RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
सुबह के चार बज रहे थे।
सारा काम निपटाने के बाद देशराज अभी-अभी अपनी कुर्सी पर आकर बैठा था—चेहरे से थकान और आंखों से नींद झांक रही थी—दोनों पैर टेबल पर फैलाने के बाद सिगरेट सुलगाई ही थी कि ऑफिस में दाखिल होते पांडुराम ने सूचना दी—“वह मुसीबत तो फिर हमारे गले पड़ गई साब …।”
“कौन-सी मुसीबत?”
“वही, बुड्ढे की लाश!”
“क्या मतलब?” देशराज चौंका।
“वह पुनः हमारे इलाके में पड़ी मिली है।”
“ओह!” देशराज के होंठों पर धूर्त मुस्कराहट उभर आई—“लगता है बगल वाले थाने के इंस्पेक्टर ने भी वही सोचा जो हमने सोचा था, उन्होंने मुसीबत वापस हमारे गले में डाल दी।”
“अब क्या करें सर?”
“कहां पड़ी है लाश?”
“गन्दे नाले के पुल पर।”
“ठीक है, मुझे घर भी जाना है—रास्ते से उठाकर जीप में डाल लेंगे—इस बार नदी में लुढ़का देते हैं उसे, साली को मगरमच्छ नोच-नोचकर निपटा देंगे—रही-सही बह जायेगी—न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!”
“यस सर, यह ठीक रहेगा!” पांडुराम ने कहा—“बहुत ही बड़े-बड़े मगरमच्छ हैं नदी में—इतने खतरनाक कि कभी-कभी तो नदी किनारे जलने वाली चिताओं तक से लाश खींचकर ले जाते हैं—पिछले इंस्पेक्टर साहब ने भी एक लाश इसी तरह ठिकाने लगाई थी, आज तक कोई न जान सका कि लाश कहां गयी—और फिर आजकल तो वैसे भी बारिश धुआंधार पड़ रही है, नदी उफान पर है—आधे घंटे बाद दुनिया की कोई शक्ति लाश को नहीं ढूंढ सकेगी।”
पांच मिनट बाद वे गन्दे नाले के पुल पर थे।
ड्राइवर और पांडुराम ने लाश जीप में डाली, जीप उस वक्त नदी की तरफ दौड़ रही थी जब देशराज ने पांडुराम को निर्देश दिया—“दयाचन्द और सलमा अलग-अलग हवालातों में बन्द हैं—मैंने केस डायरी तैयार कर दी है, उसे पढ़ लेना और कल सुबह दोनों को कोर्ट में पेश करके जेल भिजवा देना—मैं लंच बाद थाने पहुंचूंगा।”
“ओ.के. सर!” पांडुराम के इन शब्दों के बाद जीप में खामोशी छा गयी।
फिर!
वे नदी पर पहुंचे।
जीप पुल के बीचों-बीच खड़ी की।
देशराज ने एक सिगरेट सुलगाई। ड्राइवर और पांडुराम ने भूसे की बोरी की मानिन्द लाश जीप से निकाली, पुल की रेलिंग के नजदीक ले गए और दो-तीन ‘झोटे’ देने के बाद रेलिंग के दूसरी तरफ उछाल दी।
‘छपाक’ की आवाज के साथ सब कुछ खत्म हो गया।
मुश्किल से एक मिनट लगा था उन्हें।
अगले मिनट जीप देशराज के घर की तरफ उड़ी चली जा रही थी, पांडुराम को जाने क्या सूझा कि अचानक बोला—“इजाजत हो तो एक दिलचस्प बात सुनाऊं साब?”
“सुना!” देशराज ने सिगरेट में कश लगाया।
“वेद प्रकाश शर्मा का नाम सुना है आपने?”
“वो जासूसी उपन्यासों का लेखक?”
“हां!”
“तो?”
“सवा सौ उपन्यासों के करीब लिख चुका है वह और आज हिन्दी का सबसे ज्यादा बिकने वाला उपन्यासकार है—लोग उसके उपन्यास बड़े चाव से पढ़ते हैं, मैं भी पढ़ता हूं।”
“फिर?”
“अगर उसके उपन्यास के इंस्पेक्टर को इस तरह लाश पड़ी मिलती तो पट्ठा ये दिखाता कि इंस्पेक्टर पर बुड्ढे के हत्यारे को खोज निकालने और उसे कानून के हवाले करने का जुनून सवार हो गया।”
“अच्छा!” देशराज ने खिल्ली उड़ाने वाला ठहाका लगाया।
“सारा उपन्यास बुड्ढे के हत्यारे की खोजबीन कर रहे इंस्पेक्टर की कार्यवाहियों से ही भर डालता—कई उपन्यासों में तो उसने यहां तक लिखा है कि पुलिस इंस्पेक्टर इतना ईमानदार, मेहनती, कर्मठ और कर्त्तव्यनिष्ठ था कि अपने साथ-साथ अपने परिवार तक की जान गंवा दी मगर अपराधियों के हाथों बिका नहीं—ऐसे-ऐसे इंस्पेक्टर पेश किए हैं उसने जो कोई पेचीदा केस मिलने पर कहते हैं—मेरे दिमाग को खुराक मिल गयी है और अपराधी के पीछे लग जाते हैं।”
“फिर भी वह सबसे ज्यादा बिकता है?”
“हां।”
“वो भी मूर्ख है और पब्लिक भी—ये लेखक साले होते ही दिमाग से पैदल हैं—खुद ही लेख लिख-लिखकर प्रचारित करेंगे कि साहित्य समाज का दर्पण है और लिखेंगे वह बकवास जो तू बता रहा है—अब भला इन कूढ़मगजों से कोई पूछे, अगर इनका साहित्य समाज का दर्पण होता तो उनके उपन्यासों के नायक मेरे जैसे इंस्पेक्टर होते या वे, जो समाज में पाये ही नहीं जाते?”
ड्राइवर और पांडुराम ठहाका लगा उठे—“यही तो मैं कहना चाहता था साब।”
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
|