hotaks444
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भूत बंगला पार्ट-6
गतान्क से आगे...............
भूमिका के लिए आंब्युलेन्स बुलाई गयी और उसके बाद मैं पोलीस स्टेशन से सीधा अपने कोर्ट पहुँचा. 1 बज चुका था और 2 बजे की मेरी एक केस की हियरिंग थी.
कोर्ट से केस निपटने के बाद मैं अपने ऑफीस गया
"आइए आइए" मुझे देखकर प्रिया उठते हुए बोली "तो याद आ गया आपको के आप ऑफीस भी आते हैं?"
उसको देखकर मैं चौंक पड़ा. वो मुस्कुरा रही थी. कल रात वो जिस तरह खामोशी से गयी थी उससे तो मुझे लगा था के वो अब कभी मुझसे बात नही करना चाहेगी और शायद रिज़ाइन ही कर दे. पर वो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, ऐसे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. मैने राहत की साँस ली.
"हाँ यार" मैने कहा "वो सुबह सुबह मिश्रा ने बुला लिया था"
"क्या बात है आजकल पोलीस स्टेशन के काफ़ी चक्कर लग रहे हैं?" उसने मुझसे पुचछा
"बताऊँगा बाद मैं" मैने चेर पर बैठते हुए बोला "फिलहाल पानी पिला"
उसके बाद सब कुच्छ नॉर्मल रहा. प्रिया के बर्ताव में कोई बदलाव नही था जिसको लेकर मैं खुश था. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी जिसको मैं खोना नही चाहता था. मेरी हर बात का पूरा ध्यान रखती थी और हमेशा वक़्त पर ऑफीस पहुँच जाती थी. पर जो बात मुझे परेशान कर रही थी वो थी उसका यूँ कुच्छ ना कहना. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या वो कल की बात पर सच में नाराज़ नही है या ड्रामा कर रही है. क्या वो सही में मुस्कुरा रही है या दिल में कुच्छ और दबाए बैठी है. जब बर्दाश्त ना हुआ तो मैने आख़िर सोच ही लिया के मैं ही कोई बात करूँ.
"सुन प्रिया" मैने कहा
उसने गर्दन उठाकर मेरी तरफ देखा
"यार मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. पता नही कैसे......" मैने अपनी बात कह ही रहा था के वो बीच में बोल पड़ी
"इट्स ओके सर" उठकर वो मेरी टेबल पर मेरे सामने आकर बैठ गयी
"नो इट्स नोट. जिस तरह से तू गयी थी मुझे तो लगा था के अब नही आएगी. मैं माफी चाहता हूँ यार" मैने कहा
"अरे इसमें माफी की क्या बात है" वो हस्ते हुए बोली "और फिर आपने कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मेरे साथ. मैं खुद भी तो खामोश खड़ी थी"
ये बात उसने कह तो दी पर फिर खुद ही शर्मा गयी. शरम से उसने नज़र दूसरी तरफ फेर ली और हल्के से मुस्कुराने लगी. मैने इस बारे में आगे कोई बात ना करना ही ठीक समझा. कुच्छ देर तक हम यूँ ही खामोश बैठे रहे
"एक बात बताइए" कुच्छ देर बाद वो खुद ही बोली. मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो शरारत से मुस्कुरा रही थी.
"आपकी नज़र हो या आपका हाथ, दोनो सीधा यहीं क्यूँ पहुँच जाते हैं" कहते हुए उसने एक नज़र से अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
इस बार शरमाने की बारी मेरी थी. कल रात मैने एक हाथ उसकी चूचियो पर रख दिया था और वो उस बारे में ही बात कर रही थी. मुझे शरमाते देखकर वो खिलखिला कर हसी और मुझे छेड़ने लगी.
"बताओ ना सर" कहते हुए वो आगे को झुकी. थोड़ी देर पहले की शरम अब उसकी आँखों और चेहरे से जा चुकी थी.
"क्या बताऊं?" मैने किसी चोर की तरह पुचछा
"यही के क्या है यहाँ ऐसा जो आपकी नज़र यहीं आकर अटक जाती है. और मौका मिलते ही आपका हाथ भी यहीं पहुँच गया"
मैं जवाब में कुच्छ नही कहा पर वो तो जैसे अपनी बात पर आड़ गयी थी. सवाल फिर दोहराया.
"अरे यार" मैने झल्लाते हुए कहा "एक लड़के की नज़र से देख. जवाब मिल जाएगा"
"कैसे देखूं. लड़का तो मैं हूँ नही. वो तो आप हो इसलिए आप ही बता दो" उसने वही शरारत भरी आवाज़ में कहा
"ठीक है सुन" मैने गुस्से में अपने सामने रखी वो फाइल बंद कर दी जिसे देखने का मैं नाटक कर रहा था "लड़को को आम तौर पर बड़ी छातिया पसंद आती है. ऐसी जैसी तेरी हैं. और तूने खुद ही कहा के मैं लड़का हूँ. इसलिए मेरी नज़र बार बार यहाँ अटक जाती है"
"और मौका मिलते ही हाथ भी यहीं अटका दिया?" वो बोली और ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी. उल्टा हो रहा था. लड़की वो थी और शर्मा मैं रहा था.
