुत कम है.”

प्रिया की ये बात सुनते ही, मैने उसके मूह पर हाथ रखते हुए कहा.

मैं बोला “मैं तुम्हारी जान नही, बल्कि तुम्हारी जान की सलामती चाहता हूँ. मैं चाहता हूँ कि, तुम हमेशा खुश रहो.”

मेरी इस बात के जबाब मे प्रिया ने मेरा हाथ छोड़ा और फ़ौरन अपने चेहरे से आँसुओं को सॉफ करके, मुस्कुराते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुम मुझे हमेशा खुश देखना चाहते हो तो, मैं हमेशा खुश रहूगी. लेकिन तुम बस आज के दिन मुझसे भूलने भूलने की बात मत करो और मेरे साथ ऐसे ही रहो. फिर कल के दिन तुम मुझसे जो कुछ भी बोलोगे, मैं खुशी खुशी तुम्हारी बात मान लूँगी.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मुझे थोड़ी हैरानी हुई कि, उसने इतनी आसानी से मेरी बात कैसे मान ली. फिर भी उसे अपनी बात मानते देख, मुझे खुशी हुई और मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “ठीक है, यदि तुम्हारे खुश रहने की यही शर्त है तो, मुझे तुम्हारी ये शर्त भी मंजूर है.”

प्रिया बोली “नही, ऐसे नही, पहले अच्छे से सोच लो. फिर बाद मे कोई वादा करना.”

मैं बोला “हां, मैने सोच लिया है. मैं वादा करता हूँ, की मैं आज तुमसे भूलने भूलने की कोई बात नही करूगा और तुम्हारे साथ ऐसे ही रहूँगा. लेकिन कल मैं तुमसे जो भी कुछ भी कहूँगा, तुम्हे मेरी वो बात मानना पड़ेगी.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने बड़ी ज़ोर से खिलखिलाते हुए कहा.

प्रिया बोली “अब तुम्हारी बात मानने के लिए बचा ही क्या है.”

“उम्र दराज़ माँग कर, लाए थे चार दिन,
दो आरजू मे कट गये, दो इंतजार मे.”

ये कह कर, वो खिलखिला कर हँसने लगी. उसकी इस हँसी से मुझे इतना तो समझ मे आ गया था कि, मुझसे कही कुछ ग़लती हो गयी है. लेकिन बहुत सोचने के बाद भी, जब मैं अपनी ग़लती को नही पकड़ पाया तो, मैने झुझलाते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “ये पागलों की तरह बिना बात की क्यो हंस रही हो. सॉफ सॉफ क्यो नही बोल देती कि, तुम्हे खुद ही अपनी शर्त मंजूर नही है.”

मेरी इस बात पर प्रिया ने अपना पेट पकड़ कर हंसते हुए कहा.

प्रिया बोली “अरे तुम अब भी कुछ नही समझे.”

मैं बोला “नही, मेरी समझ मे तुम्हारी कोई बात नही आ रही है.”

ये कहते हुए मैने अपना बुरा सा मूह बना लिया. मेरा इस तरह से मूह बना हुआ देख कर, प्रिया ने अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.

प्रिया बोली “इसमे ना समझ मे आने वाली क्या बात है. हमारे बीच अभी दो दिन की बात हुई है. इसमे से मेरा आज का दिन है और तुम्हारा कल का दिन है. मगर शायद तुम्हे पता नही है कि, आज कभी जाता नही है और कल कभी आता नही है.”

प्रिया की ये बात सुनते ही, मुझे उसकी बात का मतलब समझ मे आ गया और मैने फिर से उस पर झुझलाते हुए कहा.

मैं बोला “ये ग़लत है, तुमने आज मतलब सिर्फ़ सनडे के दिन की बात कही थी और अब तुम अपनी उस बात से मुकर रही हो.”

प्रिया बोली “हे झूठ मत बोलो, मैने सिर्फ़ आज का दिन कहा था. सनडे तो तुम अपने मन से जोड़े जा रहे हो. मैं नही, तुम अपनी कही बात से मुकर रहे हो.”

प्रिया कह तो सच ही रही थी. लेकिन जब उसने मुझे ये बात कही थी, तब मैं भी नही जानता था कि, वो आज और कल का मतलब ये निकालने वाली है. इसलिए मैने बिना सोचे समझे उसकी बात मान ली थी.

मगर अब जब मुझे उसकी ये चालबाजी समझ मे आई तो, मैं भी अपनी बात पर अड़ गया और हम दोनो मे अपनी अपनी बात को सही साबित करने की होड़ चलने लगी. लेकिन ना तो वो अपनी बात को ग़लत मानने को तैयार थी और ना ही मैं उसकी बात को सही मानने को तैयार था.

हमारी इस बहस का कोई नतीजा निकलता ना देख, मैने इस बात से पिछा छुड़ा लेने मे ही अपनी भलाई समझी. मैने बात को बदलते हुए, उसकी हथेली पर ब्लेड से बने हुए “पी” की तरफ इशारा करते हुए, उस से कहा.

मैं बोला “तुमने ये पागलपन क्यो किया था.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया का ध्यान भी अपनी हथेली की तरफ चला गया और उसने बड़ी ही मासूमियत से मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “भला मैने ऐसा क्या कर दिया. बस अपने नाम का पहला अक्षर “पी” ही तो लिखा है.”

उसकी ये बात सुनकर, मैं मुस्कुराए बिना ना रह सका. क्योकि एक तरह से उसकी बात सही भी थी. लेकिन इसकी हक़ीकत वो भी अच्छे से जानती थी और मैं भी अच्छे से जानता था. इसलिए मैने उसको को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “लेकिन तुम्हे ये सब करने की क्या ज़रूरत थी. ये सब करके तुम्हे सिर्फ़ दर्द ही मिला होगा.”

प्रिया बोली “मैं उस समय बहुत दुखी थी और यकीन मानो इसे लिखने से मुझे दर्द नही, बल्कि मेरे दिल को थोड़ी राहत मिली थी.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैं बड़े गौर से उसका चेहरा देखने लगा. मेरे इस तरह से उसको देखने से प्रिया मुझसे नज़रे चुराने की कोसिस करने लगी. लेकिन फिर कुछ उसके दिमाग़ मे आया तो, उसने मुझे अपनी बातों मे उलझाते हुए कहा.

प्रिया बोली “मैं तो समझती थी कि, तुमको इसका पता नही है. लेकिन तुम तो इसके बारे मे पहले से ही जानते थे. मेरी समझ मे ये बात नही आ रही कि, तुमको इसका पता कब और कैसे पता चला था.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैं उसे घूर कर देखने लगा और वो मेरे इस तरह से घूर्ने का मतलब समझने की कोसिस करने लगी. लेकिन इस पहले की उसे मेरे घूर्ने का कुछ मतलब समझ मे आ पाता, उस से पहले ही मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला “ज़्यादा भोली बनने की कोसिस मत करो. क्या ऐसा हो ही नही सकता कि, निक्की ने तुम्हे इस बारे मे कुछ ना बताया हो. यदि ऐसा होता तो, जब मैने नेहा के सामने तुम्हारा हाथ दिखाया था. तुमने उसके बाद ही, मुझसे इस बात के बारे मे पुच्छ लिया होता.”

मेरी ये बात सुनते ही प्रिया खिलखिला कर हँसने लगी और इस बार उसकी इस हँसी मे मैं भी उसके साथ हँसने लगा. अभी हमारे हँसी मज़ाक का ये दौर चल ही रहा था कि, तभी प्रिया की नज़र पानी पूरी वाले पर पड़ गयी और उसने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “वो देखो, वहाँ पानी पूरी वाला खड़ा है. चलो वहाँ चल कर पानी पूरी खाते है.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैने एक नज़र पानी पूरी वाले की तरफ देखा और फिर प्रिया से कहा.

मैं बोला “तुमको पानी पूरी खाना है तो, तुम शौक से पानी पूरी खा सकती हो. लेकिन मुझे पानी पूरी खाना ज़रा भी पसंद नही है. इसलिए मुझे तो तुम इसके लिए माफ़ ही करो.”

लेकिन मेरी ये बात सुनने के बाद भी, प्रिया मुझसे पानी पूरी खाने की ज़िद करने लगी. तब मैने उसे अपनी बात समझाते हुए कहा.

मैं बोला “मैं सच कह रहा हूँ यार. मैं सच मे कभी पानी पूरी नही ख़ाता हूँ. तुम चाहो तो, किसी से भी पता कर सकती हो. तुमको पानी पूरी पसंद है तो, तुम चल कर पानी पूरी खा लो. मैं तुम्हारे साथ चल कर, तुमको पानी पूरी खाते हुए देखता हूँ.”

मेरी ये बात सुनकर, प्रिया ने पहले बुरा सा मूह बना लिया. लेकिन फिर अचानक ही उसे कुछ सूझा और उसने अपनी बात को मेरे सामने रखते हुए कहा.

प्रिया बोली “तुमने अभी तक मुझे मेरे बर्थ’डे का गिफ्ट नही दिया है. मुझे मेरे बर्थ’डे का गिफ्ट यही चाहिए.”

प्रिया की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “हां, मुझे पता है कि, मैने तुम्हारे बर्थ’डे का गिफ्ट नही दिया है. मैं भी तुम्हारे बर्थ’डे का गिफ्ट देना चाहता हूँ. बोलो तुम्हे अपने बर्थ’डे का क्या गिफ्ट चाहिए है.”

प्रिया बोली “मुझे मेरे बर्थ’डे का गिफ्ट ये ही चाहिए कि, तुम मेरे साथ पानी पूरी खाओ.”

उसकी इस बात को सुनकर, मैने ना मे अपना सर हिलाया. लेकिन फिर उठ कर खड़े होते हुए, उसे पानी पूरी खाने चलने का इशारा किया. मेरा इशारा पाते ही वो भी खुशी खुशी उठ कर खड़ी हो गयी और फिर हम दोनो पानी पूरी वाले के पास आ गये.

मगर मेरी परेशानी ये थी कि, मैं कभी पानी पूरी नही ख़ाता था. इसलिए मुझे सही से पानी पूरी खाना नही आता था. प्रिया ने पानी पूरी वाले से बड़ी बड़ी पानी पूरी खिलाने को कहा और वो हमको पानी पूरी खिलाने लगा.

उसने मुझे और प्रिया को बड़ी बड़ी पानी पूरी खिलाना सुरू कर दिया. प्रिया ने तो अपनी पानी पूरी को अपने मूह के अंदर रखते ही, उसे मूह मे गुम कर दिया. लेकिन जैसे ही मैने अपनी बड़ी सी पानी पूरी वाले ने मुझे एक बड़ी सी पानी पूरी को मूह मे रखा, वो पानी पूरी मूह मे रखते ही, फुट गयी और मेरे मूह के साथ साथ मेरी टी-शर्ट को भी गीला कर गयी.

मगर इस से भी ज़्यादा खराब हालत मेरे मूह की थी. क्योकि पानी पूरी का पानी बहुत ही तीखा था. उसके पानी से मेरा मूह जलने लगा और मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मेरी हालत देख कर, प्रिया हँसने लगी और उसने मुझसे कहा.

प्रिया बोली “हे, ये क्या कर रहे हो. पानी पूरी के पानी से अपनी जीभ को नहालो, अपने कपड़ो को क्यो नहला रहे हो.”

मैने अपनी आखों और मूह को सॉफ करके, सिसियाते हुए प्रिया से कहा.

मैं बोला “मैं तो पहले ही कह रहा था कि, मैं पानी पूरी नही ख़ाता हूँ. उपर से इसका पानी इतना तीखा है कि, मेरा मूह ही जल गया.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने हंसते हुए पानी पूरी वाले से कहा.

प्रिया बोली “भैया, इसकी पानी पूरी मे तीखा कम करना और इसे ज़्यादा बड़ी पानी पूरी मत देना. वरना ये अपने बाकी के कपड़ो को भी नहला देगा.”

प्रिया की बात सुनकर, पानी पूरी वाला भी हँसने लगा. उसने मेरे लिए अलग से छोटी छोटी पानी पूरी निकली और फिर कम तीखा पानी मे मुझे पानी पूरी खिलाने लगा. मगर मेरे लिए उन्हे भी खा पाना मुश्किल हो रहा था.

जैसे तैसे प्रिया की ज़बरदस्ती की वजह से मैने 3 पानी पूरी खा ली. मगर इसके बाद पानी पूरी खाने से मैने हार मान ली. तब प्रिया ने अपनी एक पानी पूरी अपने हाथों से मुझे खिला दी.

मैं जितनी देर मे सिर्फ़ 4 पानी पूरी खा पाया था. उतनी देर मे प्रिया ने 8-10 पानी पूरी खा ली थी. वो तो मुझे ऑर पानी पूरी खिलाना चाहती थी. लेकिन अब मैने पानी पूरी खाने से पूरी तरह से हार मान ली थी.

अब मैं सिर्फ़ प्रिया को पानी पूरी खाते देख रहा था. प्रिया ने एक दो पानी पूरी ऑर खाई और फिर पानी पूरी वाले के पैसे चुका कर, मुझसे कहा.

प्रिया बोली “हमारा यहाँ पर घूमना और तुम्हारा आराम करना बहुत हो चुका है. अब हमे यहाँ से चलना चाहिए.”

