desiaks
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उस हफ्ते सुनीता ने ज्योति और कर्नल साहब को डिनर पर आने के लिए दावत दी। तब कर्नल साहब ने सुनील के सामने एक शर्त रखी। पिछली बार सुनील की पत्नी सुनीता ने कुछ भी सख्त पेय पिने से मना कर दिया था। कर्नल साहब ने कहा की आर्मी के हिसाब से यह एक तरह का अपमान तो नहीं पर अवमान गिना जाता है। कर्नल साहब का आग्रह था की अगर वह सुनील के घर आएंगे तो सुनीताजी एक घूंट तो जरूर पियेंगी।
अपनी पत्नी सुनीता को सुनील ने कर्नल साहब के यह आग्रह के बारे में बताया तो सुनीता ने मान लिया की वह कर्नल साहब का मन रखने के लिए एकाध बियर पी लेगी। सुनील ने कर्नल साहब का आग्रह स्वीकार कर लिया। उसे किसी आर्मी वाले से ही पता लग गया था की ऐसा आग्रह होने पर महिलाएं ना भी पीती हों तो दिखाने के लिए ही सही पर एक छोटा सा पेग ले लेती हैं और थोड़ा बहुत पीती हैं या फिर पिने के बजाय उसको हाथों में लिए हुए घूमती रहती हैं। मौक़ा मिलने पर वह उसे अपने पति को दे देती है या फिर उसे कहीं ना कहीं (पेड़ पैधो में) निकास कर देती हैं।
ऐसा भी नहीं की आर्मी में हर कोई महिला शराब नहीं पीती। कुछ महिलाएं अपने पति या मित्रों के साथ शराब पीती भी हैं और उनमें से कुछ कुछ तो टुन्न भी हो जाती हैं। पर ऐसा कोई कोई बार ही होता है।
कर्नल साहब ने आते ही पहले सुनील को और बादमें सुनीता को अपनी बाँहों में भर लिया। सुनीता भी कर्नल साहब से गले मिलकर बड़ी प्रसन्न लग रही थी। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति और सुनील ने भी यह देखा।
सुनील और सुनीता ने भी कर्नल साहब और ज्योति की आवभगत करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ी। कर्नल साहब की तरह ही उन्होंने भी टेबल पर अलग अलग किस्म के सख्त पेय रखे थे और साथ में भांतिभांति के खाद्य नमकीन इत्यादि भी रख दिए गए थे।
कर्नल साहब के आते ही सुनील ने सब के लिए अपनी अपनी पसंदीदा सख्त पेय पेश किये। सुनीता गुजरात की थी सो उसने कुछ ख़ास गुजराती खाद्य पदार्थ कर्नल साहब और ज्योति के लये तैयार किये थे। कर्नल साहब के आग्रह पर सुनीता ने भी ज्योति के साथ अपने गिलास में बियर डाली और सब ने चियर्स कर के छोटी चुस्की ली। कर्नल साहब किछ ख़ास ही मूड में लग रहे थे।
आते ही जब सुनील की पत्नी सुनीता और कर्नल की पत्नी ज्योति अकेले में मिले तो ज्योति ने बताया की जब कर्नल साहब थोड़े अच्छे मूड़ में हों तब सुनील की पत्नी सुनीता कर्नल साहब को मौक़ा देख कर गणित सिखाने के बारे में पूछेगी। एक पेग जब कर्नल साहब लगा चुके थे और कुछ रोमांटिक मूड़ में अपनी बीबी ज्योति के साथ छेड़ छाड़ कर रहे थे तब मौक़ा पाकर सुनीता ने कर्नल साहब को गणित सिखाने के बारे में पूछा। ज्योति ने भी कर्नल साहब को हाँ करने के लिए रिक्वेस्ट की। जब कर्नल ने देखा की सुनीता और ज्योति दोनों तैयार थे तब कर्नल सुनीता को गणित पढ़ाने के लिए तैयार हो गए।
कर्नल बोले, "भाई मैं गणित में मेरी स्कूल और कॉलेज में टॉप रहा हूँ। मैंने शुरू में कॉलेज में गणित पढ़ाई है। (सुनीता की और मुड़कर बोले) मैं तुम्हें ऐसे सिखाऊंगा की तुम भी गणित की मास्टर बन जाओगी। (फिर वह रुक कर बोले) पर हाँ, उसकी फीस देनी पड़ेगी।"
उनकी बात सुनकर सुनीता उछल पड़ी और बोली, "हमें मंजूर है, क्या फीस होगी?"