"अच्छा और क्या है मुझ में ऐसा जो आपको पसंद आता है?" वो हसी रोक कर बोली
"तू जाएगी यहाँ से या नही?" मैने गुस्से में उसको घूरा तो वो सॉरी बोलती वहाँ से उठकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गयी. आँखो में अब भी वही शरारत थी.
उस रात मैं घर पहुँचा तो घर पर सिर्फ़ देवयानी ही थी.
"आइए आहमेद साहब" वो मुझे देखते हुए बोली "कैसा रहा आपका दिन?"
"कुच्छ ख़ास नही" मैने जवाब दिया "बस वही यूषुयल कोर्ट केसस. रुक्मणी कहाँ है?"
"बाहर गयी है" वो मेरे पास ज़रा अदा से चलते हुए आई "मुझे भी कह रही थी चलने के लिए पर फिर मैने सोचा के अगर मैं भी चली गयी तो आपका घर पर ध्यान कौन रखेगा?"
"मैं कोई छ्होटा बच्चा नही हूँ" मैं ज़रा मुस्कुराते हुए बोला "अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ"
"हां रख तो सकते हैं पर आपके पास हाथों से करने को और भी बेहतर काम हैं" वो बोली और हास पड़ी
उसकी कही बात का मतलब मैं एक पल के लिए समझा नही और जब समझा तो जवाब में उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे के मुझे समझ ही ना आया हो
"मैं कुच्छ समझा नही" मैने भोली सी सूरत बनाते हुए कहा
"अब इतने भी भोले नही हैं आप इशान आहमेद" उसने ऐसे कहा जैसे मेरी चोरी पकड़ रही हो
मुझे समझ नही आया के आगे क्या कहूँ. मैं खामोशी से खड़ा हुआ और बॅग उठाकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझे जाता देखकर पिछे से कहा
"एक कप कॉफी फिलहाल के लिए" मैने पलटकर कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला
सर्दियों का मौसम चल रहा था और मेरा पूरा जिस्म दुख रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. मैने बॅग रखा और अपने कपड़े उतारकर बाथरूम में दाखिल हुआ. मैं अभी नहा ही रहा था के मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई.
"इशान कॉफी" आवाज़ देवयानी की थी
"वहीं टेबल पर रख दीजिए" मैने जवाब दिया
कुच्छ ही पल गुज़रे थे के मैने बाथरूम के दरवाज़े पर आहट महसूस की. बाथरूम मेरे कमरे के अंदर ही था इसलिए मैने दरवाज़ा लॉक नही क्या. मेरे पूरे चेहरे पर साबुन लगा हुआ था इसलिए आहट कैसी थी देख नही पाया पर फिर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया के दरवाज़ा खोलकर कोई अंदर दाखिल हुआ है.
"कौन?" मैने कहा पर जवाब नही आया. मैने शओवेर ऑन किया और चेहरे से साबुन सॉफ करके दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर देवयानी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैं उसको यूँ खड़ा देखकर चौंक गया और फिर अगले ही पल मुझे ध्यान आया के मैं बिल्कुल नंगा था. मैने फ़ौरन साइड में लटका टवल खींचा और अपनी कमर पर लपेट लिया.
मैं कुच्छ कहने ही जा रहा था के देवयानी मेरी तरफ आगे बढ़ी. मैं चुप खड़ा उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरी तरफ देखते हुए मेरे करीब आ खड़ी हुई. शवर अब भी ओन था इसलिए जब वो मेरे पास आई तो पानी मेरे साथ उसके उपेर भी गिरने लगा. हम दोनो के बीच कोई कुच्छ नही कह रहा था और ना ही अब कोई मुस्कुरा रहा था. बस एक दूसरे की नज़र में नज़र डाले एकदम करीब खड़े हुए थे. अब तक देवयानी भी पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी वाइट कलर की नाइटी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. अंदर पहनी ब्लॅक कलर की ब्रा और पॅंटी उसके बाकी जिस्म के साथ सॉफ नज़र आ रही थी.
देवयानी ने अपना एक हाथ उठाकर मेरी छाती पर रखा. जाने क्यूँ पर मैं ऐसे च्चितका जैसे करेंट लगा हो. मैं फ़ौरन 2 कदम पिछे हो गया मानो वो मेरा रेप करने वाली हो. मेरे ऐसा करने पर वो ज़ोर से हस पड़ी.
"क्या हुआ इशान?" वो मुझे देखते हुए बोली "उस दिन किचन में तो मुझे इस तरह पकड़ा था जैसे मेरा रेप ही कर दोगे और आज यूँ दूर हो रहे हो?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. पानी में भीगी हुई वो किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी जो किसी भी ऋषि का ध्यान भंग कर सकती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उसके भीगा हुआ तकरीबन आधा नंगा जिस्म देखकर मेरे दिल और लंड में हरकत होने लगी. मैं अबी सोच ही रहा था के घर के बाहर हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी. गाड़ी रुक्मणी की थी. देवयानी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराइ और बाथरूम से बाहर चली गयी.
