Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:38 PM,
#83
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची को मानाने की बहुत कोशिश की गयी माँ- पिताजी खुद उनके घर गए पर उन्होंने वापिस आने से साफ़ मना कर दिया , अब ये घर घर रहा नहीं था इन सब चीजों का मुझ पर बहुत गहरे असर हुआ था हर पल चाची के जाने का मैं खुद को दोषी मानता था बिमला पर हर समय घरवालो की नजरे गडी रहती थी , घर में जैसे मुर्दानगी सी छा गयी थी पर अन्दर ही अन्दर मैं टूट रहा था कुछ भी अच्छा नहीं लगता था रोज सुबह मैं घर से निकल जाता था शहर की और शाम होने पर जब कोई बहाना बचता नहीं तो घर का रुख करता था मैं 


नीनू को मैंने अपने दिल की हर बात बता दी थी पर वो भी क्या कर सकती थी अब वो मेरे घर के मामलो में थोड़ी ना कुछ कर सकती थी , बस इस दिलवाले को अपने दिल के इस बोझ को ढोना था , आंसू भी अपने थे अंक भी अपनी थी करीब एक महिना गुजर गया था उन बातो को पर चाची के बिना घर , घर लगता नहीं था उस दिन मैंने मम्मी से पूछा लिया की 

मैं- मम्मी, चाची कब आएँगी 

वो- मुझे नही पता 

मैं- आप कोशिश क्यों नहीं करती उनको वापस लाने की 

वो- तुझे क्या लगता है हमने कोशिश की नहीं मैं रोज बात करती हूँ पर कुछ चीज़े हमे समय पर छोड़ देनी चाहिए 

मैं- पर घर में उनकी कमी है क्या आप महसूस नहीं करते हो 

वो- मेरे बच्चे, उसको कभी अपनी देवरानी नहीं समझा, सदा अपनी बेटी समझा है पर मुझे ऐसे लगता है की कुछ समय देना चाहिए 

मैं- आप कहो तो मैं चला जाऊ उनको लेने क्या पता वो मान जाए 

मम्मी- तू भी कोशिश करके देख ले, कल चले जाना वैसे भी घर का माहोल ठीक नहीं है तेरे ऊपर भी इन बातो का असर पड़ रहा है , क्या पता सुनीता तेरी बात मान ले 

मैं- ठीक है मैं कल सुबह ही चला जाऊंगा 

अपने कमर में आके मैंने थोडा बहुत सोच विचार किया मुझे बस एक सवाल खाए जा रहा था की चाची ने चाचा को कुछ क्यों नही कहा , चुप चाप घर से क्यों चली गयी जबकि उनकी इनसब में कोई गलती थी नहीं तो फिर क्यों गयी वो जबकि गुनेहगार तो अब भी खुल्ला ही घूम रहा था उसको क्या फरक पड़ा बिमला नहीं तो कोई और मिल जाएगी उसको मेरा दिल बहुत ज्यादा दुखी होने लगा तो मैं घर से बाहर आ गया , 


मुझे एक सहारे की जरुरत भी एक दोस्त की जरुरत थी जिस से मैं अपने मन की बात कह सकू पर आज देखो तक़दीर कोई मेरे पास था ही नहीं, पिस्ता को मैं चाह कर भी ये बात बता नहीं सकता था घर की बदनामी होने का डर तो कुछ समझ आये नहीं ,खेत में बाजरे की बुवाई करनी थी बस कुछ दिनों में तो मैंने सोचा की खेत को जोत ही आता हूँ वर्ना फिर कोई न कोई अपना गुस्सा काम के बहाने स उतारे गा तो मैं ट्रेक्टर लेके खेत में पहूँच गया वहा जाके देखा की बिमला घास काट रही है मैंने वैसे भी उसको अनदेखा करना सीख लिया था 


मैंने सोचा थोडा पानी पि लू फिर जुताई का काम शुरू करूँगा पानी पि रहा था की बिमला मेरे पास आ गयी और बोली 

“मिल गया तुझे चैन, मेरे जीवन में आग लगा के ”

मैं- और तेरी वजह से चाची का जो हाल हुआ है उसका क्या 

वो- तो चलने देता न जो चल रहा था 

मैं- शर्म ना आ रही अभी भी जा जाके चाचा का लोडा चूस ले अभी भी 

वो- चूस लुंगी मुझे कौन रोकेगा पर मेरी बददुआ लगेगी तुझे 

मैं- चल अपना काम कर तेरी जैसी रंडियों से बात करता नहीं मैं 

वो- साले, मुझे रंडी बनाया किसने , किसने बहकाया मुझे याद है या याद करवाऊ मैं

बिमला की बात धाड़ से मेरे सीने में आके लगी, सच ही तो कहा था उसने उसे रंडी बनाया किसने , वो मैं ही तो था जिसने उसे बहकाया था , वो मैं ही तो था जिसने उसको ये रास्ता दिखाया था अगर मैं अपनी हवस की आग में उसको ना झोंकता तो आज इतनी जिन्दगिया यु रिस्तो की आंच में ना झुलसती सब से बड़ा गुनेहगार तो मैं ही था 