प्रिया की इस बात से समझ मे आ रहा था कि, वो अभी कहीं ऑर भी जाना चाहती है. इसलिए मैने उसे इस बात से रोकते हुए कहा.

मैं बोला “ठीक है, लेकिन अब मैं कही जाने वाला नही हूँ. अब हम यहाँ से सीधे बरखा दीदी के घर ही चलेगे.”

प्रिया बोली “अरे नही, अभी मुझे थोड़ी सी शॉपिंग करनी है. अभी 2 बजा है और हमने बरखा दीदी को 3 बजे का समय दिया है. इतनी देर मे मेरी शॉपिंग हो जाएगी.”

मैं प्रिया को शॉपिंग करने से मना करना चाहता था. लेकिन फिर मेरे दिमाग़ मे उसे बर्थ’डे गिफ्ट देने की बात आई तो, मैं भी शॉपिंग के लिए तैयार हो गया. मैने बाइक निकाली और फिर हम दोनो पास के ही एक शॉपिंग माल मे पहुच गये.

लेकिन वहाँ पर पहुचने के बाद, जब मैने प्रिया को ताबड तोड़ शॉपिंग करते देखा तो, मेरा दिमाग़ ही चकरा गया. मेरी समझ मे ही नही आ रहा था कि, वो इतनी शॉपिंग किस के लिए कर रही है.

मैं तो अपनी सारी शॉपिंग कल ही पूरी कर चुका था और अभी मुझे सिर्फ़ प्रिया के लिए ही कोई गिफ्ट खरीदना था. लेकिन उसकी इस शॉपिंग को देख कर, मैं वो गिफ्ट खरीदना भी भूल गया था.

वो शॉपिंग करने मे मगन थी और मैं उसकी इस शॉपिंग को देखने मे मगन था. अचानक ही शॉपिंग करते करते, उसे मेरी जेब का ख़याल आया और उसने कुछ झिझकते हुए मुझसे कहा.

प्रिया बोली “मुझे लगता है कि, मैने शॉपिंग कुछ ज़्यादा की कर ली है और इस शॉपिंग के लिए तुम्हारे दस हज़ार रुपये कम पड़ जाएगे.”

प्रिया की इस हरकत पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “तुम्हे मेरी जेब का ख़याल बड़ी जल्दी आ गया. लेकिन फिकर मत करो, तुम जितनी चाहो, उतनी शॉपिंग कर सकती हो. मेरे पास क्रेडिट कार्ड है.”

मेरी ये बात सुनकर, प्रिया फिर से अपनी बाकी की शॉपिंग मे बिज़ी हो गयी. इस बीच मैने भी प्रिया के लिए लोंग स्कर्ट टॉप खरीद लिया. प्रिया सारी शॉपिंग जल्दी जल्दी ही कर रही थी. फिर भी हमे शॉपिंग करते करते 3 बज गये.

अब किसी भी समय बरखा दीदी का कॉल आ सकता था. इसलिए हम बिना देर किए घर के लिए निकल पड़े. रास्ते मे मैने प्रिया से पुछा कि, उसने ये इतनी सारी शॉपिंग किसके लिए की है तो, उसने बताया कि, यहाँ के सब लोगों के लिए की है. इसके बाद, वो मुझे ये बताने लगी कि, उसने किसके लिए क्या खरीदा है. मैं खामोशी से उसकी ये बातें सुनने लगा.

यहाँ के सब लोगों से मुझे कोई ना कोई गिफ्ट ज़रूर मिला था. लेकिन मैं शिखा दीदी की शादी मे उलझे होने और उसके बाद घर जाने की जल्दबाज़ी मे इस बात पर ध्यान ही नही दे पाया था. इसलिए अब प्रिया की इस शॉपिंग से, मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही थी.

ऐसे ही बात करते करते हम बरख दीदी के घर के पास पहुच गये. बरखा दीदी के घर के पहले नेहा का घर था और मुझे दूर से ही नेहा अपने घर के सामने खड़ी किसी लड़के से बात करती नज़र आ गयी.

मैने ये बात प्रिया को बताई तो, उसने भी आगे झाँक कर नेहा के घर की तरफ देखा. फिर उसने मुझसे नेहा के गाड़ी ना रोकने की बात कह कर, सीधे बरखा दीदी के घर चलने को कहा.

उधर नेहा भी हम लोगों को आते हुए देख चुकी थी. इसलिए जैसे ही हम उसके पास से गुजरने को हुए, उसने हमे आवाज़ देकर रोक दिया. उसकी आवाज़ सुनकर, ना चाहते हुए भी मुझे बाइक उसके पास रोकना पड़ गयी.

वो इस समय उसी लड़के से खड़ी होकर, बात कर रही थी. जिसे निक्की ने मेहन्दी के दिन, मुझसे भगाने को कहा था. मेरे उनके पास पहुच कर, बाइक रोकते ही नेहा ने मुझसे कहा.

नेहा बोली “अच्छा हुआ, तुम दिख गये. हमारे यहाँ शिखा दीदी की शादी का एक गिफ्ट रखा है. तुम ऐसा करो, उसे बरखा को दे देना.”

नेहा की इस बात पर मैने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम खुद ही ले जाकर क्यो नही दे देती. ये देखो, मेरी बाइक मे पहले से ही कितना बोझ लटकाए हुए है.”

ये कहते हुए मैने नेहा को प्रिया के हाथ मे थामे बॅग दिखाए. लेकिन इसके साथ ही मेरी नज़र प्रिया पर पड़ी तो, वो बहुत परेशान सी दिख रही थी. मुझे समझते देर नही लगी कि, उसकी परेशानी की वजह हो ना हो, वो ही लड़का है.

इधर मैं प्रिया के बारे मे सोच रहा था. उधर नेहा ने मेरी बात सुनकर, मुझे फटकारते हुए कहा.

नेहा बोली “मेरा काम नही करना है तो, सॉफ मना कर दो. इस तरह बेकार मे बहाने बनाने की ज़रूरत नही है.”

मेरे दिमाग़ मे इस वक्त कुछ ऑर ही चल रहा था. इसलिए नेहा की ये बात सुनते ही, मैने बाइक बंद की और प्रिया से नीचे उतरने को कहा. प्रिया के उतरते ही, मैं भी बाइक से उतरा और बाइक खड़ी करके नेहा के साथ गिफ्ट लेने अंदर जाने लगा.

मगर अंदर जाते जाते, मैं आधी दूर से ही पलट कर वापस प्रिया के पास आ गया. मैं प्रिया के पास वापस आया तो, मैने देखा कि, वो लड़का प्रिया का हाथ पकड़ा है और प्रिया उस से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस कर रही है.

मुझे अंदर से वापस बाहर लौटते देख, नेहा भी मेरे पिछे पिछे भागती हुई आ गयी थी. लेकिन तब तक मैं उस लड़के के सामने पहुच चुका था. उसने मुझे देखते ही, प्रिया का हाथ छोड़ दिया.

मगर तब तक उसके लिए बहुत देर हो चुकी थी. मेरे सीधे हाथ का एक मुक्का उसके जबड़े पर पड़ चुका था. इससे पहले कि, वो मेरे इस वार से संभाल पाता, मैने उल्टे हाथ से उसका गिरेबान पकड़ कर, एक ऑर जबर्जस्त मुक्का उसके जबड़े पर दे मारा.

मेरे इस अचानक के हमले से वो लड़का ही नही, बल्कि प्रिया और नेहा भी हड़बड़ा गयी थी. किसी को भी समझ मे नही आ रहा था कि, अचानक ये क्या हो गया. जब तक उनको ये बात समझ मे आई, तब तक वो लड़का ज़मीन की धूल चाट चुका था. मैं उस लड़के पर लात जूतों की बरसात किए जा रहा था और उस से कहता जा रहा था.

मैं बोला “इसका हाथ पकड़ने की, तेरी हिम्मत कैसे हुई. आज मैं तेरी एक एक हड्डी तोड़ कर रख दूँगा.”

वो लड़का मुझसे किसी भी तरह से कमजोर नही था. लेकिन इस समय मेरे अंदर इतना गुस्सा भरा हुआ था कि, वो मेरे सामने टिक ही नही पा रहा था. इधर प्रिया ने जब ये नज़ारा देखा तो, उसके हाथ मे थामे बॅग छूट कर ज़मीन पर गिर गये और वो आकर मुझे उसको मारने से रोकने लगी.

ये ही हाल नेहा का भी था. वो भी मुझे रोकने की कोसिस कर रही थी. मगर वो दोनो मिल कर भी मुझे रोक नही पा रही थी. उधर भीड़ जमा हो गयी थी और अब वहाँ जमा लोगों ने आकर मुझे पकड़ लिया था और उस लड़के को उठा कर खड़ा कर दिया था.

मैं अभी भी सबकी पकड़ से छूटने की कोशिस कर रहा था और अब वो लड़का भी खुद को लोगों से छुड़ा कर मेरी तरफ झपटने की कोसिस कर रहा था. तभी कहीं से बरखा दीदी भाग कर आ गयी.

वो मुझे शांत करते हुए पुच्छने लगी कि, क्या हुआ है. तो मैने गुस्से मे खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.

मैं बोला “ये साला, प्रिया का हाथ पकड़ रहा था. छोड़ो मुझे, आज मुझे इसका हाथ ही उखाड़ के रख देना है.”

उधर वो लड़का भी कम गुस्से मे नही था. उसने भी मुझ पर भड़कते हुए कहा.

लड़का बोला “तू क्या मेरा हाथ तोड़ेगा. आज तो मैं तेरा सर काटुगा. तू जानता नही, तूने किस से पंगा ले लिया है.”

अभी वो लड़का इतना ही बोल पाया था कि, तभी उसके चेहरे पर एक ऑर जोरदार घुसा पड़ा. ये घुसा मारने वाला मेहुल था. उसने उस लड़के का गिरेबान पकड़ा और उसे लोगों से छुड़ाते हुए, मेरे सामने लाकर खड़ा करते हुए कहा.

मेहुल बोला “तू अभी इसका सर काटने की बात कर रहा था ना. तू यदि एक बाप की औलाद है तो, तू सिर्फ़ इसको हाथ लगा कर ही दिखा दे और यदि मैं अपने बाप की औलाद हुआ तो, तेरे हाथ लगाते ही, तुझे खड़े खड़े ही, इस ज़मीन के अंदर गाढ कर रख दूँगा.”

ये कहते हुए मेहुल ने उस लड़के का गिरेबान छोड़ते हुए, उसे मेरी तरफ धकेल दिया. मगर मेहुल की गुस्से मे लाल आँखें और उसका डील डौल देख कर, उस लड़के की, मुझे हाथ लगाने की हिम्मत ही ना हुई.

वो अपने कपड़े सही करते हुए भीड़ से निकल कर बाहर भाग गया. लेकिन हमसे थोड़ी दूर जाते ही, उसने पलट कर, हमारी तरफ देखते हुए कहा.

लड़का बोला “तुम लोग नही जानते, तुम लोगों ने अपनी मौत को दावत दी है. यदि मैने तुम लोगों की यहाँ लाशें ना बिछ्वा दी तो, मैं भी खालिद का भाई, सलीम नही.”

उस लड़के की ये धमकी सुनते ही, वहाँ जमा लोग, वहाँ से ऐसे गायब होने लगे. जैसे वो लोग वाहा थे ही नही. लेकिन मेहुल ने उसकी इस धमकी की परवाह ना करते हुए, उस से कहा.

मेहुल बोला “जा बे, तुझे जिसको लेकर, आना है, ले आ. अभी एक घंटे हम यही है. यदि इस एक घंटे मे तू यहाँ किसी को लेकर आया तो, उसका भी वो ही हाल होगा, जो तेरा हुआ है.”

मेहुल की ये बात सुनकर, वो लड़का भी मेहुल को, यहाँ से ना भागने की बात कह कर चला गया. लेकिन उस लड़के की धमकी की वजह से हमारे पास खड़े सारे लोग भी नौ दो ग्यारह हो चुके थे. अब हम लोगों के सिवा वहाँ कोई नही बचा था.

लेकिन उस लड़के की धमकी से, मुझे और मेहुल को छोड़ कर बाकी सब के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गयी थी. तभी राज और रिया भी वही आ गये. वो पुच्छने लगे कि, यहाँ क्या हुआ है तो, नेहा ने उनकी इस बात का जबाब देते हुए कहा.

नेहा बोली “हुआ नही है, लेकिन यदि इन दोनो को जल्दी यहाँ से अलग नही किया गया तो, यहाँ बहुत जल्दी खून ख़राबा होने वाला है. इन दोनो ने खालिद के भाई सलीम को बहुत बुरी तरह से मारा है.”

नेहा की ये बात सुनते ही, राज और रिया के भी पसीने छूट गये. उनके चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर, अब मेरी और मेहुल की समझ मे भी, ये बात आ चुकी थी कि, हमने किसी बहुत बड़े गुंडे के भाई से पंगा ले लिया है और इसका नतीजा हमे बहुत महगा पड़ने वाला है.

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09-10-2020, 06:04 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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इधर नेहा अपनी बात कह कर चुप हुई थी की, उधर प्रिया जाकर राज से लिपट कर रोने लगी. राज को उसके रोने की वजह समझ मे नही आ रही थी. लेकिन जैसे ही नेहा ने उसे प्रिया के रोने की वजह बताई तो, राज का भी खून खौल उठा और उसने गुस्से मे भड़कते हुए कहा.