डिन्नर टेबल पर हम तीनो ने खामोशी से खाना खाया. खाना ख़तम होने के बाद रुक्मणी उठकर किचन की तरफ गयी.
"15 मिनट हैं तुम्हारे पास. सिर्फ़ 15 मिनट" उसके जाते हो देवानी मुझसे बोली. उसकी बात का मतलब मुझे समझ नही आया और मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा. तभी रुक्मणी किचन से वापिस आ गयी.
"मैं ज़रा वॉक के लिए जा रही हूँ" देवयानी ने कहा "15 मिनट में आ जाऊंगी"
मैं उसकी बात का मतलब समझ गया. वो रुक्मणी के साथ मुझे अकेले में 15 मिनट दे रही है.
उसके घर से बाहर निकलते ही मैने फ़ौरन रुक्मणी को पकड़ा और उसको होंठो पर अपने होंठ रख दिया. वो भी शायद मौके का इंतेज़ार ही कर रही थी और फ़ौरन मेरे चूमने का जवाब दिया. मेरे हाथ उसके चेहरे से होते हुए नीचे सरके और एक हाथ उसकी चूचियो और दूसरा उसकी गांद तक पहुँच गया. उसने एक ब्लू कलर की नाइटी पहेन रखी थी जिसके उपेर से मेरे हाथ उसके जिस्म को नापने लगे. रुक्मणी का अपना भी एक हाथ पाजामे के उपेर से मेरे लंड को टटोल रहा था.
"कपड़े उतारो" मैं उसको चूमता हुआ बोला
"नही" उसने कहा "पूरा कपड़े मत उतारो. देवयानी कभी भी वापिस आ सकती है"
मुझे भी देवयानी की 15 मिनट वाली बात याद आई तो मैने भी ज़िद नही की. उसको पकड़कर सोफे तक लाया और सोफे पर उसको बेतकर खुद उसके सामने खड़ा हो गया. रुक्मणी मेरा इशारा समझ गयी और फिर वो काम करने लगी जिसके लिए मैं उसका कायल था. मेरा पाजामा नीचे सरक चुका था और मेरा लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था. उसका एक हाथ कभी मेरे लंड को रगड़ता तो कभी मेरी बाल्स को सहलाता. कुच्छ देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको नीचे फ्लोर पर खींचा और घूमकर उसकी गांद अपनी तरफ कर ली. उसने अपने हाथ सोफे पर रखे और घुटनो के बल नीचे फ्लोर पर झुक गयी.
पीछे से उसको यूँ देखकर मेरी नज़रों के सामने फ़ौरन प्रिया की गांद घूमने लगी और मेरे दिल में एक पल के लिए ख्याल आया के अगर प्रिया इस तरह से झुके तो कैसी लगेगी?
"जल्दी करो?" रुक्मणी ने कहा
मैने उसकी नाइटी उठाकर उसकी कमर पर डाल दी और पॅंटी खींच कर नीचे कर दी. उसकी चूत और गांद मेरे सामने खुल गयी. जब भी मैं उसको इस तरह देखता था तो हमेशा मेरा दिल उसकी गांद मारने का करता था और आज भी ऐसा ही हुआ. मैने अपने लंड निकाला और उसकी गांद पर रगड़ने लगा. वो समझ गयी और मेरी तरफ गर्दन घूमकर मुस्कुराइ.
"नही इशान"
"प्लीज़ बस एक बार" मैने ज़िद करते हुए कहा
"दर्द होता है" उसने अपनी आँखें छ्होटी करते हुए कहा
वक़्त ज़्यादा नही था और मैं इस मौके का पूरा फायडा उठना चाहता था इसलिए ज़िद छ्चोड़ दी और अपना लंड उसकी चूत पर रखकर एक झटके में अंदर घुसता चला गया.
भूमिका सोनी का उस दिन पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना पता नही एक नाटक था या हक़ीकत पर मुझे मिश्रा से पता चला के वो ठीक थी और विल सेट्ल करने के लिए मुंबई गयी हुई थी. बॉडी उसने क्लेम कर ली थी और विपिन सोनी का क्रियाकर्म वहीं शहेर के शमशान में कर दिया गया था. उसके अगले दिन तक कुच्छ ख़ास नही हुआ. मेरी रुटीन लाइफ चलती रही. प्रिया के किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी इसलिए वो 2 हफ्ते की छुट्टी लेकर गयी हुई थी. मैने अकेला ही ऑफीस में बैठता और घर आ जाता. घर पर भी उस दिन के बाद ना तो मुझे रुक्मणी के साथ कोई मौका मिला और ना ही देवयानी के साथ बात आगे बढ़ी.
ऐसे ही एक सॅटर्डे को मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था के फोन की घंटी बजी. रुक्मणी और देवयानी दोनो ही घर पर नही. मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ मिश्रा था.
