स्कूल में गैंगबैंग चुदाई
मेरा नाम पूजा है, मैं एक अभी ताजा-ताजा जवान हुई लड़की हूँ।मैं और मेरे ही गाँव का आकाश एक साथ पढ़ने जाते थे।
आकाश 12 वीं में पढ़ता था और मैं 11वीं की स्टूडेंट थी। मेरे मम्मी पापा भी आकाश से बहुत खुश रहते थे।
पास के गाँव का विकास भी आकाश के साथ पढ़ता था।
आकाश से विकास बड़ा और लंबा था, विकास का जिस्म कसरती था, मुझे उसको देख कर डर सा लगता था इसलिए मैं कभी उससे बात नहीं करती थी।
आकाश मेरा पढ़ाई का काम पूरा करा देता था, वो बहुत अच्छा लड़का है।पापा भी ऐसा बोलते थे।
मैं आकाश और विकास स्कूल से एक साथ ही आते थे।
जुलाई 26 को विकास स्कूल नहीं आया। छुट्टी से पहले मौसम काफ़ी खराब हो गया था। प्रिंसीपल ने खराब मौसम के कारण एक घंटा पहले ही छुट्टी कर दी थी।
हम दोनों लोग अपने-अपने बैग लेकर जल्दी-जल्दी घर के लिए जाने लगे।अभी हम लोग स्कूल से एक किलोमीटर ही पहुँचे थे कि पानी बरसने लगा।घर जाने का रास्ता एकदम सुनसान था।
पास में एक पुराना सा फॉर्म हाउस था.. जो बंद पड़ा रहता था, उसमें कोई नहीं रहता था।उसके सामने छोटा सा बरामदा था, हम लोग पानी से बचने के लिए उसी घर में रुक गए।
उसमें बने हुए घर के दरवाज़े काफ़ी खराब हो गए थे.. उसकी कुण्डी बंद ही नहीं होती थी।
अब तो हवा भी काफ़ी तेज़ चलने लगी थी। अचानक बहुत जोर से बिज़ली कड़की.. मुझे ऐसा लगा कि जहाँ मैं खड़ी हूँ.. वहीं गिर गई हूँ।
दरअसल मैं बहुत घबरा गई थी तो मैं डर कर आकाश से चिपक गई।
मैं थोड़ी देर तक उससे चिपकी रही और वो भी मेरी पीठ पर हाथ घुमाता रहा.. मेरे कन्धों को दबाता रहा।
अचानक मैं चेतन हुई और आकाश से अलग हो गई।उसने कहा- मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था.. मैं तो तुमको शांत कर रहा था।
आकाश से चिपकना मुझे मन ही मन अच्छा लगा था.. पर मैं चुप रही।
तभी फिर से बिज़ली कड़की.. इस बार उसने मुझे पीछे से पकड़ कर चिपका लिया।
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मेरा नाम पूजा है, मैं एक अभी ताजा-ताजा जवान हुई लड़की हूँ।मैं और मेरे ही गाँव का आकाश एक साथ पढ़ने जाते थे।
आकाश 12 वीं में पढ़ता था और मैं 11वीं की स्टूडेंट थी। मेरे मम्मी पापा भी आकाश से बहुत खुश रहते थे।
पास के गाँव का विकास भी आकाश के साथ पढ़ता था।
आकाश से विकास बड़ा और लंबा था, विकास का जिस्म कसरती था, मुझे उसको देख कर डर सा लगता था इसलिए मैं कभी उससे बात नहीं करती थी।
आकाश मेरा पढ़ाई का काम पूरा करा देता था, वो बहुत अच्छा लड़का है।पापा भी ऐसा बोलते थे।
मैं आकाश और विकास स्कूल से एक साथ ही आते थे।
जुलाई 26 को विकास स्कूल नहीं आया। छुट्टी से पहले मौसम काफ़ी खराब हो गया था। प्रिंसीपल ने खराब मौसम के कारण एक घंटा पहले ही छुट्टी कर दी थी।
हम दोनों लोग अपने-अपने बैग लेकर जल्दी-जल्दी घर के लिए जाने लगे।अभी हम लोग स्कूल से एक किलोमीटर ही पहुँचे थे कि पानी बरसने लगा।घर जाने का रास्ता एकदम सुनसान था।
पास में एक पुराना सा फॉर्म हाउस था.. जो बंद पड़ा रहता था, उसमें कोई नहीं रहता था।उसके सामने छोटा सा बरामदा था, हम लोग पानी से बचने के लिए उसी घर में रुक गए।
उसमें बने हुए घर के दरवाज़े काफ़ी खराब हो गए थे.. उसकी कुण्डी बंद ही नहीं होती थी।
अब तो हवा भी काफ़ी तेज़ चलने लगी थी। अचानक बहुत जोर से बिज़ली कड़की.. मुझे ऐसा लगा कि जहाँ मैं खड़ी हूँ.. वहीं गिर गई हूँ।
दरअसल मैं बहुत घबरा गई थी तो मैं डर कर आकाश से चिपक गई।
मैं थोड़ी देर तक उससे चिपकी रही और वो भी मेरी पीठ पर हाथ घुमाता रहा.. मेरे कन्धों को दबाता रहा।
अचानक मैं चेतन हुई और आकाश से अलग हो गई।उसने कहा- मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था.. मैं तो तुमको शांत कर रहा था।
आकाश से चिपकना मुझे मन ही मन अच्छा लगा था.. पर मैं चुप रही।
तभी फिर से बिज़ली कड़की.. इस बार उसने मुझे पीछे से पकड़ कर चिपका लिया।
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