RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
राज लडके से गले लगा. उसके बाद लड़के ने साईकिल से राज का बैग उतारा और साईकिल ले चला गया. ये लडके को दी हुई चिट्ठी राज ने अपने घरवालों के लिए लिखी थी. जिससे सब लोगों को पता चल सके कि राज आखिर गया कहाँ है और क्यों गया है?
राज के पास वो नाटा लड़का नटू आज भी खड़ा था. राज ने सोचा इस नटू ने बहुत दिन हमारी चिट्ठी पहुचाई. आज इसे भी कुछ देना चाहिए. राज ने जेब में हाथ डाला और दस का नोट निकाल नटू की तरफ बढ़ा दिया.
नटू को आज पहली बार किसी ने दस का नोट दिया था. वो खुश हो बोला, “सचमुच में ले लूँ. या कुछ मगाने के लिए दे रहो हो?”
राज मुस्कुराते हुए बोला, “सचमुच में ले लो. ये तुम्हारा इनाम है. रख लो शायद आज के बाद राज तुमसे चिट्ठी न भिजवाये."
लड़का बहुत खुश हो उठा. कागज का नोट आज पहली बार किसी दीवाने ने दिया था. वो भी खुश होकर, नटू ने राज से कहा, "भगवान तुम्हारा अच्छा करे. तुम जिस काम के लिए भी जा रहे हो वो होकर ही रहे."
राज हसता हुआ नटू से बोला, “आपका आशीर्वाद रहा तो सब ठीक ही होगा श्री श्री नटू बाबा."
लड़का राज की इस मजाक पर हंस दिया. राज भी हँस रहा था लेकिन मन कोमल के आने पर था.
कोमल क्लास में बैठी थी. काफी देर हुई तो कोमल ने सोचा अब चलना चाहिए.कोमल ने अपनी बहन देवी की तरफ देखा. देवी के चेहरे को देख कोमल को फिर से रोना आने को था लेकिन बात बिगड़ने के डर से आंसू पी गयी. आज पहली बार देवी कोमल को बिना लिए घर जायेगी.
फिर उस बैग की तरफ देखा जिसमे उसकी किताबें रखी थीं. कितनी कोशिशों के बाद कोमल के बाप ने पढाई के लिए हाँ की थी. जब कोमल की किताबें आई थी उस दिन कोमल की खुशी का ठिकाना ही न रहा था. सारे गाँव के लोगों को एक एक कर अपनी
पढ़ाई और किताबों के बारे में बताया था.
उस दिन किताबों को दिनभर चूमती रही थी. रात को किताबों का बैग अपने बिस्तर के पास रखकर सोयी थी. घर के अन्य लोगों को अपनी किताबें छूने तक न देती थी. उसे लगता था कि उनके छूने से किताबें पुरानी हो जाएँगी. गाँव की लडकियों में तो कोमल का दबदबा हो गया था.
लेकिन आज उस पढाई. उन किताबों को छोड़ कोमल कहीं दूर जा रही थी. पढ़कर कुछ बनने का अरमान आज बीच में ही छूटा जा रहा था. कोमल की कुछ मजबूरियां उसे ऐसा करने को मजबूर कर रहीं थी. फिर दिल कडा कर कोमल क्लास से उठकर बाहर चल दी.
बाहर खुली हवा में भी आकर उसे घुटन महसूस हो रही थी. मैदान में खड़े हो नजरों से राज को ढूंढा, राज अभी भी वहीं खड़ा था. दोनों में इशारा हुआ. राज ने कोमल से बाहर आने का इशारा किया और बैग उठा चलने को तैयार हुआ.
कोमल के बदन में जूडी के बुखार जैसी कंपकपी हो रही थी. कॉलेज से निकलते वक्त पैर कहीं के कहीं पड़ रहे थे. कोमल कॉलेज से बाहर आई. राज के पास पहुंची लेकिन चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. राज ने कोमल की चिंता को समझ धीरे से कहा, "चिंता मत करो कोई परेशानी नही होगी."
कोमल ने राज के साथ सहमति जताते हुए सर हिलाया फिर सीने के पास छुपायी चिट्ठी को निकाल नटू की तरफ देखती हुई बोली, "ले नटू ये चिट्ठी मेरी बहन देवी को दे देना. पहचानता तो है न देवी को? वो जो लम्बी सी लडकी मेरे साथ खड़ी थी."
नटू बोला, “हां मुझे पता है."
कोमल नटू से फिर बोली, "और ये छुट्टी होने के बाद देना.जब देवी बाहर आये और चुपचाप से देना. ठीक है."
नटू ने हां में सर हिला दिया. कोमल माहौल को हल्का करने के लिए नटू से बोली, "ध्यान से काम करना फिर में तुझे लवलेटर लिखूगी. तेरे इसी नटू नाम से.
नटू सिटपिटा कर हंस पड़ा. कोमल और राज भी फीकी हंसी हँस चल पड़े. कोमल या राज ने नटू से ये नही बोला कि तुम किसी को कुछ बताना नहीं क्योंकि चिट्ठी में सब कुछ लिख चुके थे. फिर कुछ भी छुपाने का क्या फायदा.
