RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
तुझे क्या लगता है कि मैं इन सब बातों के बारे में उसे चर्चा नहीं किया हम उसे समझाने की लाख कोशिश किया लेकिन वह बिल्कुल भी नहीं मानी वह दूसरी औरतों की तरह बनना ही नहीं चाहती,,, वह कहती है कि इस तरह की हरकत करने के लिए उसके संस्कार ऊसे इजाजत नहीं देते,,,, मैं फिर भी उसे समझाया कि अपने पति के साथ तो वहां किसी भी हद तक जा सकती है और वैसे भी किसी गैर मर्द के साथ तो उसे करना नहीं था लेकिन फिर भी वह नहीं मानी और इसी वजह से मैं उससे दूर होता गया,,,,।
( इस बात को सुनकर शुभम मन ही मन में बोला कि अच्छा हुआ कि तुम उससे दूर होते चले गए और मैं उसके बिल्कुल करीब पहुंच गया वरना ऐसी खूबसूरत औरत को भोगने का सुख शायद उसे नसीब नहीं हो पाता,,,।)
चल अच्छा अब मैं जाता हूं आखिरकार तूने अपनी मनमानी कर ही लिया जो मैं नहीं कहना चाहता था वह तुझसे कहना ही पड़ा,,,,
कोई बात नहीं पापा,,, ऐसा समझो कि आप अपने बेटे से नहीं बल्कि अपने दोस्त से अपने दिल का हाल बता रहे हैं,,,।
( अपने बेटे की बात और उसकी समझदारी देखकर अशोक मुस्कुरा दिया और उसके सर पर हाथ रखते हुए बोला,,,।)
अच्छा चल मुझे देर हो रही है मुझे ऑफिस जाना है और तुझे कभी भी किसी चीज की जरूरत पड़े तो मुझे बोल देना बिल्कुल भी मत हिचकिचाना,,,
( इस बात पर वह मन ही मन बोला कि मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझे बस तुम्हारी बीवी चाहिए और मैं उसे तुम्हारी आंखों के सामने चोदना चाहता हूं,,, लेकिन ऐसा कहने की हिम्मत उसमे अभी नहीं थी,,,)
ठीक है पापा जब भी मुझे किसी चीज की जरूरत पड़ेगी मैं आपसे मांग लूंगा और तुम्हें भी वादा करना होगा कि उस चीज के लिए मुझे कभी भी इनकार नहीं करोगे,,,,
ठीक है मैं वादा करता हूं कि तुम्हें कभी भी किसी चीज के लिए मना नहीं करुंगा,,,, अब मैं चलता हूं बाय,,
( इतना कहकर अशोक शुभम के कमरे से बाहर निकल गया अपने ऑफिस जाने के लिए शुभम कुछ देर वहीं बैठा रहा और अपने पापा की कही बातों पर गौर करने लगा,,, अपनी मां के बारे में सोचने लगा कि उसके हाथ पांव और उसके पूरे शरीर को संस्कारों ने अपनी जकड़ में रखा हुआ था जिसकी वजह से वह इतनी उम्र में भी प्यासी रह गई थी,,,, और अच्छा ही हुआ कि यह संस्कार और मर्यादा की दीवार ने उसे इतने वर्षों तक अपनी कैद में जकडे रखा जिसकी वजह से,,, आज वह खूबसूरती और कामुकता की देवी उसके बिल्कुल करीब है।,,, शुभम अपनी मां को याद करके एकदम मदहोश हुएें जा रहा था,,, वह बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी आलस मरोड़ते हुए बोला,,,
ओहहहहह,,, निर्मला मेरी जान अब तो तुम्हारे खूबसूरत बदन की खुशबू भी मेरे अंदर से आने लगी है,,,,। ऐसा कहते हुए उसके लंड में तनाव आ गया,, और वहां अपने लंड को पेंट के ऊपर से ही मसलते हुए अपनी मां को याद करने लगा,,, अपने बाप के मुंह से सारी बातों को सुनकर उस को सुकून महसूस हो रहा था,,,, वह मन ही मन में यह सोच कर बहुत खुश हो रहा था कि आज पहली बार किसी बाप ने अपने बेटे को अपनी निजी जिंदगी के पन्नों को खोलकर बताया होगा और वह भी खुद अपनी ही बीवी के बारे में और अपने ही बेटे को यह सब सुनकर शुभम काफी उत्तेजित हो चुका था वह अपने बाप की कमजोरी जानता था और यह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां को क्या चाहिए,,,, वह अच्छी तरह से जानता था कि अपने बाप के राज को किस समय उपयोग में लाना है इस बारे में सोचकर वह काफी उत्साहित भी था।
ऐसे ही दिन गुजरते जा रहे थे जब भी मौका मिलता है तो शुभम और निर्मला एक दूसरे के अंगों को अपने बदन में उतार लेने की प्रतिस्पर्धा में उतर जाते अपनी प्यास को बुझाने में निर्मला अपना तन मन सब कुछ न्योछावर कर चुकी थी शुभम भी एक भी मौका नहीं खोता था अपनी मां की चुदाई करने के लिए,,,, वह कभी भी घर में कर जहां कहीं भी एकांत पाता तो वह अपनी मां को चोदने में कोई भी कसर नहीं बाकी रखता था और उसकी मां भी अपने बेटे से चुदने में किसी भी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं रखती थी,,,, ईन दीने अशोक बार-बार निर्मला के साथ शारीरिक संबंध बनाने की उत्कंठा जाहिर करता लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना धर के निर्मला उसके आग्रह को ठुकरा देती थी,,,। अशोक को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ऐसे ही धीरे-धीरे दिन गुजरते जा रहे थे,,,,
ऐसे ही एक दिन घर में कोई नहीं था,,,, सुबह का समय और छुट्टी का दिन था शुभम बाथरूम में नहाकर टॉवेल लपेट रहा था और निर्मला किचन में खाना बना रही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी और वहां रसोई घर से बाहर आकर अपना मोबाइल रिसीव करके बड़ी ही उत्साहित स्वर में बात करने लगी क्योंकि गांव से उसकी मां का फोन आया था,,,।
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