Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:31 PM,
#37
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मंदिर में जो भंडारा लगा था उधर ही हम लोगो ने अपना दोपहर का भोजन खाया रति के चेहरे की मायूसी मर दिल जला रही थी मैंने घडी में टाइम टाइम देखा शाम के ४ बज रहे थे मैंने उसको चलने का कहा तो उसने कहा थोड़ी देर में चलेंगे बहार कुछ दुकाने सी लगी थी मैंने नीनू के लिए एक चेन खरीद ली रति बोली- तुम्हारी गर्लफ्रेंड के लिए 

मैं- वो बस दोस्त है मेरी पर उसी के लिए ली है 

वो मुस्कुरा पड़ी और बोली- आओ तुम्हे कुछ दिखाती हूँ मेरे साथ आओ
वहां से थोड़ी दूर आने पर एक साइड में खेतो का इलाका शुरू होता था और रोड के दूसरी तरफ पर थोडा जंगली टाइप इलाका था रति ने वो राह पकड़ी मैंने कहा तो कुछ नहीं पर मन में सोचने जरुर लगा की ये कहाँ ले जा रही है पर मैं उसके साथ ही चलता रहा करीब १० मिनट चलने के बाद हम लोग एक ऐसी जगह पर पहूँचे जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी घने पेड़ पोधो झाड झंखाड़ के बीच में ये एक पुरानी छत्री सी थी बीते ज़माने में मुसाफिर लोग थकान मिटाने के लिए इसका प्रयोग करते होंगे राजस्थान के निराले रंग ये तो वक़्त की मार से इसका ये हाल हो गया था पर रुतबा वैसे का वैसे ही था 


रति- अच्छा लगा तुम्हे 

मैं- बहुत शानदार 

वो- हां 

मैं- पर तुम्हे कैसे पता लगा इसका 

वो- एक बार किसी के साथ आई थी इधर तभी से आ जाती हूँ यहाँ 

मैं- किसके साथ आई थी जरा हमे भी तो बता दो 

रति- क्या तुम भी कुछ भी सवाल कर बैठते हो

मैं- वो सब छोड़ो पर यहाँ हम आये क्यों है वो बताओ 

वो- देखो कितनी शांति है यहाँ पर मन को कितना सुकून मिलता है 

मैं- मेरा सुकून तो तुमने चुरा लिया है 

वो- तुम फिर से शुरू हो गए 

मैं- तुम बार बार रोक जो देती हो 

रति वही सीढियों पर बैठ गयी उसका आँचल एक बार फिर से सरक गया ठोस उभार जैसे कपड़ो की हर कैद को तोड़कर आजाद होने को मचल रहे थे उसकी धोंकनी की तरह ऊपर नीचे होते उभार किसी को भी दो पल में गरम कर दे अच्छे अच्छो को धर्म भ्रष्ट कर दे मैं भी उसके पास ही बैठ गया सच कहू तो थकन सी हो रही थी मैंने अपना सर उसके घुटनों पर रखा और वाही पर लेट गया 

रति- क्या कर रहे हो कपडे ख़राब हो जायेंगे तुम्हारे 

मैं- होने दो क्या फरक पड़ता है , वैसे ज्यादा फिकर हो रही है तो अपनी साडी को बीचा दो मैं तो बुरी तरह से थक गया हूँ पैरो में अब जान न रही 

