महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में - Page 2 - SexBaba
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महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में

अभिज्ञान शाकुन्तला नाटक

अपडेट 05

प्रथम अंक

 


तपस्वी: अच्छा, महराज आप सिधारिये। हम भी अपने कार्य को जाते हैं। (तपस्वी अपने शिष्यो सहित निकल जाता हे।)

राजा: सारथी, रय को होँको। इस पविच आश्रम के दर्शन करके "हम अपना जन्म सफल करें।"

सारथि :-महाराज! जैसी आप की आज्ञा (वह पुनः रथ को आगे बढ़ाने का अभिनय करता हे।)

राजा: (चारों ओर देखक्रर) सारथि, अगर किसी ने बतलाया न होता " तो भी यहाँ हम जान लेते कि अब तपोवन समीप है और ये आश्रम की सीमा हे।

सारथि: महाराज ऐसें आप ने क्या चिह्न देखे?

राजा: क्या आप को ये चिह्न नहीं दिखाई देते हैं। देखो कही वृक्ष के नीचे तोतों के मुख से गिरा नीवार
 (जंगली धान) पड़ा है। कहीं पर हिंगोट के फलों को तोडने वाली चिकनी शिला रखी है। विश्वास उत्पन्न हो जाने के कारण मनुष्यों से हिरण के बच्चे ऐसे हिल रहे हैं कि हमारे रथ की ध्वनि की आहट से भी-भी नहीं चौंके (भय से इधर-उधर नहीं भाग रहे हँ) । जैसे अपने खेल कूद में मगन थे वैसे ही बने हुए हैं। तपस्वी लोग जो वल्कल (पेडो की छाल) पहनते हे जलाशयो में स्नान करने के पश्चात्‌ जब तपस्वी लोग कुटी की ओर लोटते हे तब उनके भीगे हुए वल्कलं से जल की वृंदे टपकती रहती है, जिससे मार्ग में पानी की कतारे बन जाया करती हे। इसलिए जलाशयो की ओर जाने वाले मार्ग वल्कल वस्त्रो के छोर से टपकने वाले जल की रेखा से चिहित दिखायी दे रहे है।

और देखो वृष्ठों की जड़े सिंचाई की नालियों के जल के प्रवाह से धुलकर कैसी चमकती हैं। यज्ञ में इस्तेमाल किये गए घी के धुंएँ से नये कोमल पत्तों की कान्ति कैसी धुंधली हो रही है। देखो उस तोड़े गए कुशो के अंकुर वाली उपवन की भूमि पर हिरणो के बच्चे कैसे धीरे-धीरे विचरण कर रहे हैँ।

सारथि : -आपने जो कुछ कहा है वह सब ठीक हे।

राजा :-थोड़ी दूर जाकर्‌, तपोवन के निवासियों को किसी प्रकार का विघ्न न होने पाये, इसलिये यहो ही रथ को रोक दो, मँ यही उतरता हूँ।

सारथि-मैने लगाम खीच ली हे। महारज आप उतर सकते हैं।

राजा: उतरकर और अपने भेष को देखकर बोले सारथि तपस्वियों के आश्रम में वेष से ही जाना चाहिए। इसलिये तुम मेरे राजचिहों और धनुष बाण को सम्भालो। (सारथि को आभूषण ओर धनुष उतार कर देते हे और सारथी ने उन्हें ले लिया) और जब तक में आश्रम वासियों के दर्शन करके लौट आऊँ तव तक तुम घोड़ों की स्नान करा दो।

सारथि: जो आज्ञा! कह कर वाहर गया ।

राजा: (चारों ओर घूम फिरकर देखकर) यह आश्रम का प्रवेश द्वार है। अच्छा, अब मैं प्रवेश करता
हूँ। (प्रवेश कर शकुन को सूचित करते हये) -
यह आश्रम का स्थान शान्त है ओर मेरी दाहिनी भुजा फड़क रही हे। आज यहाँ दाहिनी भुजा क्यों फड़क रही है (ठहरकर और कुछ सोचकर यह तो तपोवन है। यहाँ दाहिनी भुजा के फड़कने के अच्छे सगुन का क्या फल प्राप्त होना है। कुछ आश्चर्य भी नहीं है। भावी घटनाओं के मार्ग सभी स्थानों पर सुलभ हो जाते हँ। होनहार कही नहीं रुकती है।

टिपण्णी
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1. नीवार: जंगली धान

2. वृक्षों की कोटरो में तोतों के बच्चे विद्यमान हैँ। तोते बार-बार आकर अपने बच्चों को नीवार (जंगली धान) खिलाते हें। बच्चों को खिलाते समय कुछ न कुछ नीवार ज़मीन पर गिर पड़ता है। इस प्रकार वृक्षों के नीचे गिरा हआ नीवार दिखलायी दे रहा है।

3. हिंगोट एक जंगली वृक्ष हे। तपस्वी लोग इसके फल से तेल निकाल कर अपने उपयोग में लाते हें। इन फलों को तोडने के कारण पत्थर भी अत्यन्त चिकने हो गये है।

4.वल्कल: पेडो की छाल

5. यहाँ राजा के द्वारा अनेक प्रमाणो के आधार पर आश्रम का अनुमान किया गया है या कवि ने आश्रम के लक्ष्णों को बताया है l

6. दाहिनी भुजा का फड़कना एक शुभ फल मिलने का संकेत माना जाता है j

जारी रहेगी
 
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