RE: kamukta Kaamdev ki Leela
उपर स्वर्ग में :
कामदेव अपनी तीर को निहार रहे थे के उसके नज़रों के सामने गाजोधरी प्रकट हो जाती है। उसकी चेहरे पे एक असीम खुशी और होंठो पर एक चहकती मुस्कान। सारे के अप्सराएं भी उसकी खुशनुमा चेहरा देखने लगे।
कामदेव : बहुत खुश लग रही हो! क्या हो राहा है नीचे धरती पर?
गाजोधरी : क्या बताऊं प्रभु! इस परिवार की कामुकता को देखकर में बहुत प्रसन्न हो गया हूं! और आप भी हो जाते! उफ़! इतनी वासना और इतनी चाहत!
कामदेव : (मुस्कुराके) सुनके अच्छा लगा गाजोधरी! और उपर से तुमने ज़रूर आग को और बड़काया होगा! खैर, आओ थोड़ा भोजन कर लेते है, फिर तुम वापस चली जाना नीचे!
रती का प्रवेश होती है तभी। गाल गोल और नज़रें तीखे। अपनी सुडौल कमर को मतकाए अपने प्रेमी के पास खड़ी हो जाती है।
रती : यह क्या बाते हो रही है गुरु शिष्य में? (मुस्कुराए)
कामदेव : गाजोधरी को फिर से एक कामुक परिवार से पाला परा है! लेकिन इस बार तो कामुकता की हद हो गई क्यों? (गाजोधरी की तरफ मुस्कुराके)
गाजोधरी : जी देवी! (रती की तरफ)
कामदेव : चलो हम सब अब भोजन कर लेते है, और दुआ करते है के इस परिवार की यह प्रेम लीला चलती रहे!
रती : आप भी ना! बस।
तीनों हंस परे और सोमरस का प्रबन्ध होता है भोजन के साथ साथ।
.......
वहा नीचे धरती पर :
रात के करीब ११ बजे थे और रामधीर अपनी पत्नी यशोधा के ऊपर लेटे संभोग विलास में व्यस्त था। पति के आगोश की दीवानी यशोधा कुछ खास खुश नहीं हो रही थी अभी। ना, यह बात नहीं थी के रामधीर से कुछ कम विलास मिल रही थी, बल्कि सच तो यह है के रामधीर आज भी उतना ही निपुण था जितना पहले, लेकिन बात यह थी के अपने पोते से सुख के प्राप्ति के बाद वोह कुछ बदल बदल सी गई थी। दूसरे और रामधीर भी अपनी मन में आशा की आशा लिए बेचैन रहता था।
यशोधा को कुछ हद तक चोदने के बाद वोह खुद बाजू में हटकर लेट जाता है। यशोधा कामुकता से उनकी छाती के सफेद काले बाल पर अपनी उंगलियां फिराने लगी। इस अंदाज़ की तो रामधीर पहले से ही कायल था और वोह और फिर अपने हाथ को पीछे लिए यशोधा की सर को अपनी नज़दीक लेके एक चुम्बन देने वाले थे के अचानक उसके होठों पर उंगलियां रखी जाती है "नहीं! इतनी भी जल्दी मत कीजिए!"। "लेकिन हुआ क्या भाग्यवान!" रामधीर बेचैन हो उठा।
यशोधा : (पति के सिकुड़े गए लिंग को सहलाते हुए) इसको जागने का एक और तरकीब है!
रामधीर : क्या?? कौनसा?
यशोधा : (धीरे से) हमारी बहू आशा!
रामधीर घबरा जाता है और अपनी कोहनी को तकिए पे लगाए थोड़ा सा उठ के बैठते है "यह क्या कह रही हो तुम??? अरे कुछ तो सोचा करो!". "अब ज़्यादा नाटक मत कीजिए, अगर बहू को यही पे अभी बुलाऊ, तो आप अब के अब उसे कच्चा खा जाओगे!" बोलके यशोधा उनकी लिंग पर एक प्यारी सी चिकोटी काट देती है। उत्साह और चिकोटि से रामधीर का लिंग हिचकोले मारने लगा "अरे भाग्य..... । "चुप भी हो जाइए आप! आप को क्या लगा के मुझे कुछ नहीं मालूम! सब देख सकती हूं में! सब समझती हूं में! बहू को आप किस नज़र से देखते है!" यशोधा क्रोध और छिपी हुई वासना मिलाकर बाते कर रही थी।
रामधीर एक चोरी करते पकड़े गए चिर की तरह चुप चाप लेटा रहा और फिर खुद अपनी पत्नी की गद्राए देह को सहलाने लगा फिर से "हा भाग्यवान! सही कह रही हो तुम!! उफ्फ क्या चाल है उसकी! कयामत कहना भी कम परे! हमारा महेश तो खुश नसीब है ही, लेकिन शायद कद्रदान नहीं!" फिर अपनी सर को यशोधा की मोटे मोटे स्तन पर रखकर उसे तकिए की तरह इस्तेमाल करने लगा "सच कह रहा हूं में यशोधा! अगर एक बार उसकी चाहत मुझे मिल जाए तो बस! ज़िन्दगी सफल!"
