Modern_Mastram
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Episode 1
[font=Kalam, cursive]नीता शादी के बाद दूसरी बार अपने मायके जा रही थी। पहली बार तो शादी के कुछ ही दिन बाद गयी थी , पर उसके बाद उसे मौका नहीं मिला था। उसे बिलकुल भी पता नहीं था कि वो घर जाने के नाम से खुश हो या उदास। ऐसे देखें तो नीता का जीवन खुसहाल था। अपने पति रवि के साथ वो ख़ुशी ख़ुशी रांची में रहती थी। रवि एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में सीनियर इंजीनियर था। एक और दो नंबर मिला कर अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। एक सुखी जीवन के लिए ज़रूरी सभी चीजें थीं उसके पास। बस शादी के 4 साल बाद भी वो माँ नहीं बन पायी थी। उसकी सास कई बार बोल चुकी थी डॉक्टर से दिखवाने को, पर रवि हर बार किसी न किसी बहाने से बात को टाल देता। [/font]
[font=Kalam, cursive]नीता को पूरा विश्वास था की कमी उसके अंदर नहीं है, कमी रवि में है और इसलिए शायद रवि डॉक्टर के पास जाने से हिंचकता है। बिस्तर में भी रवि अधिक देर नहीं टिक पाता था। नीता ने सेक्स के बारे में जो भी सुना था उसे कभी पता ही नयी चल पाया की वो सब केवल कहने की बातें हैं या बस उसके जीवन में ही वो आनंद नहीं है जो उसने लोगों से सुना है। उसकी सहेलियों ने उसे कई बार बताया की संभोग में शुरुआत में दर्द तो होता है पर उसके बाद स्वर्ग सामान आनंद है। उसने न तो दर्द की ही अनुभूति की और न ही स्वर्ग समान आनंद की। उसके लिए संभोग बस 5 मिनट का एक रिचुअल मात्र था - रवि उसकी साड़ी को ऊपर सरका कर उसके कमर के नीचे, जांघों के बीच में छिपी अँधेरी गुलाबी गुफा में अपना मिर्च के अकार का शिश्न घुसाता और क्षण भर में ही निढ़ाल हो कर सो जाता। नीता तो ये भी नहीं जानती थी की रवि का लण्ड बड़ा है या छोटा! उसने कभी किसी और मर्द का लण्ड देखा भी नहीं था। [/font]
[font=Kalam, cursive]खैर, अपनी मनःस्थिति का पता नीता ने कभी भी रवि को नहीं चलने दिया, और अपने व्यवहार और बातों में वो हमेसा एक आदर्श पत्नी की तरह थी। आज उसे ये चिंता सताए जा रही थी कि उसकी गांव की सहेलियाँ जब उससे चुदाई के बारे में पूछेंगी तो वो क्या कहेगी? रजनी ने जब बताया था तब नीता की पैंटी गीली हो गयी थी। शायद रजनी ने झूठ कहा होगा, ऐसा तो कोई मज़ा नहीं आता। या रवि मज़ा देने में समर्थ नहीं है? क्यूंकि कुणाल ने जब होली में उसे रंग लगाया था तो उसे अजीब सा एहसास हुआ था। कुणाल ने जान बूझ कर किया था या अनजाने में, ये नीता नहीं जानती, पर उसने उसे रंग लगते समय अपना हाथ नीता के पुष्ट उरोजों पर रख दिया था। वो रंग से बचने की कोशिश में नीचे फिसल गयी थी, नीता का पल्लू उसके ब्लाउज पर से हट गया था, और भाग दौड़ में उसके ब्लाउज के ऊपर का एक बटन भी खुल गया था। कुणाल उसके बदन से लिपट कर उसे रंग लगा रहा था। नीता अपने मुंह को रंग लगने से बचाने के लिए पेट