दोनों परिंदे उखड़ी सांसों से उड़े जा रहे थे. राज ने कोमल से कहा, “थोडा जल्दी चलो कोमल और खुद को हिम्मत दो. अभी हमें यहाँ से जल्दी उस आम के पेड़ के पास पहुंचना है." कोमल अपने कदमों को तेजी से चलाने लगी. दोनों चलते चलते उस रास्ते पर आ पहुंचे जहाँ आम के पेड़ के पास जाने के लिए रास्ता शुरू होता था
राज ने कोमल के हाथ को पकड़ लिया और उसके साथ धीरे धीरे चलने लगा.
दोनों प्रेमी कंधे से कन्धा मिलाये चल रहे थे. कोमल राज से भीगे स्वर में बोली, “राज कुछ गलत तो नहीं होगा हमारे साथ?" राज कोमल को समझाते हुए बोला, अरे नही. ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम डर को छोड़ आगे आने वाले समय के बारे में सोचो.” दोनों उस आम के पवित्र पेड़ के नीचे पहुंच चुके थे.
ओह मेरे राम! क्या वातावरण था इस पेड़ के नीचे? कितनी ठंडाई, कितनी खुसबू, कितनी मादकता थी? राज और कोमल को लगता था कि इस पेड़ के नीचे सारी जिन्दगी बितायी जा सकती है. ये वही पेड़ था जिसके नीचे कोमल और राज पहले दिन आये थे. ये वही आम का पेड़ था जिसके नीचे कोमल के गर्भ में एक नन्ही जान आ बसी थी. जिसकी वजह से आज उन्हें ये भागने जैसा कदम उठाना पड़ रहा था.
और ये जरूरी नहीं कि जो चीज हमे अच्छी नही लगती वो ओरों को भी अच्छी नहीं लगेगी. या जो हमे अच्छी लगती है वो ओरों को भी अच्छी लगेगी? क्योंकि हरएक के सोचने का अपना एक तरीका होता है. देखने का अपना एक नजरिया होता है. ये आम का पेड़ जमाने के लिए किसी श्राप से कम नहीं था लेकिन राज और कोमल इसको पवित्र मानते थे क्योंकि यही आम का पेड़ था जो उन्हें आश्रय देता था. उन्हें प्यार करने की एक जगह देता था फिर इन दोनों क्या पड़ी जो इसको अपवित्र माने?
राज ने बैग में से एक चादर निकाल जमीन पर बिछा ली फिर कोमल से बोला, “आईये महारानी जी आपका बिछोना तैयार है."
कोमल का मन हल्का हुआ और प्यार भरी चिढ से मुस्कुराते हुए बोली, "रहने दो राज अभी हमें चिढाओ मत. हमे नही पसंद ये रानी वानी कहना.”
राज अब कोमल की उपरी चिढ को समझ चुका था. फिर से बोला, "क्षमा करे राजकुमारी साहिबा में गलती से आपको महारानी कह बैठा. मेरा इरादा कतई आप की उम्र को ज्यादा दिखाना नही था."
कोमल राज की इस ठिठोली से खुश हो रही थी. उसका मन पहले से बहुत हल्का हो गया था. वो उठकर राज के पास आई और उसकी चौड़ी छाती पर अपने कोमल हाथों से हल्के हल्के घूसे मारती हुई बोली, “चुप करो न जी. मुझे अकेले में तुम्हारे साथ वैसे ही इतनी शर्म आती है.
कोमल के मुंह से 'जी' शब्द सुनकर राज के अंदर कामरस उत्पन्न हो गया. उसे लगा जैसे कोमल उसकी नवविवाहिता दुल्हन हो जो उसका नाम न लेना चाहती हो. राज मादक हो उठा. कोमल अब भी राज की चौड़ी छाती पर अपने हाथ रखे खड़ी थी. राज ने कोमल की आँखों में देखते हुए कहा, "तुमने मुझे जी कहा तो मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मेरी दुल्हन हो.
क्या तुम्हे भी ऐसा लगा?" कोमल ने राज की मरदाना छाती में अपना मुंह छुपा लिया. चेहरा शर्म से लाल हो चुका था. कोमल के मुंह से एक भी शब्द न निकला. इश्क प्यार और मोहब्बत आप जो भी कहें. इनमे अक्सर ऐसा होता है कि आदमी पहले से बहुत खुला हुआ सुलझा इन्सान होता है लेकिन जैसे ही वह अपने महबूब के पास आता है उसकी हड्वड़ाहट किसी नौसिखिये जैसी हो जाती है. लगता है जैसे वो पहले भी बहुत सीधा ही रहा होगा लेकिन ऐसा नहीं होता. जैसे कोमल पहले कितना बडबड करती थी? कितनी खुलकर बोलती थी लेकिन आज राज के दुल्हन वाले सम्बोधन से सिमट कर रवड की हो गयी.
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