"क्या हो रहा है?" मैने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही यार" उसने जवाब दिया "वही सोनी मर्डर केस में उलझा हुआ हूँ"
"कुच्छ बात आगे बढ़ी?"
"नही यार" मिश्रा ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया "वहीं अटका हुआ हूँ. एक इंच भी आगे नही बढ़ा"
"उसकी बीवी कहाँ है?" मैने सवाल किया
"मुंबई में ही है फिलहाल तो. एक दो दिन में आएगी वापिस" मिश्रा बोला
"तू एक बार उसके बारे में पता क्यूँ नही करता?" मैने अपना शक जताया
"क्या कहना चाह रहा है?" मिश्रा की आवाज़ से ज़ाहिर था के उसको मेरी बात पर हैरत हुई थी "तुझे लगता है उसने मारा है अपने पति को?"
"हाँ क्यूँ नही हो सकता. वो अभी जवान है और सोनी बुड्ढ़ा था और अमीर भी. उसके मरने से सबसे ज़्यादा फायडा तो भूमिका को ही हुआ है" मैने कहा
"नही यार. मुझे नही लगता" मिश्रा ने मेरा बात को टाल दिया पर मैने अपनी बात पर ज़ोर डाला.
"भले ही ऐसा ना हो पर देखने में क्या हर्ज है. और हो सकता है के यहीं से तुझे कोई और लीड मिल जाए. फिलहाल तो कहीं से भी बात आगे नही बढ़ रही ना"
उसको शायद मेरी बात में दम नज़र आया इसलिए वो मान गया के भूमिका सोनी के बारे में पता करेगा और अगर कुच्छ हाथ लगा तो मुझको भी बताएगा. थोड़ी देर और बात करके हमने फोन रख दिया.
दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. टीवी देखकर बोर हो चुका था. बाहर कॉलोनी में शमशान जैसा सन्नाटा फेला हुआ था. बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी और सब अपने घर में घुसे हुए थे. मुझे भी जब कुच्छ समझ नही आया तो मैं वहीं सोफे पर लेट गया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा.
ऐसे ही कोई आधा घंटा बीट गया पर मुझे नींद नही आई. जिस्म में एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे बुखार हो गया हो और दिमाग़ सुकून लेने को तैय्यार ही नही. कभी कोई बात तो कभी कोई और पर दिमाग़ में कुच्छ ना कुच्छ चल ही रहा था. मैं पार्शन होकर फिर सोफे पर उठकर बैठ गया और मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी.
वो इस बार भी जैसे कोई लोरी ही गा रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही हो. उस रात की तरह ही मुझे अब भी लोरी के बोल समझ नही आ रहे थे और ना ही कोई म्यूज़िक था. बस एक बहुत मीठी सी हल्की सी आवाज़ जैसे कोई बहुत धीरे धीरे गा रहा हो. अब तो मैं ये भी नही कह सकता था के देवयानी या रुक्मणी गा रही थी क्यूंकी दोनो ही घर में नही था. आवाज़ बहुत धीमी थी इसलिए अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था के किस और से आ रही है पर फिर भी मैने ध्यान से सुनने की कोशिश की.
आवाज़ खिड़की की तरफ से आ रही थी मतलब के बाहर कोई गा रहा था. मैं उठा और अपने घर से निकालकर बाहर रोड पर आया. मुझे उम्मीद थी के बाहर आने पर आवाज़ शायद थोडा सॉफ सुनाई देगी पर ऐसा हुआ नही. अब भी वॉल्यूम उतना ही था. वही धीमी शांत ठहरी सी आवाज़. सड़क सुनसान थी बल्कि उस वक़्त तो पूरी कॉलोनी ही कोई वीराना लग रही थी. चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ और ठंडी चलती हवा की आवाज़ और उसके बीच आती उस गाने की आवाज़. मैने फिर ध्यान लगाकर सुना तो मुझे आवाज़ अपने घर के सामने के घर से आती हुई महसूस हुई. मैं घर की तरफ बढ़ा पर जैसे जैसे करीब होता गया आवाज़ दूर होती गयी. जब मैं उस घर के सामने पहुँचा तो मुझे लगा के आवाज़ मेरे अपने घर से आ रही है. अपने घर की तरफ पलटा तो लगा के आवाज़ हमारे साइड के घर से आ रही है. जब उस घर की तरफ देखा तो आवाज़ कहीं और से आती महसूस हुई. और उस रात की तरह ही इस बार भी उस गाने का असर होना शुरू हो चुका था. सड़क पर खड़े खड़े ही मेरी आँखें इस तरह भारी होने लगी थी जैसे मैं कई साल से नही सोया. एक पल के लिए मुझे लगने लगा के मैं वहीं सड़क पर लेटकर ही सो जाऊँगा. मैने कदम वापिस अपने घर की तरफ बढ़ाए और अंदर आकर सोफे पर गिर पड़ा. गाने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी और मुझे पता ही नही चला के मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
गतान्क से आगे...............
