RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --16
गतान्क से आगे........................
वो अपनी सोच में ही गुम था के अपने लंड पर उसे एक आठ महसूस हुआ. हाथ बिंदिया का था. वो जाग गयी थी. चंदर के उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.
"क्या हुआ?" उसने इशारे से पुच्छा "क्या चाहिए?"
"तेरा लंड" बिंदिया ने कहा और पूरी चंदर के उपेर चढ़ गयी.
चंदर अपनी सोच में ही गुम था के अपने लंड पर उसे एक हाथ महसूस हुआ. हाथ बिंदिया का था. वो जाग गयी थी. चंदर के उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.
"क्या हुआ?" उसने इशारे से पुछा "क्या चाहिए?"
"तेरा लंड" बिंदिया ने कहा और पूरी चंदर के उपेर चढ़ गयी.
पर चंदर बिंदिया को तड़पाने के मूड में था. जैसे ही बिंदिया उसके उपेर आई, उसने उसके कंधे पकड़े और फिर बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके उपेर आ गया.
"क्या चाहिए?" उसने फिर इशारे पुछा
"तेरा लंड" बिंदिया ने जवाब दिया. वो पूरी तरह से नंगी पड़ी थी.
"कहाँ चाहिए?" चंदर ने फिर इशारा किया.
"अर्रे तू जहाँ चाहे डाल दे. एक विधवा औरत को बिस्तर पे गरम करके पुछ्ता है के कहाँ घुसाना है? तू जहाँ चाहे घुसा दे" बिंदिया बेसब्री होती हुई बोली.
उसने एक हाथ अपने और चंदर के बीच में घुसाके उसका लंड पकड़ लिया. खुद वो बिस्तर पर अपनी कमर पर लेटी हुई. टांगे दोनो फेली हुई और टाँगो के बीच चंदर बैठा था. चादर कबकि सरक कर बिस्तर से नीचे गिर चुकी थी.
बिंदिया ने लंड पकड़ कर उपेर उपेर से ही अपनी चूत पर रगड़ा.
"म्म्म्मम, और तू बता, तुझे क्या चाहिए?" वो मुस्कुराइ.
चंदर ने उसकी चूत की तरफ इशारा किया
"तो डाल ना अंदर. रुका क्यूँ है," बिंदिया चंदर को अपनी बाहों में खींचती हुई बोली. उसने अपनी टांगे और खोली और गांद थोड़ी हवा में उठाई ताकि चंदर पूरी तरह से उसकी चूत में समा सके
"तेरा जब दिल करे तब आके घुसा ले, मैं रोकूंगी नही." बिंदिया मदहोश सी आवाज़ में बोली
उसने अपने दोनो हाथों से चंदर की गांद को जाकड़ लिया.अपने घुटने को अच्छी तरह फेलते हुए मोड़ा और अपने चूत को लंड पर दबाया. लंड का अगला हिस्सा बड़ी आसानी से चूत में घुसता चला गया.
"आआहह" बिंदिया ने आह भरी और अपनी आँखें बंद कर ली.
चंदर उपेर से बिंदिया की तरफ देख कर मुस्कुराया. बिंदिया पूरी तरह उसके वश में थी. वो जो चाहता, वही करती.
बिंदिया ने चंदर का चेहरा पकड़ा और अपनी छातियो की तरफ खींचा. उसका एक हाथ चंदर के सर पर था और दूसरा हाथ उसकी गांद पर.
"आधी रात को फिर से गरम कर दिया तूने मुझे" बिंदिया बड़बड़ाई, नीचे से वो अपनी गांद हिलकर अपनी चूत चंदर के लंड और टट्टो पर रगड़ रही थी.