के बल लेट कर अपने मुंह को हाथ से छिपा रही थी। उसकी साड़ी सिमट कर उसके घुटने के ऊपर आ चुकी थी। हलके गुलाबी रंग में रंग कर उसकी सफ़ेद चिकनी जांघें गुलाब की पंखुड़ी के समान लग रही थी। कुणाल उसकी पीठ से लिपटा हुआ एक हाथ से उसके चेहरे को चेहरे पर रंग लगाने का प्रयास कर रहा और दूसरा हाथ नीता के स्तन को दबा रहा था। नीता को जब यह एहसास हुआ कि उसके स्तन पर किसी गैर मर्द का हाथ है तो उसके जिश्म में करंट सा दौड़ गया। उसके दिल की धड़कन इतनी तीव्र हो गयी थी कि मानो उसका ह्रदय फट पड़ेगा। उसने अपने नितम्ब पर कुछ कठोर सा महसूस किया था, शायद कुणाल का लण्ड हो। पर इतना बड़ा कैसे? हो सकता है उसकी जेब में मोबाइल फ़ोन रहा हो! चाहे जो हो, उस घटना के तीन दिन बाद तक नीता बेचैन रही थी। उस घटना के स्मरण मात्र से उसके शरीर में स्पंदन होने लगता, उसके हृदय की गति तेज हो जाती, उसके जांघों के बीच अग्नि और जल के अद्भुत मिलन का एहसास होता। [/font]
[font=Kalam, cursive]इस घटना को बीते 4 महीने हो गए थे। पर आज भी वो कुणाल के सामने जाने में झिझकती थी। शायद रवि ही नामर्द है। शायद उसकी किस्मत में ही यौवन का आनंद नहीं है और शायद कुणाल के साथ बीते वो क्षण ही उसके जीवन का सबसे आनंददायक पल थे। [/font]
[font=Kalam, cursive]“अरे नीता, इतनी देर से तैयार हो रही हो? बस छूट जाएगी भई!” रवि की आवाज़ नीता के कानों में पड़ी। [/font]
[font=Kalam, cursive]“मैं तैयार हूँ, आप गाड़ी निकालिये।” नीता अपना पर्स उठा कर बेडरूम से बाहर आयी। [/font]
[font=Kalam, cursive]“माधरचोद एमडी! साले को अभी ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट चाहिए था!” रवि अपने बॉस पर गुस्सा का इज़हार कर रहा था। “तुम अकेली चली जाओगी न? मैं हरामज़ादे के मुंह पर रिपोर्ट फेंक कर जल्दी से जल्दी चला आऊंगा।”[/font]
[font=Kalam, cursive]रवि के मुंह से गाली सुन कर नीता को विचित्र लगा। क्या बिस्तर में अपनी नामर्दी को छिपाने के लिए रवि अपने शब्दों में मर्दानगी दिखाता है? या कंस्ट्रक्शन लाइन में लोगों की भाषा ही ऐसी होती है? “आप फिक्र मत कीजिये, वहां बस स्टैंड पर पापा आ जायेंगे मुझे रिसीव करने, और यहाँ तो आप चल ही रहे हैं छोड़ने। बांकी सफ़र तो बस में बिताना है। जल्दी चलिए, लेट हो जायेगा।” नीता ने रवि को कम और खुद को अधिक आश्वासन दिया। [/font]
[font=Kalam, cursive]दोनों गाड़ी में बैठ कर बस स्टैंड की तरफ निकले। “माधरचोद! ये ट्रैफिक। भोंसड़ी वाले अनपढ़ गँवार सब पॉलिटिक्स में आएंगे तो यही होगा। सालों के दिमाग में सड़क बनाते समय ये बात नहीं आती कि कल इसपर और भी गाड़ियां दौड़ेंगी। आज हर कुत्ते बिल्ली के पास गाड़ी है और रोड देखो - बित्ते भर का।” हॉर्न की आवाज़ के बीच रवि खुद पर चिल्ला रहा था। “हरामज़ादे बाइक वालों की वजह से जाम लगता है। जहाँ जगह मिला घुसा दिए।” रात के 8 बज चुके थे, और बस खुलने का समय 7 बजे ही था। आपको जितनी जल्दी होगी ट्रैफिक उतना ही जाम मिलेगा जैसे कोई कहीं से बैठा देख रहा हो और आपके साथ मज़ाक कर रहा हो। जान बूझ कर आप जिस जिस रस्ते जा रहे हैं उन्ही रास्तों पर जाम होगा, और आपके जाम से निकलते ही जाम भी ख़तम हो जाएगी मानो जाम आपको देर कराने के लिए ही लगी हो। बस स्टैंड पहुँचते पहुँचते रात के 9 बज चुके थे। [/font]