कर्नल साहब बोले, "वक्त आने पर मांग लूंगा।"
सुनीता थोड़ी निराश सी लगी और बोली, "अरे! मुझे सस्पेंस में मत रखो। बोलो, क्या फीस चाहिए?"
कर्नल साहब ने कहा, "कुछ नहीं, कहना पर मांग लूंगा। चाय पिलानी पड़ेगी, अब तो यही चाहिए।"
सुनीता ने कहा, "जैसा आप ठीक समझें।"
यह तय हुआ की सुनीता को कर्नल साहब हर इतवार को दुपहर बारह बजे से हमारे घर में दो घंटे तक पढ़ाया करेंगे।
कर्नल साहब के जाने के बाद तो सुनीता जैसे हवा में उड़ने लगी। उसे एक ऐसा शिक्षक मिला था जो ना सिर्फ उसे से पढ़ायेगा, बल्कि जो उसका आदर्श था और कोई फीस की भी उन्हें अपेक्षा नहीं थी। उस रात बिस्तर में सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा, "तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब हमसे तुम्हारी पढ़ाई के बदले में क्या मांगेंगे?"
सुनीता ने सुनील की और अजीब तरीके से देखते हुए कहा, "पर उन्होंने तो फीस के लिए कुछ कहा ही नहीं। वह मुफ्त में ही पढ़ाएंगे। उन्होंने तो सिर्फ चाय ही मांगी है।"
सुनील ने कहा, "जानेमन एक बात समझो। मुफ्त हमेशा महँगा पड़ता है। जिंदगी में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। इंसान को हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है।"
तब सुनीता ने सुनील की और बड़े ही भोलेपन से देखा और बोली, "तो फिर? तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब क्या मांगेंगे?"
सुनील ने अपने कंधे हिलाते हुए कहा, "क्या पता? देखते हैं। अगर वह कुछ भी नहीं मांगते हैं फिर भी हम को समझ कर कुछ ना कुछ तो देना ही पडेगा ना?"
वह बात यूँ ही खत्म हुई। कर्नल साहब नियमित ठीक बारह बजे आने लगे। सुनीता एक अच्छे विद्यार्थी की तरह तैयार रहती और वह दोनों सुनील के स्टडी रूम में अलग से बैठ कर पढ़ाई करते। सुनीता ने सुनील को बताया की कर्नल साहब गज़ब के शिक्षक थे, और कुछ ही दिनों में सुनीता को गणित में काफी रस पड़ने लगा। वह गणित की कठिन समस्याओं को सुलझाने लगी। सुनीता के चेहरे पर यह एक नयी उपलब्धि प्राप्त करने का संतोष साफ़ नजर आ रहा था।
कई बार सुनील ने महसूस किया की कर्नल साहब और उसकी बीबी की नजदीकियाँ कुछ बढ़ सी गयी थी। रात को उनके शयन कक्ष में जब सुनील सुनीता के साथ अठखेलियां करने लगता तो महसूस करता था की सुनीता कुछ खोयी खोयी सी लगती थी। जब सुनील पूछता तो सुनीता टाल देती। पर एक दिन जब सुनील ने सुनीता को कुछ ज्यादा ही जोर देकर पूछा तो वह थोड़ी मायूस होकर बोली, "सुनील, मुझे समझ नहीं आता की मैं क्या बताऊँ।"
सुनील ने कहा, "अगर तुम बताओगी नहीं तो मैं कैसे समझूंगा?"
तो सुनीता बोली, " कर्नल साहब मुझसे बड़ी ही निजी, अजीब सी लगने वाली हरकतें जाने अनजाने में करते हैं।"
सुनील ने पूछा, "क्या मतलब?"