भूमिका के लिए आंब्युलेन्स बुलाई गयी और उसके बाद मैं पोलीस स्टेशन से सीधा अपने कोर्ट पहुँचा. 1 बज चुका था और 2 बजे की मेरी एक केस की हियरिंग थी.
कोर्ट से केस निपटने के बाद मैं अपने ऑफीस गया
"आइए आइए" मुझे देखकर प्रिया उठते हुए बोली "तो याद आ गया आपको के आप ऑफीस भी आते हैं?"
उसको देखकर मैं चौंक पड़ा. वो मुस्कुरा रही थी. कल रात वो जिस तरह खामोशी से गयी थी उससे तो मुझे लगा था के वो अब कभी मुझसे बात नही करना चाहेगी और शायद रिज़ाइन ही कर दे. पर वो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, ऐसे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. मैने राहत की साँस ली.
"हाँ यार" मैने कहा "वो सुबह सुबह मिश्रा ने बुला लिया था"
"क्या बात है आजकल पोलीस स्टेशन के काफ़ी चक्कर लग रहे हैं?" उसने मुझसे पुचछा
"बताऊँगा बाद मैं" मैने चेर पर बैठते हुए बोला "फिलहाल पानी पिला"
उसके बाद सब कुच्छ नॉर्मल रहा. प्रिया के बर्ताव में कोई बदलाव नही था जिसको लेकर मैं खुश था. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी जिसको मैं खोना नही चाहता था. मेरी हर बात का पूरा ध्यान रखती थी और हमेशा वक़्त पर ऑफीस पहुँच जाती थी. पर जो बात मुझे परेशान कर रही थी वो थी उसका यूँ कुच्छ ना कहना. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या वो कल की बात पर सच में नाराज़ नही है या ड्रामा कर रही है. क्या वो सही में मुस्कुरा रही है या दिल में कुच्छ और दबाए बैठी है. जब बर्दाश्त ना हुआ तो मैने आख़िर सोच ही लिया के मैं ही कोई बात करूँ.
"सुन प्रिया" मैने कहा
उसने गर्दन उठाकर मेरी तरफ देखा
"यार मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. पता नही कैसे......" मैने अपनी बात कह ही रहा था के वो बीच में बोल पड़ी
"इट्स ओके सर" उठकर वो मेरी टेबल पर मेरे सामने आकर बैठ गयी
"नो इट्स नोट. जिस तरह से तू गयी थी मुझे तो लगा था के अब नही आएगी. मैं माफी चाहता हूँ यार" मैने कहा
"अरे इसमें माफी की क्या बात है" वो हस्ते हुए बोली "और फिर आपने कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मेरे साथ. मैं खुद भी तो खामोश खड़ी थी"
ये बात उसने कह तो दी पर फिर खुद ही शर्मा गयी. शरम से उसने नज़र दूसरी तरफ फेर ली और हल्के से मुस्कुराने लगी. मैने इस बारे में आगे कोई बात ना करना ही ठीक समझा. कुच्छ देर तक हम यूँ ही खामोश बैठे रहे
"एक बात बताइए" कुच्छ देर बाद वो खुद ही बोली. मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो शरारत से मुस्कुरा रही थी.
"आपकी नज़र हो या आपका हाथ, दोनो सीधा यहीं क्यूँ पहुँच जाते हैं" कहते हुए उसने एक नज़र से अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
इस बार शरमाने की बारी मेरी थी. कल रात मैने एक हाथ उसकी चूचियो पर रख दिया था और वो उस बारे में ही बात कर रही थी. मुझे शरमाते देखकर वो खिलखिला कर हसी और मुझे छेड़ने लगी.
"बताओ ना सर" कहते हुए वो आगे को झुकी. थोड़ी देर पहले की शरम अब उसकी आँखों और चेहरे से जा चुकी थी.
"क्या बताऊं?" मैने किसी चोर की तरह पुचछा
"यही के क्या है यहाँ ऐसा जो आपकी नज़र यहीं आकर अटक जाती है. और मौका मिलते ही आपका हाथ भी यहीं पहुँच गया"
मैं जवाब में कुच्छ नही कहा पर वो तो जैसे अपनी बात पर आड़ गयी थी. सवाल फिर दोहराया.
"अरे यार" मैने झल्लाते हुए कहा "एक लड़के की नज़र से देख. जवाब मिल जाएगा"
"कैसे देखूं. लड़का तो मैं हूँ नही. वो तो आप हो इसलिए आप ही बता दो" उसने वही शरारत भरी आवाज़ में कहा
"ठीक है सुन" मैने गुस्से में अपने सामने रखी वो फाइल बंद कर दी जिसे देखने का मैं नाटक कर रहा था "लड़को को आम तौर पर बड़ी छातिया पसंद आती है. ऐसी जैसी तेरी हैं. और तूने खुद ही कहा के मैं लड़का हूँ. इसलिए मेरी नज़र बार बार यहाँ अटक जाती है"
"और मौका मिलते ही हाथ भी यहीं अटका दिया?" वो बोली और ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी. उल्टा हो रहा था. लड़की वो थी और शर्मा मैं रहा था.