राज बोला “तुम लोगों, ने उस कुत्ते को ठीक मारा है. उसे तो मैं अपने तरीके सबक सिखाउन्गा. लेकिन तुम लोग उसको कम मत समझो. वो कमीना किसी मामूली गुंडे का नही, बल्कि यहाँ के डॉन खालिद का भाई है. इसलिए तुम लोगों का यहाँ से जल्दी निकल जाना ही सही होगा. वरना हम सब मुसीबत मे फँस सकते है.”

राज इस समय दिमाग़ से काम ले रहा था. लेकिन मेरा दिमाग़ इस समय छुट्टी पर गया हुआ था. इसलिए मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.

मैं बोला “नही, उस से और उसके भाई से मेरा जो उखड़ते बने, वो उखाड़ ले. लेकिन मैं ऐसे पीठ दिखा कर नही जा सकता.”

मेरी बात सुनकर, प्रिया ने मुझे समझाने की कोसिस करते हुए कहा.

प्रिया बोली “भैया सही कह रहे है. तुम्हारा यहाँ रुकना ख़तरे से खाली नही है. फिर तुम्हारी फ्लाइट का समय भी हो रहा है. अच्छा यही होगा कि, तुम इन सब बातों को भूल कर, सीधे एरपोर्ट निकल जाओ.”

प्रिया की इस बात को सुनकर, मुझे गुस्सा आ गया और मैने उस पर चिल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम तो अपना मूह बंद ही रखो. यदि तुमने ये बात हम लोगों से छुपाई नही होती तो, आज उसकी इतनी हिम्मत नही होती. अब मुझे क्या करना है और क्या नही करना है. मैं कम से कम तुमसे तो सुनना नही चाहता.”

मैने अपनी ये बात इतनी बुरी तरह से की थी कि, मेरी ये बात सुनते ही प्रिया का मुँह छोटा सा हो गया. मगर मेरी इस बात पर बरखा ने मुझ पर भड़कते हुए कहा.

बरखा बोली “तुम्हे प्रिया पर इस तरह भड़कने की ज़रूरत नही है. उसने कोई ग़लत बात नही कही है और अब तुमको भी कुछ करने की ज़रूरत नही है. मैं जानती हूँ कि, मुझे इस मामले को कैसे निपटाना है. इसलिए अब तुम बिना कोई बहस किए, सीधे घर के अंदर चलो.”

ये कहते हुए बरखा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खिचते हुए घर लाने लगी. हमारे पिछे पिछे बाकी सब भी आने लगे. घर मे आते ही, बरखा ने सबसे पहले दरवाजा बंद किया और उसके बाद अजय को कॉल लगा कर सारी बातें बताई.

अजय ने सारी बातें सुनने के बाद, बरखा से कहा कि, घबराओ मत, किसी को कुछ नही होगा. बस मेरे आने तक तुम किसी को बाहर नही निकालने देना. अजय से बात करने के बाद, बरखा ने दुर्जन को भी कॉल करके सारी बातें बताई.

दुर्जन ने भी उस से यही कहा कि, वो अभी आ रहा है. तब तक किसी को बाहर नही निकलने देना. दुर्जन से बात हो जाने के बाद, हम सब गहरी सोच मे पड़ गये. आने वाले पल की कल्पना कर कर के, सभी घबरा रहे थे.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया, बरखा ने जाकर देखा तो, वो दुर्जन था. बरखा ने दरवाजा खोला और उसे सारी बातें एक बार फिर बताने लगी. जिसे सुन ने के बाद, दुर्जन ने उसे समझाते हुए कहा.

दुर्जन बोला “देखो, खालिद मुझे अच्छे से जनता है. लेकिन इस समय खालिद का सामना करने की हिम्मत किसी मे नही है. फिर भी मैं अपनी तरफ से उसे समझाने की कोसिस करता हूँ. वो तुम्हे एक दो थप्पड़ मारे तो, चुप चाप सह लेना. इस बात को यही पर ख़तम करने का बस ये ही एक रास्ता है.”

मुझे दुर्जन की ये बात पसंद नही आई थी. लेकिन सबकी भलाई के लिए मैं ये भी करने को तैयार हो गया. तभी बाहर गाड़ियों का शोर सुनाई दिया. हम ने बाहर देखा तो, 3-4 गाड़ियों से लड़के उतर रहे थे. उनके हाथों मे हथियार भी थे.

फिर एक गाड़ी मे से पठानी सूट पहने एक लंबा चौड़ा लड़का उतरा. लेकिन दुर्जन के मुक़ाबले मे उसका शरीर कुछ भी नही था. उसे देखते ही दुर्जन ने कहा.

दुर्जन बोला “ये ही खालिद है. तुम लोग यहीं रूको, मैं उस से बात करके आता हूँ.”

उधर खालिद के गाड़ी से उतरते ही सलीम भी गाड़ी से उतर कर बाहर आ गया. उसने हमारे घर की तरफ इशारा किया और खालिद अपने लड़को के साथ हमारे घर की तरफ बढ़ने लगा. इसी बीच दुर्जन भी घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

अभी दुर्जन मेन गेट तक पहुच भी नही पाया था कि, तभी मेन गेट पर सरसराती हुई आरू की BMW कार आकर रुकी. आरू की कार को देखते ही बरखा दीदी ने अपना सर पीटते हुए कहा.

बरखा बोली “ओह्ह शिट, मैं ये कैसे भूल गयी कि, आरू लोग यहाँ के लिए निकल चुकी है और वो कभी भी यहाँ आ सकती है.”

लेकिन उनकी ये बात सुनते ही, मैं भी किसी अनहोनी से काँप गया. अब मेरे लिए खुद को अंदर रोक पाना मुश्किल हो गया और मैं बाहर जाने के लिए बढ़ा. लेकिन तभी बरखा दीदी ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा.

बरखा बोली “ये क्या कर रहे हो. तुम से कहा ना कि, तुम बाहर नही जाओगे.”

मैं बोला “बहनों की हिफ़ाज़त के लिए भाई होते है. उन्हे किसी मुसीबत मे डालने के लिए नही होते. आज यदि मेरी वजह से उन्हे कोई आँच आ गयी तो, मैं अपने आपको जिंदगी भर माफ़ नही कर पाउन्गा.”

ये कहते हुए मैने बरखा दीदी के हाथ को झटका और बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. मेरे पिछे पिछे मेहुल, राज और बाकी लोग भी आने लगे. वही मुझे दरवाजे से बाहर निकलते देख, सलीम की नज़र मुझ पर पड़ गयी.

वो मेरी तरफ इशारा करते हुए खालिद से कुछ कह रहा था और वो हमारे घर की तरफ बढ़े चले आ रहे थे. तभी घर के सामने खड़ी कार का दरवाजा खोल कर सीरू दीदी बाहर आई.

उन्हे देखते ही खालिद के हमारी तरफ बढ़ते कदम रुक गये और उसने अपने लड़को को भी रुकने का इशारा किया. सीरू दीदी का ध्यान खालिद की तरफ नही था. वो कार मे बैठी आरू लोगों से कुछ बात कर रही थी.

इसके बाद, एक एक करके कार से सेलू, आरू, निक्की और हेतल बाहर निकली. तब तक मैं भी उनके पास पहुच चुका था. मैने उसके पास पहुचते ही सीरू दीदी से कहा.

मैं बोला “आप लोग जल्दी से अंदर चलिए. आप लोगों का यहाँ रुकना ठीक नही है.”

मेरी ये बात सुनकर, सीरू दीदी ने अपनी आदत के अनुसार मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

सीरत बोली “क्यो तुम्हे हम लोगों के अंदर जाने की इतनी जल्दी क्या है. कहीं हमारी कार चोरी करने का इरादा तो नही है.”

सीरू दीदी की ये बात सुनते ही मेरा दिमाग़ घूम गया. मुझे कभी उनके किसी मज़ाक का बुरा नही लगा था. लेकिन इस समय के माहौल मे मुझे उनका ये मज़ाक करना ज़रा भी पसंद नही आया और मैने पहली बार गुस्से मे उन पर चिल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “अपनी बेकार की बकवास बंद कीजिए. आपसे मैने कहा ना कि, आप लोग फ़ौरन अंदर जाइए.”

मुझे इस तरह गुस्सा करते देख, सीरू दीदी भी हैरान रह गयी. उन्हे मेरा ये बर्ताव कुछ अजीब लगा और वो यहाँ वहाँ देखने लगी. तभी उनकी नज़र खालिद पर पड़ी और मुझे अनदेखा कर उसकी तरफ बढ़ने लगी.

उन्हे खालिद की तरफ बढ़ते देख, मैं ऑर भी ज़्यादा घबरा गया. मैने उनका हाथ पकड़ कर, उनको रोकते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आप उधर मत जाइए, वो यहाँ मुझे मारने ही आया है. आप सब लोग प्लीज़ अंदर चली जाइए.”

मेरी बात सुनते ही सीरू दीदी ने मुझे हैरानी से देखा और फिर मेरा हाथ पकड़ कर खिचते हुए, खालिद के पास ले आई. उनकी इस हरकत ने तो, मेरी जान ही निकाल कर रख दी. मुझे अपनी कोई परवाह नही थी. मुझे परवाह थी तो, सिर्फ़ उनकी थी.

लेकिन मेरे पास अब करने को कुछ नही बचा था. मैं खालिद के सामने खड़ा था. मगर उसने मुझे देखा तक नही. उसकी नज़र सिर्फ़ सीरू दीदी पर टिकी हुई थी और सीरू दीदी के उसके पास पहुचते ही, उसने सीरू दीदी से कहा.

खालिद बोला “छुटकी तू यहाँ क्या कर रही है.”

खालिद की बात सुनकर, सीरू दीदी ने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.

सीरत बोली “भाई जान, मैं छुटकी नही हूँ. मेरे बाद दो ऑर भी छोटी है.”

सीरू दीदी की इस बात पर खालिद ने पहली बार हंसते हुए कहा.

खालिद बोला “मेरे लिए तो, तू ही छुटकी है. अब ये बता कि, तू यहाँ क्या कर रही है.”

खालिद की बात सुनकर, सीरू दीदी ने शिखा दीदी के घर की तरफ इशारा करते हुए कहा.

सीरत बोली “अरे ये भैया का ससुराल है. हम सब यहीं पर आए है.”

सीरू दीदी की ये बात सुनते ही, खालिद ने हैरानी से कहा.

खालिद बोला “क्या ये अमन का ससुराल है. लेकिन वो तो…”

अभी खालिद अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था कि, सीरू दीदी ने उसकी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

सीरत बोली “अरे नही, ये तो अजय भैया का ससुराल है. उनका ससुराल तो वही है, जहाँ होना चाहिए था.”

ये कह कर सीरू दीदी खिलखिलाने लगी. उनके साथ साथ खालिद भी हंस पड़ा और फिर हंसते हुए सीरू दीदी से कहा.

खालिद बोला “दोनो कमिनो ने शादी कर ली और मुझे बताया तक नही. आने दो उनको, यही टपका डालुगा.”

ये कहते हुए, खालिद ने रिवॉल्वार निकाल ली. उसके हाथ मे रिवॉल्वार देखते ही, सीरू दीदी गुस्से मे उसकी तरफ देखने लगी. उसने सीरू दीदी को गुस्से मे देखा तो, फ़ौरन रिवॉल्वार जेब मे रख कर, अपने कान पर हाथ रखते हुए कहा.

खालिद बोला “सॉरी मेरी माँ, मैं भूल गया था कि, तुझे ये सब पसंद नही है.”

खालिद का ये रूप देख, कर सीरू दीदी के चेहरे पर फिर मुस्कुराहट आ गयी और उन्हो ने खालिद से कहा.

सीरत बोली “वो सब तो ठीक है. लेकिन आप यहाँ क्या कर रहे है.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, खालिद ने बात बदलते हुए कहा.

खालिद बोला “मैं यहाँ किसी काम से आया था. लेकिन तुझे देख कर रुक गया.”

अभी खालिद की बात पूरी भी नही हो पाई थी कि, तभी हम से कुछ दूरी पर अमन की कार आकर रुकी. उसे देखते ही खालिद ने सीरू से कहा.

खालिद बोला “लो ये दोनो भी आ गये. अब तू ही मुझे इनसे बचा, वरना ये दोनो शादी मे शामिल ना होने की बात को लेकर मुझे कच्चा चबा जाएगे.”

खालिद की बात सुनते ही, सीरू दीदी ने हैरानी से कहा.

सीरत बोली “अरे अभी तो आप कह रहे थे कि, इन्हो ने आपको शादी का बताया ही नही है. फिर ये आपको क्यो कुछ कहेगे.”

खालिद बोला “मुझे शादी का पता था. लेकिन मुझे अचानक दुबई जाना पड़ गया और मैं नही आ पाया. मैं तो बस तुझे मामू बना रहा था. मुझे क्या पता था कि, ये दोनो भी यहाँ आ धम्केगे.”

खालिद की ये बात सुनते ही, सीरू दीदी ने आँख दिखाते हुए कहा.

सीरत बोली “अभी आपने मुझे मामू बनाया ना. अब आप देखो मैं आपका मामू कैसे बनाती हूँ.”

