RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
मैं उसका इंतेज़ार पे इंतेज़ार करता रहा, वो अब आई कि अब आई, मगर वो नही आई. मैं उसे देखने उसके कमरे में नही जा सकता था क्योंकि वहाँ मेरे पिताजी सोए हुए थे. मुझे लगा उसने फ़ैसला कर लिया था कि अब हमारे उस आनंदमयी, कमौन्माद से लबरेज ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है, बल्कि मेरे उस सुंदर, कामुक ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है. सभी संकेत सॉफ सॉफ बता रहे थे कि हमारे बीच क्या चल रहा था, मगर जब मेरे लंड की चुबन उसे महसूस हुई होगी तो उसे खुद ब खुद एहसास हुआ होगा कि मेरी तमन्ना क्या थी, मेरी अभिलाषा क्या थी और मैं किस चीज़ की कामना कर रहा था और यह एहसास होते ही उसने सब कुछ बंद कर देने का फ़ैसला किया था. मैं बहुत उदास हो गया और मुझे बहुत हताशा भी हुई. मैने जानबूझकर अपना लंड उसके बदन पर नही दबाया था, वो असावधानी में हो गया था मगर अब मुझे इसकी कीमत तो चुकानी ही थी.
दूसरी रात को माँ टीवी देखने आई ज़रूर मगर वो ज़्यादा देर वहाँ ना रुकी. मुझे मौका ना मिला कि मैं उससे पूछ सकता कि वो पिछली रात क्यों नही आई, या कि सब कुछ ठीक था, या फिर क्या मैने कुछ ग़लत किया था? वो इत्तेफ़ाक़न हो गया था मगर अब उसे ज़रूर हमारे उस खेल की भयावहता का एहसास हो गया होगा. जब वो गयी तो उसने मुझे चूमा नही था. उसने सिर्फ़ जुवानी 'गुडनाइट' कहा था.
वो मुझे बहुत स्पष्टता से इस बात के संकेत दे रही थी कि हमारे बीच वो सब कुछ ख़तम हो चुका था जिसकी हम ने शुरुआत की थी. उसने ज़रूर महसूस किया होगा कि हम हद से आगे बढ़ते जा रहे थे और इसलिए उसे इस ख़तम कर देना चाहिए था इससे पहले कि बात हाथ से निकल जाती जिसकी योजना मैं पहले ही बना चुका था. उसका दृष्टिकोण बिल्कुल सही था इसीलिए उसने सब कुछ वहीं का वहीं ख़तम कर देना उचित समझा था.
मैं बहुत ब्याकुल था, बहुत अशांत था. मुझे एक गेहन उदासी की अनुभूति हो रही थी जो हमारे आसपास और हमारे बीच छाई हुई थी. ऐसा लगता था जैसे हमारे बीच कोई रिश्ता बनने से पहले ही टूट गया था. जो कुछ हुआ था उसकी हम आपस में चर्चा तक नही कर सकते थे क्योंकि वास्तव में कुछ हुआ ही नही था.
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