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RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
भाग-8
आज का दिन कोमल के लिए वैसा था जैसा कि दुनिया की बर्वादी का दिन हो. एक दुनिया समाप्त कर दूसरी दुनिया बसाने जा रही थी. उन घर परिवार वालों को भी छोड़ कर जा रही थी जिन्होंने उसको किसी और तरीके से विदा करने का सपना देखा था. भाई बहन, माँ बाप, सखी सहेली, घर द्वार, आस पड़ोस सब का सब तो यही छोड़ जाने वाली थी. और वो इमली का पेड़ जो कोमल की खुसबू पहचानता था. और वो छोटू जिसको कोमल ने इस मौसम में इमली खिलाने का वादा किया था.
कोमल का मन बार बार भावुक हो रहा था. एक मन करता था कि जाए ही न लेकिन जब वो माँ बनेगी तब? तब तो ऐसा होगा जिसकी वो कल्पना भी नही कर सकती. कोमल ने वेशक गलती की थी लेकिन सुधारने भी तो वही जा रही थी. क्या करती? यहाँ रहे तब भी तो आफत आनी थी. इससे तो अच्छा है भाग ही जाए. मोहल्ले में बदनामी होगी तो केवल भागने की. यहाँ रहकर तो क्वारी माँ बनने का लांछन लगेगा जो भागने से बुरा है.
कोमल रात को सो नही पा रही थी. खाना तो वह दो दिन पहले से नही खा रही थी. कोमल के बगल में बड़ी बहन देवी पड़ी सो रही थी. कोमल का मन हुआ कि थोडा उससे लिपट ले पता नही फिर कब मिलना हो पाए. उसकी शादी भी मेरे विना ही हो जायेगी. और मेरी तो पता नही शादी होगी भी कि नही. पता नहीं कब तक ऐसे ही हालात बने रहेंगे.
कोमल देवी की तरफ घूमी और उससे ऐसे लिपट गयी जैसे चन्दन के पेड़ से सांप. देवी तो नींद में थी उसे नहीं पता था कि मेरे बगल में लेटी मेरी छोटी बहन कितनी उदास है. या उसे उसके सहारे की जरूरत है. कोमल घर वालों को बहुत याद कर कर के रोती जा रही थी. वो अभी इतनी दुखी थी कि उसकी माँ अगर सामने आ जाती तो कोमल हिल्की भर भर रो पडती. फिर देवी से लिपट कर पड़े पड़े न जाने उसे कब नींद आ गयी पता ही न चला.
कोमल सुबह होते ही उठ बैठी. रात का रोना फिर याद आ गया. उसे याद आ गया कि आज उसे सब लोगों को छोड़ कर जाना है. माँ को देख बार बार कोमल को रोने का मन करता. मन से हूँक उठ रही थी कि रो ले अपनी जन्मदात्री से लिपट कर. उसका तो कोमल पर सबसे ज्यादा हक बनता था. लेकिन इन्सान की कुछ बंदिशे भी होती है जिनको तोड़ पाना उसके लिए बहुत मुश्किल होता है.
कोमल जल्दी जल्दी नहाई धोयी. आँखे सूज कर लाल हो रही थी. सुबह से सबसे प्यार से बोल रही थी. खूब दौड़ दौड़ कर काम कर रही थी. सोचती थी आज चलते समय तो माँ को सुख दे ही चलू, न जाने फिर कब इस माँ के दर्शन होगे जो मुझे अपनी बेटी मानती है? सभी भाई बहनों को सुबह का नाश्ता करवाया लेकिन खुद अभी तक उसने कुछ भी न खाया था.
सब कम करने के बाद कोमल ने मंजा हुआ पीतल का लौटा लिया. उसमे साफ़ पानी डाला. थोडा सा दूध डाला. गमले से सदाबहार पेड़ के फूल लिए. अगरबत्ती के मुद्दे से दोअगरबत्तियां निकाली और फिर छत पर चल दी. जहाँ तुलसी मैया का पेड़ गमले में लगा हुआ था. जहाँ से सूरज देवता साफ़ साफ़ दर्शन देते थे. जहाँ से आज कोमल को अपने लिए दोनों देवी देवता से आशीर्वाद माँगना था.
कोमल तुलसी मैया के सामने जा खड़ी हुई. तुलसी मैया के सामने खड़े होते ही कोमल की याची आखें ऐसे बरस पड़ी मानो इन आखों के पानी से तुलसी मैया की पूजा कर डालेगी. आंसू रुकने का नाम ही न ले रहे थे. कोमल आज सब कुछ अपने आंसूओं से बता देना चाहती हो कि मैया आज मुझपर अपनी कृपा करना. में बहुत मुसीबत में हूँ. मुझे इस मुसीबत से निकलने में मदद करना.
फिर बहती आँखों से सूरज देवता की तरफ देखा. बोला तो कोमल से जा ही नही रहा था इसलिए सूरज देवता से भी मौन भाषा मैं सब कहने लगी. वो सूरज देवता से कह रही थी, "हे सूरज देवता. जैसे दुनिया का अँधेरा हरते हो ऐसे ही मेरे जीवन से भी अँधेरा हर लो. में बहुत दुःख के अँधेरे में फंसी हुई हूँ. मुझ पर कृपा करना मेरे देवता. में जल्दी से जल्दी इस दुःख से मुक्त हो जाऊं ऐसा आशीर्वाद देना."