ये बोल कर, सीरू दीदी अमन और अजय की तरफ देखने लगी. अमन और अजय कार से उतरते ही तेज़ी से हमारी तरफ चले आ रहे थे. उनके हमारे पास पहुचते ही, सीरू दीदी ने उनसे कहा.

सीरत बोली “भैया, खालिद भाई जान अभी आप दोनो के बारे मे पता नही क्या क्या बोले जा रहे थे. ये कह रहे थे कि, मैं इस लिए तेरे भाइयों की शादी मे नही आया, क्योकि तेरे दोनो भाई जेब-कतरे है.”

“एक अपने कारखाने मे रद्दी कपड़े बना कर लोगों की जेब कतरता है तो, दूसरा मरीजों को हॉस्पिटल मे अच्छी शकल के सपने दिखा कर उसकी जेब काट लेता है. मैं तो एक डॉन हूँ और भला एक डॉन का जेबकतरों से क्या मुकाबला है.”

सीरू दीदी की ये बात सुनते ही खालिद ने उन्हे खिसियाते हुए देखा और वो पिछे हटने को हुआ. मगर तब तक अमन ने आकर उसे पकड़ लिया और अजय ने उसके पेट मे एक जोरदार मुक्कों की बरसात कर दी. मुक्के की मार खाते ही, खालिद ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

खालिद बोला “अबे तुम दोनो, किस की बातों मे आ रहे हो. क्या तुम दोनो को इसकी आग लगा कर, तमाशा देखने की आदत का पता नही है. मैने इस से ज़रा सा मज़ाक किया था. ये उसी का मुझसे बदला निकाल रही है.”

खालिद की ये बात सुनते ही, दोनो को उसकी बात का यकीन हो गया और उन्हो ने उसको छोड़ दिया. खालिद अपने कपड़े सही करने लगा. तभी अजय ने उस से कहा.

अजय बोला “ये मैं क्या सुन रहा हूँ. तू यहाँ किसका गेम बजाने आया था.”

अजय की बात सुनकर, खालिद ने थोड़ा शर्मिंदा सा होते हुए कहा.

खालिद बोला “यार, मुझे कुछ भी नही पता. मैने सलीम को खून से सना देखा तो, मेरा दिमाग़ सरक गया और मैं उस लड़के को सबक सिखाने यहाँ आ गया. मुझे ज़रा भी नही पता था कि, ये मुझे किसके घर लेकर जा रहा है.”

खालिद की बात सुनकर, अजय ने बरखा और आरू लोगों को पास आने का इशारा किया. इसके बाद, उसने सलीम को अपने पास बुला कर, उसके कंधे पर हाथ रख कर, उस से कहा.

अजय बोला “मैं तुम्हारा कौन हूँ.”

सलीम ने सर झुका कर अजय की बात का जबाब देते हुए कहा.

सलीम बोला “जी, आप मेरे भाई जान है.”

इसके बाद अजय ने सीरू दीदी लोगों की तरफ इशारा करते हुए कहा.

अजय बोला “इन सबको पहचानते हो, ये कौन है.”

सलीम बोला “जी नही भाई जान, मैं बस सीरू बाजी को जानता हूँ.”

सलीम की इस बात के जबाब मे अजय ने उसे सेलू, आरू, हेतल और निक्की का परिचय करवाते हुए कहा.

अजय बोला “सीरू की तरह ये भी मेरी बहन है और जिस लड़की को तुमने परेशान किया था, वो निक्की की सबसे खास सहेली है और उसके लिए बहन की तरह ही है.”

अजय की इस बात पर सलीम ने शर्मिंदा होते हुए कहा.

सलीम बोला “मैने सिर्फ़ निक्की बाजी को देखा था. लेकिन खुदा कसम मुझे नही पता था कि, वो मेरी बाजी है, वरना मैं ऐसी हरकत कभी नही करता.”

सलीम की इस बात को सुनकर, अजय ने मुझे अपने पास बुलाया और फिर सलीम को समझाते हुए कहा.

अजय बोला “कोई बात नही, अंजाने मे सबसे ग़लती हो जाती है. अब इस लड़के से भी मिल लो. ये तुम्हारी भाभी का भाई है. अब यदि तुम्हारे मन मे इसके लिए कोई गुस्सा हो तो, उसे हमारे सामने ही निकाल लो.”

सलीम बोला “नही भाई जान, मेरे मन मे अब किसी बात को लेकर कोई मैल नही है. मैं अपनी ग़लती के लिए शर्मिंदा हूँ.”

सलीम की बात सुनने के बाद, अजय ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

अजय बोला “सलीम मेरे छोटे भाई की तरह है. यदि तुम्हारे मन मे इसके लिए कोई गुस्सा हो तो, तुम भी अभी अपना गुस्सा निकाल सकते हो.”

अजय की बात सुनकर, मैने भी अपना सर ना मे हिला दिया. जिसके बाद अजय ने हम दोनो को गले मिलने को कहा तो, हम आपस मे गले मिले. इसके बाद सलीम ने खुद से ही आगे बढ़ कर, प्रिया से भी माफी माँग ली.

तभी हमे एक कार और आती दिखी. सब कार की तरफ देखने लगे. कार के रुकते ही, कार मे से निशा भाभी और शिखा दीदी उतरी. जिन्हे देखते ही अजय ने खालिद को शिखा दीदी का परिचय दिया. जिसे सुनते ही खालिद ने कहा.

खालिद बोला “आज तो लगता है, मेरी शामत ही आने वाली है. अब दोनो भाभी जान भी यहीं पर आ रही है.”

मुझे खालिद की ये बात कुछ अजीब सी लगी. क्योकि अजय ने खालिद को सिर्फ़ शिखा दीदी का परिचय दिया था. मगर खालिद को दो भाभी वाली बात से ये समझ मे आ रहा था कि, वो शायद निशा भाभी पहले से जानता है.

निशा भाभी तो, मुस्कुराते हुए हमारी तरफ आ रही थी. लेकिन शिखा दीदी के चेहरे पर कुछ परेशानी झलक रही थी. उनके मन मे शायद मुझे लेकर कोई डर समाया हुआ था. वो बहुत घबराई हुई सी लग रही थी और उन्हो ने हमारे पास आते ही खालिद के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “भाई जान, मेरा छोटा भाई अभी बच्चा ही है. आप इसके लिए अपने मन मे कोई मैल मत रखिएगा. इसने अंजाने मे आपके भाई पर हाथ उठा दिया था. इसकी ग़लती के लिए मैं आपसे माफी मांगती हूँ.”

शिखा दीदी का अपने लिए इतना प्यार देख कर, मेरी आँखें छल छला गयी. वही खालिद ने उनको अपने सामने हाथ जोड़ा देखा तो, फ़ौरन उनके पास आते हुए कहा.

खालिद बोला “भाभी जान, आप मुझसे माफी माँग कर, मेरे गुनाहों का बोझ मत बढ़ाइए. मैं बुरा ही सही लेकिन इन दोनो का जिगरी हूँ.”

अभी खालिद की ये बात पूरी हो पाती कि, तभी हम सबको किसी की आवाज़ ने चौका दिया.

आवाज़ “अछा बेटा, तीन से अब दो हो गये. लगता है तेरा यही पर एनकाउंटर करना पड़ेगा.”

ये आवाज़ सुनते ही, हम सबने पलट कर देखा तो, सामने एस.पी की वर्दी मे एक लंबा सा आदमी खड़ा था. ये एस.पी. कोई और नही, अजय का सूरत वाला दोस्त अभय था. उसे देखते ही अमन, अजय और निशा की हँसी छूट गयी. लेकिन खालिद ने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.

खालिद बोला “साले तू मेरा एनकाउंटर बाद मे करेगा, उस से पहले मैं तेरे नाम की सुपारी निकाल दूँगा.”

ये कहते हुए खालिद ने उसे गले से लगा लिया. पोलीस और मुजरिम का ऐसा दोस्ताना मैं पहली बार देख रहा था. इस सब मे मैं दुर्जन को तो भूल ही गया था. वो भी हैरानी से इस सब नज़ारे को देख रहा था.

जब उसने सब कुछ ठीक होते देखा तो, वो शिखा दीदी को बता कर वहाँ से चला गया. खालिद ने भी अपने लड़को को सलीम के साथ वापस भेज दिया. उन लोगों के जाने के बाद, शिखा दीदी ने सब को अपने घर चलने को कहा.

जिसके बाद सब शिखा दीदी के घर आ गये. शिखा दीदी के घर पहुचते ही अजय ने टाइम देखा तो, अब 5 बज गये थे. ये देखते ही अजय ने मुझसे कहा.

अजय बोला “तुम्हारी आज की फ्लाइट का समय तो निकल चुका है. अब तो तुम्हे कल की ही फ्लाइट मिल सकेगी.”

मैं बोला “कोई बात नही. हम लोग कल चले जाएगे.”

अजय बोला “ठीक है, मैं कल की टिकेट करवा देता हूँ. लेकिन तुम अपने घर मे बता दो कि, तुम लोग आज नही आ पा रहे हो. वरना वो लोग बेकार मे परेशान होते रहेगे.”

अजय की ये बात सुनते ही, मेहुल ने उस से कहा.

मेहुल बोला “मैने ये बात घर मे बता दी है कि, पापा की एक रिपोर्ट ना मिल पाने की वजह से हम लोगों को यहाँ आज ऑर रुकना पड़ रहा है.”

मेहुल की ये बात सुनते ही, अजय मेहुल के दिमाग़ की तारीफ करने लगा. फिर चाय पानी करने के बाद, बहुत देर तक बातों का दौर चलता रहा. फिर 7 बजे के बाद, एक एक करके सब वापस जाने लगे.

पहले अभय और उसके बाद खालिद गया. फिर अमन, निशा भाभी, अजय और शिखा दीदी भी चले गये. उनके जाने के ही कुछ देर बाद सीरू दीदी लोग भी चली गयी. उनके बाद, रिया, राज और मेहुल भी घर लौट गये.

मैने दिन का खाना नही खाया था और रात के खाने का समय हो रहा था. इसलिए मैने राज लोगों के साथ जाने से मना कर दिया था. मेरे साथ साथ प्रिया भी यहीं रुक गयी थी.

लेकिन मेरे उस पर चिल्ला देने की वजह से, वो मुझसे कुछ नाराज़ थी और मुझसे बात नही कर रही थी. उसकी ये नाराज़गी ग़लत नही थी. मगर अभी मेरे लिए प्रिया की नाराज़गी दूर करने से ज़्यादा ज़रूरी काम, कीर्ति को आज अपने ना आ पाने की वजह को समझाना था.

इसलिए मैं प्रिया को बरखा के पास छोड़ कर, उपर आकर कीर्ति को कॉल लगाने लगा. लेकिन कीर्ति ने मेरा कॉल उठाते ही, मुझ पर भड़कना सुरू कर दिया. उसे यहाँ की सारी बातों का नितिका से पहले ही पता चल चुका था.

वो आज मेरे वापस ना आने की वजह से रोए जा रही थी और मुझे हज़ारों जली कटी बातें सुनती जा रही थी. मैं उसे अपनी बात समझाना चाहता था. लेकिन वो मेरी कोई बात सुनने को तैयार ही नही थी. मैने उस पर, मेरी बात ना सुनने को लेकर थोड़ा सा गुस्सा कर दिया तो, वो मुझ पर ऑर भी ज़्यादा भड़क गयी और मुझे उल्टा सीधा बकते हुए, मेरा कॉल काट दिया.

मैने उसे वापस कॉल लगाया तो, उसके दोनो मोबाइल बंद हो चुके थे. मैने उसके दोनो बंद मोबाइल पर एक एक एसएमएस भेज दिया. ताकि जैसे ही वो अपने मोबाइल चालू करे तो, मुझे इसका पता चल जाए. इतना करने के बाद, वही बेबस सा होकर, बैठ गया और कीर्ति को समझाने के बारे मे सोचने लगा.

तभी प्रिया उपर आ गयी. प्रिया को देख कर, मैने सोचा कि जब तक कीर्ति के मोबाइल चालू नही हो जाते, तब तक क्यो ना, प्रिया की नाराज़गी को ही दूर कर लिया जाए. ये सोच कर, मैं प्रिया से बात करने की कोसिस करने लगा.

लेकिन प्रिया ने मेरी बात को सुन कर भी अनसुना कर दिया और यहाँ वहाँ कुछ ढूँढने लगी. फिर बिना कुछ लिए ही वापस नीचे चली गयी. उसकी इस हरकत से, मुझे इतना तो समझ मे आ गया था कि, वो यहाँ कुछ ढूँढने नही, बल्कि ये देखने आई थी कि, मैं यहाँ अकेला बैठा क्या कर रहा हूँ.

अभी प्रिया नीचे गयी ही थी कि, तभी मेरे मोबाइल पर कीर्ति को भेजे गये एसएमएस की डेलिवरी रिपोर्ट आ गयी. ये देखते ही, मैने फ़ौरन कीर्ति को कॉल लगा दिया. उसके दोनो मोबाइल चालू हो चुके थे. लेकिन मेरे कॉल लगते ही, उसने फिर से अपने मोबाइल बंद कर दिए.