This is excerpt from Novel 'Bus ka Safar'
[font=Kalam, cursive]नीता को पूरा विश्वास था की कमी उसके अंदर नहीं है, कमी रवि में है और इसलिए शायद रवि डॉक्टर के पास जाने से हिंचकता है। बिस्तर में भी रवि अधिक देर नहीं टिक पाता था। नीता ने सेक्स के बारे में जो भी सुना था उसे कभी पता ही नयी चल पाया की वो सब केवल कहने की बातें हैं या बस उसके जीवन में ही वो आनंद नहीं है जो उसने लोगों से सुना है। उसकी सहेलियों ने उसे कई बार बताया की संभोग में शुरुआत में दर्द तो होता है पर उसके बाद स्वर्ग सामान आनंद है। उसने न तो दर्द की ही अनुभूति की और न ही स्वर्ग समान आनंद की। उसके लिए संभोग बस 5 मिनट का एक रिचुअल मात्र था - रवि उसकी साड़ी को ऊपर सरका कर उसके कमर के नीचे, जांघों के बीच में छिपी अँधेरी गुलाबी गुफा में अपना मिर्च के अकार का शिश्न घुसाता और क्षण भर में ही निढ़ाल हो कर सो जाता। नीता तो ये भी नहीं जानती थी की रवि का लण्ड बड़ा है या छोटा! उसने कभी किसी और मर्द का लण्ड देखा भी नहीं था। [/font]
[font=Kalam, cursive]खैर, अपनी मनःस्थिति का पता नीता ने कभी भी रवि को नहीं चलने दिया, और अपने व्यवहार और बातों में वो हमेसा एक आदर्श पत्नी की तरह थी। आज उसे ये चिंता सताए जा रही थी कि उसकी गांव की सहेलियाँ जब उससे चुदाई के बारे में पूछेंगी तो वो क्या कहेगी? रजनी ने जब बताया था तब नीता की पैंटी गीली हो गयी थी। शायद रजनी ने झूठ कहा होगा, ऐसा तो कोई मज़ा नहीं आता। या रवि मज़ा देने में समर्थ नहीं है? क्यूंकि कुणाल ने जब होली में उसे रंग लगाया था तो उसे अजीब सा एहसास हुआ था। कुणाल ने जान बूझ कर किया था या अनजाने में, ये नीता नहीं जानती, पर उसने उसे रंग लगते समय अपना हाथ नीता के पुष्ट उरोजों पर रख दिया था। वो रंग से बचने की कोशिश में नीचे फिसल गयी थी, नीता का पल्लू उसके ब्लाउज पर से हट गया था, और भाग दौड़ में उसके ब्लाउज के ऊपर का एक बटन भी खुल गया था। कुणाल उसके बदन से लिपट कर उसे रंग लगा रहा था। नीता अपने मुंह को रंग लगने से बचाने के लिए पेट के बल लेट कर अपने मुंह को हाथ से छिपा रही थी। उसकी साड़ी सिमट कर उसके घुटने के ऊपर आ चुकी थी। हलके गुलाबी रंग में रंग कर उसकी सफ़ेद चिकनी जांघें गुलाब की पंखुड़ी के समान लग रही थी। कुणाल उसकी पीठ से लिपटा हुआ एक हाथ से उसके चेहरे को चेहरे पर रंग लगाने का प्रयास कर रहा और दूसरा हाथ नीता के स्तन को दबा रहा था। नीता को जब यह एहसास हुआ कि उसके स्तन पर किसी गैर मर्द का हाथ है तो