RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
सुबह का समय था. राधा अपने छोटे से घर पर झाड़ू लगा रही थी. घर छोटा सा था. दो कमरे थे. एक बड़ा एक छोटा. अंदर के बरामदे में रसोई था. एक छोटा सा आँगन भी था. आँगन का दरवाज़ा बाहर सड़क की ओर खुलता था. यह घर फादर फ्रांसिस के स्कूल के बिल्कुल पास था.
सहसा किसी ने आँगन का दरवाज़ा खत-ख़ाटाया. राधा ने झाड़ू एक किनारे रखी और आँचल संभालते हुए लपक कर दरवाज़ा खोल दिया.
सामने एक लंबा चौड़ा आदमी खड़ा था. उसके बाल भूरे कम और सुनहरे अधिक थे. भूरी फ्रेंच कट दाढ़ी, आँखों पर मोटा चस्मा तथा कीमती चस्मा था. सिर के उपर ईव्निंग कॅप थी जिसे आँखों के उपर कुच्छ अधिक ही झुका कर उसने पहन रखा था. कीमती सफेद सूट में वह किसी स्टेट का राजकुमार लगता था. राधा उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना ना रह सकी. वह सूरजभान थे. किंतु राधा उनके बदले हुए रूप की वजह से उन्हे पहचान नही सकी.
"आप किससे मिलना चाहते हैं?" राधा ने आश्चर्य से देखते हुए पुछा.
"मैं बाबा हरीदयाल से मिलना चाहता हूँ. जो मूर्तिकार हैं." अपने आप पर काबू पाकर सूरजभान ने कहा.
उसकी आवाज़ सुनकर राधा काँप गयी. उसे लगा जैसे उसने पहले भी कहीं इस आवाज़ को सुन रखी हो. लेकिन कब, कहाँ उसे याद नही आ सका.
सूरजभान ने उसे खोया देखा तो उसका ध्यान अपनी ओर खींच कर कहा - "मेरा नाम राजेश है. मैं मूर्तियों का व्यापारी हूँ. मुझे फादर फ्रांसिस ने भेजा है. मैने आपको तथा आपके बाबा को वहाँ देखा था. हमारी भेंट हुई थी. पर शायद आपको याद नही."
"ओह्ह...! जी हां...जी हां, शायद." राधा ने सोचा शायद उसने वहीं इस आदमी को देखा हो. उसने उन्हे अंदर आने का रास्ता दिया. - "आप बैठिए, मैं अभी बाबा को बुला कर लाती हूँ."
"क्या वे घर पर नही हैं?"
"ऐसे वक़्त पर बाबा फादर फ्रांसिस के स्कूल में होते हैं."
"आपके बाबा क्या वहाँ काम करते हैं?"
"जी हां..."
"तो फिर मूर्ती किस वक़्त बनाते हैं?"
"अधिकांश शाम को, स्कूल से आने के बाद."
"तब तो उन्हे बहुत मेहनत करनी पड़ती होगी."
"मेहनत नही करेंगे तो गुज़ारा कैसे चलेगा? एक छोटा बच्चा है, उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहती हूँ."
"क्या आपके पति आपकी कोई सहायता नही करते?" सूरजभान ने उसका दिल टटोला.
उत्तर में राधा की आँखों से आँसू बह निकले. उदास चेहरा लिए नीचे देखने लगी.
"क्षमा चाहता हूँ. मैने शायद आपके किसी दुख को जगा दिया है."
"कोई बात नही." राधा अपने आँसू पोछ्ती हुई बोली. - "मैं अभी आई." राधा उन्हे बैठने के लिए कुर्सी देकर बाहर निकल गयी.
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