यशोधा अपनी पति के सर को दबा देती है अपनी छाती पर "उफ्फ!! इतनी वासना कहा से इख्ट्टा करते है आप इस उम्र में, के महेश की बीवी को भी नहीं बकश रहे है! हाए राम!! यह पति मेरे! इनका में क्या करू!!" दोनों मिया बीवी एक दूसरे को उकसाते रहे और तभी रामधीर ने वोह किस्सा छेड़ दिया जिसे यशोधा अपनी मन में दबाई हुई थी।
रामधीर : (पत्नी से लिपटा हुआ) अरे तुम भी किसी को पटा दो ना! किसने रोका है!!!
यशोधा : आप ने तो मुंह की बात कह दी मेरी! (राहुल के साथ संगम को याद करती हुई) क्या बताऊं आपको! मैने तो पहले ही पहल कर दी!
रामधीर का लिंग टनटन होने लगा इस कथन से "क्या????? क्या कह रही हो तुम??? अरे इस बूढ़े पे रेहम करो, क्या ऐटैक दोगी मुझे???" मज़ाक में वोह यशोधा से लिपटे कह परा। यशोधा भी नाटक करती हुई "देखिए!! एटेक आ भी गया तो फिक्र मर कीजिए! (होंठ दबाई) वोह मुआ मुझे संभाल लेगा!" इस बात को कहते वक्त उसकी मन में केवल राहुल के बाहों में सोते हुए तरंगों को याद करने लगी। सोचते सोचते फिर उसकी जिस्म की आग भड़क उठी और अपनी पति को और कस ली।
रामधीर : लेकिन वो मुआ है कौन????
यशोधा : रहने दीजिए!!! आप सेह नहीं पाएंगे! (होंठ दबाए)
रामधीर : बताओ तो सही!!!!! देखो तड़पाओ मत!
यशोधा : वोह आता ही होगा! खुद देख लीजिए!
इतना केहना था के घड़ी में १२ बाज गए और कुछ ही पल में एक लड़का केवल रोब पहने अंदर आजाता है। रोब रामधीर का था और यह देखकर वोह हैरान रह गया "के कौन हो तुम??? और यह मेरा रोब......." उसके लवज वहीं के वहीं रुक गए और धड़कन तेज़ हो गया। सामने खड़ा था राहुल, अपने ही दादाजी के रोब पहना हुआ। उसे देख यशोधा एक नए नवेली की तरह शर्मा गई। रामधीर का खून खोल उठा "यह क्या है राहुल??? तुम यहां???"
राहुल कुछ ना बोला और धीमे क़दमों में आगे आता गया, उसके आंखे अभी भी शर्म से नीचे, लेकिन वासना भी उतना ही अधिक था आंखे में। रामधीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था, इससे पहले वोह कुछ बोलता, यशोधा उनके हाथो को जकड़ लेती "ए जी सुनिए, यही है वोह!!!" कहके उंगली तले दांत दबा दी जैसे कोई अपनी पहले प्यार का इजहार कर रही हो। रामधीर की आत्मा कांप उठी "क्या कहा????"।
दादी की ऐसी बातों से राहुल का खून उबल उठा और गाउन के ऊपर से ही उसने तुरंत अपने लिंग को मसल दिया। लेकिन आज अपने ही दादा के सामने यह सब करते हुए उसे अजब लग रहा था, मानो उसके कामुकता पे और हवा आगयो हो। यशोधा अपनी पोते की बेचैनी भांप लेती है और प्यार से आदेश देती है "अरे आजाओ मेरे लाल! यह (पति को देखकर) कुछ नहीं केहगें!" कहते हुए वोह ऐसी शरमाई के राहुल और उत्कुख हो गया। बिना लाज शर्म के वोह अपना रोब नीचे फेंक देता है, जिससे उसका पूर्ण नग्न जिस्म केवल एक कच्चे में रामधीर और यशोधा के नज़रों के सामने आ जाता है।
रामधीर के आंखे अब अपने पोते के उभर को जैसे नाप रहा था। यशोधा की तो पहले ही सांसे तेज़ हो चुकी थी।
राहुल : दादाजी! माफ करना मुझे! आज में आपका पोता नहीं हूं! मुझे कामदेव का स्वरूप समझ लीजिए! (लिंग को कच्चे पे मसलते हुए)
यशोधा : और में रती! हाय में मर जाऊ!! (शर्माकर चेहरा छुपाए)
रामधीर अपने पोते और पत्नी की वासना देखकर पागल होने लगा, इस बात का गवाह दे रहा था उसका अपना उठता हुआ लिंग, जो पूर्ण नग्न अवस्था पे राहुल को भी दिख राहा था। "उफ्फ दादाजी!!! अजब दृश्य है आपका यह " कहके सामने जाके रामधीर की लिंग की सुपाड़े को हल्का सा छुने लगा। इस स्पर्श सर रामधीर और उकसा गया और लिंग और सीधा हो गया। वोह क्या करता, उनके अपने नज़रे अपने पोते के लिंग पर टिके थे "तेरा भी तो!"।
यशोधा दोनों को देखे हैरान रहती है "अरे आप लोग क्या अब एक दूसरे को निहारते रहोगे! अरे मुझ बुढ़िया को देखो!!" देखने तो लायक थी ही यशोधा देवी, जो पूर्ण नग्न अवस्था में केवल एक तकिया अपनी योनि की और दबाए बिस्तर पर बैठी हुई थी। आंखो में उत्सुकता और होंठ प्यासे, मानो रसपान के लिए इतेंजार कर रही थी।
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