ऐसा ही होता है - SexBaba
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ऐसा ही होता है

hotaks444

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ऐसा ही होता है


सर,”आप कितने स्वीट हो, आपसे पहले वाला मॅनेजर एकदम खड़ूस था. लेकिन आप जब से आए हो यहाँ, ना तो कोई काम रुकता है और ना ही किसी को परेशानी होती. मॅनेजर हो तो आप जैसा. ठीक है सर मैं चलती हूँ. बाइ.”इतना कह के वो चली गयी. चलती बड़ी अदा से थी वो, मैं देखता रह गया.

पॅंट टाइट हो चुकी थी. मैने जैसे ही पॅंट ठीक करने के लिए हाथ नीचे किया, मुझे अपनी कलाई पे कुछ मीठे ज़ख़्म दिखाई दिए. पॅंट और टाइट हो चुकी थी, मैं अचानक किसी याद मैं खो गया.


साल - 2005
“मेमसाब मैं छोटे बाबू के निक्कर अब नही धोउंगी, अब छोटे बाबू बड़े हो गये हैं.” ये कहकर उसने एक लंबी साँस भरी और मुस्कुरकर कहा, “रहने दो मालकिन छोटे साहब बहुत सीधे हैं, इनके उमर के लड़के पता नहीं कितनो को मा बना चुके होते हैं पर इनकी मेहनत तो सारी निक्कर मे ही निकल जाती है.” किचन मे कुक्कर की आवाज़ से अंदर कुछ सुनाई नहीं दे रहा था शायद. उसने एक दो बार और मालकिन मालकिन पुकारा फिर इधर उधर देख के मेरे निक्कर को नाक से लगा लिया और साड़ी के उपर से ही अपने पैरों के बीच मे हाथ ले जाके ज़ोर से दबाने लगी. उसकी आँखे बंद थी. ये नज़ारा मैं अपने कमरे मे से देख रहा था कि तभी मेरे कंधे पे किसी ने हाथ रखा और मैं चीख पड़ा. बाई की साँस और हाथ दोनो रुक गये, मानो निक्कर मे मादक वीश हो.

मैं जहाँ था वहीं जम गया था, तभी मेरे कान मैं तिनकी ने कहा, “चल ना मैने तेरे लिए पोहे बनाया है.” उसकी आवाज़ कान मैं इस तरह घुसी कि मेरा रोम रोम सिहर गया और मैं एक दम से काँप गया.

“सन्नी तुझे तो बुखार है, तेरा बदन पूरा गर्म है.” उसने मुझे जैसे ही अपनी ओर किया मैं उसपर गिर पड़ा. शॉर्ट्स के अंदर चड्डी ना पहन ने की वजह से उसके पेट मे जो चुभा वो मुझे और उसे लाल कर गया.

“सन्नी तू शॉर्ट्स बदल ले गीला हो गया है, मैं पोहे ले आती हूँ. तेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही. मैं तुझे खिला दूँगी. मैं आती हूँ 5 मिनट मैं.” ये कहके वो चली गयी. मैने जैसे ही नीचे देखा मैं शर्मिंदा हो गया. मेरे कान गरम हो गये. मैने तुरंत ही अपना शॉर्ट्स अलमारी से निकाला और बदल के बिस्तर पे आँख बंद कर के लेट गया. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. पता नहीं ये कौन सी बीमारी लग गयी थी मुझे. मन मैं कयी सवाल थे, जिसे सोचते ही पॅंट और दिल दोनो फटने लगते. मैं सब भूलने की कोशिश कर ही रहा था कि तिनकी पोहे ले के आ गयी.

“तू बैठ मैं अपने हाथों से खिला देती हूँ.” ऐसा नहीं था कि वो मुझे पहली बार खिला रही थी. जब से मैने होश संभाला है तब से तीन चेहरे ज़रूर पहचानता था, उनमे से एक तिनकी का था. आज मुझे उसके बदन से भीनी भीनी खुसबू आ रही थी, जिसे मैने पहले कभी महसूस नहीं किया था. उसे मैं एक टक देखते जा रहा था, वो कुछ अलग लग रही थी आज, या शायद आज मैं उसमे एक लड़की देख रहा था.

“ऐसे क्या देख रहा है सन्नी, तू ठीक तो है ना.” इतनी मधुर आवाज़ मैने पहले कभी नहीं सुनी थी. मैने उसको गले लगा लिया, मैने उसको इतना कस कर पकड़ा था कि उसकी धड़कने मेरी धड़कनो से मिल गयी थी.

“सन्नी सुन्न्ञनननननन्न्नययययययययययययययययी.” मैने उसे छोड़ा तो देखा उसका चेहरा लाल था. “सन्नी तू अपने आप को अकेला मत सोचा कर, मैं हमेशा हूँ तेरे लिए, ठीक है.” मैने हां मे सर हिला दिया. उसने मुझे पूरा पोहा खिलाया और मेरे पास आ के बैठ गयी.