कोमल रोती हुई तुलसी मैया पर सूरज की तरफ देखती हुई लौटा चढ़ा रही थी. ऐसा लग रहा था कि एक रोती हुई नदी किसी पवित्र पेड़ पर गिर रही हो. दुखो का सैलाव अभी थमने का नाम नही ले रहा था. लेकिन इस दुःख से शायद तुलसी मैया और सूरज देवता का कलेजा जरुर पिघल गया होगा. शायद आज कोमल की मुश्किलें जरुर दूर हो जायेंगी. शायद आज इन कष्टों का अंत जरुर हो जाएगा.
इधर राज भी अपने इष्ट देवों को खुश करने में कोई कसर नही छोड़ना चाहता था. आज राज कोमल के गाँव दूध लाने नहीं गया था. आज तो उसे वो सब करना था जो अब तक की उम्र में उसने किया ही नहीं था. उसने पुडिया में रखी पुरखों की भभूत निकाली. उससे माथे पर तिलक किया फिर उस पीपल के पेड़ के पास गया जहाँ पूरा गाँव जाकर मन्नत मांगता था. पहले राज को इस बात पर इतना यकीन नही था लेकिन आज वो किसी भी देवता से बुराई भलाई लेने के मूड में नही था. और ये पीपल वाले देवता तो उसके ग्राम देवता थे.
पीपल के पास पहुंच उसने देवता से प्रार्थना की. जो इन्सान कभी किसी देवता के पास नही जाता हो और एकदम चला जाय तो उसे अपने आप पर थोड़ी ग्लानी होना स्वभाविक होती है. वो किसी फिल्म का अभिनेता तो नही था जो देवता से कहता कि “आज खुश तो बहुत होगे तुम?"
राज तो एक आम लड़का था जो सिर्फ मजाक मस्ती का जीवन जी रहा था. उसे क्या पता था कि एकदम जिन्दगी इतनी बदल जायेगी? उसे क्या पता था कि किसी लडकी से इतनी मोहब्बत कर बैठेगा? उसे क्या पता था कि जिस देवता को कभी देवता नहीं माना आज उसकी पूजा कर बैठेगा?
राज ने पहले तो इधर उधर देखा कि कहीं कोई है तो नहीं. जब पाया कि कोई नही है तो हाथ जोड़ पीपल वाले ग्राम देवता से बोला, "मेरे गाँव के पूज्य देवता. में जानता हूँ तुम मुझसे खफा होओगे. क्योंकि में कभी तुम्हारे पास प्रार्थना करने नही आया लेकिन देवता में कभी दिल से इस बात को भी न कह पाया कि आप देवता नही हो.
वो तो लडकपन की मस्ती थी जो कभी भगवान के पास आने ही नहीं देती थी लेकिन आज मुझे आपकी जरूरत है इसलिए में आपके पास आया हूँ. आप चाहे तो मुझे स्वार्थी भी कह सकते है लेकिन हूँ तो में आपका ही बच्चा. मेरी गलतियों को भी माफ़ करना आपका ही का काम है. अगर में आपका सगा बेटा होता तो भी आप मुझे माफ़ न करते क्या?
मेरे पूज्य देवता आज मैं कुछ ऐसा करने जा रहा हूँ जो समाज की नजरों में अपराध है लेकिन आपकी नजरों में नही. में जानता हूँ देवता लोग हमेशा मोहब्बत करने का पैगाम देते है. आज में अपनी मोहब्बत को सफल करने का वरदान मांगता हूँ जो आपको देना ही पड़ेगा. आज पहली बार आये इस भक्त को बरदान देने से आपकी महिमा ही बढ़ेगी. इस बेटे को बाप की तरह आशीर्वाद दे दीजिये. मुझे उम्मीद है आप ऐसा ही करेंगे. इतना कह राज वहां से चल दिया. आखों में आंसू साफ़ देखे जा सकते थे जो राज के भावुक होने की खबर दिए जा रहे थे.
उधर कोमल के लिए बहुत भावुक पल थे. वो आज ऐसा महसूस कर रही थी जैसे फिर कभी लौट कर नहीं आएगी लेकिन घरवालों को तो सिर्फ ये पता था कि कोमल स्कूल जा रही है फिर वो क्यों भावुक होने लगे? परन्तु कोमल अपने दिल का राज़ किसी को न बता पाने की ये सजा भुगत रही थी कि वो अकेली ही भावुक हो रही थी.
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अब कोमल के कॉलेज जाने का वक्त हो गया था. देवी ने पीछे से आवाज लगाई, “चल री कोमल देर हो रही है." कोमल ने चलने की आवाज कानों से सुनी तो दिल ऐसे धकधका गया जैसे विजली कडकी हो. जाने की यादें उसे बार बार भावुक किये जा रही थी.
कॉलेज जाने के लिए उठ खड़ी हुई लेकिन माँ सामने पड़ गयी. फिर क्या था कोमल जो कल रात से माँ को गले लगाने के लिए तडप रही थी वो माँ से ऐसे लिपटी कि माँ का भी रोना छूट गया. दोनों रो रहीं थी. कोमल तो हूँक दे दे कर रो रही थी लेकिन देवी की समझ में नही आ रहा था कि ये दोनों रो क्यों रहीं हैं?
