RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
उसके जाते ही सूरजभान अंदर के कमरे में दाखिल हुए. अंदर एक चारपाई बिछि हुई थी जिस पर उसका नन्हा सा गोरा चिटा बेटा सो रहा था. सूरजभान अपने आप पर काबू नही पा सके, झुक कर उसका माथा चूम लिया. चुंबन के एहसास से बच्चे की आँख खुल गयी. उसकी आँखों में सूरजभान ने अपनी परच्छाई देखी. वही आँखें, वही रूप. बच्चा पूरी तरह से उन्ही पर गया था. उन्हे देख कर बच्चे ने मुस्कुराया. सूरजभान ने तड़प कर उसे गोद में उठा लिए. फिर दीवानो की तरह उसे चूमते चले गये. ना जाने कितनी देर बच्चे से खेलते रहते कि तभी दरवाज़े के बाहर आहट हुई. वह फुर्ती से बच्चे को चारपाई पर लिटा कर पहले कमरे में आ गये.
राधा अपने बाबा के साथ अंदर आई.
"कहिए, किस तरह की मूर्तियाँ खरीदना चाहते हैं आप?" बाबा ने उन्हे गौर से देखते हुए पहले झुक कर अदब से सलाम किया फिर पुछा.
"आपके पास इस वक़्त जैसी भी हों मुझे दिखा दीजिए."
"बाबू साहब, इस वक़्त तो मेरे पास केवल एक ही मूर्ती है, और वह भी अधूरी. आप दो दिन बाद आएँ तो मैं उसे पूरी कर दूँगा."
"क्या मैं उसे देख सकता हूँ."
"हां...हां क्यों नही. अंदर आइए." बाबा दूसरे कमरे में दाखिल हुआ.
राधा और सूरजभान भी पिछे पिछे चले आए. सूरजभान ने सरसरी निगाह से एक बार फिर बच्चे की तरफ देखा. बच्चा जाग रहा था. राधा ने उसे गोद में उठा लिया.
"बहुत प्यारा बच्चा है." सूरजभान ने कहा. - "क्या नाम है इसका?"
"कमल...!" राधा ने धीरे से कहा.
बाबा ने अधूरी मूर्ति उठा कर सूरजभान को थमा दिया. - "अगर छुट्टी होती तो आज ही पूरी कर देता. थोड़ा थोड़ा समय देना पड़ता है. आप इसे कल ले जा सकते हैं."
"लेकिन इस प्रकार तो यह अच्छी लग रही है."
"इस प्रकार...?"
"हां...हां और क्या?" सूरजभन ने मूर्ति को उलट पुलट कर देखते हुए कहा. - "इसे ही तो मॉडर्न आर्ट कहते हैं. विदेश में तो इन मूर्तियों का बहुत दाम दिया जाता है."
"विदेश में?" बाबा ने उन्हे आश्चर्य से देखा. राधा भी हैरान थी.
"हां...हां और क्या? मैं इसके 200 रुपये दूँगा."
"200 रुपये." बाबा इतनी बड़ी रकम का नाम सुनकर हैरान रह गया. उसने आज तक किसी भी मूर्ती को 10 रुपये से अधिक दाम में नही बेचा था.
"अच्छा 300 रुपये ले लो." सूरजभान बिना एक पल देर किए कहा.
"300 रुपये." राधा को अपने कानो पर विश्वाश नही हुआ.
"अच्छा बाबा, यह लो 500 रुपये." सूरजभान ने कोट की जेब से सौ सौ के पाँच नोट निकाल कर बाबा के हाथों में थमा दिए.
बाबा फटी फटी आँखों से सूरजभान को देखता ही रह गया.
"मैं इसे दुगुनी दाम में विदेश में बेचुँगा. आज से मैं आपका ग्राहक हूँ." राजेश ने जेब से 100 रुपये का एक नोट निकालते हुए कहा. - "इसलिए मेरी और से इस बच्चे के लिए यह छोटी सी भेंट स्वीकार कीजिए." सूरजभान ने राधा की तरफ नोट वाला हाथ बढ़ा दिया.
राधा उनके हाथ में थमे नोट को लेने से इनकार नही कर सकी. प्रेम से दिया हुआ उपहार स्वीकारणीय होता है.
सूरजभान बच्चे का गाल थप-थपा कर आँगन का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया.
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