"अच्छा और क्या है मुझ में ऐसा जो आपको पसंद आता है?" वो हसी रोक कर बोली
"तू जाएगी यहाँ से या नही?" मैने गुस्से में उसको घूरा तो वो सॉरी बोलती वहाँ से उठकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गयी. आँखो में अब भी वही शरारत थी.
उस रात मैं घर पहुँचा तो घर पर सिर्फ़ देवयानी ही थी.
"आइए आहमेद साहब" वो मुझे देखते हुए बोली "कैसा रहा आपका दिन?"
"कुच्छ ख़ास नही" मैने जवाब दिया "बस वही यूषुयल कोर्ट केसस. रुक्मणी कहाँ है?"
"बाहर गयी है" वो मेरे पास ज़रा अदा से चलते हुए आई "मुझे भी कह रही थी चलने के लिए पर फिर मैने सोचा के अगर मैं भी चली गयी तो आपका घर पर ध्यान कौन रखेगा?"
"मैं कोई छ्होटा बच्चा नही हूँ" मैं ज़रा मुस्कुराते हुए बोला "अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ"
"हां रख तो सकते हैं पर आपके पास हाथों से करने को और भी बेहतर काम हैं" वो बोली और हास पड़ी
उसकी कही बात का मतलब मैं एक पल के लिए समझा नही और जब समझा तो जवाब में उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे के मुझे समझ ही ना आया हो
"मैं कुच्छ समझा नही" मैने भोली सी सूरत बनाते हुए कहा
"अब इतने भी भोले नही हैं आप इशान आहमेद" उसने ऐसे कहा जैसे मेरी चोरी पकड़ रही हो
मुझे समझ नही आया के आगे क्या कहूँ. मैं खामोशी से खड़ा हुआ और बॅग उठाकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझे जाता देखकर पिछे से कहा
"एक कप कॉफी फिलहाल के लिए" मैने पलटकर कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला
सर्दियों का मौसम चल रहा था और मेरा पूरा जिस्म दुख रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. मैने बॅग रखा और अपने कपड़े उतारकर बाथरूम में दाखिल हुआ. मैं अभी नहा ही रहा था के मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई.
"इशान कॉफी" आवाज़ देवयानी की थी
"वहीं टेबल पर रख दीजिए" मैने जवाब दिया
कुच्छ ही पल गुज़रे थे के मैने बाथरूम के दरवाज़े पर आहट महसूस की. बाथरूम मेरे कमरे के अंदर ही था इसलिए मैने दरवाज़ा लॉक नही क्या. मेरे पूरे चेहरे पर साबुन लगा हुआ था इसलिए आहट कैसी थी देख नही पाया पर फिर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया के दरवाज़ा खोलकर कोई अंदर दाखिल हुआ है.
"कौन?" मैने कहा पर जवाब नही आया. मैने शओवेर ऑन किया और चेहरे से साबुन सॉफ करके दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर देवयानी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैं उसको यूँ खड़ा देखकर चौंक गया और फिर अगले ही पल मुझे ध्यान आया के मैं बिल्कुल नंगा था. मैने फ़ौरन साइड में लटका टवल खींचा और अपनी कमर पर लपेट लिया.
मैं कुच्छ कहने ही जा रहा था के देवयानी मेरी तरफ आगे बढ़ी. मैं चुप खड़ा उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरी तरफ देखते हुए मेरे करीब आ खड़ी हुई. शवर अब भी ओन था इसलिए जब वो मेरे पास आई तो पानी मेरे साथ उसके उपेर भी गिरने लगा. हम दोनो के बीच कोई कुच्छ नही कह रहा था और ना ही अब कोई मुस्कुरा रहा था. बस एक दूसरे की नज़र में नज़र डाले एकदम करीब खड़े हुए थे. अब तक देवयानी भी पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी वाइट कलर की नाइटी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. अंदर पहनी ब्लॅक कलर की ब्रा और पॅंटी उसके बाकी जिस्म के साथ सॉफ नज़र आ रही थी.
देवयानी ने अपना एक हाथ उठाकर मेरी छाती पर रखा. जाने क्यूँ पर मैं ऐसे च्चितका जैसे करेंट लगा हो. मैं फ़ौरन 2 कदम पिछे हो गया मानो वो मेरा रेप करने वाली हो. मेरे ऐसा करने पर वो ज़ोर से हस पड़ी.
"क्या हुआ इशान?" वो मुझे देखते हुए बोली "उस दिन किचन में तो मुझे इस तरह पकड़ा था जैसे मेरा रेप ही कर दोगे और आज यूँ दूर हो रहे हो?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. पानी में भीगी हुई वो किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी जो किसी भी ऋषि का ध्यान भंग कर सकती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उसके भीगा हुआ तकरीबन आधा नंगा जिस्म देखकर मेरे दिल और लंड में हरकत होने लगी. मैं अबी सोच ही रहा था के घर के बाहर हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी. गाड़ी रुक्मणी की थी. देवयानी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराइ और बाथरूम से बाहर चली गयी.
