RE: Sex Hindi Kahani बलात्कार
गतान्क से आगे..................
पूरे वक़्त रूपाली बेखुदी में कुछ ना कुछ बुदबुदाती रही. उसे कुछ याद नहीं था कि कैसे मोतिया और सत्तू कमसिन कमला को लेकर, खेतों के बीच से होते हुए अपने कच्चे घरों की ओर बढ़ गये थे और कैसे कालू और मुंगेरी उसे हवेली की ओर पहुँचाने के लिए ले गये. जब होश संभाला तो अपनी वीरान हवेली बहुत पास नज़र आई.
सुबह के कोई सवा पाँच बाज रहे होंगे…….सूरज की हल्की लालिमा अंधेरे को चीरने को तैय्यार हो रही थी, मगर रूपाली को अब भी अंधेरेपन के सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
हवेली के आँगन में गूंगा चंदर गुम-सूम सा आँगन की मुंडेर पे बैठा था. बगल में उसने अपना लाल-सफेद गमछा रखा हुआ था. उसने एक नज़र रूपाली को देखा, फिर कालू और मुंगेरी को और वापस रूपाली को. उसे समझ नहीं आ रहा था पूरी रात रूपाली किधर थी?
कालू ने कहा,”सुबह सुबह हम लोग खेत को जाई रहे…..उन्हा पे बेहोस पड़ी मिली हमका ठकुराइन….”. रूपाली ने एक बार कालू की ओर देखा……..कहना मुश्किल था, आँखों में नफ़रत थी, उदासीनता या सिर्फ़ एक कभी ना भरने वाला शून्य.
खामोशी से रूपाली हवेली में दाखिल हो गयी और अपने शयन-कख़्श में घुसकर अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. ख़यालो में कभी अपने मरे हुए पति को मुस्कुराता हुआ देखती तो कभी अपने ससुर और देवर को, जो सब पहले ही रूपाली को इस बड़ी सी ज़ालिम दुनिया में अकेला छोड़ के कब्के जा चुके थे. फुट-फुट के रोने लगी बेचारी!
चंदर उसके पीछे पीछे अंदर आया था और चंदर को कुछ समझ नहीं आया था. वो किसी बेवकूफ़ बच्चे की तरह, रूपाली को रोता हुआ देख रहा था और अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था. रूपाली का रुदन ऐसा था मानो कोई जानवर गहरी पीड़ा में कराह रहा हो.
बाहर से कालू और मुंगेरी खिसक चुके थे.
चंदर ने धीरे से रोती हुई रूपाली के कंधे पे हाथ रखा. रूपाली धीरे से मूडी, उसने एक नज़र चंदर की ओर देखा और फिर ज़ोर से उसे सीने से लगाते हुए ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,”चंदर….चंदर……आआआआहह…….”. जैसे जैसे चंदर ने रूपाली के चेहरे के निशान, गले पे खरोंच, ब्लाउस के दो टूटे हुए बटन आदि पे गौर किया, उसकी आँखों की आगे सारा माजरा सॉफ होता चला गया. एक ही पल में नौकर-मालकिन का रिश्ता मानो ख़तम हो गया हो. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो, चंदर घर का मर्द था और रूपाली उसकी, इस घर की इज़्ज़त, जिसको कुछ चमारों ने तार-तार करके रख छोड़ा था…..
“उूुुुुुुउउ……आआआआआआआआआआाअगगगगगगगगगगगगघह….हाआआआआआआआआआ……
..आआआआआआआाागगगगगगगगगगगघह,”, गूंगे के मुँह से कराह निकली और उसने इधर उधर देख के पास पड़ी बड़ी सी गुप्ती निकाल ली. जैसे ही रूपाली ने चंदर का वीभत्स चेहरा और हाथ में खुली हुई गुप्ती देखी……वो ज़ोर से चीखी,”चंदर नहीं…..तुझे मेरी कसम, कोई भी ऐसा काम मत करना….तुझे मेरी कसम.” चंदर जो गुप्ती को कालू के जिगर के पार कर देना चाहता था, रूपाली की बात सुन कर ठिठक के रुक गया…एक नज़र रूपाली को देखा और फिर उसने ख़तरनाक गुप्ती को पटक कर फेंक दिया……….ज़ोर से रूपाली को सीने से लगाया और दोनो फूट फूट कर रोने लगे.
दोपहर, कोई 3 बजे का समय. चौपाल सजी हुई थी. गाओं के बीचों बीच बड़ा सा बरगद का पेड़ था और उसकी घनी छाया में चार चारपाइयाँ लगी हुई थी. एक पर गाओं के सरपंच, पंडित मिश्रा जी बैठे हुए थे. दूसरी चारपाई पे ठाकुर रणबीर सिंग, तीसरी पे ठाकुर सरी राम विराजमान थे. चौथी चारपाई को कुछ दूरी पे रखा गया था और उसपे नीच जाती के दो बुज़ुर्ग, किसान कुम्हार और छेदि मल्लाह बैठे थे. पंडित जी और दोनो ठाकुर अपना अपना हुक्का गुड-ग्डा रहे थे जबकि किसान कुम्हार और छेदि मल्लाह अपने सूखे होंठों पे बीच बीच में जीभ फिरा लेते थे. कहना मुश्किल था कि वो ऐसा हुक्के के लालच में कर रहे थे या पंचायत की खबराहट की वज़ह से.
15-20 साल पहले तक भी, सोचना भी नामुमकिन था कि गाओं की पंचायत में नीच जाती के प्रतिनिधि हो सकते हों……मगर जबसे समय बदला, लालू-मायावती का ज़माना आया और ग्राम स्तर पर भी पिकछडी जातियों को प्रतिनिधित्व मिलने लगा था. ठाकुर-बामान भी इस बात से डरते थे कि कहीं कोई नास्पीटा उन्हें शहरी अदालत में ज़ुल्म के मामले में ना घसीट ले और अन्मने मंन से उन्होने पंचायती स्तर पे भी पिछड़ी जात वालों को प्रतिनिधित्व देना शुरू कर दिया था………चेहरे पे बेतरतीब दाढ़ी वाला किशन कुम्हार और घबराया हुआ चीदी मल्लाह इसी प्रतिनिधित्व के प्रतीक थे.
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