RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
स रात जब मेरे माता पिता अपने कमरे में सोने के लिए चले गये तो मैं कल्पना करने लगा कैसे मेरी माँ मेरे पिताजी के नीचे होगी और उस लंड को अपनी चूत में ले रही होगी जो उसने ना जाने कितने समय से महसूस भी नही किया था. मैने यह सब फितूर अपने दिमाग़ से निकालने की बहुत कोशिश की मगर घूम फिर कर वो बातें फिर से मेरे दिमाग़ में आ जाती. मेरा ध्यान उसकी पॅंट के उस गॅप वाले हिस्से की ओर चला जाता और मैं कल्पना में अपने पिताजी के लंड को उस गॅप को भरते देखता.
मेरे ख़याल मुझे बैचैन कर रहे थे और मैं ठीक से कह नही सकता कि मुझे किस बात से ज़यादा परेशानी हो रही थी, इस बात से कि माँ की चूत बार बार मेरी आँखो के सामने घूम रही थी या फिर इस ख़याल से कि मेरे पिताजी उसे चोद रहे होंगे.
अगले दिन मेरा मूड बहुत उखड़ा हुया था. मेरे हाव भाव मेरी हालत बता रहे थे, खुद माँ ने भी पूछा कि मैं ठीक तो हूँ. वो उस दिन भी वोही जीन्स पहने हुए थी मगर उसके साथ एक फॉर्म फिटिंग टी-शर्ट डाली हुई थी. उस दिन जिंदगी में पहली बार मेरा ध्यान माँ के मम्मों की ओर गया. एक बारगी तो मुझे यकीन ही नही हुआ कि उसके मम्मे इतने बड़े और इतने सुंदर थे. उसके भारी मम्मो के एहसास ने मेरी हालत और भी पतली कर दी थी.
बाकी का पूरा दिन मेरा मन उसकी टाँगो के जोड़ से उसके मम्मो, उसके उन गोल-मटोल भारी मम्मों के बीच उछलता रहा. मेरे कानो में बार बार उसकी वो बात गूँज उठती कि उसे अब लंड का एहसास भी भूल गया था कि कभी कभी उसको चुदवाने का कितना मन होता था.
मैं मानता हू उसे मात्र एक माँ की तरह देखने की वजाय एक सुंदर, कामनीय नारी के रूप में देखने का बदलाव मेरे लिए अप्रत्याशित था . ऐसा लगता था जैसे एक परदा उठ गया था और जहाँ पहले एक धुन्धलका था वहाँ अब मैं एक औरत की तस्वीर सॉफ सॉफ देख सकता था. लगता था जैसे मेरी कुछ इच्छाएँ मन की गहराइयों में कहीं दबी हुई थीं जो यह सुनने के बाद उभर कर सामने आ गयी थी कि उसको कभी कभी चुदवाने का कितना मन होता था. वो जैसे बदल कर कोई और हो गयी थी और मेरे लिए सर्वथा नयी थी. जहाँ पहले मुझे उसके मम्मो और उसकी जाँघो के जोड़ पर देखने से अपराधबोध, झिजक महसूस होती थी, अब हर बितते दिन के साथ मैं उन्हे आसानी से बिना किसी झिजक के देखने लगा था बल्कि जो भी मैं देखता उसकी अपने मन में खूब जम कर उसकी तारीफ भी करता. मुझे नही मालूम उसने इस बदलाव पर कोई ध्यान दिया था या नही मगर कयि मौकों पर मैं बड़ी आसानी से पकड़ा जा सकता था.
एक दिन आधी रात को मैं टीवी देख रहा था, मुझे किचन में माँ के कदमो की आहट सुनाई दी. उस समय उसे सोते होना चाहिए था मगर वो जाग रही थी. वो ड्रॉयिंग रूम में मेरे पास आई. उसके हाथ में जूस का ग्लास था.
"मैं भी तुम्हारे साथ टीवी देखूँगी?" वो छोटे सोफे पर बैठ गयी जो बड़े सोफे से नब्बे डिग्री के कोने पर था जिस पे मैं बैठा हुआ था. उसने नाइटी पहनी हुई थी जिसका मतलब था वो सोई थी मगर फिर उठ गई थी.
"नींद नही आ रही" मैने पूछा. मेरे दिमाग़ में उसकी टेलिफोन वाली बातचीत गूँज उठी जिसमे उसने कहा था कि कभी कभी उसे चुदवाने की इतनी जबरदस्त इच्छा होती थी कि उसे नींद नही आती. मैं सोचने लगा क्या उस समय भी उसकी वोही हालत है, कि शायद वो काम की आग यानी कामाग्नी में जल रही है और उसे नींद नही आ रही है, इसीलिए वो टीवी देखने आई है. इस बात का एहसास होने पर कि मैं अती कामोत्तेजित नारी के साथ हूँ मेरा बदन सिहर उठा.
वो वहाँ बैठकर आराम से जूस पीने लगी , उसे देखकर लगता था जैसे उसे कोई जल्दबाज़ी नही थी, जूस ख़तम करके वापस अपने बेडरूम में जाने की. जब उसका ध्यान टीवी की ओर था तो मेरी नज़रें चोरी चोरी उसके बदन का मुआइना कर रही थी. उसके मोटे और ठोस मम्मों की ओर मेरा ध्यान पहले ही जा चुका था मगर इस बार मैने गौर किया उसकी टाँगे भी बेहद खूबसूरत थी. सोफे पे बैठने से उसकी नाइटी थोड़ी उपर उठ गयी थी और उसके घुटनो से थोड़ा उपर तक उसकी जाँघो को ढांप रही थी.
शायद रात बहुत गुज़र चुकी थी, या टीवी पर आधी रात को परवीन बाबी के दिलकश जलवे देखने का असर था, मगर मुझे माँ की जांघे बहुत प्यारी लग रहीं थी. बल्कि सही लफ़्ज़ों में बहुत सेक्सी लग रही थी. सेक्सी, यही वो लफ़्ज था जो मेरे दिमाग़ में गूंजा था जब हम दोनो टीवी देख रहे थे या मेरे केस में मैं, टीवी देखने का नाटक कर रहा था. असलियत में अगर मुझे कुछ दिखाई दे रहा था तो वो उसकी सेक्सी जांघे थी और यह ख़याल मेरे दिमाग़ में घूम रहा था कि वो इस समय शायद वो बहुत कामोत्तेजित है.
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