hotaks444
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काफ़ी देर तक एक दूसरे की चूचियो से खेलने के बाद देवयानी अपना मुँह रुक्मणी की चूचियो से हटाकर धीरे धीरे नीचे जाने लगी. अपनी बहेन का पेट चूमते हुए वो नीचे उसकी सलवार के नाडे तक पहुँची और एक हाथ से वो जैसे ही उसे खोलने को हुई, रुक्मणी ने उसका हाथ पकड़कर उसको रोक दिया.
"फिर आती है मेरी बारी" कहते हुए रुक्मणी उठी और देवयानी को नीचे धकेल कर खुद उसके उपेर चढ़ गयी.
"सबसे पहले मैं उसके होंठ चूस्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के उपेर झुक गयी और उसके होंठ चूमने लगी.
"फिर धीरे से नीचे आती हूँ" कहते हुए वो देवयानी के गले तक पहुँची और उसके गले पर अपनी जीभ फिराने लगी.
"फिर उसके निपल्स" रुक्मणी ने कहा और देवयानी के दोनो निपल्स चूसने लगी.
"दबा ना" देवयानी ने आह भरते हुए कहा तो रुक्मणी मुस्कुरा उठी
"उसकी छाती पर दबाने के लिए कुच्छ नही है. तेरे तो इतने बड़े बड़े हैं पर उसके निपल्स ऐसे नही है इसलिए ज़्यादा देर नही लगती. फिर मैं नीचे को सरक्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के पेट को चूमते हुए नीचे तक पहुँच और उसकी नंगी चूत तक पहुँच कर सर उठाकर हस्ने लगी.
"फिर मैं यहाँ कुच्छ चूस्ति हूँ जो तेरे पास नही है" रुक्मणी ने कहा
"इंतज़ाम हो जाएगा" कहते हुए देवयानी ने अपना एक हाथ अपनी चूत पर उल्टा रखा और अपनी बीच की उंगली उपेर को उठा दी, जैसे उसकी टाँगो के बीच कोई लंड खड़ा हो.
उसकी इस हरकत पर रुक्मणी मुस्कुराइ और उसकी उंगली को ऐसे चूसने लगी जैसे मेरा लंड चूस रही हो. मेरा खुद का लंड तो कबका खड़ा हो चुका था और मेरा दिल कर रहा था के कपड़े उतारकर अभी इसी वक़्त दोनो बहनो के बीच पहुँच जाऊं पर खामोशी से खड़ा सब देखता रहा.
थोड़ी देर तक देवयानी के उंगली चूसने के बाद रुक्मणी सीधी हुई और अपनी सलवार उतारने लगी.
"और फिर वक़्त आता है फाइनल आक्षन का" कहते हुए रुक्मणी ने अपनी सलवार और पॅंटी एक साथ उतार कर फेंक दिए. दोनो बहने पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी और मैं उन दोनो के जिस्म पर नज़र दौड़ाने लगा. दोनो में ज़्यादा फरक नही था. बिल्कुल एक जैसे जिस्म थे सिवाय इसके के देवयानी की गांद रुक्मणी से ज़्यादा भारी थी.
रुक्मणी के अपने एक हाथ पर थोड़ा सा थूक लेकर अपनी चूत पर लगाया और दोनो टांगे नीचे लेटी हुई देवयानी के दोनो तरफ रखकर उसके उपेर खड़ी हो गयी. एक आखरी बार अपनी चूत को सहला कर वो नीचे हुई और धीरे से अपनी बहेन की उंगली अपनी चूत में लेकर उसके उपेर बैठ गयी. चूत के अंदर जैसे ही उंगली दाखिल हुई, दोनो बहनो ने एक लंबी आह भरी.
मैं उन दोनो का ये खेल देखने में इतना बिज़ी हो चुका था के मुझे वक़्त का अंदाज़ा ही नही रहा. जब मेरी जेब में रखा हुआ मेरा सेल वाइब्रट हुआ तो मैं जैसे एक नींद से जागा. दिल ही दिल में उपेरवाले का शुक्र अदा करते हुए के फोन साइलेंट मोड पर था इसलिए बजा नही, मैं जल्दी से घर के बाहर आया.
कॉल मिश्रा की थी.
"क्या कर रहा है तू आजकल?" उसने फोन उठाते ही सवाल किया
"क्या मतलब" मैने पुचछा
"कहाँ इन्वॉल्व्ड है?" मिश्रा ने कहा
"कहीं नही, क्यूँ?" मुझे उसकी बात समझ नही आ रही थी पर इतना शक हो गया था के कुच्छ गड़बड़ है.
