RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
राधा ने उसे बेबस दृष्टि से देखा. मानो उसकी बात पर विश्वाश ना कर के कमल ने उसका दिल तोड़ दिया हो. कमल मन ही मन लज्जित हो उठा. फिर वही से उँची आवाज़ में पुछा, - "किसी आदमी को तो बाहर नही देखा. मेरा मतलब किसी बाहरी आदमी को?"
"इधर तो कोई नही है." बाहर के नौकर ने हैरानी से उत्तर दिया.
कमल ने कोई उत्तर नही दिया. उसने राधा को देखा. अब वह संभाल चुकी थी. राजा सूरजभान के प्रति उठता प्यार घृणा में बदल चुका था.
"मा अब सो जाओ." कमल अपना पलंग मा के पलंग के और समीप खींच लिया. लालटेन थोड़ी तेज़ कर दी ताकि मा का मन नही घबराए. फिर बोला, - "कल सुबह ही मैं तुम्हे और सरोज को घर पहुँचा दूँगा. वरना यहाँ रहते हुए अपनी बीती याद करके तुम्हारी तबीयत और बिगड़ सकती है."
राधा कुच्छ नही बोली. पलंग पर लेटकर सोचने लगी. यहाँ से जाने के बाद वह कमाल को फिर यहाँ नही आने देगी. हो ना हो सूरजभान सिंग की आत्मा उनसे अपनी तबाही का बदला लेना चाहती है.
*****
केयी दिन बीत गये. रामगढ़ की सरहद पर एक बोर्ड लगा था...पटेल नगर का निर्माण. सरकार ने इसका नया नाम पटेल नगर रख कर ही इसका कॉंट्रॅक्ट्स बर्मन & कंपनी को शहर बनाने की अनुमति दी थी. कमल का बनाया हुआ नक़्शा सरकार ने सराहते हुए मंजूर कर लिया था.
रामगढ़ में काम जारी था. ट्रकों पर इट और पत्थर, तथा चुना, सेमेंट के बोरे तथा छड़े, लोहे की सीखचियाँ तथा रेती आने लगे थे. जगह - जगह कॅंप लगे थे. मजदूरों की गिनती बढ़ती ही जाती थी. हवेली को यहाँ काम करने वालों ने पहले दूसरे दिन ही देखकर संतोष कर लिया था. सभी की अपनी - अपनी राय थी, परंतु किसी को हवेली के कमरों का ताला तोड़कर आंतरिक भाग देखने की इज़ाज़त नही थी क्योंकि इसकी ज़िम्मेदारी कमल के ही उपर थी. तीन माह का नोटीस पूरा होने के बाद जब इसका कोई वारिस नही होगा तब सरकार खुद इसकी नीलामी अपनी देख -रेख में करेगी.
कमल का कॅंप हवेली से कुच्छ ही दूर स्थित था. राधा और सरोज को उसने देल्ही में ही छोड़ दिया था. राधा ने अपने दिल में बसे भय के कारण उसे रोकना भी चाहा था. परंतु कमल उसे समझा बुझा कर वापस रामगढ़ चला आया था.
एक शाम उसे किसी काम से लखनऊ जाना पड़ा. वापसी के समय उसकी गाड़ी का आक्सिडेंट हो गया. गाड़ी में तीन लोग थे. कमल, एक सहयोगी इंजिनियर और ड्राइवर. ड्राइवर को मामूली चोटें आई थी किंतु सहयोगी इंजिनियर मौक़े पर ही दम तोड़ चुका था और कमल को गंभीर हालत में अस्पताल पहुँचाया गया था.
इसकी सूचना सबसे पहले सरोज के घर वालों को दी गयी. सरोज के पिता ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने राधा को कमल की गंभीर स्थिति के बारे में ना बताकर सिर्फ़ इतना कहा कि कमल का आक्सिडेंट हुआ है और उसे हल्की - फुल्की चोटें आईं हैं. राधा इतने में ही घबराकर तुरंत ही रामगढ़ जाने की ज़िद कर बैठी थी.
जल्द से जल्द लखनऊ पहुचने के लिए ठाकुर धीरेन्द्र सिंग को अपनी गाड़ी पर ही विश्वाश करना पड़ा था, क्योंकि हवाई जहाज़ का तुरंत मिलना असंभव था और रैल्गाड़ी मिल भी जाती तो उसका लेट चलना हमारे देश में साधारण सी बात है. उनका ड्राइवर निपुण तथा अनुभवी था. इसलिए उनके हाथ में स्टियरिंग देकर वह निश्चिंत हो गये थे. वह आगे बैठे हुए थे तथा पिछे राधा और सरोज थी.
|