थोड़ी सी देर में ही पूरा घर इकठ्ठा हो गया. सब लोग हडबडाते हुए पूछने लगे कि ऐसा क्या हो गया जो ये दोनों रोये जा रही है? कोमल की हालत बहुत दयनीय थी. अक्सर इस तरह से लडकियाँ विदा होते समय रोती हैं, भावुक तो पूरा घर हो चुका था लेकिन रोन पाया. सब लोगों ने देवी से दोनों के रोने का कारण पूछा तो देवी ने बताया कि उसे खुद नहीं पता कि ये दोनों रो क्यों रही है?
कुछ देर बाद कोमल की माँ कोमल को ढांढस बंधाती हुई बोली, “चुप हो जा मेरी बच्ची और ये बता बात क्या है?" वहां खड़े सब लोगो का दिमाग चकरघिन्नी हो गया. जब माँ को खबर ही नही कि हुआ क्या तो कोमल से लिपट रो क्यों रहीं थीं? जब कोमल की माँ से पूंछा गया तो बोली, “अब क्या बताये ये छबिलिया रोई तो इसे देख कर हम भी रो दिए.” फिर जब कोमल से रोने का कारण पूछा गया तो वह कुछ न बता पायी. आखिर बताती भी तो क्या? राज के साथ भागने का कहती तो अभी माँ ही कोमल के बाल पकड़ सर जमीन दे मारती. कोमल की माँ उससे बोली, "तू परेशान हो तो मत जारी छबिलिया."
कोमल को तो मानो बिच्छू काट गया था. झट से बोली, "नही माँ स्कूल तो जाना जरूरी है. में तो ऐसे ही रो पड़ी थी." इसके बाद देवी और कोमल दोनों स्कूल की और चल दी.
कोमल जाते हुए गाँव. घर. गली की हर चीज को ऐसे देख रही थी जैसे श्रीराम वनवास को जाते समय देख रहे थे. देवी को लग रहा था कि जब से कोमल का राज से मन भंग हुआ है तब से कोमल कुछ पागल सी हो गयी है.
गाँव के बाहर कोमल को बही इमली का पेड़ दिखाई दे गया जिसे वो अपना अकेलेपन का साथी मानती थी. भाग कर इमली के पेड़ से जा लिपटी और उसे चूम लिया फिर पेड़ के तने से फुसफुसा कर कुछ कहा. शायद उसे बता रही हो कि अब मेरा इन्तजार मत करना पता नहीं कब लौट के आऊँ. देवी को अब पूरी तरह यकीन हो गया कि कोमल पर पागलपन का असर हो गया है. किन्तु कोमल तो किसी और ही पागलपन में थी. जो देवी की समझ में अभी नहीं आना था.
दोनों कॉलेज जा पहुंची. कोमल पूरे रास्ते देवी से खूब बात करती गयी. जो आज से महीनों पहले भी नही करती थी और देवी इन बातों को एक पागलपन के असर वाली बातें समझ सुनती गयी. परन्तु कोमल तो उससे इसलिय बात कर रही थी कि पता नही बड़ी बहन से कब मिलना हो लेकिन ये बात देवी को कहाँ मालूम थी, काँटा तो कोमल के पैर में लगा था तो उसका दर्द देवी को कहाँ से होता? आज कॉलेज में अंतिम दिन था कोमल के लिए. पढना तो आज हो ही नहीं सकता था. आज तो राज के साथ भागने की सोच शरीर में सुरसुरी दौडाए जा रही थी. लेकिन इंटरवल तक का समय तो काटना ही था उसके बाद राज आ जायेगा और कोमल इस स्कूल से हमेशा के लिए विदा हो जायेगी. सारी सखी सहेलियाँ, सारी स्कूल की मस्ती, मैदान पर सखियों के साथ विताये पल. सब का सब आज याद आ रहा था.
क्लास में बैठे बैठे ही कोमल ने एक चिट्ठी लिख डाली. ये चिट्ठी उसे देवी को देनी थी. जिससे देवी और घरवालों को पता चल सके कि कोमल कहाँ गयी है? क्यों गयी है? जिससे घरवाले कोमल को ढूंढेगे भी नही. चिट्ठी लिख कर कोमल ने उसे तह बनाकर अपने पास रख लिया. इतने में इंटरवल हो गया. कोमल की धडकन किसी मिल के इंजन की तरह धडक रहीं थी.
कोमल अपनी बहन देवी और सखियों के साथ कॉलेज के मैदान में आ गयी. उसने मैदान से कॉलेज के गेट के बाहर खड़े पेड़ के नीचे नजर दौड़ाई. दिल और जोर से धडक गया. राज उस पेड़ के नीचे ओटक में खड़ा था. साथ में एक लडका साईकिल लिए खड़ा था. साईकिल पर एक मध्यम साइज़ का बैग भी लटका था. कोमल की पूरी देह कंपकपा गयी. उसे पता था चलने का समय निकट है.
कोमल पढने की बहुत शौकीन थी लेकिन राज के प्यार में पड़ने से पहले. अब तो पढाई में मन ही नही लगता था. पढाई की तो छोड़ो किसी भी काम में नही लगता था. न खाने का शौक रहा. न सजने सवरने का शौक रहा. पहले कोमल मेलों में जाती थी लेकिन अब वो भी छूट गया था. जब से राज से प्यार हुआ मोहल्ले में बैठना, भाभियों से मजाकें करना, बच्चों के साथ शरारतें करना सब कुछ ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सर से सींग.