रति- अब तुम इतने भी ख़ास ना हो जो तुम्हारे लिया इतना भी किया जाये

मैं- तो किसके लिए करोगी 

वो- कोई तो है ही 

मैं- थोड़ी नेमत मुझ गरीब पर भी कर दो 

वो- हर दुआ थोड़ी ना कबूल हुआ करती है मुसाफिर बाबु 

मैं- तो क्या तुम्हारे दर से भी खाली हाथ जाना पड़ेगा 

वो- वैसे कितने दरो पर ठोकर खायी है तुमने 

मैं- पहले का तो पता नहीं पर तुम्हारे दर से खाली न जाऊंगा 

वो- तुम्हारे हसीं सपने 

मैं- सपने कभी कभी सच भी हो जाते है 

वो- मैं ना मानु 

मैं- तुम्हारी मर्जी 

हमारी बाते मेरे तन बदन को रोमानियत से भर रही थी एक कमबख्त मेरा लंड मुझे दो पल भी चैन नहीं लेने दे रहा था सुनसान सी उस जगह पर हम दोनों अपने मन की बाते बतला रहे थे मुझे ख्याल आ रहा था की कही रति यहाँ मुझसे चुदना तो नहीं चाहती पर ख्यालो का क्या वो तो ऐसे ही आते जाते रहते लेते लेटे ही मैं उसके पेट पर उंगलिया फिराने लगा वो बोली- मत करो ना शरारत गुदगुदी होती है 

मैं- होने दो मैं क्या करू 

वो- मानो ना 

हमे वहा पर काफ़ी देर हो गयी थी रति की निगाह मेरी घडी पर पड़ी तो वो बोली बाप रे साढ़े पांच हो गए देर हो रही है हमे वापिस भी तो चलना है वो कह ही रही थी की मोसम अजीब सा होने लगा धुल भारी हवा चलने को लगे 

रति- उफ्फ्फफ्फ्फ़ लगता है आंधी आने वाली है 

मैं- गर्मी को देख कर अंदाजा हो रहा था मुझे भी अब क्या करे 

वो- आंधी तो सर पर आ गयी दिवार की ओट ले लो थोड़ी देर में ये बवंडर चला जायेगा फिर अपन लोग भी चल पड़ेंगे 


हम खड़े हुए दिवार की ओट में ऊपर से गर्मी बहुत थोड़ी ही देर में धुल भरी हवा चलने लगी हर तरफ बस मिटटी सी उड़ने लगी रति सरक कर मेरे पास आ गयी हम दोनों एक दुसरे के आमने सामने खड़े थे 

वो- ऐसे क्या देख रहे हो 

मैं- तुम्हे देख रहा हूँ 

वो- इस तरह मत देखो मुझे 

मैं- क्यों ना देखू देखने की चीज़ तो देखि ही जाएगी ना 

वो- तो मैं तुम्हे चीज़ लगी 

वो कह ही रही थी की झरोखे से धुल हमारी तरफ आई और हमे ढूल्म धुल कर गयी रति के पुरे बाल मिटटी से सन गए वो खांस ने लगी इसी में उसका पल्लू उसके हाथ से छुट गया वो थोडा सा पीछे को हुई पर मैंने उसकी बांह को पकड़ लिया और रति को खीच लिया अगले ही पल वो मेरे सीने से आ लगी , ये मेरे लिए एक बहुत ही कमजोर लम्हा था जिसमे मैं अपने आप पर बिलकुल भी काबू ना रख पाया मेरा हाथ उसकी नाजुक पीठ पर कसता चला गया और बिना कुछ सोचे समझे मैंने अपने होंठ उसके अनछुए रस से भरे मदिरा के प्यालो पर रख दिए मेरे लबो का अहसास पाते ही रति के तन बदन में एक आग सी लग गयी उसने खुद को मुझसे अलग करने की कोशिश की पर मेरी पकड़ मजबूत थी 


वो जैसे कुछ कहना चाहती थी मुझे रोकना चाहती जैसे ही उसके होंठ खुले मैंने अपने होंठो में उसके निचले होंट को भर लिया और कास कर उसे चूसने लगा वो लगातार मुझसे दूर होना चाह रही थी पर मैंने उसे नहीं छोड़ा जबतक की हमारी साँसे फटने के कगार पर नहीं आ गयी हांफते हुए वो मुझसे दूर हुई उसके होंठ से खून रिसने लगा 

वो मुझसे थोडा दूर गयी और बोली- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की कैसे किस किया मुझे तुमने 
मैं उसके पास गया और अपनी ऊँगली को उसके होठो पर रखते हुए बोला- रति कुछ सवालों के जवाब मेरे पास नहीं है बेहतर होगा की तुम अपने आप से पूछ लो 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:31 PM

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