डिन्नर टेबल पर हम तीनो ने खामोशी से खाना खाया. खाना ख़तम होने के बाद रुक्मणी उठकर किचन की तरफ गयी.
"15 मिनट हैं तुम्हारे पास. सिर्फ़ 15 मिनट" उसके जाते हो देवानी मुझसे बोली. उसकी बात का मतलब मुझे समझ नही आया और मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा. तभी रुक्मणी किचन से वापिस आ गयी.
"मैं ज़रा वॉक के लिए जा रही हूँ" देवयानी ने कहा "15 मिनट में आ जाऊंगी"
मैं उसकी बात का मतलब समझ गया. वो रुक्मणी के साथ मुझे अकेले में 15 मिनट दे रही है.
उसके घर से बाहर निकलते ही मैने फ़ौरन रुक्मणी को पकड़ा और उसको होंठो पर अपने होंठ रख दिया. वो भी शायद मौके का इंतेज़ार ही कर रही थी और फ़ौरन मेरे चूमने का जवाब दिया. मेरे हाथ उसके चेहरे से होते हुए नीचे सरके और एक हाथ उसकी चूचियो और दूसरा उसकी गांद तक पहुँच गया. उसने एक ब्लू कलर की नाइटी पहेन रखी थी जिसके उपेर से मेरे हाथ उसके जिस्म को नापने लगे. रुक्मणी का अपना भी एक हाथ पाजामे के उपेर से मेरे लंड को टटोल रहा था.
"कपड़े उतारो" मैं उसको चूमता हुआ बोला
"नही" उसने कहा "पूरा कपड़े मत उतारो. देवयानी कभी भी वापिस आ सकती है"
मुझे भी देवयानी की 15 मिनट वाली बात याद आई तो मैने भी ज़िद नही की. उसको पकड़कर सोफे तक लाया और सोफे पर उसको बेतकर खुद उसके सामने खड़ा हो गया. रुक्मणी मेरा इशारा समझ गयी और फिर वो काम करने लगी जिसके लिए मैं उसका कायल था. मेरा पाजामा नीचे सरक चुका था और मेरा लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था. उसका एक हाथ कभी मेरे लंड को रगड़ता तो कभी मेरी बाल्स को सहलाता. कुच्छ देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको नीचे फ्लोर पर खींचा और घूमकर उसकी गांद अपनी तरफ कर ली. उसने अपने हाथ सोफे पर रखे और घुटनो के बल नीचे फ्लोर पर झुक गयी.
पीछे से उसको यूँ देखकर मेरी नज़रों के सामने फ़ौरन प्रिया की गांद घूमने लगी और मेरे दिल में एक पल के लिए ख्याल आया के अगर प्रिया इस तरह से झुके तो कैसी लगेगी?
"जल्दी करो?" रुक्मणी ने कहा
मैने उसकी नाइटी उठाकर उसकी कमर पर डाल दी और पॅंटी खींच कर नीचे कर दी. उसकी चूत और गांद मेरे सामने खुल गयी. जब भी मैं उसको इस तरह देखता था तो हमेशा मेरा दिल उसकी गांद मारने का करता था और आज भी ऐसा ही हुआ. मैने अपने लंड निकाला और उसकी गांद पर रगड़ने लगा. वो समझ गयी और मेरी तरफ गर्दन घूमकर मुस्कुराइ.
"नही इशान"
"प्लीज़ बस एक बार" मैने ज़िद करते हुए कहा
"दर्द होता है" उसने अपनी आँखें छ्होटी करते हुए कहा
वक़्त ज़्यादा नही था और मैं इस मौके का पूरा फायडा उठना चाहता था इसलिए ज़िद छ्चोड़ दी और अपना लंड उसकी चूत पर रखकर एक झटके में अंदर घुसता चला गया.
भूमिका सोनी का उस दिन पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना पता नही एक नाटक था या हक़ीकत पर मुझे मिश्रा से पता चला के वो ठीक थी और विल सेट्ल करने के लिए मुंबई गयी हुई थी. बॉडी उसने क्लेम कर ली थी और विपिन सोनी का क्रियाकर्म वहीं शहेर के शमशान में कर दिया गया था. उसके अगले दिन तक कुच्छ ख़ास नही हुआ. मेरी रुटीन लाइफ चलती रही. प्रिया के किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी इसलिए वो 2 हफ्ते की छुट्टी लेकर गयी हुई थी. मैने अकेला ही ऑफीस में बैठता और घर आ जाता. घर पर भी उस दिन के बाद ना तो मुझे रुक्मणी के साथ कोई मौका मिला और ना ही देवयानी के साथ बात आगे बढ़ी.
ऐसे ही एक सॅटर्डे को मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था के फोन की घंटी बजी. रुक्मणी और देवयानी दोनो ही घर पर नही. मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ मिश्रा था.