बिमला- मैं तो अपनी ग्रहस्थी जैसे तैसे करके फिर से जमा लुंगी , और हां चौड़े में ऐलान करती हूँ की चाचा का साथ न छोडूंगी चाहे पूरा कुनबा फांसी लगा ले, रही बात तेरी तो तू देखेगा की जब एक ज़ख़्मी औरत दुश्मनी पे आती है तो वो किस हद तक जा सकती है तेरी मेरी दुश्मनी की आग में पूरा कुनबा झुलसेगा 
मैं- साली, मेरा दिमाग ख़राब मत कर वर्ना इधर ही पटक कर चोद दूंगा, तू निभाएगी दुश्मनी तू, तेरी गांड को रोज देख लिया कर जिसे मैंने मारी थी तुझे मेरी याद आती रहेगी बहन की लौड़ी, कान खोल के सुन तू चाचा से चुद या चाचा के चाचा से मुझे कोई लेना देना नहीं , माँ चुदा तेरी पर इतना जरुर है की तेरा रास्ता हर कदम पे मैं काटूँगा तू और तेरे जितने भी यार हो मेरा बाल उखाड़ के दिखा देना 


मेरा दिमाग हद से ज्यादा खराब हो रहा था तो फिर मैं वापिस घर ही आ गया पर बिमला की कही बात मेरे दिल को किसी छुरी की तरह चीर रही थी उसका कहना सही था मैंने ही तो उसको अपने पति से बेवफाई करवाई थी वो मैं ही तो था जिसे उसकी चूत मारनी थी मुहे था सा डर सा लगने लगा की बिमला की बद्दुआ कही सच में लग गयी तो, ........................

वो रात बस उधेड़बुन में ही कट गयी मैं समझ पाया नहीं की बिमला क्या गुल खिलाने वाली थी पर जिस विश्वास से उसने कहा था की उसका और चाचा का नाता अब नहीं टूटेगा उस से मुझे अंदाजा हो गया था की इनपे चाहे लाख पहरे बिठा लो ये कोई ना कोई मौका ढूंढ ही लेंगे पर अपने को उस से ज्यादा फिकर चाची को घर लाने की थी मैंने अपना बैग पैक किया और चाची के गाँव की तरफ निकल लिया दिल में एक आस लिए की उनको अपने साथ लेकर ही आऊंगा , उबड़ खाबड़ रास्तो पर चलती बस अपनी रफ़्तार मुझे मंजिल की तरफ ले जा रही थी 


शाम को करीब 6 बजे मैं चाची के घर पंहूँचा, शाम का समय था तो वो दरवाजे पर ही बैठी थी गुमसुम सी मुझे देखते ही वो थोड़ी आश्चर्यचकित हो गयी , उनके सूखे पड़ गए होंठो पर एक मुस्कान सी फ़ैल गयी 
वो- अरे तुम, अचानक यहाँ पर , कैसे 

मैं- बस आपसे मिलने आ गया 

वो मुस्कुराई और मुझे अन्दर ले गयी, घर पे उनके आलावा बस नाना- नानी ही थे मैंने उनको अभिवादन किया चाची के भाई भाभी नोकरी के सिलसिले में बाहर रहते थे , थोड़ी बहुत बाते होने लगी थोड़ी देर में चाची चाय- नाश्ता ले आई , उसके बाद नानी मुझे घर के बारे में पूछने लगी अब मैं क्या कहता बस हां हूँ ही करता रहा मुझे पता था की नानी भी अपनी बेटी की वजह से दुखी थी पर मैं तैयार था उनकी कडवी बाते सुन ने के लिए थोड़ी देर बाद नाना घर से बाहर चले गए तो चाची मुझे अपने साथ ऊपर कमरे में ले आई 

वो- तू क्यों आया यहाँ पर 

मैं- आपको लेने 

वो- अब मैं उस घर में नहीं जाउंगी 

मैं- चाचा के साथ मत रहना पर मेरे घर तो चलो 

वो- चाचा भी तो तेरा ही है 

मैं- आप भी तो मेरी हो 

वो- अब मैं ना चल पाऊँगी 

मैं- मेरे लिए भी ना चलोगी 

वो- जो अपना के ले गया था उसने तो धोखा दे दिया 

मैं- अपने दोस्त का घर समझ कर चलो 

चाची थोड़ी सी इमोशनल हो गयी थी वो बेड पर बैठ गयी, उनकी आँखों से आंसू बहने लगे मैं और भी परशान होने लगा मैं उनके आंसू पौंछने लगा तो वो मेरे सीने से लग के रोने लगी काफ़ी देर तक वो रोते ही रही मैं बस हौले हौले से उनकी पीठ सहलाता रहा , उनके दर्द से जो जुड़ा था मैं मेरे मन में मिली जुली फीलिंग्स आ रही थी फिर चाची मुझसे अलग होते हुए बोली-“थक गया होगा तू, थोड़ी देर आराम कर ले तब तक मैं खाना बना लेती हूँ ”
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