RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
हैरत की बात थी कि अगले दिन मुझे शरम और आत्मग्लानि का एहसास पहले की तुलना बहुत कम हो रहा था. मैने अपनी सग़ी माँ के कारण हुई अपनी उत्तेजना को स्वीकार लिया था और उसके कारण होने वाली अपनी उत्तेजना को लेकर अब शांत था. अपनी माँ के बारे में एसी भावनाएँ रखना सही था---- जब तक कि वो सिर्फ़ मेरे दिमाग़ तक सीमित थी. हालाँकि हमारे बीच हानि रहित मन को गुद-गुदाने वाला एक खेल चल रहा था, मगर अन्ततः यह एक खेल ही था, मुझे नही लगता था ये बहुत आगे तक बढ़ेगा. आख़िरकार वो मेरी माँ थी. मैं उसके कारण उत्तेजित हो सकता था और शायद इसमे कुछ ग़लत नही था. मगर मैं उसके साथ वो सब नही कर सकता था, जो एक मर्द मेरी माँ जैसी सुंदर, कामुक और मादकता से भरपूर नारी के साथ करना चाहेगा. हमारा रिश्ता इसकी इजाज़त नही देता था.
चाहे हम दोनो ने एक दूसरे को गीले होंठो से चूमा था, मगर ये हमारे बीच कुछ बदलने के लिए नाकाफ़ी था. अगर उसने भी अपने होंठ स्वैच्छा से गीले किए थे तो हम ने यह मान कर ऐसा किया था कि दूसरे को हमारी मंशा की मालूमात नही है, और हम ने यह संभावित अस्वीकारता के तहत किया था. मतलब अगर हम मे से एक ऐतराज जताता तो दूसरा भोलेपन का नाटक कर सॉफ सॉफ मुकर सकता था कि हमारे उन चुंबनो में उसने कुछ भी जोड़ा है और वो सिर्फ़ माँ बेटे के बीच साधारण 'गुडनाइट' चुंबन हैं. हम उस सीमा पे हल्का सा दबाब बना रहे थे मगर असलियत में हम यह कभी कबूल नही कर सकते थे कि हम सीमा पर कोई दबाब डाल रहे थे. कुछ था तो ज़रूर मगर हम उस कुछ को ठीक से पढ़ नही पा रहे थे. और हम उस कुछ पर अमल तो बिल्कुल भी नही कर सकते थे. जिस पल हममे एक उस कुछ पर अमल करता तो दूसरा खूदबखुद उससे भाग खड़ा होता. यही हमारी नियती थी.
मैने अपने प्रयोग को कुछ और में विकसित होने की उम्मीद नही की थी. यह हर तरह से एक हानिरहित प्रयोग था जो हमारे तन्हा दिलों को रात के अकेलेपन में थोड़ा गुदगुदा सकता, हममे थोड़ा जोश भर सकता, नसों में बहते ठंडे खून में थोड़ी गर्मी ला सकता मगर यह कुछ बड़ा होने की भूमिका नही बन सकता था. वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा था. कुदरत की ओर से मर्यादा की रेखा खींची गयी थी और वो रेखा कभी भी पार नही की जा सकती थी---कभी भी नही.
मैं थोड़ा सा उदास और कुछ निराश था इस सोच से कि उस रेखा को कभी पार नही किया जा सकता. ज़रूर हमारे पास एक दूसरे को देने के लिए कुछ था मगर हम वो दूसरे को दे नही सकते थे. मैं बिना किसी स्पष्ट कारण के खुद को हताश महसूस कर रहा था और दिल पर इतना बोझ महसूस हो रहा था कि अगले दिन मैं टीवी देखने भी नही गया.
एक बार फिर से मैं अपने रूम में ही रहा. असलियत में, मैं उसका ध्यान और भी अपनी ओर खींचना चाहता था, क्योंकि मुझे यकीन था कि टीवी रूम में मेरी अनुपस्थिति की ओर उसका ध्यान जाएगा और वो ज़रूर कोशिश करेगी दिखाने कि कि उसे हमारे रात के साथ की कमी महसूस हो रही है. असलियत में, मैं एक प्रमाण के लिए तरस रहा था कि उसे भी हमारे साथ की बहुत ज़रूरत है.
वो मुझे देखने आई, जैसी मैने उम्मीद की थी कि वो आएगी, जैसे मेरा दिल चाहता था कि वो आए.
मैं अपने कंप्यूटर पर काम नही कर रहा था इसलिए पिछली बार का बहाना नही बना सकता था. मैं बेड पर बैठा हुआ था और सोच रहा था.
"बेटा तुम ठीक तो हो" उसने नरम स्वर में पूछा.
"हां, मैं ठीक हूँ माँ. बस थोड़ी थकावट सी महसूस हो रही है"
वो थोड़ी असमंजस में नज़र आ रही थी. मैं लेटा हुआ नही था जैसा कि मुझे होना चाहिए था अगर मैं वाकाई में बहुत थका हुआ होता. मैं तो बस बेड पर आराम से बैठा हुआ था. उसके चेहरे पर चिंता के बादल मंडराने लगे और मैं बता नही सकता था कि वो चिंता किस विषय में कर रही है. मैं उसके हाव-भाव पढ़ने की कोशिशकर रहा था कि शायद मुझे कुछ संकेत मिल जाए. मगर मुझे कुछ ना मिला.
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