उसके जिश्म में करंट सा दौड़ गया। उसके दिल की धड़कन इतनी तीव्र हो गयी थी कि मानो उसका ह्रदय फट पड़ेगा। उसने अपने नितम्ब पर कुछ कठोर सा महसूस किया था, शायद कुणाल का लण्ड हो। पर इतना बड़ा कैसे? हो सकता है उसकी जेब में मोबाइल फ़ोन रहा हो! चाहे जो हो, उस घटना के तीन दिन बाद तक नीता बेचैन रही थी। उस घटना के स्मरण मात्र से उसके शरीर में स्पंदन होने लगता, उसके हृदय की गति तेज हो जाती, उसके जांघों के बीच अग्नि और जल के अद्भुत मिलन का एहसास होता। [/font]
[font=Kalam, cursive]इस घटना को बीते 4 महीने हो गए थे। पर आज भी वो कुणाल के सामने जाने में झिझकती थी। शायद रवि ही नामर्द है। शायद उसकी किस्मत में ही यौवन का आनंद नहीं है और शायद कुणाल के साथ बीते वो क्षण ही उसके जीवन का सबसे आनंददायक पल थे। [/font]
[font=Kalam, cursive]“अरे नीता, इतनी देर से तैयार हो रही हो? बस छूट जाएगी भई!” रवि की आवाज़ नीता के कानों में पड़ी। [/font]
[font=Kalam, cursive]“मैं तैयार हूँ, आप गाड़ी निकालिये।” नीता अपना पर्स उठा कर बेडरूम से बाहर आयी। [/font]
[font=Kalam, cursive]“माधरचोद एमडी! साले को अभी ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट चाहिए था!” रवि अपने बॉस पर गुस्सा का इज़हार कर रहा था। “तुम अकेली चली जाओगी न? मैं हरामज़ादे के मुंह पर रिपोर्ट फेंक कर जल्दी से जल्दी चला आऊंगा।”[/font]
[font=Kalam, cursive]रवि के मुंह से गाली सुन कर नीता को विचित्र लगा। क्या बिस्तर में अपनी नामर्दी को छिपाने के लिए रवि अपने शब्दों में मर्दानगी दिखाता है? या कंस्ट्रक्शन लाइन में लोगों की भाषा ही ऐसी होती है? “आप फिक्र मत कीजिये, वहां बस स्टैंड पर पापा आ जायेंगे मुझे रिसीव करने, और यहाँ तो आप चल ही रहे हैं छोड़ने। बांकी सफ़र तो बस में बिताना है। जल्दी चलिए, लेट हो जायेगा।” नीता ने रवि को कम और खुद को अधिक आश्वासन दिया। [/font]
[font=Kalam, cursive]दोनों गाड़ी में बैठ कर बस स्टैंड की तरफ निकले। “माधरचोद! ये ट्रैफिक। भोंसड़ी वाले अनपढ़ गँवार सब पॉलिटिक्स में आएंगे तो यही होगा। सालों के दिमाग में सड़क बनाते समय ये बात नहीं आती कि कल इसपर और भी गाड़ियां दौड़ेंगी। आज हर कुत्ते बिल्ली के पास गाड़ी है और रोड देखो - बित्ते भर का।” हॉर्न की आवाज़ के बीच रवि खुद पर चिल्ला रहा था। “हरामज़ादे बाइक वालों की वजह से जाम लगता है। जहाँ जगह मिला घुसा दिए।” रात के 8 बज चुके थे, और बस खुलने का समय 7 बजे ही था। आपको जितनी जल्दी होगी ट्रैफिक उतना ही जाम मिलेगा जैसे कोई कहीं से बैठा देख रहा हो और आपके साथ मज़ाक कर रहा हो। जान बूझ कर आप जिस जिस रस्ते जा रहे हैं उन्ही रास्तों पर जाम होगा, और आपके जाम से निकलते ही जाम भी ख़तम हो जाएगी मानो जाम आपको देर कराने के लिए ही लगी हो। बस स्टैंड पहुँचते पहुँचते रात के 9 बज चुके थे। [/font]
This is excerpt from Novel 'Bus ka Safar'