RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
ठाकुर धीरेन्द्र सिंग की कार ठीक मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के सामने रुक गयी. राधा ने आश्चर्य से सरोज को देखा, फिर ठाकुर धीरेन्द्र सिंग को. ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने उसे ये कहकर लाया था कि कमाल को मामूली चोटें आई है और वे लोग उसे देखने रामगढ़ जा रहे हैं.
गाड़ी रुकते ही ठाकुर धीरेन्द्र सिंग गेट खोल कर बाहर निकल आए थे. घड़ी देखी तो तीन बज रहे थे.
"आओ बेहन...!" उन्होने बहुत गंभीर होकर राधा से कहा मानो किसी भेद पर परदा डाल रहा हो.
राधा का दिल बहुत ज़ोरों से धड़का. सरोज अपनी और का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल चुकी थी इसलिए वह भी उनके पिछे पिछे बाहर आ गयी. उसकी बेचैनी भी बढ़ चली थी.
"क्या बात है सरोज?" अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयास करते हुए राधा ने पुछा, - "यह तुम लोग मुझे कहाँ ले आए?"
सरोज ने लाचारी से अपने पिता को देखा.
"घबराओ नही बेहन, सब ठीक हो जाएगा." ठाकुर धीरेन्द्र सिंग की समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे उनके आगे कमल की वास्तविकता ज़ाहिर करे.
"क्या ठीक हो जाएगा?" राधा की आवाज़ काँप गयी. वह बोली, - "ज़रूर आप लोग मुझसे कुच्छ छिपा रहे हैं. कहीं मेरे लाल को तो कुच्छ नही हो गया है? आख़िर रामगढ़ जाते - जाते आप लोग मुझे यहाँ क्यों ले आए? कहाँ है मेरा कमल?"
सरोज सब्र ना कर सकी, तड़प कर रो पड़ी. राधा को ऐसा लगा मानो उसका दिल ही बैठ जाएगा. परंतु तभी एक डॉक्टर बरामदे की सीढ़ियाँ उतर कर उनके पास खड़ा हो गया था. गाड़ी का नंबर प्लेट पढ़ा फिर उनकी तरफ पलटा.
"क्या आप ही लोग इस गाड़ी से आए हैं?" उसने पुछा.
"जी हां." ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने झट उत्तर दिया.
"यह कमल की माताजी हैं?" उसने राधा की ओर इशारा करके पुछा.
"जी हां...जी हां." धीरेन्द्र सिंग बोले - "कमल कैसा है डॉक्टर?"
"वह ख़तरे से बाहर है लेकिन अभी बेहोश है. आप चाहें तो उन्हे दूर से देख सकते हैं. अभी - अभी उन्हे खून दिया गया है इसलिए उसे डिस्टर्ब ना करें. वॉर्ड नंबर 16 सामने ही है."
"खून !" राधा से नही रहा गया तो उसने आश्चर्य से पुछा. - "लेकिन कमल को हुआ क्या है?"
राधा की उँची आवाज़ सुनकर एक बूढ़ा वॉर्ड से बाहर निकल आया था और खंभे की आड़ लेकर छिप गया था. छिप कर वह यह देखना चाहता था कि राधा ने उसे क्षमा कर दिया है या नही. कान लगा कर वह बहुत ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा.
डॉक्टर कह रहा था, - "कार आक्सिडेंट में वा बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गया था. अगर राजा सूरजभान सिंग ने अपना खून..."
डॉक्टर की बात पूरी भी ना हो पाई थी कि राधा चीख पड़ी - "उफ्फ ! मेरे भगवान यह क्या हो गया...?" राधा घृणा से दाँत पीसकर अपनी छाती पीटने लगी. पूरी बात जाने बिना ही बोली - "यह क्या गजब हो गया? आख़िर मेरे लाल पर उस पापी की छाया पड़ ही गयी. मुझे मालूम होता कि वह ज़ालिम अब तक ज़िंदा है तो मैं अपने बेटे को रामगढ़ जाने ही नही देती. मैं उसका मूह नोच लूँगी."
खंभे की आड़ में खड़ी छाया के शरीर में कंपन पैदा हुई. आँखों में आँसू छलक आए. उसका गला सुख गया और दिल बैठने लगा. उसके प्यार का इतना बुरा परिणाम ! उसके जीवन भर की तपस्या का ऐसा घृणित फल. अब इसी नफ़रत की सौगात लिए उसका दम निकलेगा. राधा उसे कभी क्षमा नही करेगी. उसने इतना अधिक अत्याचार किया है कि जिसका कोई प्रय्श्चित नही ! उसे अपने ही नही, अपने बाप - दादो के पापों की सज़ा भी भुगतनी होगी. यह तो प्रकृति का नियम है. बोता कोई है, काट-ता कोई. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसका दम घुट जाएगा. आँसू गालों से धूलक कर दाढ़ी तथा मुच्छों में उलझ गया. दिल का दर्द बढ़ने लगा. जब उसने अनुभव किया कि उसके पैर काँप रहे थे, वह गिर पड़ेगा. तो सख्ती से अपने होंठों को काटा और अपनी जाती हुई साँसों को समेटा, फिर दबे पावं वहाँ से हटकर सीढ़ियों से नीचे उतर गया. राधा की चीखें उसे अब भी सुनाई पड़ रही थी. सीढ़ियाँ उतर कर आगे बढ़ते हुए वह अपनी निराश कामनाओं के संसार में खो गया.