इंटरवल खत्म हुआ. जैसे ही इंटरवल खत्म होने की घंटी बजी. राज और कोमल की नजरें मिली. राज ने इशारा किया, “थोड़ी देर रुक कर आ जाना." कोमल ने इशारे से पूंछा, “ये साथ में कौन लड़का है?" राज ने इशारे से बताया, “दोस्त है लेकिन तुम्हारे बाहर आने से पहले इसे टरका दूंगा."
कोमल और राज के दिलों को तस्सली हुई. कोमल थके क़दमों से क्लास में चली गयी. राज की साँसे अब घड़ी की टिकटिक के साथ चलने लगी. राज ने साथ खड़े लडके को एक चिट्ठी देता हुआ बोला, "ले ये चिट्ठी मेरे घर वालों को दे देना और वो भी दो चार घंटे बाद. अब तू घर जा फिर किसी दिन आऊंगा तुझसे मिलने.
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राज लडके से गले लगा. उसके बाद लड़के ने साईकिल से राज का बैग उतारा और साईकिल ले चला गया. ये लडके को दी हुई चिट्ठी राज ने अपने घरवालों के लिए लिखी थी. जिससे सब लोगों को पता चल सके कि राज आखिर गया कहाँ है और क्यों गया है?
राज के पास वो नाटा लड़का नटू आज भी खड़ा था. राज ने सोचा इस नटू ने बहुत दिन हमारी चिट्ठी पहुचाई. आज इसे भी कुछ देना चाहिए. राज ने जेब में हाथ डाला और दस का नोट निकाल नटू की तरफ बढ़ा दिया.
नटू को आज पहली बार किसी ने दस का नोट दिया था. वो खुश हो बोला, “सचमुच में ले लूँ. या कुछ मगाने के लिए दे रहो हो?”
राज मुस्कुराते हुए बोला, “सचमुच में ले लो. ये तुम्हारा इनाम है. रख लो शायद आज के बाद राज तुमसे चिट्ठी न भिजवाये."
लड़का बहुत खुश हो उठा. कागज का नोट आज पहली बार किसी दीवाने ने दिया था. वो भी खुश होकर, नटू ने राज से कहा, "भगवान तुम्हारा अच्छा करे. तुम जिस काम के लिए भी जा रहे हो वो होकर ही रहे."
राज हसता हुआ नटू से बोला, “आपका आशीर्वाद रहा तो सब ठीक ही होगा श्री श्री नटू बाबा."
लड़का राज की इस मजाक पर हंस दिया. राज भी हँस रहा था लेकिन मन कोमल के आने पर था.
कोमल क्लास में बैठी थी. काफी देर हुई तो कोमल ने सोचा अब चलना चाहिए.कोमल ने अपनी बहन देवी की तरफ देखा. देवी के चेहरे को देख कोमल को फिर से रोना आने को था लेकिन बात बिगड़ने के डर से आंसू पी गयी. आज पहली बार देवी कोमल को बिना लिए घर जायेगी.
फिर उस बैग की तरफ देखा जिसमे उसकी किताबें रखी थीं. कितनी कोशिशों के बाद कोमल के बाप ने पढाई के लिए हाँ की थी. जब कोमल की किताबें आई थी उस दिन कोमल की खुशी का ठिकाना ही न रहा था. सारे गाँव के लोगों को एक एक कर अपनी
पढ़ाई और किताबों के बारे में बताया था.
उस दिन किताबों को दिनभर चूमती रही थी. रात को किताबों का बैग अपने बिस्तर के पास रखकर सोयी थी. घर के अन्य लोगों को अपनी किताबें छूने तक न देती थी. उसे लगता था कि उनके छूने से किताबें पुरानी हो जाएँगी. गाँव की लडकियों में तो कोमल का दबदबा हो गया था.
लेकिन आज उस पढाई. उन किताबों को छोड़ कोमल कहीं दूर जा रही थी. पढ़कर कुछ बनने का अरमान आज बीच में ही छूटा जा रहा था. कोमल की कुछ मजबूरियां उसे ऐसा करने को मजबूर कर रहीं थी. फिर दिल कडा कर कोमल क्लास से उठकर बाहर चल दी.
बाहर खुली हवा में भी आकर उसे घुटन महसूस हो रही थी. मैदान में खड़े हो नजरों से राज को ढूंढा, राज अभी भी वहीं खड़ा था. दोनों में इशारा हुआ. राज ने कोमल से बाहर आने का इशारा किया और बैग उठा चलने को तैयार हुआ.
कोमल के बदन में जूडी के बुखार जैसी कंपकपी हो रही थी. कॉलेज से निकलते वक्त पैर कहीं के कहीं पड़ रहे थे. कोमल कॉलेज से बाहर आई. राज के पास पहुंची लेकिन चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. राज ने कोमल की चिंता को समझ धीरे से कहा, "चिंता मत करो कोई परेशानी नही होगी."
कोमल ने राज के साथ सहमति जताते हुए सर हिलाया फिर सीने के पास छुपायी चिट्ठी को निकाल नटू की तरफ देखती हुई बोली, "ले नटू ये चिट्ठी मेरी बहन देवी को दे देना. पहचानता तो है न देवी को? वो जो लम्बी सी लडकी मेरे साथ खड़ी थी."
नटू बोला, “हां मुझे पता है."
कोमल नटू से फिर बोली, "और ये छुट्टी होने के बाद देना.जब देवी बाहर आये और चुपचाप से देना. ठीक है."