मैने फिर से कीर्ति के दोनो मोबाइल पर एक एक एसएमएस भेजा और उसके मोबाइल चालू करने का इंतजार करने लगा. कुछ देर तक इंतजार करने के बाद, कीर्ति के मोबाइल तो चालू नही हुए, लेकिन प्रिया ज़रूर अपने हाथ मे पानी की बॉटल लिए उपर आ गयी.

उसने एक नज़र मुझे देखा और फिर पानी की बॉटल मेरे पास रखने लगी. मैने उस से कहा कि, मेरे पास पानी की बॉटल पहले से है. मगर उसने मेरी बात को फिर से अनसुना करते हुए, पानी की बॉटल मेरे पास रखी और वापस नीचे चली गयी.

उसके जाने के कुछ देर बाद, फिर कीर्ति के मोबाइल चालू हुए. लेकिन मेरे कॉल लगाते ही उसने फिर से अपने मोबाइल बंद कर दिए. कीर्ति और प्रिया की इस हरकत को देख कर मैं अपना सर पीटे बिना ना रह पाया.

एक तरफ तो दोनो ही मुझसे बात करना चाह रही थी. दूसरी तरफ दोनो ही मुझे अनदेखा करती जा रही थी. खालिद को लेकर मैं जितना परेशान नही था, उस से ज़्यादा अब ये दोनो मुझे परेशान कर रही थी.

कुछ घंटे पहले मैं जहाँ प्रिया के साथ हँसी मज़ाक करते हुए, कीर्ति के पास पहुचने की तैयारी मे लगा था. वही अब मैं उन दोनो की ही नाराज़गी झेलने पर मजबूर था और उनको मनाने की कोसिस मे लगा हुआ था. आज की सुबह मेरे लिए जितनी ज़्यादा उजाले भरी थी. अब रात मुझे उतनी ही ज़्यादा काली होती नज़र आ रही थी.
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09-10-2020, 06:04 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कीर्ति और प्रिया की नाराज़गी को ऐसे ही झेलते झेलते 9 बज गये. फिर बरखा दीदी मुझे खाने के लिए बुलाने आ गयी और मैं उनके साथ नीचे आ गया. नीचे आकर मैने सबके साथ खाना खाया और उसके बाद मैं आंटी से बात करने लगा.

मेरी आंटी से बात चल ही रही थी कि, प्रिया ने मेरे हाथ मे, दिन मे खरीदे हुए गिफ्ट थमा दिए. मैं उसके इस इशारे को समझ गया और मैने उन गिफ्ट मे से आंटी और बरखा दीदी के लिए खरीदे हुए गिफ्ट निकाल कर उनको दे दिए.

मेरा दिया गिफ्ट देख कर, बरखा दीदी तो खुश हो गयी. लेकिन आंटी ने इस गिफ्ट वाली बात पर थोड़ी सी नाराज़गी जताई. मगर फिर बाद मे बरखा दीदी और प्रिया के समझाने पर, उन्हो ने भी खुशी खुशी गिफ्ट ले लिया.

प्रिया ने नेहा और हीतू के लिए खरीदा हुआ गिफ्ट, भी बरखा दीदी को देते हुए, वो गिफ्ट उनसे नेहा और हीतू को देने का कह दिया. इसके बाद मेरी थोड़ी बहुत बातें और हुई और फिर मैं प्रिया के साथ घर के लिए निकल पड़ा.

रास्ते मे मैं प्रिया से बात करने की कोशिस करता रहा. लेकिन वो मेरी हर बात का सिर्फ़ हां या ना मे जबाब दे रही थी. अपने जाने से पहले मुझे उसकी ये उदासी अच्छी नही लग रही थी. लेकिन लाख कोशिशो के बाद भी, मैं उसकी ये नाराज़गी दूर नही कर सका और फिर 10 बजे हम लोग घर पहुच गये.

जब हम लोग घर पहुचे तो, सब खाना खा रहे थे. निक्की भी सबके साथ खाने पर बैठी थी. लेकिन वो खाना नही खा रही थी. प्रिया ने उसे देखा तो सीधे उसके पास जाकर बैठ गयी और उस से उसके वापस आने की वजह पुछ्ने लगी.

तब निक्की ने बताया कि, मोहिनी आंटी को भी कल वापस जाना था. इसलिए अजय भैया ने उनके टिकेट भी पुनीत लोगों के साथ ही करवा दिए थे. वो सीरू दीदी लोगों के साथ यहाँ टिकेट देने आई थी. लेकिन मोहिनी आंटी ने उसे वापस ही नही जाने दिया.

निक्की की ये बात सुनकर, प्रिया निक्की को छोड़ कर मोहिनी आंटी के पास आकर, उनसे कुछ दिन और रुकने की ज़िद करने लगी. मगर मोहिनी आंटी ने उसे किसी तरह से समझा बुझा कर, अपने कल वापस जाने की बात के लिए तैयार ही कर लिया.

सबका खाना खाना हो चुका था. अब सिर्फ़ बातों का दौर चल रहा था और सब आज हुई घटना के बारे मे बात कर रहे थे. राज और रिया, मेरी आज की गयी मार पीट के बारे मे सबको बढ़ चढ़ कर बता रहे थे.

लेकिन इस बात के सुरू होते ही प्रिया ने फिर से मूह फूला लिया था. ये बात निक्की से छुपि ना रह सकी और उसने प्रिया को टोकते हुए कहा.

निक्की बोली “अरे जब सब कुछ ठीक हो गया है तो, फिर तेरा मूह ऐसे क्यो फूला है.”

निक्की की ये बात सुनकर, रिया ने हंसते हुए कहा.

रिया बोली “इसका मूह इसलिए फूला है, क्योकि उस समय इसने पुनीत को वहाँ पर ना रुकने और घर वापस जाने के लिए समझाने की कोशिस की थी. मगर तब पुनीत इतने ज़्यादा गुस्से मे था कि, इसने प्रिया को ही बहुत उल्टा सीधा बोल दिया था.”

ये कह कर, रिया सबको मेरे प्रिया पर गुस्सा करने की बात बताने लगी. जिसे सुनने के बाद, सबने प्रिया को गुस्सा ना करने के लिए समझाने लगे. जिसे देख कर, प्रिया ने अपना मूड सही कर लिया.

लेकिन उसका ये मूड सिर्फ़ सबको दिखाने के लिए सही हुआ था. असल मे तो वो अभी भी मुझसे नाराज़ ही थी और मुझसे कोई बात नही कर रही थी. ये बात निक्की के भी समझ मे आ चुकी थी. इसलिए अब वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.

कल तो मैने प्रिया की नाराज़गी को कीर्ति की मदद से दूर कर दिया था. लेकिन आज तो प्रिया के साथ साथ कीर्ति भी मुझसे नाराज़ थी. ऐसे मे प्रिया को मनाने मे निक्की ही मेरी मदद कर सकती थी.

इसलिए जब मैने निक्की को मेरी तरफ देख कर, मुस्कुराते देखा तो, मैने उसे प्रिया का गुस्सा शांत करने का इशारा किया. लेकिन उसने मेरी इस परेशानी का मज़ा लेते हुए, अपने सर को हिला कर ऐसा करने से सॉफ मना कर दिया.

लेकिन मैं इसके बाद भी, उसे बार बार प्रिया को मनाने के लिए इशारे करता रहा. आख़िर मे उसने मेरी हालत पर तरस खा कर, मुस्कुराते हुए, प्रिया को मनाने मे, मेरी मदद करने के लिए, हां मे सर हिला दिया.

इधर मैं प्रिया को मनाने के लिए निक्की को तैयार करने मे लगा था. उधर प्रिया सबको मेरी तरफ से गिफ्ट देने मे लगी हुई थी. उसने यहा पर मुझसे जुड़े, हर किसी के लिए, कुछ ना कुछ गिफ्ट ज़रूर खरीदा था. लेकिन खुद के लिए, उसने कोई भी गिफ्ट नही खरीदा था.

उसे ये भी नही पता था कि, मैने जो गिफ्ट तृप्ति का कह कर खरीदा है. असल मे वो गिफ्ट उसी के लिए है. मैं उसे ये गिफ्ट घर आकर देना चाहता था. लेकिन उसके पहले ही ये सब लफडा हो गया और वो मुझसे नाराज़ हो गयी.

लेकिन अब उसे सबको गिफ्ट देते देख कर, मुझे भी उसे अपना गिफ्ट देने का यही सही मौका नज़र आया. मैने फ़ौरन ही उन गिफ्ट मे से प्रिया के लिए खरीदा हुआ गिफ्ट निकाला और प्रिया की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “तुमने मेरी तरफ से सबको गिफ्ट दे दिए. लेकिन तुम खुद का गिफ्ट लेना ही भूल गयी. ये गिफ्ट मेरी तरफ से तुम्हारे लिए है.”

प्रिया उस गिफ्ट को देखते ही फ़ौरन पहचान गयी और उसने इतनी देर मे पहली बार मुझसे कोई बात करते हुए कहा.

प्रिया बोली “लेकिन ये गिफ्ट तो तुमने किसी ऑर के लिए खरीदा था.”

प्रिया की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.

मैं बोला “नही, ये गिफ्ट मैने तुम्हारे लिए ही खरीदा था. तुमने मुझसे अपने बर्थ’डे की बात च्छुपाई थी. इसलिए मैने भी तुमसे ये बात छुपाइ कि, मैं ये गिफ्ट तुम्हारे लिए खरीद रहा हूँ. अब हम दोनो का हिसाब बराबर हो गया.”

मेरी ये बात सुनकर प्रिया गुस्से मे मुझे घूर्ने लगी और बाकी सब हँसने लगे. थोड़ी देर तक हम सब इसी बात को लेकर हँसी मज़ाक करते रहे. फिर 11 बजे के बाद, सब एक दूसरे को गुड नाइट बोल कर अपने अपने कमरे मे जाने लगे.

मैने भी सबको गुड नाइट कहा और अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैने कपड़े बदले और फिर कीर्ति को कॉल लगा दिया. लेकिन उसने ना तो मेरा कॉल उठाया और ना ही मुझे कॉल लगाया.

थोड़ी देर तक मैं उसे ऐसे ही कॉल लगाता रहा. लेकिन जब उसने मेरा कॉल नही उठाया तो, फिर मैने उसे मेसेज करके, कॉल उठाने के लिए अपनी कसम दे दी. जिसके बाद फ़ौरन ही उसका कॉल आने लगा.

मैने कॉल उठाते ही, उसे कुछ बोलने का मौका दिए बिना ही, अपनी ग़लती की माफी माँगना सुरू कर दिया. वो मेरी बात को अनसुना कर, मुझ पर गुस्सा करने की कोसिस कर रही थी.

लेकिन मैं उसे कुछ बोलने का मौका ही नही दे रहा था. एक तरह से मैं उसके गुस्सा करने की आदत को, उसको मनाने के लिए इस्तेमाल कर रहा था. मेरे इस तरह लगातार माफी माँगते रहने से पहले तो, चिड़चिड़ाती रही.

मगर उसकी ये चिड़चिड़ाहट ज़्यादा देर तक बनी ना रह सकी और मेरी इन हरकतों से अचानक ही उसकी हँसी छूट गयी. फिर उसने प्यार से आज की बातों को लेकर गुस्सा किया. जिसमे मैने कान पकड़ कर अपनी ग़लती की माफी माँग ली.

जिसके बाद, उसने मुझे इस बात के लिए माफ़ कर दिया और कॉल रखने की बात करने लगी. उसके इतनी जल्दी कॉल रखने की बात सुनकर, मुझे लगा कि, शायद उसकी नाराज़गी अभी मुझसे दूर नही हुई है.

जब मैने ये ही बात उस से कही तो, उसने मुझे कॉल जल्दी रखने की वजह समझाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मैं तुमसे सच मे नाराज़ नही हूँ. लेकिन आज वाणी दीदी लोग आ गयी है. वाणी दीदी मेरे घर ना जाकर यही मौसी के पास रुक गयी है और उनका कोई भरोशा नही है. वो किसी भी समय मेरे कमरे मे आ धमक सकती है. इसलिए आज मैं अभी तुमसे ज़्यादा बात नही कर सकती.”

मुझे भी कीर्ति की ये बात सही लगी. वाणी एक ऐसी लाइलाज बीमारी थी, जिसका इलाज दुनिया के किसी भी डॉक्टर के पास नही था. इसलिए मैने भी कीर्ति से बात करने की कोई ज़िद नही की और उसको गुड नाइट कह कर कॉल रख दिया.

वाणी की वजह से कीर्ति से मेर ज़्यादा बात तो नही हो सकी थी. लेकिन मुझे इस बात की खुशी थी कि, कम से कम अब वो मुझसे नाराज़ नही है. कीर्ति की नाराज़गी तो, मैने दूर कर दी थी. मगर प्रिया की नाराज़गी अभी भी बनी हुई थी.

निक्की ने मुझे इशारे से उसकी नाराज़गी दूर करने की मदद करने का दिलाषा तो, दे दिया था. लेकिन वो इसके लिए क्या कर रही थी, इसके बारे मे मुझे कुछ पता नही था. इसी बात को जानने के लिए मैने निक्की को कॉल लगा दिया. निक्की के कॉल उठाते ही मैने उस से कहा.

मैं बोला “क्या हुआ, आपकी प्रिया से कुछ बात हुई या नही हुई.”

