RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
सूर्यास्त होने में अभी देरी थी. रामगढ़ में आकर एक एक बस, दो ट्रक और दो जीप रुकी. ट्रक के ट्रेलर पर काफ़ी सामान लदा हुआ था. मजदूर गाड़ियों से उतरे. कमल और सरोज अंतिम जीप से उतरे तो राधा भी दूसरी तरफ से बाहर चली आई. उसके मुखड़े पर दुख की छाया विराजमान थी. उसने अपनी दृष्टि सबसे पहले हवेली पर दौड़ाई. पूरे इलाक़े में बस यही एक हवेली बची थी जो अंतिम साँसे ले रही थी. हवेली के उस पार दूर ताड़ के पेड़ दिखाई पड़ रहे थे जहाँ कुच्छ गिद्ध चुप-चाप बैठे अपने आहार की आस लगाए प्रतीक्षा कर रहे थे. इस इलाक़े में किसी जानवर का भटक कर आ जाना और भूख - प्यास से दम तोड़ देना एक साधारण सी बात थी. हवेली की दीवारें काली हो रही थी. राधा के होठों से एक आह निकल गयी. उसने देखा हवेली के सामने वाला वह पेड़ अब भी खड़ा है परंतु पूरी तरह से सुख चला है. चबूतरा उबड़ - खाबड़ लग रहा था. वहाँ भी उसकी बेहन तथा पिता की यादें जीवित थी. वह कैसे इन बातों को भूल सकती थी. सहसा हवा का एक झौंका पिछे से आया और उसके बदन से लिपटे शॉवल को हिला कर चला गया. वह पिछे पलटी. उसने दूर दूर तक दृष्टि दौड़ाई. उसे बबूल का वह पेड़ दिखाई दिया जिसके नीचे उसका अपना घर था. छोटा सा साधारण सा. और उसके पास अपने खेत थे. उसी खेत के समीप वाले खलिहान पर भोला ने जीवन भर उसका साथ देने का वादा किया था लेकिन कम्बख़्त चाँदी के चन्द सिक्को की खातिर कितनी जल्दी उसे भूल गया था. पता नही इस वक़्त कहाँ कुदाल चला रहा होगा? और वह जो टूटी फूटी दीवार दिखाई पड़ रही है वहाँ उसकी सहेली चंपा रहती थी. उस बेल के पेड़ की नीचे रामदीन काका रहते थे. और यह नीम का पेड़ पहले बहुत छोटा था, अब कितना बड़ा हो गया है. राधा देख रही थी...देखती रही, एक एक वस्तु को बहुत ध्यान से. उसका मन करता था गाओं के पिच्छले दिन फिर लौट आए, वे लोग, वह वक़्त फिर वापस आ जाए तो वह अपनी सहेलियों के साथ इस नीम के पेड़ पर झूला डाल लेगी. लंबी - लंबी पींगे मार कर वह आकाश को छुने लगेगी और फिर इधर से गाओं के छैल - छबिले नवयुवक गुज़रेंगे और पहले की भाँति उसे च्छेड़ेंगे. और तभी उसने देखा गाओं का वह भुला बिसरा समय फिर से लौट आया है. हरे - भरे खेत, खलिहान, बड़े बड़े पेड़ जाग उठे हैं. उन्ही में से एक पेड़ पर उसका झूला टंगा है. और वह अपनी सहेलियों के साथ पींगे मार रही है. उसका आँचल हवा से लहराकार बादलों की तरह आकाश को छु लेना चाहता है. और तभी उस ओर से कुच्छ छैल - छबिले युवक गुज़रे. उनमे भोला भी था. भोला उसे देखते ही रुक गया था.
"अरे इतनी लंबी - लंबी पींगे मत मारा कर वरना भगवान कृष्ण अपना हाथ बढ़ा कर तुम्हे अपने पास खींच लेंगे." भोला ने ज़ोर से कहा था.
भोला की बात सुनकर उसकी सहेलियाँ खिलखिला कर हंस पड़ी. परंतु राधा झेंप गयी है. उसकी पलकें लाज से झुक गयी है. राधा भोला की उपस्थिति के कारण सहेलियों से कुच्छ नही कह पा रही है, वरना एक एक की चोटी खींच कर बताती. उसने देखा अब उसका झूला रुक गया है. भोला मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया है. तभी राधा को उसकी एक सहेली ये विश्वाश दिला रही है कि भोला उससे प्यार नही करता. वह तो केवल उसकी सुंदरता से प्यार करता है. उसके उस धन और जेवर से प्यार करता है. जो तुम्हारी शादी के बाद सब कुच्छ उसका हो जाने वाला है. परंतु राधा को अपनी सहेली की इस बात पर ज़रा भी यकीन नही है. उसे विश्वाश है कि भोला उसे दिल की गहराई से प्यार करता है और उसके लिए अकेले सारी दुनिया से लड़ सकता है.