नटू ने हां में सर हिला दिया. कोमल माहौल को हल्का करने के लिए नटू से बोली, "ध्यान से काम करना फिर में तुझे लवलेटर लिखूगी. तेरे इसी नटू नाम से.
नटू सिटपिटा कर हंस पड़ा. कोमल और राज भी फीकी हंसी हँस चल पड़े. कोमल या राज ने नटू से ये नही बोला कि तुम किसी को कुछ बताना नहीं क्योंकि चिट्ठी में सब कुछ लिख चुके थे. फिर कुछ भी छुपाने का क्या फायदा.
दोनों परिंदे उखड़ी सांसों से उड़े जा रहे थे. राज ने कोमल से कहा, “थोडा जल्दी चलो कोमल और खुद को हिम्मत दो. अभी हमें यहाँ से जल्दी उस आम के पेड़ के पास पहुंचना है." कोमल अपने कदमों को तेजी से चलाने लगी. दोनों चलते चलते उस रास्ते पर आ पहुंचे जहाँ आम के पेड़ के पास जाने के लिए रास्ता शुरू होता था
राज ने कोमल के हाथ को पकड़ लिया और उसके साथ धीरे धीरे चलने लगा.
दोनों प्रेमी कंधे से कन्धा मिलाये चल रहे थे. कोमल राज से भीगे स्वर में बोली, “राज कुछ गलत तो नहीं होगा हमारे साथ?" राज कोमल को समझाते हुए बोला, अरे नही. ऐसा कुछ नहीं होगा. तुम डर को छोड़ आगे आने वाले समय के बारे में सोचो.” दोनों उस आम के पवित्र पेड़ के नीचे पहुंच चुके थे.
ओह मेरे राम! क्या वातावरण था इस पेड़ के नीचे? कितनी ठंडाई, कितनी खुसबू, कितनी मादकता थी? राज और कोमल को लगता था कि इस पेड़ के नीचे सारी जिन्दगी बितायी जा सकती है. ये वही पेड़ था जिसके नीचे कोमल और राज पहले दिन आये थे. ये वही आम का पेड़ था जिसके नीचे कोमल के गर्भ में एक नन्ही जान आ बसी थी. जिसकी वजह से आज उन्हें ये भागने जैसा कदम उठाना पड़ रहा था.
और ये जरूरी नहीं कि जो चीज हमे अच्छी नही लगती वो ओरों को भी अच्छी नहीं लगेगी. या जो हमे अच्छी लगती है वो ओरों को भी अच्छी लगेगी? क्योंकि हरएक के सोचने का अपना एक तरीका होता है. देखने का अपना एक नजरिया होता है. ये आम का पेड़ जमाने के लिए किसी श्राप से कम नहीं था लेकिन राज और कोमल इसको पवित्र मानते थे क्योंकि यही आम का पेड़ था जो उन्हें आश्रय देता था. उन्हें प्यार करने की एक जगह देता था फिर इन दोनों क्या पड़ी जो इसको अपवित्र माने?
राज ने बैग में से एक चादर निकाल जमीन पर बिछा ली फिर कोमल से बोला, “आईये महारानी जी आपका बिछोना तैयार है."
कोमल का मन हल्का हुआ और प्यार भरी चिढ से मुस्कुराते हुए बोली, "रहने दो राज अभी हमें चिढाओ मत. हमे नही पसंद ये रानी वानी कहना.”
राज अब कोमल की उपरी चिढ को समझ चुका था. फिर से बोला, "क्षमा करे राजकुमारी साहिबा में गलती से आपको महारानी कह बैठा. मेरा इरादा कतई आप की उम्र को ज्यादा दिखाना नही था."
कोमल राज की इस ठिठोली से खुश हो रही थी. उसका मन पहले से बहुत हल्का हो गया था. वो उठकर राज के पास आई और उसकी चौड़ी छाती पर अपने कोमल हाथों से हल्के हल्के घूसे मारती हुई बोली, “चुप करो न जी. मुझे अकेले में तुम्हारे साथ वैसे ही इतनी शर्म आती है.
कोमल के मुंह से 'जी' शब्द सुनकर राज के अंदर कामरस उत्पन्न हो गया. उसे लगा जैसे कोमल उसकी नवविवाहिता दुल्हन हो जो उसका नाम न लेना चाहती हो. राज मादक हो उठा. कोमल अब भी राज की चौड़ी छाती पर अपने हाथ रखे खड़ी थी. राज ने कोमल की आँखों में देखते हुए कहा, "तुमने मुझे जी कहा तो मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मेरी दुल्हन हो.
क्या तुम्हे भी ऐसा लगा?" कोमल ने राज की मरदाना छाती में अपना मुंह छुपा लिया. चेहरा शर्म से लाल हो चुका था. कोमल के मुंह से एक भी शब्द न निकला. इश्क प्यार और मोहब्बत आप जो भी कहें. इनमे अक्सर ऐसा होता है कि आदमी पहले से बहुत खुला हुआ सुलझा इन्सान होता है लेकिन जैसे ही वह अपने महबूब के पास आता है उसकी हड्वड़ाहट किसी नौसिखिये जैसी हो जाती है. लगता है जैसे वो पहले भी बहुत सीधा ही रहा होगा लेकिन ऐसा नहीं होता. जैसे कोमल पहले कितना बडबड करती थी? कितनी खुलकर बोलती थी लेकिन आज राज के दुल्हन वाले सम्बोधन से सिमट कर रवड की हो गयी.