"हमें 2 डेड बॉडीस मिली हैं, लावारिस. एक तो कोई टॅक्सी ड्राइवर है और दूसरे की पहचान होनी बाकी है" कहकर वो चुप हो गया
"हाँ तो?" मैने पुचछा
"देख इशान मुझसे कुच्छ च्छुपाना मत" मिश्रा बोला "सबसे पहले तो तेरा उस सोनी मर्डर केस में नाम आना, फिर अचानक तेरा उस अदिति मर्डर केस में किताब लिखने के बहाने गाड़े मुर्दे उखाड़ना, उस दिन शाम को तुझे बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल में लाया जाना, ये सब कुच्छ पहले से ही काफ़ी अजीब था और अब ये?"
"ये क्या?" मुझे अब भी कुच्छ समझ नही आया
"जो 2 डेड बॉडीस मिली हैं, उनके पास ही मर्डर वेपन भी पड़ा हुआ था. एक लंबा सा चाकू. उसी चाकू से दोनो को बड़ी बेरहमी से मारा गया है" मिश्रा बोला
"ह्म्म्म्म" मैं बस इतना ही कह सका
"अभी अभी लॅब से रिपोर्ट मेरे पास आई है. इत्तेफ़ाक़ से वो डेड बॉडीस भी और मर्डर वेपन भी उसी हॉस्पिटल में ले जाया गया था जहाँ उस रात तू बेहोश होकर पहुँचा था" उसने कहा
"ओके" मैने हामी भरी
"रिपोर्ट की मुताबिक उस चाकू पर तीन लोगों का खून के सॅंपल्स मिले हैं. एक तो उस टॅक्सी ड्राइवर के, दूसरे उस आदमी के जिसकी आइडेंटिटी अब भी हमें पता नही और जानता है तीसरे आदमी के खून के सॅंपल्स किससे मॅच करते हैं?"
"किससे?" मैने पुचछा
"तुझसे" मिश्रा बोला "उस चाकू पर तेरा भी खून था"
उसकी ये बात सुनकर एक पल के लिए चुप्पी च्छा गयी. ना वो कुच्छ बोला ना ही मैं.
"तुझे मेरा ब्लड सॅंपल कहाँ से मिला?" मैने खामोशी तोड़ी
"मुझे नही मिला. पर उस रात उस डॉक्टर ने तेरा चेक अप करते हुए ब्लड सॅंपल लिया था जो उनके हॉस्पिटल रेकॉर्ड्स में अब भी है. टॅक्सी ड्राइवर की पहचान तो हो गयी थी पर उस दूसरे आदमी की पहचान के लिए जब उसने अपने रेकॉर्ड्स पर नज़र डाली तो कंप्यूटर ने उस आदमी का तो कोई मॅचिंग सॅंपल नही दिखाया पर उस तीसरे खून के निशान को तेरे ब्लड सॅंपल से मॅच कर दिया" कहकर वो फिर खामोश हो गया.
अगले एक मिनिट तक फिर फोन पर खामोशी रही.
"ठीक है यार मैने कुच्छ च्छुपाया है तुझसे" मैने फिर से खामोशी तोड़ी
"गुड. बोलता रह मैं सुन रहा हूँ" मिश्रा ने कहा
"यहाँ नही. तू पोलीस स्टेशन में ही रुक मैं वहीं आ रहा हूँ" कहते हुए मैने फोन रख दिया
अपनी गाड़ी निकालकर मैं पोलीस स्टेशन की तरफ चला. मैं समझ गया था के अब वक़्त आ गया है के मैं मिश्रा से कुच्छ भी ना च्छूपाऊँ वरना खुद ही फस जाऊँगा. जो बात मेरी समझ में नही आ रही थी के उन दो आदमियों को किसने मार दिया. ये तो सॉफ था के ये वही 2 लोग थे जिन्होने उस रात मुझपर हमला किया था और क्यूंकी उसी चाकू से उन्होने मुझपर भी वार किया था इसलिए मेरा ब्लड अब भी थोड़ा बहुत चाकू पर लगा रह गया था. पर बड़ा सवाल ये था के जो मुझे मारने आए थे उनको किसने मार दिया?
पर फिर जवाब भी मैने खुद ही दे दिया. गुंडे थे साले, कोई भी मार सकता है ऐसे लोगों को. इनके दुश्मनो की कमी थोड़े ही ना होती है.
लड़की की कहानी जारी है ..................................
"हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा" वो लड़का कह रहा था
"मतलब?" उसने पुचछा
"मतलब के यहाँ से भागना पड़ेगा" लड़के ने कहा तो वो हैरत से उसको देखने लगी
"कहाँ" उसने पुचछा
"शहेर और कहाँ" लड़के ना कहा
"पर चाचा चाची" उसका इशारा अपने घरवालो की तरफ था
"भागना तो पड़ेगा वरना तुम और मैं साथ नही रह सकते" लड़के ने कहा.
उसकी बात सुनकर वो सोच में पड़ गयी. ये सच था के वो खुद भी वहाँ से भाग जाना चाहती थी. अपने चाचा चाची से वो बहुत नफ़रत करती थी पर आज तक कभी सच में भाग जाने के बारे में उसने सोचा नही था.
"और तुम्हारे घरवाले" उसने पुचछा
"उनकी फिकर मत करो. उनका होना ना होना एक ही बात है" लड़के ना कहा
"पर शहेर जाके करेंगे क्या?" लड़की ने पुचछा
"मैं कोई नौकरी कर लूँगा. मैने सुना है के शहेर में काम ढूँढना मुश्किल नही है" लड़का बोला
"और मैं क्या करूँगी?" उसने अपना शक जताया
"तुम्हें कोई काम आता है?" लड़के ने पुचछा तो उसने इनकार में सर हिला दिया
उसके बाद दोनो थोड़ी देर चुप बैठे रहे.
"अगर तुम यहाँ रहती तो क्या करती?" लड़के ने थोड़ी देर बाद पुचछा
"पढ़ाई करती और फिर गाती" उसने जवाब दिया
"तुम गाती हो?" लड़के ने पुचछा
"हाँ और मैं जानती हूँ के मैं बहुत अच्छा गाती हूँ" वो भरोसे के साथ बोली
फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही.
"तुम क्यूँ भागना चाहते हो?" उसने लड़के से पुचछा
"यहाँ कुच्छ ठीक नही है" लड़के ने कहा "और तुमने देखा ही था के वो लड़के भी कैसे मुझे परेशान करते हैं"
"कौन थे वो लोग" उसने पुचछा
"गाओं के ही हैं. साले जब भी मिलते हैं मुझे परेशान करते हैं" लड़के ने ज़मीन की तरफ देखते हुए कहा
"तुम अपने माँ बाप को क्यूँ नही बता देते?" उसने पुचछा
"मेरे माँ बाप इस दुनिया में नही है" लड़ने ने वैसे ही ज़मीन की ओर देखते हुए कहा
फिर कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"मेरे भी" थोड़ी देर बाद वो बोली
"जानता हूँ" लड़के ने कहा
क्रमशः.............................
"फिर आती है मेरी बारी" कहते हुए रुक्मणी उठी और देवयानी को नीचे धकेल कर खुद उसके उपेर चढ़ गयी.
"सबसे पहले मैं उसके होंठ चूस्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के उपेर झुक गयी और उसके होंठ चूमने लगी.
"फिर धीरे से नीचे आती हूँ" कहते हुए वो देवयानी के गले तक पहुँची और उसके गले पर अपनी जीभ फिराने लगी.
"फिर उसके निपल्स" रुक्मणी ने कहा और देवयानी के दोनो निपल्स चूसने लगी.
"दबा ना" देवयानी ने आह भरते हुए कहा तो रुक्मणी मुस्कुरा उठी
"उसकी छाती पर दबाने के लिए कुच्छ नही है. तेरे तो इतने बड़े बड़े हैं पर उसके निपल्स ऐसे नही है इसलिए ज़्यादा देर नही लगती. फिर मैं नीचे को सरक्ति हूँ" कहते हुए रुक्मणी देवयानी के पेट को चूमते हुए नीचे तक पहुँच और उसकी नंगी चूत तक पहुँच कर सर उठाकर हस्ने लगी.
"फिर मैं यहाँ कुच्छ चूस्ति हूँ जो तेरे पास नही है" रुक्मणी ने कहा
"इंतज़ाम हो जाएगा" कहते हुए देवयानी ने अपना एक हाथ अपनी चूत पर उल्टा रखा और अपनी बीच की उंगली उपेर को उठा दी, जैसे उसकी टाँगो के बीच कोई लंड खड़ा हो.
उसकी इस हरकत पर रुक्मणी मुस्कुराइ और उसकी उंगली को ऐसे चूसने लगी जैसे मेरा लंड चूस रही हो. मेरा खुद का लंड तो कबका खड़ा हो चुका था और मेरा दिल कर रहा था के कपड़े उतारकर अभी इसी वक़्त दोनो बहनो के बीच पहुँच जाऊं पर खामोशी से खड़ा सब देखता रहा.
थोड़ी देर तक देवयानी के उंगली चूसने के बाद रुक्मणी सीधी हुई और अपनी सलवार उतारने लगी.