और फिर कमरे में वाशना का तूफान सा आ गया. दोनो में से किसी को होश नही था के नीचे ज़मीन पर एक 10-12 साल की बच्ची पायल सो रही थी. चंदर ने लंड चूत में तेज़ी के साथ अंदर बाहर करना शुरू कर दिया और बिंदिया ने अपनी दोनो टांगे कसकर उसकी कमर पर मोड़ ली. उपेर से आते चंदर के हर धक्के का जवाब वो नीचे से अपनी गांद उठाकर दे रही थी. अपनी दोनो पैर उसने चंदर की गांद पर अड़ा रखे थे. वो थोड़ी देर पहले ही चंदर से चुदवा कर सोई थी पर चंदर समझ चुका था के इस औरत को वो जितना चाहे चोदे, उसको कभी भी पूरा नही पड़ेगा.
नीचे से बिंदिया पागल की तरह कराहती हुई अपनी गांद हिला रही थी. लंड चूत में पूरा अंदर बाहर हो रहा था. चोदते चोद्ते चंदर ने उसकी एक चूची अपने मुँह में ले ली और निपल चूसने लगा. कभी वो निपल को होंठो में दबाके छूता, कभी जीभ फिराता और कभी दाँत से काट देता. नीचे से बिंदिया की आती आवाज़ को सुनकर वो जानता था के उसके नीचे जो औरत थी, वो बिस्तर पर किसी रंडी से कम नही थी.
"म्म्म्मम, ज़ोर से, ज़ोर से , चंदर!" बिंदिया जैसे चिल्ला उठी. "ओह्ह्ह्ह, चंदर, चोद मुझे! ह, बहुत मज़ा आ रहा है, पूरा अंदर घुसा.... हां ऐसे ही ... आअहह!"
चंदर पूरी ताक़त से लंड चूत में अंदर बाहर करने लगा.
"चोद बेटा, चोद मुझे!" नीचे पड़ी बिंदिया उसको और उकसा रही थी. "अपनी माँ को ही चोद रहा है तू ....आआहह ... मर्द की तरह चोद, बच्चे की तरह क्या चोद रहा है ... और ज़ोर से ... और ज़ोर से!"
चंदर ने अपने दोनो हाथों से बिंदिया की गांद को पकड़ा हुआ था और रगड़ रहा था. उसकी एक अंगुली गांद पर सरकते सरकते सीधी बिंदिया के गांद के बीच आआए.
"आआअहह!" बिंदिया तड़प उठी. "ये क्या कर रहा है ... यहाँ भी घुसाएगा क्या?!"
उसकी आवाज़ सुनते ही चंदर ने भी बिना रुके अपनी अंगुली थोड़ी सी बिंदिया की गांद के अंदर कर दी और पूरी तेज़ी से लंड अंदर बाहर करने लगा.
गांद में अंगुली जाते ही बिंदिया किसी नागिन की तरह फूंकारने की आवाज़ करने लगी. चंदर की आँखों में देखते हुए वो उसकी अंगुली पर अपनी गांद सिकोड़ने लगी और अचानक आगे को होकर उसका निचला होंठ चूसने लगी. चूसने क्या वो तो जैसे उसका होंठ चबा रही थी. चंदर को एक पल के लिए लगा के मज़े के कारण कहीं ये औरत बिस्तर पर मर ही ना जाए.
"ऊओ! ह, ज़ोर से, ज़ोर से!" को चिल्लाई. "पूरा मर्द हो गया है रे तू तो! सोचा भी नही था मैने के जिस ज़रा से बच्चे को अपने घर लेके आ रही हूँ वहीं एक दिन बिस्तर पर मुझे रगड़ेगा. कब इतना बड़ा हो गया रे तू के अपनी माँ के बराबर की औरत को चोद रहा है?"
बिंदिया बड़बदाए जा रही थी
चंदर का पूरा ध्यान अपने लंड की तरफ था जिसे वो बिंदिया के चूत में अंदर बाहर होता देख रहा था. बिंदिया की चूत कितनी गीली हो रखी थी और कितनी आसानी से उसका लंड ले रही थी.
अचानक बिंदिया का पूरा शरीर जैसे थर्रा उठा. उसने अपनी गांद हवा में जितना हो सका उठा दी और लंड चूत में पूरा का पूरा ले लिया. उसकी साँस जैसे अटकने लगी थी. चंदर के हर धक्के पर उसकी चूचियाँ हिल रही थी जिन्हें बिंदिया ने अपने दोनो हाथों में जाकड़ लिया.