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राज की धडकनें कोमल की लज्जा के साथ अधिक तेज हो गयी थी, जिन्हें कोमल बखूबी महसूस कर रही थी. कोमल का दिल भी उसी तरह धडक रहा था जैसे उसके महताब राज का. राज के हाथ कोमल के बदन पर लिपट गये. ऐसे जैसे चन्दन के पेड़ से सांप. कोमल भी कहाँ पीछे रहती उसके हाथ तो कब से किसी के सहारे को तरस रहे थे. मौका मिला तो जा लिपटे राज से.. दोनों आत्माएं किसी अलग दुनियां में घूम रहीं थी. दोनों अपने अपने साथी के अंदर समाने का ख्वाब मन में लिए थे. आम का पवित्र पेड़ इन दोनों के मिलन का हर बार साक्षी बन जाता था. वो आम का पेड़ जहाँ एक प्रेमी जोड़ा कुछ दिन पहले खुद को फांसी लगा मिटा चुका था. थोड़ी देर बाद दोनों ने एक दूसरे के बदन को ढीला छोड़ दिया. राज कोमल को सहारा दे बोला, “आओ थोड़ी देर बैठ लें." दोनों उस बिछायी हुयी चादर पर बैठ गये,
आज कितनी शांति थी माहौल में? आसपास पक्षियों का कलरव राज और कोमल के मन को प्रेमरस से भरे जा रहा था. दोनों का मन करता था कि दोनों सारी फिकर भूल लिपट कर सो जायें. फिर तब जागें जब नींद पूरी हो जाए. कोई जल्दी कोई हडबडाहट न हो. किसी के आने का डर न हो. कहीं जाने की जल्दी न हो.
दोनों का मन ये भी करता था कि काश वो पंक्षी होते! फिर मन में आता वहां उड़ जाते. मन में आता वैसे रहते. इंसानों की तरह पक्षियों के सामाजिक दायरे और नियम कानून नही होते. एक अच्छा सा घोसला बना उसमें रहते. अपने नन्हे नन्हे बच्चों को उस घोसले में जन्म देते. फिर न समाज कुछ कहता और न परिवार. चैन से दाना चुंगते. और चैन से ही मर जाते.
राज और कोमल बैठे एक दूसरे को देख रहे थे. कभी कोमल नजरें चुराती तो कभी राज. ये आँख मिचोली दोनों हमजोलीयों में ठिठोली पैदा कर रही थी. राज ने अचानक कोमल को अपनी तरफ खींच लिया. कोमल शरमा कर फूल सी हो गयी. माहौल में फिर से प्रेम रस की बाढ़ आ गयी. राज को कोमल को छूते हुए लगता था जैसे वो किसी रखड की गुडिया को छू रहा हो.
कोमलता इतनी कि फूल भी शरमा जाए. लज्जा इतनी कि शर्म की देवी देखे तो खुद पर शरमा जाए. लेकिन इस नाजुकता और लज्जा में जो आनंद राज को मिल रहा था वो शायद किसी और तरह से मिलना मुश्किल था. राज ने अपने होठों को कोमल के गुलाबी अंगार हुए होठों पर रख दिया. दोनों की देह में आग लग चुकी थी. जिसे बुझाने की कोशिश दोनों ही किये जा रहे थे.
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उधर कॉलेज की छुट्टी होने के पहले से लेकर छुट्टी होने तक देवी की आँखे सिर्फ कोमल को ही दूढ़ रहीं थी. छुट्टी होते ही देवी ने अपना और कोमल का बैग उठाया और बाहर निकल सहेलियों से पूछने लगी कि क्या तुम में से किसी ने कोमल को देखा है?
सब की सब मना कर रहीं थी. देवी के दिमाग में सौ तरह के सवाल आ रहे थे लेकिन तभी नटू आकर देवी को एक चिट्ठी दे गया. देवी ने बड़े आश्चर्य से पहले चिट्ठी को देखा फिर उस भागते हुए लड़के को.
देवी ने झट से उस कागज की तहों को खोला. खोलते ही उसके होश उड़ गये, लिखाई बहुत जानी पहचानी यानि कोमल की थी. उसमे लिखा हुआ पढ़कर तो देवी को सदमा सा बैठ गया. मुंह से विना कुछ बोले जल्दी जल्दी घर की तरफ चल दी.
उसे उस चिट्ठी में लिखी बात पर यकीन न हो रहा था. लेकिन कॉलेज में किसी को पता न चले इस वजह से सीधी घर जा रही थी. सोचती थी आज पता नहीं घर की हालत क्या होगी जब लोग वे कोमल की लिखी हुई चिट्ठी पढेंगे.
देवी पैरों में पहिया लगाये भागी जा रही थी. उसे किसी भी तरह जल्दी से जल्दी घर पहुंचना था. कोमल ने जो काण्ड किया था उसकी खबर अपने माँ बाप को देनी थी. कोमल अपने खानदान की पहली लड़की थी जो घर से भाग गयी थी. गाँव में तो कईयों ने कोशिश की लेकिन कोमल की तरह कोई भाग नही पायी थी. गाँव की अगर कोई रिकॉर्ड रखने वाली किताब होती तो उसमे कोमल का नाम स्वर्ण अच्छरों में लिखा जाता.
