RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला आश्चर्य में पड़ गयी. सोचती थी जब ये लोग मछली चावल नही खाते तो फिर क्या खाते हैं? क्योंकि माला के यहाँ तो यही सब चलता था. कुछ दिन ही ऐसे होते थे जिनमें कुछ और बनता हो. हरी सब्जी तो खेतों के किनारे उगने वाली तरह तरह की घास से कभी कभार बन जाती थी. अब वो राणाजी को क्या बताये कि आपके यहाँ का उसे कुछ भी बनाना नही आता है. बोली, "हम तो इसके अलावा कुछ बनाना नही जानते. हमारे घर तो लोग यही सब खाते हैं."
राणाजी ने थोडा सोचा. उन्हें पता था माला के घर की हालत कैसी थी लेकिन सहृदय राणाजी ने इसका भी तोड़ निकाल दिया. बोले, “अच्छा माला अगर तुम्हें माता जी यह सब बनाना सिखाएं तो सीखना चाहोगी?"
माला थोड़ी खुश होती हुई बोली, "हाँ हमे ये सब बनाना अच्छा लगेगा. क्या वो हमको सिखा देंगी?"
राणाजी ने हां में सर हिलाया और बोले, “अच्छा तुम अभी यहीं बैठो. हम माता जी से बात करके अभी आते हैं. फिर तुमको बताते हैं.
इतना कह राणाजी कमरे से बाहर निकल गये. माला ने कमरे में इधर उधर नजर दौडाई. कमरा उसे फिल्मों वाले घरों की तरह लग रहा था. माला ने एक बार फिल्म देखी थी जिसमें इसी तरह का घर दिखाया गया था.
पलंग पर तो माला कल रात पहली बार सोयी थी. वो तो बचपन से जमीन पर या दिन में कभी कभार टूटी चारपाई पर लेट लेती थी. क्योंकि चारपाई तो सिर्फ उसके पिता या मेहमानों के लिए होती थी. घर की औरतें तो सर्दी से गर्मी तक जमीन पर ही सोती थी.
राणाजी अपनी माँ सावित्री देवी के कमरे में पहुंचे. उनकी माँ अपने बक्सों को उल्ट पुल्ट रहीं थीं. राणाजी ने पहुंचते ही अपनी माँ से कहा, "अरे माँ. अगर तुम चाहो तो ये माला काम में तुम्हारा हाथ बंटा देगी लेकिन खाना बनाना इसे तुमको ही सिखाना पड़ेगा. वो सब इस पर नही आता. हाँ झाडू वगैरह लगा देगी."
माताजी ने वेफिक्र हो कहा, "नही बेटा एकाध दिन उसे आराम कर लेने दे. मैं अभी इतनी बूढी भी नही हुई हूँ और इसे में सब सिखा दूंगी तू चिंता मत कर.”
राणाजी ने आश्वस्त हो हाँ में सर हिलाया और बोले, "लेकिन माँ अगर वो काम नहीं करेगी तो उसका मन भी नही लगेगा. काम के बहाने तुम से झिझक भी खुल जाएगी."
सावित्री देवी सहमत होती हुईं बोली, "ठीक है तो तू उसे भेज दे लेकिन बेटा ये है कहाँ की और कौन है कुछ मुझे भी तो पता पड़े? इसके माँ बाप सब कहाँ है? इतनी जल्दी शादी करने के पीछे कारण क्या था?"
राणाजी को वैसे तो माँ को बताने का मन नही होता था लेकिन माँ से कोई बात छुपाना भी उन्हें अच्छा नही लगता था. बोले, "माँ ये बिहार की है. और इसके माँ बाप बहुत गरीब हैं. बेचारों को ठीक से रहने खाने का भी कोई ठीक जरिया नही. बस यही इसका परिचय है.” ।
सावित्री देवी की आँखें हैरत से फटी रह गयीं. बोली, “बिहार से शादी करके लाये हो? अरे इसकी जाति बिरादरी पता कि या नही या वैसे ही शादी कर लाये?"
राणाजी को माँ की बात थोड़ी अखरी लेकिन शांति से बोले, "माँ मैंने ये सब कुछ नही पूंछा लेकिन ये हमारी बिरादरी की नहीं है. इतना मैं जानता हूँ.”
सावित्री देवी ने मुंह पर हाथ रख लिया और बोली, "हाय राम! क्या कहते हो बेटा? अरे तुमने ये भी न सोची की इस घर में किसी और जाति..."
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