बरामदे में राधा अब तक चीख रही थी - "सारी ज़िंदगी उसने मुझे तडपाया है, मेरा जीवन नार्क़ बना दिया. मेरा और मेरे बच्चे का जीना कठिन कर दिया. इसीलिए भगवान ने उसका सब कुच्छ छीन लिया और इसीलिए उसने मुझसे यह बदला लिया है."
"राधा देवी..." डॉक्टर ने उसे टोका - "मैं नही जानता राजा सूरजभान सिंग ने आपके साथ क्या क्या ज़ुल्म किया है. पर इस वक़्त आप उनके बारे में ग़लत सोच रही हैं. उन्होने आपके बेटे की जान नही लेनी चाही है, बल्कि उन्होने तो अपना खून देकर आपके बेटे को नया जीवन दिया है."
राधा कुच्छ कहते - कहते रुक गयी. ज़ुबान तालू से चिपक गयी. होंठ खुले के खुले रह गये.
"हां राधा देवी." डॉक्टर ने उसकी चुप्पी से अवसर पाकर आगे बोला - "यह तो भगवान का शुक्रा मनाइए कि राजा सूरजभान सिंग का खून आपके बेटे कमल के ब्लड ग्रूप से मिल गया. वरना स्थिति काफ़ी गंभीर हो सकती थी. सूरजभान सिंग शरीर से कमज़ोर और अस्वस्थ थे फिर भी उन्होने अपना खून देने में कोई कमी नही की. हम ने उनकी अवस्था का ध्यान करके उनके शरीर से इतना ही खून लिया जितने से कि आपके बेटे की ज़िंदगी बचाई जा सके."
राधा का दिल धक होकर रह गया. उसे अपनी कानों पर विश्वाश ही नही हो रहा था. फटी - फटी आँखों से डॉक्टर को देखने लगी.
सहसा एक नर्स तेज़ी से उनके समीप आई और डॉक्टर से बोली - "सर वॉर्ड नंबर 16 के जिस मरीज को खून चढ़ाया गया था वह होश में आ गया है."
नर्स की बात सुनकर डॉक्टर वॉर्ड की तरफ बढ़ गया. उसके पिछे राधा, सरोज और ठाकुर धीरेन्द्र सिंग भी वॉर्ड के दरवाज़े तक गये. कुच्छ ही देर में डॉक्टर ने वॉर्ड से बाहर आकर उन्हे बताया कि कमल को होश आ गया है और आप लोग उससे मिल सकते हैं. राधा वॉर्ड में दाखिल हो गयी. कमल के समीप जाकर आँसू बहाती हुई उसका माथा चूम लिया. सहसा उसे कुच्छ याद आया और फिर वह तेज़ी से वॉर्ड से बाहर निकल गयी. राधा को बाहर निकलते देख ठाकुर धीरेन्द्र सिंग भी उसके पिछे पिछे वॉर्ड से बाहर आ गये.
राधा तेज़ पगो से चलती हुई डॉक्टर के कॅबिन तक पहुँची और डॉक्टर से बोली - "डॉक्टर साहब इस वक़्त राजा साहब कहाँ है? मैं अंजाने में उन्हे बहुत बुरा भला कह गयी. मैं उनसे मिलकर क्षमा माँगना चाहती हूँ."
"बगल वाले वॉर्ड में." डॉक्टर ने उत्तर दिया - "खून देने के बाद उनकी अवस्था और कमज़ोर हो गयी है. हम ने उन्हे इंजेक्षन देकर आराम करने को कहा है."
राधा के दिल को चोट पहुँची. मन ही मन उसने खुद को धिक्कारा. अपने आँसू पोछ कर उसने एक गहरी साँस ली और बगल के वॉर्ड के तरफ बढ़ गयी.
जब राधा बगल के वॉर्ड में पहुँची तो पलंग खाली था. राधा ने चारों और नज़र दौड़ाई परंतु सूरजभान सिंग का कहीं कोई पता नही था. वह पिछे पलटी तो धीरेन्द्र सिंग भी उनके पास ही खड़े थे. उन्होने भी अपनी नज़रे इधर उधर दौड़ाई फिर राधा को देखा. उसकी आँख से आँसुओं का झरना जारी था.
"मैं जानती हूँ वह कहाँ होंगे." राधा ने आँसू पीने का प्रयत्न करते हुए कहा - "मैं उनके पास जाउन्गि और सब कुच्छ भुला कर उनसे क्षमा मागुंगी. उन्होने मेरे बेटे को नया जीवन दिया है."
"बेहन जी इस वक़्त..." धीरेन्द्र सिंग ने कुच्छ कहना चाहा.
"रामगढ़ है ही कितनी दूर. मेरा दिल कहता है अब कमल को कुच्छ नही होगा. वह ज़रूर बच जाएगा. उसे देखने के लिए आप लोग ही काफ़ी हैं. मेरे लौट आने तक आप लोग कमल के साथ रहिएगा." राधा ने कहा, और फिर बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए वह सीढ़ियाँ उतर कर कार की तरफ बढ़ गयी.
ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने ड्राइवर को इशारे से कह दिया कि वह जहाँ जाना चाहती है उन्हे ले जाए.
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