Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"फिर क्या हुआ ?" - सुनील ने पूछा ।
"फिर सुनीता को खून के अपराध से बचाने के लिये राम ललवानी ने मेरे सामने एक स्कीम रखी ।"
"कैसी स्कीम ?"
"स्कीम यह थी । बम्बई में दो जवान लड़कियों की हत्यायें हो चुकी थीं । हत्यारे ने दोनों बार लड़कियों के शरीर की बड़ी बेदर्दी से बोटी-बोटी काट दी थी । पुलिस के ख्याल से वह किसी विक्षिप्त मस्तिष्क के व्यक्ति का काम था । स्कीम का एक सूत्र तो यह था । दूसरा सूत्र उसका भाई मनोहर ललवानी था । मनोहर ललवानी ने बम्बई में कुछ अपराध किये थे - यह उसने मुझे नहीं बताया कि क्या अपराध किये थे - लेकिन उसने यह जरूर कहा कि अगर मनोहर ललवानी पकड़ा गया तो उसे कम-से-कम दम साल की सजा होगी । राम ललवानी ने मेरे सामने यह स्कीम रखी कि उसका भाई चाकू लेकर गीगी ओब्रायन की लाश को यूं काट-पीट देगा कि वह उसी विक्षिप्त हत्यारे का काम मालूम होगा जो पहले भी बम्बई में दो हत्यायें कर चुका था । फिर पुलिस को यह संकेत दे दिया जायेगा कि वह विक्षिप्त हत्यारा मनोहर ललवानी ही है । फिर जब पुलिस उसको पकड़ने आयेगी तो वह गोली चलाता हुआ पुलिस के घेरे से निकल कर बान्द्रा के रेलवे पुल की ओर भाग निकलेगा । बान्द्रा के पुल पर पहुंचकर वह यह जाहिर करेगा कि वह पुलिस की गोलियों का शिकार होकर पानी में गिर पड़ा । पुलिस केस बन्द कर देगी । सुनीता की ओर किसी का ध्यान नहीं जायेगा और मनोहर ललवानी को भी मरा समझा लिया जायेगा ।"
"लेकिन बाद में पानी में से मनोहर ललवानी की लाश भी तो निकाली गई थी ?"
"वह लाश एक ताजी कब्र खोदकर निकाली गई थी । लाश के शरीर में बाकायदा तीन-चार गोलियां मार दी गई थीं । एक गोली से किसी हद तक उसका चेहरा बिगाड़ दिया गया था । अगले दिन पुलिस ने पानी में से लाश बरामद की थी । शिनाख्त के लिये राम ललवानी और उससे मित्र सोहन लाल को बुलवाया गया था । दोनों ने स्वीकर किया था कि वह मनोहर ललवानी की लाश थी ।"
"सुनीता का क्या हुआ ?"
"सुनीता को मैं तभी अपने साथ ले आया था । अब बहुत बड़े-बड़े डाक्टर उसका इलाज कर रहे हैं । पिछले पांच सालों में उसमें काफी सुधार आ गया है । डाक्टर कहते हैं कि वह जल्दी ही अपने पैरों पर चलने लगेगी ।"
अपने पैरों पर चलने लगेगी - सुनील मन-ही-मन बुदबदाया - तो वह पहियों वाली कुर्सी पर बैठी औरत सुनीता ही थी ।
"बाद में राम ललवानी और मनोहर ललवानी ने क्या किया ?" - प्रत्यक्षतः सुनील ने पूछा ।
"दोनों बम्बई से निकल गये । पूरे चार साल राम ललवानी मेरे से मोटी-मोटी रकमें मांगता रहा जो मैं उसे खुशी से देता रहा । फिर पिछले साल वह राजनगर आ गया । उसने लिबर्टी बिल्डिंग की पांचवीं मंजिल और बैसमैंट खाली करवाने के लिये मजबूर किया । पांचवीं मंजिल पर उसने नाइट क्लब खोल ली और बेसमैंट में उसने मैड हाउस नाम का डिस्कोथेक खोल दिया । फिर उसके पीछे-पीछे ही उसका भाई मनोहर ललवानी भी आ गया ।"
"राम ललवानी ने नाइट क्लब और मैड हाऊस का अच्छा खासा धंधा जमा लिया है । अब तो वह स्वंय ही काफी सम्पन्न आदमी हो गया है । अब तो वह आपसे रुपया नहीं मांगता होगा !"
"मांगता है । बराबर मांगता है । आखिर क्यों न मांगे ? जो चीज बिना हाथ हिलाये सहज ही प्राप्त हो, उसे भला क्यों छोड़े ? और अब पैसे से ज्यादा उसे लीगल प्रोटेक्शन की जरूरत है, जिसकी वह मुझसे हमेशा ही अपेक्षा करता है । अब भी कई काम ऐसे हैं जो उसे मेरी मदद के बिना होते दिखाई नहीं देते । जैसे उसने मुझे इस बात के लिये मजबूर किया कि मैं तुम्हें फौरन राजनगर से चलता कर दूं ।"
सुनील चुप रहा ।
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