"क्या हो रहा है?" मैने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही यार" उसने जवाब दिया "वही सोनी मर्डर केस में उलझा हुआ हूँ"
"कुच्छ बात आगे बढ़ी?"
"नही यार" मिश्रा ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया "वहीं अटका हुआ हूँ. एक इंच भी आगे नही बढ़ा"
"उसकी बीवी कहाँ है?" मैने सवाल किया
"मुंबई में ही है फिलहाल तो. एक दो दिन में आएगी वापिस" मिश्रा बोला
"तू एक बार उसके बारे में पता क्यूँ नही करता?" मैने अपना शक जताया
"क्या कहना चाह रहा है?" मिश्रा की आवाज़ से ज़ाहिर था के उसको मेरी बात पर हैरत हुई थी "तुझे लगता है उसने मारा है अपने पति को?"
"हाँ क्यूँ नही हो सकता. वो अभी जवान है और सोनी बुड्ढ़ा था और अमीर भी. उसके मरने से सबसे ज़्यादा फायडा तो भूमिका को ही हुआ है" मैने कहा
"नही यार. मुझे नही लगता" मिश्रा ने मेरा बात को टाल दिया पर मैने अपनी बात पर ज़ोर डाला.
"भले ही ऐसा ना हो पर देखने में क्या हर्ज है. और हो सकता है के यहीं से तुझे कोई और लीड मिल जाए. फिलहाल तो कहीं से भी बात आगे नही बढ़ रही ना"
उसको शायद मेरी बात में दम नज़र आया इसलिए वो मान गया के भूमिका सोनी के बारे में पता करेगा और अगर कुच्छ हाथ लगा तो मुझको भी बताएगा. थोड़ी देर और बात करके हमने फोन रख दिया.
दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. टीवी देखकर बोर हो चुका था. बाहर कॉलोनी में शमशान जैसा सन्नाटा फेला हुआ था. बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी और सब अपने घर में घुसे हुए थे. मुझे भी जब कुच्छ समझ नही आया तो मैं वहीं सोफे पर लेट गया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा.
ऐसे ही कोई आधा घंटा बीट गया पर मुझे नींद नही आई. जिस्म में एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे बुखार हो गया हो और दिमाग़ सुकून लेने को तैय्यार ही नही. कभी कोई बात तो कभी कोई और पर दिमाग़ में कुच्छ ना कुच्छ चल ही रहा था. मैं पार्शन होकर फिर सोफे पर उठकर बैठ गया और मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी.
वो इस बार भी जैसे कोई लोरी ही गा रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही हो. उस रात की तरह ही मुझे अब भी लोरी के बोल समझ नही आ रहे थे और ना ही कोई म्यूज़िक था. बस एक बहुत मीठी सी हल्की सी आवाज़ जैसे कोई बहुत धीरे धीरे गा रहा हो. अब तो मैं ये भी नही कह सकता था के देवयानी या रुक्मणी गा रही थी क्यूंकी दोनो ही घर में नही था. आवाज़ बहुत धीमी थी इसलिए अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था के किस और से आ रही है पर फिर भी मैने ध्यान से सुनने की कोशिश की.
आवाज़ खिड़की की तरफ से आ रही थी मतलब के बाहर कोई गा रहा था. मैं उठा और अपने घर से निकालकर बाहर रोड पर आया. मुझे उम्मीद थी के बाहर आने पर आवाज़ शायद थोडा सॉफ सुनाई देगी पर ऐसा हुआ नही. अब भी वॉल्यूम उतना ही था. वही धीमी शांत ठहरी सी आवाज़. सड़क सुनसान थी बल्कि उस वक़्त तो पूरी कॉलोनी ही कोई वीराना लग रही थी. चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ और ठंडी चलती हवा की आवाज़ और उसके बीच आती उस गाने की आवाज़. मैने फिर ध्यान लगाकर सुना तो मुझे आवाज़ अपने घर के सामने के घर से आती हुई महसूस हुई. मैं घर की तरफ बढ़ा पर जैसे जैसे करीब होता गया आवाज़ दूर होती गयी. जब मैं उस घर के सामने पहुँचा तो मुझे लगा के आवाज़ मेरे अपने घर से आ रही है. अपने घर की तरफ पलटा तो लगा के आवाज़ हमारे साइड के घर से आ रही है. जब उस घर की तरफ देखा तो आवाज़ कहीं और से आती महसूस हुई. और उस रात की तरह ही इस बार भी उस गाने का असर होना शुरू हो चुका था. सड़क पर खड़े खड़े ही मेरी आँखें इस तरह भारी होने लगी थी जैसे मैं कई साल से नही सोया. एक पल के लिए मुझे लगने लगा के मैं वहीं सड़क पर लेटकर ही सो जाऊँगा. मैने कदम वापिस अपने घर की तरफ बढ़ाए और अंदर आकर सोफे पर गिर पड़ा. गाने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी और मुझे पता ही नही चला के मैं कब नींद के आगोश में चला गया.