"मा..." सहसा कमल ने कहा. मा को इतनी देर तक विचारों में डूबा देख कर वह घबरा गया था.
राधा चौंक कर सपने से जागी. और तब उसे एहसास हुआ एक युग बीत चुका है. वह इस इलाक़े से लगभग 22 वर्ष दूर आ चुकी है, जहाँ अब कभी फिर से नही पहुँचा जा सकता. उसने पलट कर देखा शाम की लालिमा में हवेली खून की तरह झलक रही थी. जाने क्यों...उसकी आँखे छलक आई.
"क्या हुआ मा?" कमल उसके पास आकर पुछा. सरोज भी साथ थी.
"कुच्छ नही बेटा. कुच्छ भी नही." राधा अपनी आँखों के आँसू पोछती हुई बोली - "यहाँ आकर बीते हुए जीवन-काल की तस्वीर में डूब गयी थी."
कमाल खामोश हो गया. मा की पीड़ा का वह अनुमान लगा सकता था.
"कमल मेरी इच्छा हवेली देखने की है. क्या तुम चलोगे मेरे साथ?" राधा ने बहुत आशा से कहा.
कमाल ने एक बार अपने साथियों की तरफ देखा. नौकर चाकर फोल्डिंग पलंग लगाने में व्यस्त थे. इंजिनियर आदि कपड़े बदल कर अब खड़े खड़े दूर से ही हवेली का जायज़ा ले रहे थे. कमल ने टॉर्च उठाई और राधा तथा सरोज को साथ लेकर हवेली की ओर बढ़ गया. हवेली के समीप पहुँच कर उन तीनो ने देखा कि बाहरी दीवार का प्लास्टर उखड़ा हुआ है और अंदर से झाँकती हुई एक किसी ग़रीब के शरीर की हड्डियों की तरह झलक रही है.
कमल ने गेट खोलकर ज्यों ही लॉन में पावं रखा, दुब्के हुए सियार और गीदड़ अपने स्थानो से निकल कर दूसरी ओर भाग खड़े हुए. कमाल और सरोज के दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं. परंतु दिल की जली राधा एक उड़ान में हवेली पहुँच जाना चाहती थी. उबड़ - खाबड़ रास्ता था, परंतु वे इस पर चलकर तुरंत ही बरामदे तक पहुँच गये. बरामदे में ही कमरे के दोनो किनारों से उपर की और सीढ़ियाँ जाती थी. राधा ने झट एक ओर से सीढ़ियाँ चढ़ती चली गयी. कमल उसके साहस पर आश्चर्य-चकित था.
हर मंज़िल पर चौड़ी बालकनी थी जहाँ बीच के कमरे के किनारों से अगली मंज़िल की सीढ़ियाँ चढ़ती थी. राधा आगे बढ़ती गयी. उनकी आहट पाकर सीढ़ियों के कोनो पर छीपे चमगादड़ और उल्लू फड़फड़ाकर उनके सिर के उपर सेनिकल जाते थे. परंतु राधा पर इसका प्रभाव ज़रा भी नही पड़ा. वह सबसे उँची मंज़िल पर पहुँची जहाँ खुला आकाश था. ठंडी - ठंडी हवाएँ उसके मुखड़े को छु गयी. राधा ने दूर दूर तक निगाह की उसी जगह खड़े होकर जहाँ कभी जीवन में पहली बार उसने रामगढ़ का पूरा नक़्शा अपनी आँखों से देखा था. किंतु आज का दृश्य बदल चुका था. वह देखती रही दूर दूर तक. जहाँ कभी खेत खलिहान हुआ करते थे अब वहाँ कंटीली झाड़ियाँ और जंगली घास के अतिरिक्त कुच्छ भी ना था.
"मा अब वापस चलो. सूर्यास्त हो चला है. फिर कभी दिन के वक़्त इस हवेली को देखेंगे." कमाल ने मा को कमर से थाम कर कहा.
राधा स्वीकृति में सिर हिलाकर सीढ़ियों की तरफ मूड गयी.
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