RE: Maa ki Chudai ये कैसा संजोग माँ बेटे का
जब हम इतनी ज़ोर से आलिंगंबद्ध हो गये थे तो कुदतरन हमारे होंठो का मिलना भी लाज़मी था. मैने अपनी जीभ अपने होंठो पर रगड़ उन्हे अच्छे से गीला कर लिया. जैसे ही मैने अपना सर पीछे को खींचा ताकि हमारे चेहरे आमने सामने हों, उसका मुख मेरी ओर आया और मेरा मुख उसकी ओर बढ़ गया. मैने अपनी भावनाएँ बहुत दबा कर रखी थी मगर अब उन्हे उभरने का मौका दे दिया था. मैने अपने होंठ माँ के होंठो पर रखे और उन्हे थोड़ा सा खोल कर उसके निचले होंठ को अपने होंठो में ले लिया.
मैं नही जानता कैसे मैं उस अदुभूत एहसास को लफ़्ज़ों में बयान करू, वो एहसास जब मेरी माँ ने मेरा उपर का होंठ अपने होंठो में ले लिया और मुझे हल्के से चूमा. उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाज़ुक थे. मैने उन्हे पहले ऐसे नही महसूस किया था. फिर उसने अपना मुख नीचे को किया और मेरा निचला होंठ अपने होंठो में लेकर मुझे फिर से चूमा. उसके होंठ मेरे होंठो पर फिसलने लगे, वो अपने पीछे मीठे मुखरास की लकीर सी छोड़ते जाते क्योंकि मेरे होंठ उसके दाँतों को स्पर्श कर रहे थे. मैने उसका उपर का होंठ अपने होंठो में भर लिया और उस पर अपने होंठ घूमाते हुए उसे धीरे धीरे चूसने लगा., उसके होंठ को अपने मुख में सहलाने लगा.
चुंबन इतना लंबा था कि हम एक दूसरे की मिठास को अच्छे से चख सकते थे. हमारे जिसम खुद ब खुद और ज़ोर से एक दूसरे से सट गये थे. मैने अपना आकड़ा लंड उसके जिस्म पर दबाया, और इस बार मैने यह जानबूझकर किया था; वो पीछे ना हटी. मगर उसने अपना जिसम भी मेरे लंड पर प्रतिकिरिया में नही दबाया बहरहाल कम से कम वो पीछे तो नही हटी थी.
मगर चुंबन को ख़तम तो होना ही था, जब हम अपनी भावनाएँ खुल कर एक दूसरे से बयान कर चुके थे. उसने अपना सर मेरी छाती पर टिका दिया और मैं उसे नर्मी से बाहों में थामे खड़ा रहा. एक लंबी खामोशी छा गयी थी और हम दोनो एक दूसरे को थामे खड़े थे.
उस खामोशी को माँ ने तोड़ा. "ये मैं क्या कर रही हूँ?" वो फुसफसाई. वो एक ऐसा सवाल था जो वो मुझसे ज़यादा खुद से कर रही थी इसलिए मैने कोई जबाब नही दिया. असल मैं मेरे पास उस सवाल का कोई जबाब था ही नही. फिर से खामोशी छा गयी और फिर वो अलग हो गयी. हम एक दूसरे के सामने खड़े थे और हमारे बीच दूरी बहुत कम थी. उसने अपने हाथ उपर किए और अपने बाल सँवारने लगी. मैं उसे अपने बाल सँवारते देख रहा था साथ ही मेरा ध्यान उसके मम्मो पर था जो बाहें उपर होने के कारण आगे को उभर आए थे. वो इतनी कामुक लग रही थी कि मैं आगे बढ़कर उसे फिरसे अपनी बाहों में भर लेना चाहता था. मगर मुझे किसी अंजान शक्ति ने रोक लिया, एसी शक्ति जिसको शायद मैं कभी स्पष्ट ना कर सकूँ.
उसने अपने बाल सही किए और फिर उसने अपनी निगाहें सही की. फिर उसने मेरा चेहरा अपने दोनो हाथों में थामा और धीमे से मेरे होंठो पर चूमा. उसने उस चुंबन को कुछ देर तक खींचा और फिर मुझे "गॉडगिफ्ट" कहा. और फिर एकदम से वो वहाँ से चली गयी.
वो वहाँ से एकदम से हड़बड़ा कर चली गयी!
अंततः हम एक दूसरे को खुल कर जता चुके थे, बता चुके थे कि हम एक दूसरे से क्या चाहते हैं. और उसी समय वो सवाल कर उसने यह भी जता दिया था कि हमारा ऐसा करना ग़लत था. उसका इस तरह अचानक चले जाना इस बात का संकेत था ये कितना ग़लत था. हमारी उस गहरी आत्मीयता के साथ साथ आतांग्लानि की भावना भी मोजूद थी और आतांग्लानि की उस भावना की तीव्रता इतनी थी कि उसे वहाँ से लगभग भागना पड़ा था.
हमारे पछतावे से बचने का एक ही तरीका था कि हम ऐसे दिखावा करते जैसे कुछ हुआ ही नही था जैसे हम हमेशा पहले करते आए थे जब हमे वो आतांग्लानि की भावना घेर लेट लेती और मैं और माँ दिखावा करते कि कुछ भी ग़लत घटित नही हुआ है. मगर इस बार कुछ ऐसा हुआ था जिसे हम अनदेखा नही कर सकते थे. मेरे पिताजी अभी भी शहर से बाहर रहने वाले थे. हमारे पास एक और रात थी. मैं जानता था यह समय था कि हम उस सवाल का सामना करते जा फिर सब कुछ बंद कर देते. यह संभव नही था कि हम उसी तरह अधर में लटके रहते. हमें फ़ैसला लेना था कि हम हमारे रिश्ते से क्या चाहते हैं.
मगर कैसे? कैसे मैं उसे अपना दिल खोलने को कहता? क्या मैं उसके पास जाता और उससे पूछता कि मेरे द्वारा लंड दबाने पर वो इस तरह भाग क्यों रही है? वो विचार ही बेहूदा था. मैं उसे किसी भी प्रकार हमारे उस रिश्ते को लेकर उसे अपनी मंशा जाहिर करने के लिए नही कह सकता था. मैं सिर्फ़ छिप सकता था.
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