RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
72 शिक्षा
इतनी जल्दी नहीं, मेरे चोटू मादरचोद बेटे !”, टीना जी फुकारीं, और पुत्र के अधीर लिंग को कस के पकड़े हुए बोलीं, “एक बात गांठ बाँध ले, जब भी किसी औरत को चोदने का मन करे, तो पहले औरत को अच्छी तरह से चुदाई के वास्ते गरम करना बड़ा जरूरी है ।' समझा, मेरे लाल ?”
“नहीं, मम्मी, मेरे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ा। तू तो गर्मा ही चुकी होगी, तभी तो मुझसे चोदने चाहती हो।”, लड़के ने मासूमियत से कहा। उसके मुख पर कुछ हताशा का भाव था।
“अरे बुद्ध, मैं बेशक चुदना चाहती हूँ, बच्चा ।”, उसकी माँ ने उत्तर दिया, “पर तुझे समझना चाहिये की बढ़िया चुदाई मतलब सिर्फ ये नहीं कि ले आये अपना मोटा बम्बू, और पेल दिया चूत में ।”
“अच्छा तो तुम्हीं बता दो ना, कैसी होती है बढ़िया चुदाई ?”, जय बोला। टीना जी अपनी देख को उसकी देह पर धीरे-धीरे, मादल लय में मसलने लगीं। वे उसके लिंग के शीर्ष भाग को अपने योनि स्थल पर रगड़ने लगीं, और लिंग को अपनी रिसती और द्रवों से सनी योनि के द्वार की सम्पूर्ण लम्बाई पर घसीटने लगीं।
“इस तरह जय !”, वे कराहीं, “इसे कहते हैं चुदाई के पहले का खेल :: : ओहहह! ::: यही तो फ़र्क है ::: अहंहह! ::: एक अच्छी चुदाई, और एक मस्त चुदाई में, आह ... जिससे चूत शराबी और लन्ड कबाबी हो जाये ::' आहहहह ... साला वो लन्ड ही क्या जो चूत से खेलकर उसे सताये नहीं ::: अहाँह :: सैक्स में एक्स्पर्ट वही मर्द है जो औरत के बदन को गुदगुदा, मचला कर चुदाई के वास्ते पूरा गरम कर दे, पर खुद जरा भी नहीं विचलित हो !”
टीना जी ने बिलबिलाते हुए जय के लिंग को अपने चोंचले पर रगड़ा। जय ने निगाहें नीची कर के अपने नितम्बों को यौवन की आतुरता से कसमसाया। उसके मन में तनिक भी मौका मिलने पर अपनी माँ की कस कर खींची हुई योनि में अपने कामातुर लिंग को घोंप देने की प्रवृत्ति प्रबल हो रही थी। टीना जी ने ऊपर, कामविभोर नेत्रों से अपने पुत्र की आँखों में आँखें डालकर देखा।
“बोल, माँ की गरम और गीली चूत से मजा आ रहा है, बेटा ?”, वे कराहीं, “मुझे बता, जय! बता क्या चाहता है ::: आज तक तेरे मन में मेरे साथ जो - जो हरकतें करने की ख्वाहिश हुई हैं, सब बता दे मुझे बेटा!” ।
अब टीना जी का श्वास भारी हो चला था। वे लम्बी गहरी साँसें ले ले कर हाँफ़ रही थीं, और उसके फूले सुपाड़े को तीव्रता से अपनी फिसलन भरी योनि -गुहा में आगे-पीछे मसलती जा रही थीं। जय ने अनुमान लगा लिया था कि उनकी क्या मंशा थी, वे उसके लिंग द्वारा स्वयं को बहला रही थीं, और उसके मुख से अश्लील और गन्दा वर्तालाप सुनना चाहती थीं, उनके बीच निश्चित होने वाली सम्भोग क्रिया के रोमांच को भद्दे वर्तालाप द्वारा उत्पन्न छवियों से संवार कर दुगुना करना चाहती थीं वे :: :: ऐसी कामुक और वर्जित छवियाँ जो उनके मन में पनपती कल्पनाओं को जीवन्त कर दें। कितने समय से वे अपने सगे पुत्र के संग उन कल्पनाओं को यथार्थ में अनुभव करने को तरस रही थीं।