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RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
भाग-9
इधर देवी ने घर पहुच कोमल की चिट्ठी वाला बम फोड़ दिया था. मुंह से तो देवी कुछ न बोल पा रही थी लेकिन चिट्ठी हाथ में पकड़ा बोली, “लो इसमें पढ़ लो सब.” कोमल की माँ पढ़ी लिखी नही थी इसलिए अपने छोटे बेटे को बुला चिट्ठी को पढवाया.
लड़का पढने लगा, "मेरे पूज्य माँ और पापा, में आज बड़ी पत्थर दिल हो तुम्हें छोड़कर जा रही हूँ. तुम्हारा एहसान जिन्दगी भर मुझपर रहेगा. मुझे यह भी पता है कि तुम्हे इस बात से कितना दुःख और बदनामी सहनी पड़ेगी लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां रही होंगी जब में इतना सब जानते हुए भी भाग़ गयी. माँ ये राज बहुत अच्छा लड़का है. मैंने तो इसके मन को चाहा इसलिए मुझे इसकी जाति विरादरी से कोई लेना देना नहीं है.
माँ और पापा आप जब तक इस चिट्ठी को पढ़ रहे होगे तब तक में काफी दूर पहुंच चुकी होऊंगी. माँ और पापा आप मुझे माफ़ कर देना में जाती तो नही लेकिन एक मजबूरी मुझे भागने के लिए मजबूर कर गयी. माँ मेरी कोख में राज का बच्चा पल रहा है. लेकिन माँ मेरी इस बात में कोई गलती नहीं थी. में तो इस सब के बारे मे जानती ही नही थी. ये सब तो अचानक से हो गया. फिर मुझे आप लोगों की बदनामी का डर लगा और मैंने गाँव से दूर जाने की सोचने ली. फिर आज ऐसा ही कर डाला.
माँ और पापा में जानती हूँ मैंने ये बहुत गलत काम किया है. में खानदान की सबसे निकम्मी लडकी निकली. मुझे जो भी सजा दी जाय वो कम ही होगी. लेकिन माँ तू अपने दिल से बता क्या तू एक स्त्री होने के नाते अपना कोई मन, कोई इच्छा नहीं रखती? क्या तेरा मन पुरुषों की बराबरी करने का नहीं करता?
में मानती हूँ माँ कि सिर्फ यही एक काम नही था जिसमें पुरुषों से स्त्री की तुलना की जाय. दुनियां के बहुत से काम है जिनमे मुझे दिखाना चाहिए था कि में पुरुषों से आगे हूँ लेकिन कमबख्त ये दिल ही न जाने क्या कर बैठा. मुझे इस बात का जिन्दगी भर अफ़सोस रहेगा कि तुम दोनों अपने हाथ से मेरी शादी न कर पाए.
माँ और पापा अब न जाने कब में आप लोगों से मिल पाउंगी. आप लोग हमेशा मेरे दिल के करीब रहोगे. में आपका ही एक टुकड़ा हूँ जो खराब हो चुका है. मुझे वो खराब टुकड़ा समझ माफ़ कर देना. मुझे पता है में खानदान के ऊपर ये कलंक का धब्बा लगा चुकी हूँ लेकिन मेरी मजबूरी भी इसमें उतनी ही दोषी है जितनी कि में.
मुझे पता है पापा कि आप समाज में ठीक से बैठ नही पाओगे, लोग आपको न जाने क्या क्या ताने देंगे लेकिन ये लोग तो वही लोग होंगे जो सीता जी को घर से निकलवाने के लिए जिम्मेदार थे. जिन्होंने उस समय कुछ नहीं बोला. माँ आप को भी मोहल्ले की औरतों की जली कटी सुनने को मिलेगी.
जब लोग आपसे मेरे बारे में कुछ भी बुरा भला कहें तो उनसे कहना कि वो लडकी हमारी बेटी ही नही थी. इस पर मुझे कतई बुरा नही लगेगा. आप दोनों के चरणों में मेरा सर हमेशा झुका रहेगा. आप की इच्छा है कि मेरे सर को आशीर्वाद दो या तलवार से काट डालो. अभी ज्यादा नही लिख पा रही हूँ. जल्दी किसी जगह पर पहुंच तुम्हे खत लिखूगी, भाई बहनों की याद भी मुझे बहुत आएगी. जिनके साथ में खेलकूद कर बड़ी हुई. बाकी की बातें फिर कभी, तुम्हारी गुनहेगार. भगोड़ी कोमल."
कोमल का ये खत पूरे घर पर बिजली की तरह गिरा था. माँ तो अपने दिल को जैसे तैसे थामे बैठी थी. जब बाप को बुलाकर बताया तो बाप की आँखों में आने वाले समय में होने वाली बेइज्जती और बेटी के भाग जाने का गम था. भाई बहनों की हालत तो बताने या समझे जाने के काबिल ही नही थी. बहनें रो रहीं थी लेकिन सब को बाहर निकलते ही समाज से मिलने वाले तानो की बहुत चिंता थी. बाप को तो मानो सांप ही सूंघ गया था.
सब के सब सकते में थे. क्या किया जाय और क्या न किया जाय? कोमल के बाप का नाम तो कुछ और था लेकिन लोग भगत के नाम से ज्यादा जानते थे. भगत ने बच्चों से कहा, “कान खोल कर सुन लो तुम सब लोग. अगर कोई भी कोमल के बारे में पूंछे तो कहना कि बुआ के यहाँ गयी है. समझे? अगर किसी ने भी किसी भी आदमी या औरत को सच बताया तो उसकी खैर नही."
