RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
अपडेट 2
राधा ने घर का दरवाज़ा खाट-खाटाया. दरवाज़ा खुला. उसका बूढ़ा बाबा प्रकट हुआ. कमज़ोर, दुबला पतला, दाढ़ी और सिर के बालों पर सफेदी छाई थी. पलकें धसि हुई थी. आँखों के चारों और गहरे गड्ढे पड़े हुए थे. राधा को देखते ही बाहें फैलाकर उसने राधा को गले से लगा लिया. राधा सिसक कर उससे लिपट गयी. फुट फुट कर रो पड़ी. तभी घर के बाहर कुच्छ लोगों की ख़ुसर-पुसर होनी शुरू हो गयी.
बाबा के साथ राधा अंदर पहुँची. उसने देखा घर के अंदर हर चीज़ अस्त-व्यस्त है. मंडप जला हुआ है. राधा का दिल तड़प उठा. वह दूसरे कमरे में पहुँची. वहाँ अनगिनत मूर्तियाँ टूटी बिखरी पड़ी थी. किसी के हाथ अलग थे तो किसी का सिर. राधा आश्चर्य से देखने लगी.
"इन मूर्तियों को मैने तोड़ डाला." बाबा ने कहा - "गम बर्दास्त नही कर सका तो अपना गुस्सा इन पर उतार दिया."
"बाबा...!" राधा सिसक कर बोली - "मैं क्या करूँ, मैं लूट गयी. राजा..."
बाबा ने लपक कर उसका मूह बंद कर दिया. - "मत ले उसका नाम बेटी. वरना जो बाकी रह गया है वह भी समाप्त हो जाएगा. वह हमे तेरे बाप की तरह किसी अपराध में फसा कर बे मौत मार डालेगा. उसके हटकंडो को कौन नही जानता. दौलत के कारण यहाँ के कुच्छ सरगना भी उसका साथ दे रहे हैं. तुम्हारा भोला भी तो..."
"मुझे मालूम है बाबा. भोला बिक चुका है, पंद्रह हज़ार में. अच्छा हुआ जो मेरा विवाह उस कायर से नही हुआ."
"अब हम यहाँ नही रहेंगे बेटी. यह जगह हमारे लिए नर्क से भी बदतर है." बाबा ने सिसक कर राधा को अपने गले से लगा लिया.
बाबा ने अपना थोड़ा ज़रूरी सामान जमा किया. उसे चादर में बाँध कर अपने बूढ़े कमज़ोर कंधे पर डाल लिया और राधा को लेकर बाहर निकल गया.
कच्ची सड़क, पगडंडी, खेतों की मेध तथा उबड़ खाबड़ रास्ता पार करने के बाद जब वे बहुत दूर पहुँचे तो राधा ने पलट कर अपने गाओं को देखा. जहाँ उसका बचपन बीता था. अपना गाओं, अपने खेत, इन खेतों की हरी भरी उपज पर उड़ते परिंदों को देख कर राधा की आँखें भर आई. अचानक उसने उड़ती हुई धूल के साथ घोड़े की टापो की आवाज़ सुनी. उसका दिल बुरी तरह घबरा उठा. बाबा ने लपक कर उसे छाती से लगा लिया. वे दोनो छिपने के लिए इधर उधर स्थान ढूँढने लगे. किंतु समय कम था. उन्होने देखा घुड़सवार समीप आ पहुँचे थे. घुड़सवार दो थे, राजा सूरजभान सिंग तथा मंत्री प्रताप सिंग.
राधा सहम कर बाबा से लिपट गयी.
"राधा...!" सूरजभान समीप आकर बोले - "तुम चाहो तो यहाँ रह सकती हो. तुम पर उंगली उठाने वाले का हम सिर कलम करा देंगे."
राधा चुप रही किंतु बाबा से सहन नही हुआ. उसके खून में ना जाने कहाँ से गर्मी आ गयी. वह राधा को छोड़ कर उनके समीप पहुँचा और क्रोध में भर कर बोला - "राजा साहब किसी को मार कर कीमती कफ़न पहना देने से पुन्य नही हो जाता. राधा को तुम्हारे रहमो करम पर छोड़ देने से अच्छा है कि मैं इसका गला घोंट दूं."
मंत्री प्रताप सिंग अपने मालिक के विरुढ़ एक छोटे से आदमी का यह तिरस्कार सहन नही कर सका. उसने हाथ में पकड़ा कोड़ा हवा में लहराया और पलक झपकते ही उसे बाबा पर दे मारा. बाबा का बूढ़ा शरीर एक ही वार में घायल होकर गिर पड़ा.
"प्रताप सिंग..." राजा सूरजभान सिंग ज़ोर से चीखे. प्रताप सिंग की यह हिमाकत उन्हे ज़रा भी पसंद नही आई.
राधा बचाव में बाबा के शरीर से लिपट गयी.
"मार डालो. मार डालो हमें." राधा तड़प कर चीख उठी - "ज़ालिम, पापी, नीच."
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