तो बोली, "कर्नल साहब मुझे बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं। मेरे लिए वह घरमें देर रात तक खुद भी पढ़ाई करते हैं। पर कई बार वह ऐसा कुछ कर बैठते हैं की मैं उलझन में फँस जाती हूँ। समझ में नहीं आता की क्या करूँ और क्या कहूं। जब मैं पढ़ाई में अच्छा करती हूँ तो वह मुझ से लिपट जाते हैं, मतलब आलिंगन करते हैं और कई बार ख़ुशी के मारे मेरे बदन को सहलाते हैं, कई बार वह बूब्स को हलके से पकड़ कर सेहला देते हैं या दबा देते हैं।
कई बार गलती करती हूँ तो वह मेरे कान मरोड़ते हैं और मेरी साडी या ड्रेस में हाथ डाल कर मेरे पेट पर चूँटी भरते हैं; और अगर मैं खड़ी होती हूँ तो मेरे पिछवाड़े को भी दबाकर चूँटी भरते हैं। मैं उन्हें रोक नहीं पाती। मैं तुम्हें बताने की कोशिश कर रही थी, पर बोल नहीं पायी। कई बार मैं सोचती हूँ को उनको रोकूं और ऐसा ना करने के लिए टोकूं। मेरी समझ में यह नहीं आता की उनकी मंशा क्या है। जब वह पढ़ाते हैं तो उनका ध्यान कभी भी मुझे पढ़ाने के अलावा कहीं नहीं जाता। मैं उनसे सट कर भी बैठती हूँ तो भी उनपर कोई असर नहीं होता। पर अचानक वह मुझसे ऐसी शरारत कर बैठते हैं। मेरी समझ में नहीं आता बताओ मैं क्या करूँ?"
अपनी पत्नी सुनीता को सुनील ने कर्नल साहब के यह आग्रह के बारे में बताया तो सुनीता ने मान लिया की वह कर्नल साहब का मन रखने के लिए एकाध बियर पी लेगी। सुनील ने कर्नल साहब का आग्रह स्वीकार कर लिया। उसे किसी आर्मी वाले से ही पता लग गया था की ऐसा आग्रह होने पर महिलाएं ना भी पीती हों तो दिखाने के लिए ही सही पर एक छोटा सा पेग ले लेती हैं और थोड़ा बहुत पीती हैं या फिर पिने के बजाय उसको हाथों में लिए हुए घूमती रहती हैं। मौक़ा मिलने पर वह उसे अपने पति को दे देती है या फिर उसे कहीं ना कहीं (पेड़ पैधो में) निकास कर देती हैं।
ऐसा भी नहीं की आर्मी में हर कोई महिला शराब नहीं पीती। कुछ महिलाएं अपने पति या मित्रों के साथ शराब पीती भी हैं और उनमें से कुछ कुछ तो टुन्न भी हो जाती हैं। पर ऐसा कोई कोई बार ही होता है।
कर्नल साहब ने आते ही पहले सुनील को और बादमें सुनीता को अपनी बाँहों में भर लिया। सुनीता भी कर्नल साहब से गले मिलकर बड़ी प्रसन्न लग रही थी। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति और सुनील ने भी यह देखा।
सुनील और सुनीता ने भी कर्नल साहब और ज्योति की आवभगत करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ी। कर्नल साहब की तरह ही उन्होंने भी टेबल पर अलग अलग किस्म के सख्त पेय रखे थे और साथ में भांतिभांति के खाद्य नमकीन इत्यादि भी रख दिए गए थे।
कर्नल साहब के आते ही सुनील ने सब के लिए अपनी अपनी पसंदीदा सख्त पेय पेश किये। सुनीता गुजरात की थी सो उसने कुछ ख़ास गुजराती खाद्य पदार्थ कर्नल साहब और ज्योति के लये तैयार किये थे। कर्नल साहब के आग्रह पर सुनीता ने भी ज्योति के साथ अपने गिलास में बियर डाली और सब ने चियर्स कर के छोटी चुस्की ली। कर्नल साहब किछ ख़ास ही मूड में लग रहे थे।
आते ही जब सुनील की पत्नी सुनीता और कर्नल की पत्नी ज्योति अकेले में मिले तो ज्योति ने बताया की जब कर्नल साहब थोड़े अच्छे मूड़ में हों तब सुनील की पत्नी सुनीता कर्नल साहब को मौक़ा देख कर गणित सिखाने के बारे में पूछेगी। एक पेग जब कर्नल साहब लगा चुके थे और कुछ रोमांटिक मूड़ में अपनी बीबी ज्योति के साथ छेड़ छाड़ कर रहे थे तब मौक़ा पाकर सुनीता ने कर्नल साहब को गणित सिखाने के बारे में पूछा। ज्योति ने भी कर्नल साहब को हाँ करने के लिए रिक्वेस्ट की। जब कर्नल ने देखा की सुनीता और ज्योति दोनों तैयार थे तब कर्नल सुनीता को गणित पढ़ाने के लिए तैयार हो गए।
कर्नल बोले, "भाई मैं गणित में मेरी स्कूल और कॉलेज में टॉप रहा हूँ। मैंने शुरू में कॉलेज में गणित पढ़ाई है। (सुनीता की और मुड़कर बोले) मैं तुम्हें ऐसे सिखाऊंगा की तुम भी गणित की मास्टर बन जाओगी। (फिर वह रुक कर बोले) पर हाँ, उसकी फीस देनी पड़ेगी।"
उनकी बात सुनकर सुनीता उछल पड़ी और बोली, "हमें मंजूर है, क्या फीस होगी?"