"मेरा निकलने वाला है चंदर!" वो बोली. "अब रुकना मत ... रुकना मत! हे भगवान! हन ऐसे ही ... करता रह !ज़ोर से, ज़ोर से! ज़ोर से चोद, चंदर! मार मेरी चूत! घुसा दे अंदर, और अंदर, और तेज़!"
चंदर ने ठीक उसी पल अपनी अंगुली तकरीबन आधी बिंदिया की गांद के अंदर कर दी. और इसी के साथ बिंदिया ने उसको बुरी तरह जाकड़ लिया, अपने दाँत उसके कंधे पर गढ़ा दिए.
"आआहह!" बिंदिया चिल्लाई. "मर गयी मैं!"
चंदर भी पूरी तेज़ी से अपने लंड चूत में अंदर बाहर करने लगा. वो लंड पूरा बाहर निकाल लेता और फिर से अंदर घुसाता. और फिर उसके गले से एक भारी आवाज़ निकली और लंड से वीर्य छ्होट पड़ा और बिंदीय की चूत को भरने लगा.
बिंदिया को चूत में भरते हुए चंदर के पानी का एहसास हुआ तो वो एक बार फिर चिल्ला उठी.
ठकुराइन सरिता देवी डरी सहमी एक तरफ खड़ी थी. उनकी गाड़ी के पास ही उनके ड्राइवर की लाश पड़ी थी जिसका गला काट कर जान ले ली गयी थी. हत्यारे उनके सामने ही खड़े थी.
वो राजन के लोग थे ये बात वो समझती थी. राजन उस इलाक़े का एक जाना माना डकेट था जो रात को सड़क से गुज़रते मुसाफिरो को लूटने के लिए मश-हूर था. इस वक़्त उनके गिरोह ने ठकुराइन की गाड़ी को रोक कर उन्हें घेरा हुआ था.
अपनी बहेन के घर से निकलते वक़्त ही ठकुराइन को लग गया था के वो ठीक नही कर रही हैं. वो अपनी छ्होटी बहेन से मिलने पास के गाओं आई हुई थी.
साथ में एक ड्राइवर था और वो 17-18 साल का लड़का. उनका इरादा तो रात को रुक कर अगले दिन जाने का था और ठाकुर साहब से भी वो यही कह कर आई थी पर उस लड़के की ज़िद पर वो शाम को ही निकल पड़ी.
वो जब अपने घर के लिए वापिस निकली तो शाम के तकरीबन 5 बज रहे थे. यूँ तो रास्ता सिर्फ़ 3 घंटे का था और ठकुराइन जानती थी के अंधेरा होते होते वो वापिस हवेली पहुँच जाएँगी पर उस दिन किस्मत ही धोखा दे गयी.
रास्ते में पहले तो गाड़ी पंक्चर हुई और फिर खराब जिसका नतीजा ये निकला के अब वो अकेली 6 लोगों से घिरी खड़ी थी और ड्राइवर की लाश नीचे ज़मीन पर पड़ी थी.
अंधेरा फेल चुका था. रात के यूँ तो सिर्फ़ 9 ही बजे थे पर ये गाओं का इलाक़ा था, शहर का नही. यहाँ लोग शाम के 7 बजते बजते अपने घरों में घुस जाते हैं और 9 बजते बजते तो सो जाते हैं. सरिता देवी जानती थी के इस रास्ते पर अब कोई नही आएगा जो उनकी मदद कर सके. और कोई अगर भूले भटके आ भी गया तो उसका भी वही हाल होना है जो उनके ड्राइवर का हुआ.
