RE: Mastaram Stories ओह माय फ़किंग गॉड
अब आगे की कहानी मेरी सोमा रानी की जुबानी!!!
मेरी शादी के साल भर से भी ज्यादा हो गया था. मेरा मरद दिल्ली में था. लगभग 7 महीने पहले गया था. बीच-बीच में गाँव के लाला के दुकान में टेलीफोन करता था लेकिन हमसे बात नहीं होता था. हमको बोला था की अगली बार दिल्ली लेकर जायेगा और वहीँ रखेगा. इसी बीच होली भी आ रही थी लेकिन वह होली में घर नहीं आएगा येही बोला था. मैं बहुत उदास थी. किसी काम में मेरा मन नहीं लग रहा था. एक तो नयी-नयी शादी हुई थी और उफनती जवानी मेरे बदन पर सवार थी. मैं क्या करती? कितने महीनो से मरद के प्यार के लिए तरस रही थी. रोज़ मेरी चूत में खुजली होती और रोज़ रात को अकेले में ऊँगली से पानी निकाल कर खलास होती. इस वजह से मेरा मन काफी चिडचिडा हो गया था. हमारा मन ना किसी काम में लगता ना किसी से बात करने में. अकेले खोई-खोई सी रहती थी.
जैसे तैसे दिन कटते-कटते होली का त्यौहार आ गया. हमारे ससुराल की होली बहुत दमदार मनाया जाता है. सबके घर में कोई ना कोई मेहमान आता है सब मिलके मस्ती करते है. मेरे भी ससुराल में मेरी दो ननदे जिनकी शादी हो चुकी थी आई थी. और मेरा आदमी का मौसेरा भाई भी आया था. उसका नाम गोपाल था, 22 साल का बांका जवान था जो शहर में आईटीआई की पढाई करता था. देखने में अच्छा था और रंग भी साफ़ था. घर में सब उसको गोपी बुलाते थे. होली से 2 दिन पहले हमारे ससुराल पहुंचा. मेरे ससुराल में मेरी सास के अलावा मेरे मरद की बड़ी बहन ही रहती थी. मेरी सास ने मुझे बताया की यह गोपी है, शहर में रहता है और मेरा छोटा देवर है.
गोपी मेरे पास आकर ऊपर से निचे देखा और कहा – “कमाल की बहु खोजी हो मौसी. भैया तो बहुत किस्मतवाले है. जरा अच्छा से देखूं भाभी का चेहरा.” यह कहते हुए गोपी ने मेरी ठुड्डी से चेहरा ऊपर करते हुए बोला – “वाह, भाभी. तुम कमाल हो. मौसी, मेरे लिए भी ऐसी ही लड़की खोजना.”
मेरी सास हँसते हुए बोली – “हाँ, हाँ. ठीक है. आ जाओ. हाथ-मुँह धोकर नाश्ता कर लो.”
ठुड्डी से हाथ हटाते समय गोपी ने हलके से मेरी एक मम्मे को छू लिया. मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गयी. पता नहीं देवरजी ने यह जान-बुझकर किया था या अनजाने में हो गया. महीनों की उपवास के बाद किसी मरद की छुवन ने मुझे चुदासी बना दिया.
उस दिन की रात बिना किसी हंगामे के कट गया. गोपी मेरी सास और ननदों से गप्प करने में ही खोया रहा. हमसे भी कुछ बातचीत हुई लेकिन देवर-भाभी के रिश्ते के कारण ज्यादा खुल नहीं पाई.
असली कहानी होली के दिन से शुरू होती है. होली के दिन सुबह से ही हम औरतें रसोई में पकवान बनाने में लगी हु थी. सारे मरद या तो किसी की दालान पर गप्प लड़ा रहे थे या होली खेलने की तैयारी में लगे थे. कुछ देर के बाद ही मोहल्ले में होली का शोर-गुल होने लगा. सारे जवान लौंडे एक-दुसरे पर रंग डाल रहे थे. रसोई का काम ख़तम होने के बाद मेरी सास-ननदें नहाने नदी चली गई. मैं घर में अकेली थी. मैं अकेले बैठे-बैठे पिछले साल की होली के बारे में सोच रही थी की अचानक जोर से दरवाजा खुलने की आवाज हुई. बाहर निकली तो देखा की गोपी पुरे रंग में रंगा भूत लग रहा है और दांत निकालते हुए हाथ में रंग लेकर मेरी ओर आ रहा है.
|