निक्की बोली “मेरी अभी अभी उस से बात हुई. उसने मुझे बताया कि, आपने उस से कितनी बुरी तरह से बात की थी. उसकी बातें सुनकर, जब मुझे इतना ज़्यादा बुरा लगा है. तब तो उसका ये सब सुनकर, उसका नाराज़ होना बनता ही है.”

मैं बोला “मैं जानता हूँ की, ग़लती मेरी ही है. लेकिन उस समय मैं बहुत गुस्से मे था और मुझे प्रिया पर इस बात को लेकर भी गुस्सा आ रहा था कि, उसने ये बात सबसे छुपा कर क्यो रखी. बस इसी गुस्से मे मैं उसको उल्टा सीधा बक गया था.”

“मगर अब मुझे अपनी ग़लती का पछतावा हो रहा है. लेकिन वो मुझसे बात करने को तैयार ही नही है. प्लीज़ आप कैसे भी करके, उसकी ये नाराज़गी दूर कर दीजिए. वरना मेरे यहाँ से जाने के बाद भी, ये बात मुझे परेशान करती रहेगी.”

निक्की बोली “उसको नाराज़ आपने किया है तो, अब मनाना भी आपको ही पड़ेगा. मैं उसकी नाराज़गी दूर करने के लिए कुछ नही कर सकती.”

मैं बोला “मैं मनाउन्गा तो तब ना, जब वो मुझे मनाने का कोई मौका दे. लेकिन वो तो मुझे कुछ बोलने का मौका ही नही दे रही है.”

मेरी बात सुनकर, निक्की ने हंसते हुए कहा.

निक्की बोली “वो ऐसी ही है. एक तो वो कभी किसी से जल्दी नाराज़ ही नही होती है और यदि किसी से नाराज़ हो जाए तो, फिर उसे मनाना इतना आसान नही है.”

मैं बोला “आप उसके जल्दी नाराज़ ना होने की बात कर रही है. लेकिन वो तो मुझसे बात बात पर नाराज़ हो जाती है. वो तो कल भी मुझसे नाराज़ थी.”

ये कह कर मैने उसे कल की प्रिया की नाराज़गी के बारे मे बता दिया. जिसे सुनकर, उसने और भी ज़्यादा ज़ोर से हंसते हुए कहा.

निक्की बोली “तो फिर इसमे मुस्किल क्या है. आज भी उसे ऐसा ही कोई गाना सुना कर मना लीजिए.”

मैं बोला “आपको मेरी बात मज़ाक लग रही है. मैं कोई सिंगर नही हूँ. जो बात बात पर गाना गाता रहूं.”

निक्की बोली “ओके, ओके, अब आप मुझसे झगरा मत काजिए. रुकिये मैं कुछ सोचती हूँ.”

इतना बोल कर निक्की चुप हो गयी. शायद वो इस समय कुछ सोच रही थी. कुछ देर की खामोशी के बाद, फिर उसने कहा.

निक्की बोली “आप एक काम कीजिए. आप अपने कमरे के पास बनी सीडियों से सीधे छत पर आ जाइए. मैं प्रिया को लेकर वही आती हूँ. फिर आपके उपर है कि, आप उसे कैसे मनाते है.”

निक्की की बात सुनकर, मैने इस बात की हामी भरी और कॉल रख दिया. प्रिया का घर मेरा घुमा हुआ नही था. लेकिन सीडियाँ मेरी देखी हुई थी. इसलिए छत तक पहुचने मे मुझे कोई परेशानी नही थी.

निक्की का कॉल रखते ही, मैं फ़ौरन अपने कमरे से बाहर निकला और सीडियाँ चढ़ता हुआ, छत पर पहुच गया. सीडियों पर लाइट जल रही थी. लेकिन छत की लाइट बंद थी और मुझे छत की लाइट चालू करने का कुछ पता नही था.

छत पर इस समय अंधेरा था. लेकिन आसमान पर चमक रहे चाँद तारों और बाहर सड़क पर जल रही लाइट की वजह से, ये अंधेरा इतना गहरा भी नही था कि, इस अंधेरे मे किसी को कुछ दिखाई ही ना दे सके.

इसलिए मैने भी लाइट के बारे मे ज़्यादा नही सोचा और छत पर आकर यहाँ वहाँ टहलते हुए, निक्की लोगों के आने का इंतजार करने लगा. कुछ ही देर मे निक्की और प्रिया वहाँ आ गयी.

निक्की आकर मेरे पास खड़ी हो गयी. लेकिन प्रिया मेरे सामने से होती हुई, छत की बाल्कनी मे जाकर, मेरी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी. निक्की ने एक नज़र प्रिया की तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.

निक्की बोली “अब आप देख क्या रहे है. प्रिया आ गयी है. अब कह दीजिए, जो आपको कहना है.”

निक्की की बात सुनकर, मैं प्रिया के पास जाकर खड़ा हो गया. मगर मेरे उसके पास जाते ही, वो वहाँ से जाने को हुई, लेकिन उसके पहले ही मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी यार, मुझे तुमको इस तरह से नही चिल्लाना चाहिए था. अब मुझे सच मे अपनी उस ग़लती का पछतावा हो रहा है. प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो.”

ये कहते हुए, मैने अपने दोनो कान पकड़ लिए. ये देख कर निक्की ने हंसते हुए, प्रिया से कहा.

निक्की बोली “देख, अब तो इन ने अपने कान भी पकड़ लिए, अब तो इन्हे माफ़ कर दे ना.”

निक्की की बात सुनकर, प्रिया ने पहली बार मुझ पर, अपना गुस्सा जाहिर करते हुए, निक्की से कहा.

प्रिया बोली “तुमको क्या लगता है. क्या मैं सिर्फ़ इतनी छोटी सी बात को लेकर इस से नाराज़ हूँ. ये बात इतनी छोटी नही है, जितनी छोटी तुम समझ रही हो. क्या तुमने कभी ये बात सोच कर देखी है कि, यदि सीरू दीदी समय पर वहाँ ना पहुचि होती तो, वहाँ क्या हो सकता था.”

“तू ज़रा सोच कर देख कि, यदि खालिद, अजय भैया का दोस्त ना निकला होता तो, उस समय वहाँ पर क्या कुछ नही हो गया होता. क्या वो अपने भाई का खून बहाने वाले को, ऐसे ही जाने देता. क्या ये हमारे सामने ऐसे भला चंगा खड़ा रहता.”

प्रिया के ये सवाल सुनकर, निक्की ने उसको समझाते हुए उस से कहा.

निक्की बोली “तेरी सब बातें सही है. लेकिन जब ऐसा कुछ हुआ ही नही तो, तू इस बात को इतना क्यो बढ़ा रही है.”

निक्की की बात सुनकर, प्रिया ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा.

प्रिया बोली “तू भी ये ही समझती है कि, मैं इस बात को बेवजह बढ़ा रही हूँ. क्या तुझे मालूम नही कि, इसकी मोम इसके साथ हुए हादसो की वजह से कितना परेशान थी और जाते जाते भी वो हम लोगों से बस इसका ख़याल रखने का ही जता कर गयी थी.”

“उन्हे हम लोगों पर पूरा विस्वास था कि, हम लोगों के रहते इस पर कोई मुसीबत नही आ सकती. सिर्फ़ इसका ख़याल रखने की वजह से, वो मुझे कितना प्यार दे रही थी. ऐसे मे यदि मेरी वजह से ही, इसके साथ कुछ बुरा हो जाता तो, मैं किस मूह से आंटी का सामना कर पाती.”

ये बात कहते कहते प्रिया की आँखें छलक गयी और वो अपने आँसू रोकने की कोसिस करने लगी. वही मैं और निक्की एक दूसरे को हैरानी से देखने लगे. अभी तक हम दोनो को ऐसा लग रहा था कि, प्रिया की मुझसे जो नाराज़गी है, वो मेरे उस पर चिल्लाने की वजह से है.

लेकिन यहाँ तो उसकी इस नाराज़गी वजह ही कुछ अलग थी और उसकी इस नाराज़गी के पिछे, छुपि गहराई को जान कर, कुछ देर तक ना तो, मुझसे कुछ कहते बन रहा था और ना ही निक्की से कुछ कहते बन रहा था.

फिर जैसे ही निक्की उस से कुछ बोलने को हुई, वैसे ही उसने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए निक्की को चुप करते हुए उस से कहा.

प्रिया बोली “मुझे इस से कोई नाराज़गी नही है. यदि मैं इस से नाराज़ होती तो, मुझे इसके साथ बरखा दीदी के यहाँ रुकने की कोई ज़रूरत नही थी. मैं भी रिया दीदी लोगों के साथ ही घर वापस आ गयी होती.”

निक्की से इतनी बात कहने के बाद, प्रिया ने पलट कर मेरी तरफ देखते हुए कहा.

प्रिया बोली “मुझे सच मे तुमसे कोई नाराज़गी नही है. मेरी यदि किसी से कुछ नाराज़गी है तो, वो सिर्फ़ अपने आप से है. क्योकि मेरी वजह से ही तुम्हारे उपर इतनी बड़ी मुसीबत आने वाली थी.”

“तुम्हे किसी बात के लिए मुझसे माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है. तुमसे कभी मेरा दिल दुखाने की ग़लती हुई ही नही है. यदि किसी से को ग़लती हुई है तो, वो सिर्फ़ मुझसे हुई है. मैं ही तुम्हारे दिल मे हमेशा जगह बनाने की कोसिस करती रहती थी.”

“यदि हो सके तो, मुझे मेरी इस ग़लती के लिए माफ़ कर दो और यदि माफ़ ना भी कर सको, तब भी मुझे तुमसे कोई शिकायत नही होगी. मेरे दिल से हमेशा तुम्हारे लिए दुआ ही निकली है और आज भी तुम्हे दुआ देती हूँ कि, तुम जहाँ भी रहो, खुश रहो.”

ये बात कहते कहते एक बार फिर उसकी आँखों मे आँसू आ गये. मगर इस बार उसने अपने आँसू पोंछने की कोसिस नही की और पलट कर हमारे पास से वापस जाने लगी. लेकिन उसके वहाँ से जाने के पहले ही मैने उसका हाथ पकड़ लिया.

वो मुझसे अपना हाथ छुड़ाने की कोसिस कर रही थी और मैं उस से कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था. लेकिन उसके दर्द का अहसास करके, मेरी आँखों मे भी नमी आ गयी थी और मैं चाह कर भी उस से कुछ बोल नही पा रहा था.

मैने अंजाने मे ही सही, लेकिन उसके मासूम दिल पर कोई गहरी चोट पहुचाई थी और अब उसकी इस चोट पर मरहम भी मुझे ही लगाना था. जब मुझसे उस से कुछ कहते नही बना तो, फिर मेरे दिल से खुद बा खुद एक गाने के बोल निकल आए.
“हम को मिली हैं आज
ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिए
हम को करीब से

फिर आप के नसीब में
ये रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो ना हो

(मेरे मूह से गाने के ये बोल सुनते ही
प्रिया ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस बंद कर दी
वो मेरी तरफ गौर से देखने लगी
और मैने उसे देखते हुए
आगे सुर मे गाते हुए कहा)

लग जा गले कि फिर
ये हसीन रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो ना हो

पास आइए कि हम नहीं
आएँगे बार-बार
बाहें गले में डाल के
हम रो ले ज़ार-ज़ार

(ये कहते हुए मैने
प्रिया को अपनी तरफ खीच लिया)

आँखों से फिर ये प्यार की
बरसात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो ना हो

लग जा गले कि फिर ये
हसीन रात हो ना हो
शायद फिर इस जनम में
मुलाक़ात हो ना हो.”

गाना पूरा होते होते मेरी आँखें पूरी तरह आँसुओं से भीग चुकी थी. वही प्रिया मेरे गले से लग कर आँसू बहाए जा रही थी. लेकिन ये हाल सिर्फ़ हम दोनो का ही नही था. निक्की का हाल भी कुछ हमारे जैसा ही था. वो भी अपनी आँखों से आँसुओं को छलकने से नही रोक पाई थी.
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09-10-2020, 06:05 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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ये सिर्फ़ एक गाना नही, मेरे दिल के वो अहसास थे. जो इस समय मैं प्रिया को लेकर महसूस कर रहा था. वक्त जैसे हम लोगों के लिए रुक सा गया था. सब के लब खामोश थे, लेकिन आँखे आँसू बहा कर अपने ज़ज्बात जाहिर कर रही थी.

थोड़ी देर किसी ने किसी से कुछ भी नही कहा. फिर निक्की ने अपने आँसू पोन्छ्ते हुए, हमारे पास आते हुए, हम से कहा.

निक्की बोली “ये देखो, तुम दोनो ने मुझे भी रुला कर रख दिया.”

निक्की की बात सुनकर, मुझे पहली बार वहाँ पर निक्की के भी होने का अहसास हुआ और मैने अपनी आँखों को सॉफ करते हुए, निक्की से कहा.

मैं बोला “मैने क्या किया. मैं तो सिर्फ़ प्रिया को मना रहा था.”

ये कहते हुए, मैने निक्की को प्रिया की तरफ इशारा किया. प्रिया अब भी मुझसे लिपट कर रोए ही जा रही थी. उसने जैसे हम दोनो की, बात सुनी ही ना हो. निक्की ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर प्रिया को छेड़ते हुए कहा.