"और फिर वक़्त आता है फाइनल आक्षन का" कहते हुए रुक्मणी ने अपनी सलवार और पॅंटी एक साथ उतार कर फेंक दिए. दोनो बहने पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी और मैं उन दोनो के जिस्म पर नज़र दौड़ाने लगा. दोनो में ज़्यादा फरक नही था. बिल्कुल एक जैसे जिस्म थे सिवाय इसके के देवयानी की गांद रुक्मणी से ज़्यादा भारी थी.
रुक्मणी के अपने एक हाथ पर थोड़ा सा थूक लेकर अपनी चूत पर लगाया और दोनो टांगे नीचे लेटी हुई देवयानी के दोनो तरफ रखकर उसके उपेर खड़ी हो गयी. एक आखरी बार अपनी चूत को सहला कर वो नीचे हुई और धीरे से अपनी बहेन की उंगली अपनी चूत में लेकर उसके उपेर बैठ गयी. चूत के अंदर जैसे ही उंगली दाखिल हुई, दोनो बहनो ने एक लंबी आह भरी.
मैं उन दोनो का ये खेल देखने में इतना बिज़ी हो चुका था के मुझे वक़्त का अंदाज़ा ही नही रहा. जब मेरी जेब में रखा हुआ मेरा सेल वाइब्रट हुआ तो मैं जैसे एक नींद से जागा. दिल ही दिल में उपेरवाले का शुक्र अदा करते हुए के फोन साइलेंट मोड पर था इसलिए बजा नही, मैं जल्दी से घर के बाहर आया.
कॉल मिश्रा की थी.
"क्या कर रहा है तू आजकल?" उसने फोन उठाते ही सवाल किया
"क्या मतलब" मैने पुचछा
"कहाँ इन्वॉल्व्ड है?" मिश्रा ने कहा
"कहीं नही, क्यूँ?" मुझे उसकी बात समझ नही आ रही थी पर इतना शक हो गया था के कुच्छ गड़बड़ है.
"हमें 2 डेड बॉडीस मिली हैं, लावारिस. एक तो कोई टॅक्सी ड्राइवर है और दूसरे की पहचान होनी बाकी है" कहकर वो चुप हो गया
"हाँ तो?" मैने पुचछा
"देख इशान मुझसे कुच्छ च्छुपाना मत" मिश्रा बोला "सबसे पहले तो तेरा उस सोनी मर्डर केस में नाम आना, फिर अचानक तेरा उस अदिति मर्डर केस में किताब लिखने के बहाने गाड़े मुर्दे उखाड़ना, उस दिन शाम को तुझे बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल में लाया जाना, ये सब कुच्छ पहले से ही काफ़ी अजीब था और अब ये?"
"ये क्या?" मुझे अब भी कुच्छ समझ नही आया
"जो 2 डेड बॉडीस मिली हैं, उनके पास ही मर्डर वेपन भी पड़ा हुआ था. एक लंबा सा चाकू. उसी चाकू से दोनो को बड़ी बेरहमी से मारा गया है" मिश्रा बोला
"ह्म्म्म्म" मैं बस इतना ही कह सका
"अभी अभी लॅब से रिपोर्ट मेरे पास आई है. इत्तेफ़ाक़ से वो डेड बॉडीस भी और मर्डर वेपन भी उसी हॉस्पिटल में ले जाया गया था जहाँ उस रात तू बेहोश होकर पहुँचा था" उसने कहा
"ओके" मैने हामी भरी
"रिपोर्ट की मुताबिक उस चाकू पर तीन लोगों का खून के सॅंपल्स मिले हैं. एक तो उस टॅक्सी ड्राइवर के, दूसरे उस आदमी के जिसकी आइडेंटिटी अब भी हमें पता नही और जानता है तीसरे आदमी के खून के सॅंपल्स किससे मॅच करते हैं?"
"किससे?" मैने पुचछा
"तुझसे" मिश्रा बोला "उस चाकू पर तेरा भी खून था"
उसकी ये बात सुनकर एक पल के लिए चुप्पी च्छा गयी. ना वो कुच्छ बोला ना ही मैं.
"तुझे मेरा ब्लड सॅंपल कहाँ से मिला?" मैने खामोशी तोड़ी
"मुझे नही मिला. पर उस रात उस डॉक्टर ने तेरा चेक अप करते हुए ब्लड सॅंपल लिया था जो उनके हॉस्पिटल रेकॉर्ड्स में अब भी है. टॅक्सी ड्राइवर की पहचान तो हो गयी थी पर उस दूसरे आदमी की पहचान के लिए जब उसने अपने रेकॉर्ड्स पर नज़र डाली तो कंप्यूटर ने उस आदमी का तो कोई मॅचिंग सॅंपल नही दिखाया पर उस तीसरे खून के निशान को तेरे ब्लड सॅंपल से मॅच कर दिया" कहकर वो फिर खामोश हो गया.