तेरी चूत पूरी गीली और गरम है, मम्मी !”, वो बोला, और एक एक करके उनके दोनो निप्पलों को चूम दिया। ६ . . मेरे मोटे काले लन्ड के वास्ते तेरी गरम और भीगी चूत ! मम्म !” | टीना जी ने प्रशंसा में सर हिलाया, उनके नेत्र जय के चेहरे पर गड़े हुए थे, जैसे उसका अश्लील शब्द - जाल उन्हें वशीभूत किये हो।
“अ ह! हाँ बेटा! तेरा लन्ड तो वाकई खूब मोटा है! और काला भी !”, टीना जी ने बड़े धीमे स्वर में, बुदबुदा कर कहा।
जय का लिंग उनके हाथ में फड़क पड़ा। “मेरे बाप जितना मोटा ?”, उसने पूछा। व अपने भीतर के पौरुष बल का अनुबोध कर फूला नहीं समा रहा था।
। “ओहहह, हाँ! जरूर! शायद उससे से भी मोटा, डार्लिंग! मेरे तो पंजे में भी फिट नहीं आ पा रहा!”, जो संबोधन अब तक अपने पति के लिये ही आरक्षित था, टीना जी ने उसी से अपने पुत्र को संबोधित कर, उसे अपने जीवन में एक अनुपम स्थान प्रदान किया था। उनका पुत्र अब उनके स्त्रीत्व का समपूरक था ::: उनके पति का स्थान ले लिया था जय ने !
टीना जी ने अतिशयोक्ति नहीं कही थी, सच में उनके पंजे में जय के लिंग की मोटाई नहीं समा पा रही थी। जैसे जय रोमांचित होता गया, उसके लिंग का तनाव भी बढ़ता चला गया। इसका एकमात्र कारण केवल माँ की हथेली का उसके लिंग पर होना नहीं था, हालांकि इसमें कोई संशय नहीं कि माता की मुष्टि में उसका लिंग बड़ा इठला रहा था। एक और अन्य कारण था कि उसे अपनी सगी माँ के साथ इस निरंकुश और स्पष्ट अश्लील लहजे में बतियाने में बड़ा मजा आ रहा था।
“मम्मी, तूझे चुदाई की लत है, है न ?”, जय बत्तीसी निकाल कर मुस्कुराया और उनके बड़े-बड़े गुलाबी निप्पलों पर च्यूंटी काटता हुआ बोला। “एकदम रन्डी है तू, जब तक तेरी गर्मा-गरम बुर में दो चार लम्बे तगड़े लन्ड नहीं मारते, तेरी चोटू चूत को चैन नहीं पड़ता ?” टीना जी ने सिहरते हुए उसके लिंग को दबाया और अपने प्रथम सम्भोग का स्मरण करने लगीं।
बिलकुल सही! मैं तो चुदाई की शौकीन हूँ! बचपन से ही !”, जय को कानों सुनी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था! “हरामजादी फ्राक पहने की उमर में ही चुद चुकी होगी !”, मुस्काते हुए जय ने सोचा।
“रन्डी, तू अपनी चूत में खुद भी उंगल करती है ना?”, उखड़ी - उखड़ी साँसों में उसने पूछा। फिर जय अपनी माँ के मक्खनदार और मोटे स्तनों के इन्च -इन्च पर हाथों को फेरने, और निप्पलों को मसलने लगा।
“साली, जब तू घर में अकेली होती है, तो तेरी चुदास चूत तो बड़ी गर्मा जाती होगी।” जय का स्वर भर्रा रहा था। उसने अपनी उंगलियाँ उनकी जाँघों के बीच फेरीं और हाथों में उनकी योनि को दबोच लिया। उसकी माँ की रोमदार योनि से धधकती नम ऊष्मा का अनुभव कर वो मानो खुशी से झूम गया। अत्यधिक उमस थी उनके योनि स्थल में । प्रतिक्रिया में टीना जी ने और अधिक गति से अपने पुत्र के मोटे लिंगस्तम्भ को रगड़ना प्रारम्भ कर दिया। वे उन्मत्त होकर अपनी आतुर योनि पर जय की हस्तक्रीड़ा का आनन्द ले रही थीं।
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