“सन्नी तू कब तक ऐसे नादान रहेगा, आज काम वाली भी तेरा मज़ाक बना रही थी.तेरी उम्र के लड़के इतने नादान नहीं होते. ये बात मुझे पसंद है कि तू बहुत सीधा है लेकिन तुझे कुछ बाते पता होनी चाहिए. ये बाते मुझे तक पता है. तू पीएचपी मैं उलझा रहता है, तुझे लगता है कि ये लॅंग्वेज एक दिन बहुत कमाल करेगी, फाइन. तेरे उम्र के बच्चे तुझे गीक बुलाते है तो तू अपने से कम उम्र के लड़कों के साथ रहता है.घर का एकलौता होने के कारण तू घर मे भी अकेला रहता है. इंटरनेट पे भी दिन रात रहता है लेकिन फिर भी तुझे कुछ नहीं मालूम. देख सन्नी आज जो हुआ उस कारण से मुझे लगता है मुझे तुझ से ये बात करनी चाहिए.”

मैं लेटा हुआ था और वो झुक के बात कर रही थी. मेरे शॉर्ट्स मे हलचल होने लगी, जिसे उसने देख लिया. मैने शर्म से मुँह फेर लिया और आँखे बंद कर ली.“सन्नी इधर देख.” मेरी हिम्मत नहीं हुई आँखे खोलने की. वो सरक कर मेरे पास आई और बहुत प्यार से हँसी. फिर मेरे बाजू लेट गयी. उसने मेरे कान मे बड़े धीरे से कहा, “सन्नी उठ ना.” मैं तो नहीं उठा लेकिन बदन का रोम रोम उठ के सिहर गया और शॉर्ट्स पूरी तरह से टाइट हो गया. उसने अपना हाथ मेरे पेट पे रख दिया, फिर वो धीरे धीरे अपना हाथ नीचे लेती चली गयी. “ये तुझे परेशान करता है ना सन्नी, इसे मैं सुला देती हूँ.”

उसका मुँह मेरे कान के इतने पास था कि जब वो बोल रही थी तो उसके लिप्स मेरे कान मे लग रहे थे और उसकी सासो की गर्मी से मेरा बदन सिहर जाता था. उसका हाथ मेरे शॉर्ट्स के उपर मेरे कॅडॅक्पन को मसल रहा था और उसकी गर्म साँसे मेरे कानों से होके पूरे रोम रोम मे सिहरन की तरह फैल रही थी. मेरा शरीर तपने लगा था. अचानक से उसने अपनी जीभ मेरे कान मे घुसेड दी और अपने जीभ से छेड़ने लगी. बाहर गर्मी कितनी थी पता नहीं लेकिन अंदर ए.सी. किसी ने उल्टा लगा दिया था शायद. दोनो के बदन तप रहे थे. वो मेरे कानों को चूस रही थी और चाट रही थी. मेरे पैर अकड़ने लगे थे, अचानक मेरी कमर हवा मे अपने आप उठने लगी, आवाज़ गले की गले मे रह गयी. जैसे ही तिनकी ने मेरा गाल अपनी जीब से चाटा, मैं बुरी तरह तड़प उठा और शॉर्ट्स मे कुछ झटकों के साथ मेरा शॉर्ट्स और तिनकी का हाथ बुरी तरह से गीला हो गया.

तिनकी ने मेरे माथे को और मेरी आँखों को चूमा फिर अपने दूसरे हाथ से मेरे बालों को सहलाने लगी. तिनकी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया, फिर अलग कर के बोली कि मैं हाथ धो के आती हूँ. वो उठ के बाथरूम की तरफ चली गयी. मेरी नज़र अपने शॉर्ट्स पे गयी वो बुरी तरह गीला था. तभी मेरे हाथ पे गीला सा लगा, मैने देखा तो पाया कि मेरे बाजू मे भी गीला सा धब्बा है. मैं उसे हाथ मे लगा के सुघने लगा तो मेरी आँख अपने आप बंद हो गयी. शायद कॅडॅक्पन फिर से लौटने लगा था. तिनकी जैसे ही बाहर आई मैने बोला तिनकी तुम भी. वो शरमा कर गेट की तरफ चली गयी. गेट पे खड़े होकर उसने कहा, “सन्नी सॉफ कर ले खुद को, फिर शाम को मिलते हैं.”