निक्की बोली “क्या इतना मनाने के बाद भी, तेरा गुस्सा ख़तम नही हुआ है. जो अभी तक रोए जा रही है.”

ये कहते हुए निक्की ने प्यार से प्रिया के सर पर हाथ रखा तो, प्रिया मुझे छोड़ कर, निक्की से लिपट गयी. निक्की ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

निक्की बोली “अब बस भी कर ना, मुझसे तेरा रोना नही देखा जाता है. अब यदि तू चुप नही हुई तो, मैं भी रोने लग जाउन्गी.”

निक्की की इस बात ने प्रिया के उपर जड़ी की तरह असर किया और उसका रोना धीरे धीरे सिसकी मे बदल गया. लेकिन वो अभी भी निक्की से लिपटी हुई थी. निक्की ने मुझे बोलने का इशारा किया तो, मैने प्रिया से कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैने अंजाने मे तुम्हारे दिल को बहुत चोट लगा दी. मैं जानता हूँ कि, मैं उस वक्त ग़लत था और यदि खालिद अजय का दोस्त ना निकला होता तो, मेरे साथ कुछ भी बुरा हो सकता था.”

“लेकिन अब एक बात मैं तुमसे पुछ्ता हूँ. तुम तो खालिद के बारे मे सब कुछ पहले से जानती हो. ऐसे मे यदि आज रास्ते मे किसी बात को लेकर, मेरा झगड़ा खालिद से हो गया होता तो, तब तुम क्या करती. क्या तुम खालिद के डर से मुझे अकेला छोड़ कर भाग जाती.”

मेरी ये बात सुनते ही प्रिया का सिसकना बंद हो गया और वो पलट कर मेरी तरफ गौर से देखने लगी. वो शायद ये जानने की कोसिस कर रही थी कि, मैं उस से ये सवाल क्यो कर रहा हूँ.

लेकिन जब उसे मेरे इस सवाल को करने का मतलब समझ मे आया तो, उसने गुस्से मे मुझे घूरते हुए कहा.

प्रिया बोली “ज़्यादा चालाक बनने की कोसिस मत करो. तुम मुझको मेरे दिए गये जबाब मे ही फसाना चाहते हो. लेकिन एक बात कान खोल कर सुन लो. मैं जो चाहे कर सकती हूँ. तुम मेरी बराबरी करने की कोसिस मत करो.”

प्रिया की ये बात सुनते ही, मेरी और निक्की की हँसी छूट गयी. थोड़ी देर मैं और निक्की मिलकर प्रिया को इसी बात को लेकर परेशान करते रहे और फिर धीरे धीरे प्रिया भी अपने मूड मे वापस आ गयी.

प्रिया की नाराज़गी दूर होते देख, मैने भी राहत की साँस ली. कुछ देर हम लोग ऐसे ही एक दूसरे से हँसी मज़ाक करते रहे. फिर एक दूसरे को गुड नाइट बोल कर अपने अपने कमरे की तरफ चल दिए.

कमरे मे आकर मैने भी सुकून की साँस ली. अब मेरे दिल मे जल्द से जल्द सिर्फ़ कीर्ति से मिलने की तड़प थी और मैं इसी तड़प के साथ कीर्ति को याद करते हुए गहरी नींद के आगोश मे खो गया.

सुबह 7 बजे मेरी नींद निक्की के जगाने पर खुली. उसने हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए मुझे जगाया और फिर मुझे तैयार होने का बोल कर वापस चली गयी. उसके जाने के बाद, मैं भी फ्रेश होने चला गया.

फ्रेश होने के बाद मैं तैयार हुआ और अपने बाकी के समान की पॅकिंग करने लगा. तभी निक्की और प्रिया चाय नाश्ता लेकर आ गयी. मैने उनके साथ चाय नाश्ता किया और फिर उनसे बात करते करते अपने समान की पॅकिंग करने लगा.

कुछ ही देर मे मेरा पॅकिंग करना भी हो गया. उसके बाद मैं प्रिया और निक्की के साथ बाहर हॉल मे सबके पास आ गया. हॉल मे घर के सभी लोग बैठ कर गॅप शॅप कर रहे थे.

आज मोहिनी आंटी सब से दिल खोल कर बातें कर रही थी. मेहुल भी उनसे बात करने का कोई मौका नही छोड़ रहा था. मुझे मेहुल की इस हरकत को देख कर, कुछ हैरानी सी हो रही थी और मैं खामोशी से उसकी बातों को सुनने लगा.

मेरे पास ही नितिका और प्रिया भी बैठी हुई थी. प्रिया को भी मेहुल का मोहिनी आंटी की हर बात मे साथ देना, कुछ अजीब सा लग रहा था. थोड़ी देर तक तो, वो उसकी बातें सुनती रही. लेकिन जब उस से ना रहा गया तो, उसने धीरे से मुझसे कहा.

प्रिया बोली “मुझे तो दाल मे कुछ काला नज़र आ रहा है. तुमको ऐसा नही लग रहा कि, मेहुल चाची को ज़रूरत से ज़्यादा ही मस्का लगा रहा है.”

मैं बोला “हां, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा कि, ये ऐसा क्यो कर रहा है.”

हम दोनो आपस मे धीरे धीरे बातें कर रहे थे. लेकिन हमारी इस बात को नितिका भी सुन रही थी. उसने मेरी बात सुनते ही धीरे से हम दोनो से कहा.

नितिका बोली “वो अपने आगे का रास्ता तैयार कर रहा है.”

नितिका की बात सुनते ही, हम दोनो का ध्यान उसकी तरफ चला गया. उसने हम दोनो की हैरानी को दूर करते हुए कहा.

नितिका बोली “इसमे चौकने वाली क्या बात है. मेहुल की गर्लफ्रेंड शिल्पा मेरी सहेली है और वो मेरे घर आती रहती है. मम्मी के बिगड़े हुए स्वाभाव की वजह से मेहुल हमारे घर आने से भी डरता था.”

“लेकिन अब मम्मी के इस बदले हुए रूप को देख, वो मम्मी को पटाने मे लगा है. ताकि यहाँ से जाने के बाद भी मम्मी के साथ उसका मेल जोल ऐसे ही बना रहे और उसका हमारे घर आना जाना सुरू हो जाए.”

नितिका की ये बात सुनकर, मुझे और भी ज़्यादा हैरानी हुई और मैने नितिका से कहा.

मैं बोला “ये तो आप ठीक कह रही है. लेकिन मैं ये नही मान सकता कि, ये आइडिया मेहुल के दिमाग़ मे आ सकता. ये ज़रूर किसी और के दिमाग़ की उपज है.”

मेरी बात के जबाब मे नितिका ने मुस्कुराते हुए कहा.

नितिका बोली “आप ठीक सोच रहे हो. ये मेहुल का नही, रिया दीदी का आइडिया है. उन्हो ने ही कल मेहुल को ये सलाह दी थी और वो कल से इसी तरह मम्मी के आगे पिछे लगा हुआ है. हम लोगों के आपके साथ वापस चलने मे भी मेहुल का ही हाथ है.”

नितिका की ये बात सुनकर, मेरी और प्रिया की हँसी छूट गयी. हम फिर से मेहुल और मोहिनी आंटी की बातों का मज़ा लेने लगे. ऐसे ही बातों और हँसी मज़ाक का दौर चलते चलते 11 बज गये.

मैने प्रिया से बरखा दीदी के घर चलने का पुछा तो, पद्मिकनी आंटी ने मुझसे खाना खा कर जाने को कहा. मैने उनको समझाना चाहा, लेकिन आज मेरा उनके घर मे आख़िरी दिन था.

जिस वजह से वो मुझे आज खाना खाए, बिना कही जाने नही देना चाहती थी. आख़िर मे मुझे उनकी बात मान कर, सबके साथ खाना खाना पड़ गया. खाना खाते खाते हमे 12 बज गये.

उसके बाद, मैं प्रिया और निक्की के साथ बरखा दीदी के घर आ गया. हम लोग वहाँ पहुचे तो, नेहा और सीरू दीदी लोग वहाँ पहले से मौजूद थी. हम लोगों के पहुचते ही, वहाँ खाने की तैयारी चलने लगी.

प्रिया और निक्की ने तो, घर से खाना खा कर आने की बात कह कर, बरखा दीदी से खाना खाने से सॉफ सॉफ मना कर दिया. लेकिन मैं बरखा दीदी के बोलते ही, सबके साथ खाना खाने के लिए बैठ गया.

मुझे यहाँ आकर फिर से खाना खाने के लिए बैठते देख कर, निक्की ने हैरान होकर, मुझसे कहा.

निक्की बोली “अरे आप अभी तो घर से खाना खा कर आए है और अब फिर से यहाँ खाना खाने बैठ गये. क्या आंटी का बना हुआ खाना आपको पसंद नही आया या फिर वहाँ के खाने से आपका पेट नही भरा था.”

निक्की की इस बात को सुनकर, मैं मुस्कुरा कर रह गया. लेकिन प्रिया ने निक्की की इस बात का जबाब देते हुए कहा.

प्रिया बोली “जैसा तू सोच रही है, ऐसी कोई बात नही है. इसने बरखा दीदी से वादा किया था कि, जब तक ये यहाँ है, इसका खाना बरखा दीदी के साथ ही होगा. जिस वजह से खाना खा लेने के बाद भी, इसे अपने वादे को निभाने के लिए, बरखा दीदी के साथ भी खाना खाने बैठना पड़ा है.”

प्रिया की ये बात सुनते ही, सीरू दीदी लोग मेरी इस हालत पर हँसने लगी. लेकिन बरखा दीदी ने फ़ौरन मुझे टोकते हुए कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, तुम्हे किसी बात का संकोच करने की ज़रूरत नही है. यदि तुमने प्रिया के घर खाना खा लिया तो, इसमे क्या ग़लत हो गया. जैसे ये तुम्हारा घर है, वैसे ही वो भी तुम्हारा घर है.”

“तुम यहाँ खाना खाओ या वहाँ खाना खाओ, एक ही बात है. तुम अपने किए गये, किसी वादे के लिए, खुद को तकलीफ़ मत दो. मुझे तुमसे किसी बात की कोई शिकायत नही है और तुम्हे ज़बरदस्ती यहाँ खाना खाने की कोई ज़रूरत नही है.”

बरखा दीदी की ये बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, यदि मुझे यहाँ खाना नही खाना होता तो, मैं आपको कॉल करके, पहले ही मना कर देता. लेकिन मैने प्रिया के घर खाना खाते हुए भी, अपने पेट मे इतनी जगह बचा कर रखी थी कि, आपके साथ भी खाना खा सकूँ. आप यकीन रखिए, मैं कोई संकोच नही कर रहा हूँ.”

मेरी बात सुनकर, बरखा दीदी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और फिर हम सब खाना खाने लगे. सीरू दीदी बात बात पर मेरी खिचाई करने मे लगी थी और सेलू दीदी भी उनका साथ दे रही थी.

ऐसे ही हँसी मज़ाक करते करते हमारा खाना खाना हो गया. अब सब लोग खीर खा रहे थे. तभी सीरू दीदी ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा.

सीरत बोली “एक बात बताओ, तुम्हारी दीदी तो, हमारे घर मे है. फिर तुम उनको छोड़ कर, रोज यहाँ बरखा के साथ खाना क्यो खाते हो.”

सीरू दीदी की इस बात पर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, आपका ऐसा सोचना ग़लत नही है. असल मे बात ये है कि, मुझे इस घर की हर जगह पर दीदी की ही छाप नज़र आती है. सिर्फ़ ये ही नही, बल्कि अभी मैं जो खीर खा रहा हूँ, मुझे तो इसमे भी दीदी के हाथों का ही स्वाद नज़र आ रहा है. जब मैने पहली बार यहाँ खाना खाया था, तब दीदी ने मुझे बिल्कुल ऐसी ही खीर बना कर खिलाई थी.”

मेरी ये बात सुनकर, सीरू दीदी लोग हैरानी से मुझे देखने लगी. वही आंटी के चेहरे पर मुस्कान मगर आँखों मे आँसू झिलमिला गये. आंटी ने मेरे पास आकर, मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

आंटी बोली “तुमने खीर के स्वाद को बिल्कुल सही पहचाना है. ये खीर शिखा ने ही, तुम्हारे लिए बनाकर भेजी थी. जैसे तुम्हारी खाने के बाद, चाय पीने की आदत है. वैसे ही शेखर को भी खाने के बाद, मीठा खाने की आदत थी. उसे खीर बहुत ज़्यादा पसंद थी. इसलिए शिखा ने आज तुम्हारे लिए, ये खीर बना कर भेजी थी.”

शेखर भैया का नाम सुनकर, महॉल एक दम से भावुक सा हो गया था. शेखर भैया से मैं कभी मिला नही था. लेकिन उनसे मुझे इतना ज़्यादा अपनापन हो गया था कि, उनकी कमी के अहसास ने मुझे भी भावुक कर दिया था.

कुछ पल के लिए वहाँ गहरी खामोशी छा गयी. फिर आंटी ने ही इस खामोशी को तोड़ते हुए मुझसे कहा.