"ठकुराइन सरिता देवी जी" अंधेरे से एक भारी आवाज़ आई "बंदा आपको झुक कर सात सलाम ठोकता है"
आवाज़ के साथ ही आवाज़ का मालिक अंधेरे से निकल कर बाहर आया. बाकी के 6 लोगों ने अपने चेहरे पर कपड़ा डाल रखा था, बस एक वही था जिसके चेहरे पर को नकाब नही थी. ठकुराइन उसको देखते ही पहचान गयी. उसकी तस्वीर कई बार अख़बार में देखी थी.
"राजन" उन्होने धीमी आवाज़ में कहा
"भाई कमाल हो गये" राजन हस्कर बोला "आप तो पहचान गयी हमें"
"ये तुम ठीक नही कर रहे राजन" ठकुराइन ने धमकी देने की कोशिश की "अगर ठाकुर साहब को पता चला तो ..."
"तो क्या?" उनकी बात बीच में ही काट कर राजन ज़ोर से चिल्लाया "तो क्या?"
कहते ही अचानक वो बहुत तेज़ी से सरिता देवी के करीब आया और उनके चेहरे के बिल्कुल करीब आकर रुक गया.
"तो क्या ठकुराइन?" उसने फिर सवाल किया. सरिता देवी के मुँह से जवाब ना निकला.
राजन धीरे से मुस्कुराया और उस लड़के की तरफ गया. उसके 2 आदमी लड़के को दोनो तरफ से पकड़े खड़े थे. राजन उसके करीब आया और लड़के के सर पर प्यार से हाथ फेरा.
"बेटा है आपका?" उसने ठकुराइन से पलट कर पुछा
सरिता देवी ने जवाब नही दिया.
"मार दो लड़के को" उसने अपने एक आदमी से कहा
"नही" सरिता देवी फ़ौरन चिल्लाई.
राजन एक भारी डील डौल का आदमी था. कद 6"4 से कम नही था और उसपर वो हाढ़ चौड़ा था. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूँछछ और रंग एकदम काला. रात के अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे खुद यमराज उतर आए हों.
"क्यूँ क्या हुआ?" राजन ने पुछा "अभी जब मैने पुछा के क्या आपका बेटा है तो आपने कोई जवाब नही दिया. मुझे लगा के नौकर है कोई. वैसे हुलिए से नौकर ही लग रहा है"
"उसको कुच्छ मत करना" सरिता देवी ने कहा
"चलिए फिर पुछ्ता हूँ" राजन बोला "क्यूँ? बेटा है आपका?"
सरिता देवी ने हां में सर हिलाया.
"नाम क्या है बेटा तुम्हारा?" उसने लड़के से पुछा
लड़के ने कोई जवाब नही दिया. राजन ने फिर पुचछा पर फिर भी वो लड़का चुप चाप खड़ा उसको देखता रहा.
"अबे बोलता क्यूँ नही? मुँह में ज़ुबान नही है? गूंगा है?" राजन ने अचानक उस लड़के के बाल पकड़ कर खींचे.
लड़का फिर भी कुच्छ नही बोला. बस डरा सहमा सा राजन को देखता रहा.
"लगता है गूंगा ही है सरदार" राजन का एक आदमी पिछे से बोला.
"ठाकुर खानदान में गूंगे पैदा होने लगे? ऐसे कैसे चलेगा?" राजन ज़ोर से हसा. उसके पिछे पिछे उसके आदमी भी हस्ने लगे.
"तुम्हें जो चाहिए ले लो राजन" सरिता देवी हिम्मत करके बोली "हमें जाने दो"
राजन पलटकर उनके करीब आया.
"मुझे जो चाहिए ले लूँ?" उसने मुस्कुराते हुए पुचछा "जो भी चाहिए ले लूँ? आपका पता भी है के मुझे क्या चाहिए?"
कहते हुए उसने सरिता देवी पर उपेर से नीचे तक नज़र फिराई. सर से पावं तक ऐसा जायज़ा लिया जैसे उन्हें आँखो आँखो में नाप रहा हो. नज़र एक पल के लिए ठकुराइन की चूचियों पर रुकी और फिर उनके चेहरे पर. वो धीरे से मुस्कुराया.
ठकुराइन इशारा समझ गयी.
क्रमशः........................................
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