अगले एक मिनिट तक फिर फोन पर खामोशी रही.
"ठीक है यार मैने कुच्छ च्छुपाया है तुझसे" मैने फिर से खामोशी तोड़ी
"गुड. बोलता रह मैं सुन रहा हूँ" मिश्रा ने कहा
"यहाँ नही. तू पोलीस स्टेशन में ही रुक मैं वहीं आ रहा हूँ" कहते हुए मैने फोन रख दिया
अपनी गाड़ी निकालकर मैं पोलीस स्टेशन की तरफ चला. मैं समझ गया था के अब वक़्त आ गया है के मैं मिश्रा से कुच्छ भी ना च्छूपाऊँ वरना खुद ही फस जाऊँगा. जो बात मेरी समझ में नही आ रही थी के उन दो आदमियों को किसने मार दिया. ये तो सॉफ था के ये वही 2 लोग थे जिन्होने उस रात मुझपर हमला किया था और क्यूंकी उसी चाकू से उन्होने मुझपर भी वार किया था इसलिए मेरा ब्लड अब भी थोड़ा बहुत चाकू पर लगा रह गया था. पर बड़ा सवाल ये था के जो मुझे मारने आए थे उनको किसने मार दिया?
पर फिर जवाब भी मैने खुद ही दे दिया. गुंडे थे साले, कोई भी मार सकता है ऐसे लोगों को. इनके दुश्मनो की कमी थोड़े ही ना होती है.
लड़की की कहानी जारी है ..................................
"हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा" वो लड़का कह रहा था
"मतलब?" उसने पुचछा
"मतलब के यहाँ से भागना पड़ेगा" लड़के ने कहा तो वो हैरत से उसको देखने लगी
"कहाँ" उसने पुचछा
"शहेर और कहाँ" लड़के ना कहा
"पर चाचा चाची" उसका इशारा अपने घरवालो की तरफ था
"भागना तो पड़ेगा वरना तुम और मैं साथ नही रह सकते" लड़के ने कहा.
उसकी बात सुनकर वो सोच में पड़ गयी. ये सच था के वो खुद भी वहाँ से भाग जाना चाहती थी. अपने चाचा चाची से वो बहुत नफ़रत करती थी पर आज तक कभी सच में भाग जाने के बारे में उसने सोचा नही था.
"और तुम्हारे घरवाले" उसने पुचछा
"उनकी फिकर मत करो. उनका होना ना होना एक ही बात है" लड़के ना कहा
"पर शहेर जाके करेंगे क्या?" लड़की ने पुचछा
"मैं कोई नौकरी कर लूँगा. मैने सुना है के शहेर में काम ढूँढना मुश्किल नही है" लड़का बोला
"और मैं क्या करूँगी?" उसने अपना शक जताया
"तुम्हें कोई काम आता है?" लड़के ने पुचछा तो उसने इनकार में सर हिला दिया
उसके बाद दोनो थोड़ी देर चुप बैठे रहे.
"अगर तुम यहाँ रहती तो क्या करती?" लड़के ने थोड़ी देर बाद पुचछा
"पढ़ाई करती और फिर गाती" उसने जवाब दिया
"तुम गाती हो?" लड़के ने पुचछा
"हाँ और मैं जानती हूँ के मैं बहुत अच्छा गाती हूँ" वो भरोसे के साथ बोली
फिर थोड़ी देर तक खामोशी बनी रही.
"तुम क्यूँ भागना चाहते हो?" उसने लड़के से पुचछा
"यहाँ कुच्छ ठीक नही है" लड़के ने कहा "और तुमने देखा ही था के वो लड़के भी कैसे मुझे परेशान करते हैं"
"कौन थे वो लोग" उसने पुचछा
"गाओं के ही हैं. साले जब भी मिलते हैं मुझे परेशान करते हैं" लड़के ने ज़मीन की तरफ देखते हुए कहा
"तुम अपने माँ बाप को क्यूँ नही बता देते?" उसने पुचछा
"मेरे माँ बाप इस दुनिया में नही है" लड़ने ने वैसे ही ज़मीन की ओर देखते हुए कहा
फिर कुच्छ पल के लिए खामोशी च्छा गयी.
"मेरे भी" थोड़ी देर बाद वो बोली
"जानता हूँ" लड़के ने कहा
क्रमशः.............................