बच्चे अपने बाप की गुस्सा खूब अच्छे से जानते थे और आज तो अपने घर की इज्जत का सवाल था. इसलिए सब ने चुप रहने का फैसला लिया. फिर भगत ने कोमल की माँ से पूंछा, “अब क्या किया जाय? अगर किसी को भी खबर लगी तो बदनामी बहुत होगी. तुम कहों राजू और संतू को बुलाकर बात की जाय? शायद ये लोग कोई रास्ता निकाल दें?
उदास बैठी कोमल की माँ ने हां में सर हिला दिया.
भगत ने अपने पास बैठे एक लडके से कहा, “सुन भाई, चुपचाप से राजू और संतू को बुलाकर ला. कहना तुम्हें पापा बुला रहे है. किसी से कुछ मत कहना. अगर कुछ पूंछे तो कहना मुझे नही पता क्यों बुला रहे हैं."
लड़का भागता हुआ बाहर चला गया. ये राजू और संतू भाई भाई थे. ये लोग भगत के परिवार के ही थे. ये लोग एक ही पुरखों की सन्तान थे. एक बाबा के भगत. एक के संतू और राजू. और एक के पप्पी और दद्दू जिनका घर भी बगल में ही था.
थोड़ी ही देर में राजू और संतू आ पहुंचे. भगत ने सारी बात उन लोगों को कह सुनाई. दोनों के ही होश फाख्ता हो गये थे. उन्हें सपने में भी यकीन नही था कि कोमल ऐसा कुछ कर डालेगी. दोनों के मुंह से बात न निकली. फिर राजू भगत से बोला, “अब क्या करोगे चचा? लडकी तो सत्यानाश करके चली गयी."
भगत उदास हो बोले, “मुझे मालुम होता तो तुम्हे क्यों बुलाता?"
राजू झट से बोला, "देखो वैसे तो ये बात कम से कम लोगों में रहनी चाहिए लेकिन अपने खानदान के लोगों को तो पता चलना ही चाहिए जिससे वे लोग भी हमारी मदद कर सकें? आप ऐसा करो पप्पी और दद्दू को भी बुलबा लो."
ये बात भगत को भी ठीक लगी. उन्होंने लड़का भेज कर उन दोनों को भी बुलवा लिया. पप्पी और दर्दू तुरंत भागे चले आये.
सारी स्थिति उन्हें भी भी बताई गयी. उनकी हालत भी राजू और संतू की तरह हो गयी. उन्हें भी कुछ न सूझता था. फिर सब ने मिलकर दिमाग लगाया. दद्दू थोडा निकम्मे किस्म का इंसान था. उसे हमेशा अपनी पड़ी रहती थी.
आज भी अपने ही फायदे की सोच बोला, “देखो लडकी को ढूढो और मिलने पर बाल पकड घसीट लाओ. अगर ऐसा न कर पाए तो हमारे बच्चो की शादी नहीं होगी. कोई भी आदमी ऐसे खानदान में अपनी लडकी नहीं व्याहेगा. न ही ऐसे खानदान की लडकी को अपने घर में स्वीकारेगा." ____
दद्दू, पप्पी और राजू तीनों के तीन तीन लडके थे. इन तीनों को ही ये बात सही लगी. लडके तो भगत पर भी थे लेकिन उनको फायदे नुकसान से ज्यादा घर की इज्जत की फिकर थी. बात कहीं तक सही भी थी. वैसे ही इस घर के लड़कों को दहेज़ कम मिलता था. ये दाग लगने पर शादी भी बंद हो जानी थी. भगत निराश हो बोले, "तो तुम लोग ही करो जो तुम्हे ठीक लगे. मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा
दद्दू ने राजू और पप्पी की तरफ देखा. राजू बोला, “कोमल उस तेली के लडके राज दूधिया के साथ भागी है न? सबसे पहले लावलश्करले उसी के घर चलो. देसी कट्टा भी लेकर चलना. साला कोई भी कुतुर कुतुर करे तो डरा देना. मेरे हिसाब से घरवालों को जरुर पता होगा कि ये मोहना इस छोरी को कहाँ ले गया होगा?"
पप्पी और दद्दू भी राजू की इस बात से सहमत थे. सारी तैयारी की गयी, ये सारा काम गुप्त रूप से होना था. कुल मिलाकर दस बारह लोग हो गये. इनमे से कुछ लोग अपनी मोटर साईकिल से जा रहे थे वाकी के साईकिल से. सब के चेहरों पर राज के घरवालों के प्रति गुस्सा था. ऐसे में अगर राज मिल जाता तो ये लोग उसका खून भी पी जाते.
इधर राज का दोस्त राज के घर जाकर उसके बाप को राज का दिया हुआ खत दे चुका था. राज के बाप ने उस लडके से ही खत पढने के लिए कहा. लड़के ने खत पढना शुरू किया, "मेरे आदरणीय पापा. में तुम्हे बताये बिना ही ऐसा काम करने जा रहा हूँ जिसे सुन आप बहुत क्रोधित होंगे.
पापा में जिस गाँव में दूध लेने जाता था उस गाँव की एक लडकी से मुझे मोहब्बत हो गयी थी. फिर एक दिन ऐसा आया जब वो मेरे बच्चे की माँ भी बन गयी. पापा उस लडकी का नाम कोमल है. पापा ये वही लडकी है जिसकी एक दिन आपने तारीफ़ की थी.
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