RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
चार बजे थे कि राधा की गाड़ी गार्ड उड़ती हुई रामगढ़ की सीमा में परविष्ट होकर ठीक हवेली के गेट के सामने जा रुकी. दूर खड़े काम करने वाले मजदूरों ने एक बार अपनी दृष्टि उस पर उठाई और काम में व्यस्त हो गये. अफ़सरान कमल को देखने के बहाने छुट्टी पर चले गये थे. छोटे मोटे काम करने वाले सहायक ही यहाँ रह गये थे.
राधा ने उपर दृष्टि उठाई. आकाश पर लालिमा छाने में अभी देर थी, लेकिन फिर भी हवेली पर भायानकपन छाया हुआ था. राधा ने ड्राइवर को प्रतीक्षा करने की आग्या दी और हवेली का गेट खोल कर अंदर परविष्ट हो गयी. फिर तेज़ कदमों से बरामदे में पहुँची. सीढ़ियाँ पार की और कोठे में पहुँची. परंतु वहाँ कोई नही था. वह सीढ़ियाँ उतर कर सीधे बैठक में पहुँची जहाँ राजा विजयभान सिंग तथा कुच्छ वर्षों तक सूर्यभान सिंग ने भी बैठकर रामगढ़ की प्रजा की फरियाद सुनी थी. वहाँ भी उसे निराशा मिली. पुरानी कुर्सी धूल धूसरित होकर अपने समय के महत्व की याद दिला रही थी. राधा लपक कर हवेली के पिच्छले भाग में गयी, फिर जल्दी जल्दी उसने दूसरे चप्पे छान मारे. परंतु निराशा वहाँ भी उसका इंतेज़ार कर रही थी. फिर भी उसने उम्मीद का दामन नही छोड़ा.वह जानती थी कि उनका यहाँ रहना निश्चिंत है. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो वह यहीं कहीं छीपे बैठे हैं. सहसा बड़े हॉल के दरवाज़े पर ताला लगा देख कर वह ठिठकि. उससे सब्र ना हो सका. बगल से वह सीढ़ियाँ उपर चढ़ि तो एक बड़ी सी शीशे की खिड़की के समीप से गुज़री. लेकिन उसके पट्ट अंदर से बंद थे. उसने एक इट उठाई और इस पर दे मारी. एक छनाका हुआ और शीशा टूट गया. बढ़कर उसने अंदर हाथ डाल कर खिड़की खोल ली. अंदर कूदी तो सूर्य की किरणों से काफ़ी प्रकाश छाया हुआ था. उसने देखा, हवेली के पुराने घिसे - पिटे फर्निचरर्स बरसों से धूल की परत में बिछि हुई थी. फर्श की मोटी कालीन पर इतनी मोटी गर्द की परत थी कि उसके कदमों के गहरे गहरे निशान बनते चले गये. उसने चारों ओर दृष्टि डाली. शायद...शायद वह यहीं कहीं मिल जाए. परंतु भारी - भारी फर्निचर के अतिरिक्त यहाँ कुच्छ भी नही बचा था.
सहसा उसे कुच्छ याद आया, इसी कमरे के द्वार से वह एक बार यहाँ के रंग महल में परविष्ट हुई थी. एक और जहाँ उँचा चबूतरा बना हुआ था और जहाँ कभी शाही कुर्सी पर राजा - महाराजा विराज करते थे, उसी के पिछे एक पत्थर का दरवाज़ा भी था. उसके कदम अपने आप ही उस और उठ गये. वह चबूतरे की सीढ़ियाँ उतरी तो उसके सामने एक पत्थर का बड़ा दरवाज़ा था. वह दरवाज़ा खोल कर दूसरे कमरे में पहुँची. सूर्य की किरण अंदर तक आ रही थी फिर भी इस कमरे में काफ़ी अंधेरा था. सब कुच्छ धुँधला - धुंधला सा दिखाई पड़ रहा था. वातावरण भयावह थी. अंधेरे में ऐसा जान पड़ता था मानो कुच्छ एक जिन्नात इधर - उधर टहल रहे हों या सफेद परिया थिरक रही हों. भय से उसका दिल काँप गया. परंतु वह साहस नही छोड़ना चाहती थी. लपक कर वह पहले कमरे में फिर आई. खिड़की के समीप ही मोटी मोमबति गिरी पड़ी थी. माचिस की तिल्लियाँ पास ही बिखरी थी. सिगार के कुच्छ आध-जले टुकड़े पड़े हुए थे. उसने झट मोमबत्ती उठाई. तील्लियाँ उठाकर माचिस के बॉक्स पर रगड़ा. मोमबति का प्रकाश वहाँ चारों और फैल गया. मोमबति थामे सीढ़ियों द्वारा वह रंगमहल में उतर गयी.
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