RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
अब अचानक से मैने महसूस किया कि मेरे पास एक मौका है कम से कम ये पता करने का मैं कितने पानी में हूँ. अगर मैं चुंबन को अपनी तरफ से किसी तरह कोई अलग रूप दे सकूँ, उसे एक इशारा भर कर सकूँ, उसे एक अलग एहसास करा सकूँ, उस चिंगारी को जो उसके अंदर दहक रही थी हवा देकर एक मर्द की तरह भड़का सकूँ ना कि एक बेटे की तरह तब शायद मैं किसी संभावना का पता लगा सकूँगा.
उस रात मैं बहुत बहुत देर तक सोचता रहा, और एक योजना बनाने लगा कि किस तरह मैं हमारी रात्रि के चुंबनो में कुछ बदलाव कर उनमे कुछ एहसास डाल सकूँ.
जब मैं नतीजे के बारे में अलग अलग दिशाओं से सोचा तो उत्तेजना से मेरा बदन काँपने लगा. एक तरफ यहाँ मैं यह सोच कर बहुत उत्तेजित हो रहा था कि अगर मैने अपनी योजना अनुसार काम किया तो उसका नतीजा क्या होगा. वहीं दूसरी ओर मुझे अपनी योजना के विपरीत नतीजे से भय भी महसूस हो रहा था. उसकी प्रतिक्रिया या तो सकारात्मक हो सकती थी, जिसमे वो कुछ एसी प्रतिक्रिया देती जो इस आग को और भड़का देती, या फिर उसकी प्रतिक्रिया नकारात्मक होती जिससे उस संभावना के सभी द्वार हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाते जो संभावना असलियत में कभी मोजूद ही नही थी.
अब योजना बहुत ही साधारण सी थी. मैं उसकी सूक्ष्म प्रतिक्रिया को एक इशारा मान कर चल रहा था और इसके साथ अपने तरीके से एक प्रयोग करके देखना चाहता था. चाहे यह कुछ बेवकूफ़काना ज़रूर लग सकता था मगर मेरी योजना से मुझे वो सुई मिल सकती थी जो मैं उस घास फूस के भारी ढेर से ढूँढ रहा था
जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ हमारे रात्रि विदा के चुंबन हमेशा सूखे, हल्के से और नमालूम होने वाले होंठो का होंठो से स्पर्श मात्र होते थे. अगर--मैं खुद से दोहराता जा रहा था----अगर वो इतने सूखे ना रहें तो? मैं अपने होंठ उसके होंठो पर दबा तो नही सकता था क्योंकि वो मर्यादा के खिलाफ होता लेकिन अगर मेरे होंठ सूखे ना रहें तो? अगर उसको होंठो पर मुखरस का एहसास होगा तो? तब उसकी प्रतिकिरया क्या होगी? क्या वो इसका ज्वाब देगी?!
जितना ज़्यादा मैं अपनी योजना को व्यावहारिक रूप देने के बारे में सोचता रहा उतना ही ज़्यादा मैं आंदोलित होता गया. मेरी हालत एसी थी कि उस रात मैं सो भी ना सका, बस उससे पॉज़िटिव रियेक्शन मिलने के बारे में सोचता रहा.
अगली रात मैं प्लान के मुताबिक टीवी के आगे था. वो आई, जैसी मैं उम्मीद लगाए बैठा था कि वो आएगी और मुझे वहाँ मोजूद देखकर शायद थोड़ी एग्ज़ाइटेड होगी. मगर वो चेहरे से कुछ भी एग्ज़ाइट्मेंट या खुशी दिखा नही रही थी, इससे मुझे निराशा हुई और अपनी योजना को लेकर मैं फिर से सोचने लगा कि मुझे वो करना चाहिए या नही मगर निराश होने के बावजूद मैने प्लान को अमल में लाने का फ़ैसला किया. हमेशा की तरह हम कुछ समय तक टीवी देखते रहे, अंत मैं वो बोली, "मुझे सोना चाहिए बेटा! रात बहुत हो गयी है"
" ओके" मैने जबाब दिया और अपने सूखे होंठो पर जल्दी से जीभ फेरी.
वो मेरी ओर नही देख रही थी जब मैने अपने होंठो पर जीभ फेरी. मैने फिर से चार पाँच वार ऐसे ही किया ताकि होंठ अच्छे से गीले हो जाएँ. मैं होंठो से लार नही टपकाना चाहता था मगर उन्हे इतना गीला कर लेना चाहता था कि वो उस गीलेपन को, मेरे रस को महसूस कर सके. उसके बाद मैने खुद को उसकी प्रतिक्रिया के लिए तैयार कर लिया.
मेरा दिल बड़े ज़ोरों से धड़कने लगा जब वो मेरे सोफे की ओर आई. मैं थोड़ा सा आगे जो झुक गया ताकि उसको मेरे होंठों तक पहुँचने में आसानी हो सके. मैं खुद को संयत करने के लिए मुख से साँस लेने लगा जिसके फलसरूप मेरे होंठ कुछ सूख गये. मैने जल्दी जल्दी जीभ निकाल होंठो पर फेरी ताक़ि उन्हे फिर से गीला कर सकूँ बिल्कुल उसके चुंबन से पहले, मुझे नही मालूम उसने मुझे ऐसा करते देख लिया था या नही.
जब माँ के होंठ मेरे होंठो से छुए तो मेरी आँख बंद हो गयी. मेरा चेहरा आवेश में जलते हुए लाल हो गया था. मुझे अपनी साँस रोकनी पड़ी, क्योंकि मैं नही चाहता था कि मेरी भारी हो चुकी साँस उसके चेहरे पर इतने ज़ोर से टकराए.
होंठो के गीले होने से चुंबन की सनसनाहट बढ़ गयी थी. यह वो पहले वाला आम सा, लगभग ना मालूम चलने वाला होंठो का स्पर्श नही था. आज मैं हमारे होंठो के स्पर्श को भली भाँति महसूस कर सकता था, और मुझे यकीन था उसने भी इसे महसूस किया था.
वो धीरे से 'गुडनाइट' फुसफुसाई और अपने रूम में जाने के लिए मूड गयी. उसकी ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नज़र नही आई थी हालाँकि मुझे यकीन था वो अपने होंठो पर मेरा मुखरस लेकर गयी थी. कुछ भी ऐसा असाधारण नही था जिस पर मैं उंगली रख सकता. ऐसा लगता था जैसे हमारा वो चुंबन उसके लिए बाकी दिनो जैसा ही आम चुंबन था. कुछ भी फरक नही था. मैं उसे अलग बनाना चाहता था, और उम्मीद लगाए बैठा था कि उसका ध्यान उस अंतर की ओर जाएगा मगर नही ऐसा कुछ भी नही हुआ. अब निराश होने की बारी मेरी थी. जितना मैं पहले आवेशित था अब उतना ही हताश हो गया था.
मैने किसी सकरात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया की आशा की थी. अपने बेड पे लेटा हुआ मैं उस रात बहुत थका हुआ, जज़्बाती तौर पर निराश और हताश था. मैं किसी नकारात्मक प्रतिक्रिया को आसानी से स्वीकार कर लेता मगर कोई भी प्रतिक्रिया ना मिलने की स्थिति के लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नही था. उस रात जब मैं नींद के लिए बेड पर करवटें बदल रहा था, तो मेरा ध्यान अपने लंड पर गया जो मेरे जोश से थोड़ा आकड़ा हुया था इसके बावजूद कि बाद में मुझे निराशा हाथ लगी थी.
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