शाम को मैं और तिनकी मिले. वो थोड़ी शरमा रही थी, मैने उसका हाथ अपने हाथ मे पकड़ा और कहा. “तिनकी मैने तेरे जाने के बाद फिर वैसा ही किया, क्या बताऊ यार कितना रिलॅक्स हूँ.” वो मेरी तरफ देख के बोली, “तुझे खुश देख लेती हूँ तो लगता है दिन पूरा हो गया.” हम दोनो ने एक दूसरे को गले से लगा लिया. अचानक से मेरा सेल फोन बजा, और उसमे मेरे इंजीनियरिंग. मे सेलेक्षन वाली अच्छी खबर थी. तिनकी को मैने ये खबर बताई तो उसने मुझे बहुत ज़ोर से और बहुत देर तक गले से लगा लिया.


साल - 2008
मैं सिंगापुर आया हुआ था अपने प्रॉजेक्ट पे प्रेज़ेंटेशन देने. सारी लड़कियाँ यहाँ स्लीवेलेस्स टॉप और हॉट पॅंट्स मे घूमती थी. मुझे होटेल वापस आके अपनी गर्मी शांत करनी पड़ती थी. इंजीनियरिंग. के दौरान पता नहीं कितने हेरोयिन्स के नाम पे मैने सलामी दी होगी. अब कुछ रियल करने का दिल कर रहा था. मैं पहुँच गया गेलेंग, रेड लाइट एरिया ऑफ सिंगपुर.

वहाँ तो पूरा बाज़ार लगा हुआ था. मैं भी पहुचा जहाँ तक मेरी पॉकेट संभाल सकती थी. लड़की पसंद की और लड़की मुझे अपने साथ एक कमरे मे लेके गयी. पिंक डिम लाइट और खुसबु थी पूरे कमरे मे.उसने मुझे कपड़े उतारने को कहा, फिर उसने मेरे पूरे बदन को एक लोशन से सॉफ किया. फिर हम बिस्तर की ओर बड़े, उसने एक झटके मे अपने सारे कपड़े उतार दिए. वहाँ जो भी हुआ उसमे कुछ अधूरा था. इसी अधूरे पन की वजह से मेरे अंदर की कोई गर्मी नहीं निकली. टाइम ख़तम हो गया और बिना चरम सीमा पे पहुँचे होटेल पहुँच गया. आँखों मे आँसू थे, अंदर एक उदासी सी आ गयी थी. इस उदासी का कारण मुझे बहुत देर से समझ मे आया.


साल - 2009
मेरी नौकरी इंजीनियरिंग के लास्ट सेमिस्टर से पहले ही लग गयी थी. नौकरी की वजह से अकेलापन और बढ़ गया था. मैने अपने कज़िन जो कि मेरे से छोटा था, उसे अपने घर मे रहने को बोला, वो मान गया. अब घर मे अकेलापन नहीं था, लेकिन मैं फिर भी अकेला था.

रात को ऑफीस से लौटने के बाद मैं अपने कमरे मे काम करने लग गया. डिन्नर के वक़्त मैं भाई को बुलाने उसके कमरे की तरफ बढ़ा. अंदर का माजरा देख के मेरे चेहरे पे मुस्कुराहट दौड़ गयी. ऐसे ही शुरू होता है ये सब. मैने सोचा उसकी दूसरी भूख मिटे तो मैं पहले वाली की बात करूँ. मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया.


साल - 2010
केयी साल बाद आज घर गया था. तिनकी से तो मिलना ही था. तिनकी मिली, सारे गीले सीकवे निकले, दर्द निकला, हँसी निकली, अकेलापन ख़तम हो गया. उसने मेरा हाथ बहुत ज़ोर से काटा, और मुझसे लिपट गयी.मैने उसका चेहरा अपने हाथों मे लिया और उसे किस किया. जब जीभ से जीभ मिलते हैं तो एक अजीब सी गुदगुदी होती है जिसे मैं शब्दों मे' बयान नहीं कर सकता. दो दिन बाद मुझे वापिस जाना था. एरपोर्ट पे जाते समय उसने मेरी कलाई इतनी ज़ोर से पकड़ी थी कि उसके सारे नाख़ून उसमे गढ़ गये थे.


आज का दिन
बस बहुत हो गया ये सब. वो चाहती है मुझे और मैं भी उसे चाहता हूँ तो अब क्यूँ ये अकेलापन. मैने फोन लगाया, “अंकल मैं तिनकी से शादी करना चाहता हूँ. आप आशीर्वाद तो दो.” उधर से बड़ी ज़ोर से हँसने की आवाज़ आई. हां हो गयी थी.

ख़ालीपन बड़ी अजीब चीज़ होती है. ज़्यादातर ये हवस का रूप ले लेती है. हवस तरक्की की, प्रतिसोध की, जिस्म की, वगेरा वगेरा. बिना प्यार के ख़ालीपन कभी नहीं जाता. सिंगपुर मे बस प्यार की कमी थी, जो सिर्फ़ तिनकी मे ही मुझे अपने लिए दिखता था. ऐसा ही होता है. आँखों के सामने का सच दिमाग़ के खुलने के बाद ही समझ आता है.
 
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