आंटी बोली “बेटा, जब कभी तुम्हे यहाँ आने का मौका मिले, तो वो मौका अपने हाथ से जाने मत देना और हम से मिलने चले आना. हम सबको तुमसे इतना अपनापन हो गया है कि, तुम्हे यहाँ से जाने देने का, मन ही नही कर रहा है.”

मैं बोला “आंटी ये भी भला कोई कहने की बात है. यकीन मानिए, जब मैं अपने घर से यहाँ के लिए निकला था, तब मुझे अपने घर वालों से दूर होते हुए, जितना दुख हुआ था, उतना ही दुख, आप सब से भी दूर होते हुए हो रहा है.”

“मुझे आप सब से इतना अपनापन मिला है कि, मेरा आप सब से दूर होने का दिल ही नही कर रहा है. इस समय मुझे अपने घर वापस लौटने की खुशी नही, बल्कि आप सब से दूर होने का दुख हो रहा है.”

ये बात कहते कहते मैं कुछ उदास सा हो गया. मेरी इस उदासी को देख कर, बरखा दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, ऐसा नही कहते. हम लोग तो सिर्फ़ इतना चाहते है कि, तुम कभी कभी हम से मिलने यहाँ आते रहो. लेकिन इसका ये मतलब नही कि, तुम यहाँ से दुखी होकर जाओ. तुम यहाँ से खुशी खुशी अपने घर जाओ. वहाँ पर भी मेरी दो छोटी बहने बड़ी बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही है. वो इतने दिन बाद, तुमको अपने पास पाकर बहुत खुश होगी.”

बरखा दीदी की ये बात सुनकर, मेरी आँखों मे अमि निमी का मासूम चेहरा घूम गया. अभी मैं बरखा दीदी की किसी बात का कोई जबाब दे पाता कि, तभी शिखा दीदी और निशा भाभी अंदर आती हुई नज़र आई.

उनको देखते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. वो दोनो भी हमारे पास आकर बैठ गयी. निशा भाभी ने आते ही, मुझे छेड़ते हुए कहा.

निशा भाभी बोली “क्यो हीरो, यहाँ सबका खाना हो गया है. लेकिन तुम्हारा खाना है कि, अभी तक चल ही रहा है.”

उनकी ये बात सुनकर, मैं मुस्कुरा कर रह गया और फिर से खीर खाने लगा. लेकिन सीरू दीदी का दिमाग़ कब कहाँ चल जाए, ये कोई नही जानता था. उन्हो ने फ़ौरन ही निशा भाभी की, इस बात का जबाब देते हुए कहा.

सीरत बोली “क्या भाभी, आपको मज़ाक के सिवा कभी कुछ सूझता भी है या नही. ये बेचारा इतने दिन यहाँ रहा. लेकिन शिखा भाभी ने उसे उसकी मनपसंद चीज़ बना कर ही नही खिलाई है. अब तो अपने घर जाकर ही इसका पेट भर पाएगा.”

सीरू दीदी की ये बात सुनते ही, मैं उनकी तरफ देखने लगा. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, अब इनके दिमाग़ मे क्या चल रहा है. वही शिखा दीदी ने हैरानी से सीरू दीदी से कहा.

शिखा दीदी बोली “मैं समझी नही, आप क्या बोल रही हो.”

सीरत बोली “भाभी, इसमे समझने वाली क्या बात है. प्रिया बता रही थी कि, आपके भाई को आलू के पराठे बहुत पसंद है. क्या आपने आज तक इसे आलू के पराठे खिलाए है. अब तो इसे आलू के पराठे अपने घर जाकर ही खाने को मिलेगे.”

सीरू दीदी की ये बात सुनकर, मैने प्रिया की तरफ घूर कर देखा. लेकिन वो ना मे अपना सर हिला कर बताने लगी कि, उसने ऐसा कुछ भी नही कहा है. वही सीरू दीदी की ये बात सुनते ही, शिखा दीदी ने फ़ौरन उठ कर खड़े होते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “भैया, मुझे ये बात पता नही थी. लेकिन आप बस थोड़ी देर रूको, मैं अभी आपके लिए आलू के पराठे बना कर लाती हूँ.”

शिखा दीदी की ये बात सुनते ही, मेरे पेट की तो जान ही निकल गयी. मैने फ़ौरन ही शिखा दीदी को रोकते हुए कहा.

मैं बोला “नही दीदी, अब मेरा खाना हो चुका है. आप बेकार मे परेशान मत होइए, मैं अगली बार जब आउगा, तब ज़रूर आपके हाथ के आलू के पराठे खाउन्गा.”

मगर शिखा दीदी ने मेरी इस बात को अनसुना करते हुए कहा.

शिखा दीदी बोली “नही भैया, आप चाहे एक पराठा खाइए, लेकिन मैं आपको आलू के पराठे खाए बिना यहाँ से नही जाने दुगी. आप बस 5 मिनट रुकिये, मैं अभी पराठे बना कर लाती हूँ.”

इतना बोल कर शिखा दीदी, मेरी कोई बात सुने बिना ही किचन की तरफ चली गयी और मैं गुस्से मे सीरू दीदी को देखने लगा. वही प्रिया सीरू दीदी से इस बात को लेकर बहस करने लगी की, उन्हो ने इस बात मे उसका झूठा नाम क्यो लिया.

अभी प्रिया और सीरू दीदी और प्रिया मे इस बात को लेकर बहस चल ही रही थी कि, तभी राज, रिया, मेहुल और नितिका आ गये. जब उन्हे प्रिया और सीरू दीदी की इस बहस के बारे मे पता चला तो, मेहुल ने बताया कि, ये बात तो सीरू दीदी को कल नितिका से पता चली थी.

मेहुल की ये बात सुनते ही सबको पूरी बात समझ मे आ गयी और सब हँसने लगे. लेकिन सीरू दीदी के इस मज़ाक ने मुझे परेशानी मे डाल दिया था. कुछ ही देर मे शिखा दीदी आलू के पराठे बना कर, ले आई.

मेरे पेट मे अब खाने के लिए ज़रा भी जगह नही बची थी. फिर भी उनका दिल रखने के लिए मैं पराठे खाने लगा. अब ये उनके हाथों का जादू था या फिर उनका मेरे लिए प्यार था, जो मैं ना ना करते हुए भी पराठे खाते चला जा रहा था.

मुझे इस तरह पराठे खाते देख, सीरू दीदी लोग भी हैरानी से मुझे देख रही थी और जब सीरू दीदी से ना रहा गया तो, उन्हो ने मुझे टोकते हुए कहा.

सीरत बोली “अब बस भी कर पेटु. ना ना करते हुए भी दो पराठे खा गया है. इतना खाएगा तो, अब तेरा पेट ही फट जाएगा.”

सीरू दीदी की बात सुनकर, एक बार फिर सबके क़हक़हे गूँज गये और इस बीच मेरा पराठे खाना भी हो गया. इसके बाद हम सबके बीच हँसी मज़ाक का दौर चलता रहा. इस सब मे हमे पता ही नही चला कि, कब 3:15 बज गये.

मेहुल ने हमे इस बात का ध्यान दिलाया और जल्दी से वापस प्रिया के घर चलने को कहने लगा. लेकिन तभी आंटी ने हमे रुकने को कहा और वो अंदर वाले कमरे मे चली गयी.

कुछ देर बाद, जब उस कमरे से वापस लौटी तो, उनके हाथ मे एक बॅग था. ये वो ही बॅग था, जो छोटी माँ के यहाँ आते समय नितिका के हाथ मे था और नितिका इसे छोटी माँ के साथ आंटी के कमरे मे लेकर गयी थी. आंटी ने वो बॅग मेहुल को देते हुए कहा.

आंटी बोली “तुम अपना ये बॅग तो, भूल ही जा रहे हो. पुनीत की मोम ने इसकी ज़िम्मेदारी तुमको ही दी थी.”

आंटी की बात सुनकर, मेहुल ने मुस्कुराते हुए, वो बॅग आंटी से ले लिया और फिर वो बॅग बरखा की तरफ बढ़ते हुए कहा.

मेहुल बोला “दीदी, आंटी ने जाते समय मुझसे कहा था कि, उन्हो ने शिखा दीदी के लिए तो, थोड़ा बहुत कर दिया है. लेकिन जल्दबाज़ी मे वो आपके लिए कुछ नही कर पाई है. इसलिए उन्हो ने ये बॅग आपको दे देने को कहा था.”

मेहुल की ये बात सुनकर, बरखा आंटी की तरफ देखने लगी. वही आंटी ने मेहुल को टोकते हुए कहा.

आंटी बोली “बेटा, ये उनका बड़प्पन है कि, शिखा के लिए इतना सब करने के बाद भी, वो इसे थोड़ा मान रही है. मगर इस बॅग मे उन्हो ने बहुत पैसे रख छोड़े है. बरखा भला इतने पैसो का क्या करेगी.”

मेहुल बोला “आपकी इसी बात की वजह से उन्हो ने जाते समय आप से कहा था कि, आप ये बॅग मुझे दे देना. क्योकि वो जानती थी कि, आप इसके लिए कभी तैयार नही होगी. मगर उनका मानना था कि, पुनीत पर जितना हक़ शिखा दीदी का है, उतना ही हक़ बरखा दीदी का भी है. इसलिए उन्हो ने ये पैसा बरखा दीदी को पुनीत की तरफ से दिया है. अब ये बरखा दीदी की मर्ज़ी पर है, वो इस पैसे का जो चाहे, वो कर सकती है.”

मेहुल की ये बात सुनकर, आंटी उसको समझाने की कोसिस करने लगी. लेकिन छोटी माँ भी मेहुल को बहुत अच्छी तरह से समझा कर गयी थी. इसलिए वो आंटी की हर एक बात का जबाब देता गया.

आख़िर मे मेरे और निशा भाभी के समझाने पर आंटी ने इस बात का विरोध करना बंद कर दिया और बरखा दीदी ने खुशी खुशी वो बॅग ले लिया. इसके बाद मैने और मेहुल ने आंटी के पैर छु कर उनसे आशीर्वाद लिया और फिर हम सब आंटी से विदा लेकर, प्रिया के घर के लिए निकल लिए.

हम सब 3:45 बजे प्रिया के घर पहुच गये. वहाँ दादा जी के साथ, राजेश अंकल और आकाश अंकल बैठे हुए थे. पद्मि्नी आंटी के साथ साथ, आकाश अंकल भी हमे एरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे. इसलिए आज वो इतनी समय घर पर थे.

हम सब 3:45 बजे प्रिया के घर पहुच गये. वहाँ दादा जी के साथ, राजेश अंकल और आकाश अंकल बैठे हुए थे. पद्मिजनी आंटी के साथ साथ, आकाश अंकल भी हमे एरपोर्ट तक छोड़ने जाने वाले थे. इसलिए आज वो इतनी समय घर पर थे.

अजय और अमन ने एरपोर्ट पर ही मिलने का कहा था. हमारी फ्लाइट का समय 5 बजे का था और अब हमारे एरपोर्ट के लिए निकालने मे ज़्यादा समय बाकी नही था. मोहिनी आंटी ने तो अपना सारा समान, पहले से ही बाहर निकाल कर रखा हुआ था.

इसलिए मैने और मेहुल ने घर आते ही, अपना अपना समान निकाल कर गाड़ियों मे रखना सुरू कर दिया. राज, रिया, प्रिया और निक्की हमारे बॅग, गाड़ियों तक पहुचने मे हमारी मदद कर रहे थे.

मैं जब यहाँ आया था तो, मेरे पास सिर्फ़ एक बॅग था. लेकिन अब जाती समय मेरे पास 4-5 बॅग हो गये थे. कुछ बॅग मे मेरे खुद का खरीदा हुआ समान था तो, कुछ बॅग मे यहाँ से मिला हुआ समान था.

कुछ ही देर मे, हम सब के बॅग अलग अलग गाड़ियों मे चढ़ा दिए गये. फिर मैने और मेहुल ने दादा जी पैर छु कर, उन से आशीर्वाद लिया और उसके बाद, हम लोग उनसे विदा लेकर, अलग अलग गाड़ियों मे 4 बजे एरपोर्ट के लिए निकल पड़े.

एक कार मे आकाश अंकल, पद्मिेनी आंटी और मोहिनी आंटी थे. दूसरी कार मे सीरू दीदी, सेलू, आरू, हेतल दीदी और निक्की थे. तीसरी कार मे बरखा दीदी, नेहा, रिया और नितिका थे. चौथी कार मे निशा भाभी और शिखा दीदी, मैं और प्रिया थे. पाँचवी कार मे राजेश अंकल, मेहुल, राज और हीतू थे.

जब हम लोग मुंबई आए थे, तब हमे स्टेशन पर लेने के लिए सिर्फ़ राज और रिया ही आए थे और हम स्टेशन से उनके घर तक टॅक्सी मे आए थे. लेकिन आज हमे राज के घर से एरपोर्ट तक छोड़ने के लिए, 5 गाड़ियाँ और इतने सारे लोग जा रहे थे.

जिनमे से हर एक के साथ, मेरा एक गहरा रिश्ता सा जुड़ गया था और हर एक के साथ मुझे दिली लगाव हो गया था. ऐसा ही कुछ शायद मुझे लेकर उन सब के साथ भी था. जिसकी गवाही मुझे विदा करने के लिए, उन सबका एरपोर्ट तक आना था.
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