कर्नल साहब बोले, "वक्त आने पर मांग लूंगा।"
सुनीता थोड़ी निराश सी लगी और बोली, "अरे! मुझे सस्पेंस में मत रखो। बोलो, क्या फीस चाहिए?"
कर्नल साहब ने कहा, "कुछ नहीं, कहना पर मांग लूंगा। चाय पिलानी पड़ेगी, अब तो यही चाहिए।"
सुनीता ने कहा, "जैसा आप ठीक समझें।"
यह तय हुआ की सुनीता को कर्नल साहब हर इतवार को दुपहर बारह बजे से हमारे घर में दो घंटे तक पढ़ाया करेंगे।
कर्नल साहब के जाने के बाद तो सुनीता जैसे हवा में उड़ने लगी। उसे एक ऐसा शिक्षक मिला था जो ना सिर्फ उसे से पढ़ायेगा, बल्कि जो उसका आदर्श था और कोई फीस की भी उन्हें अपेक्षा नहीं थी। उस रात बिस्तर में सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा, "तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब हमसे तुम्हारी पढ़ाई के बदले में क्या मांगेंगे?"
सुनीता ने सुनील की और अजीब तरीके से देखते हुए कहा, "पर उन्होंने तो फीस के लिए कुछ कहा ही नहीं। वह मुफ्त में ही पढ़ाएंगे। उन्होंने तो सिर्फ चाय ही मांगी है।"
सुनील ने कहा, "जानेमन एक बात समझो। मुफ्त हमेशा महँगा पड़ता है। जिंदगी में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। इंसान को हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है।"
तब सुनीता ने सुनील की और बड़े ही भोलेपन से देखा और बोली, "तो फिर? तुम्हें क्या लगता है? कर्नल साहब क्या मांगेंगे?"
सुनील ने अपने कंधे हिलाते हुए कहा, "क्या पता? देखते हैं। अगर वह कुछ भी नहीं मांगते हैं फिर भी हम को समझ कर कुछ ना कुछ तो देना ही पडेगा ना?"
वह बात यूँ ही खत्म हुई। कर्नल साहब नियमित ठीक बारह बजे आने लगे। सुनीता एक अच्छे विद्यार्थी की तरह तैयार रहती और वह दोनों सुनील के स्टडी रूम में अलग से बैठ कर पढ़ाई करते। सुनीता ने सुनील को बताया की कर्नल साहब गज़ब के शिक्षक थे, और कुछ ही दिनों में सुनीता को गणित में काफी रस पड़ने लगा। वह गणित की कठिन समस्याओं को सुलझाने लगी। सुनीता के चेहरे पर यह एक नयी उपलब्धि प्राप्त करने का संतोष साफ़ नजर आ रहा था।
कई बार सुनील ने महसूस किया की कर्नल साहब और उसकी बीबी की नजदीकियाँ कुछ बढ़ सी गयी थी। रात को उनके शयन कक्ष में जब सुनील सुनीता के साथ अठखेलियां करने लगता तो महसूस करता था की सुनीता कुछ खोयी खोयी सी लगती थी। जब सुनील पूछता तो सुनीता टाल देती। पर एक दिन जब सुनील ने सुनीता को कुछ ज्यादा ही जोर देकर पूछा तो वह थोड़ी मायूस होकर बोली, "सुनील, मुझे समझ नहीं आता की मैं क्या बताऊँ।"
सुनील ने कहा, "अगर तुम बताओगी नहीं तो मैं कैसे समझूंगा?"
तो सुनीता बोली, " कर्नल साहब मुझसे बड़ी ही निजी, अजीब सी लगने वाली हरकतें जाने अनजाने में करते हैं।"
सुनील ने पूछा, "क्या मतलब?"
तो बोली, "कर्नल साहब मुझे बहुत अच्छी तरह पढ़ाते हैं। मेरे लिए वह घरमें देर रात तक खुद भी पढ़ाई करते हैं। पर कई बार वह ऐसा कुछ कर बैठते हैं की मैं उलझन में फँस जाती हूँ। समझ में नहीं आता की क्या करूँ और क्या कहूं। जब मैं पढ़ाई में अच्छा करती हूँ तो वह मुझ से लिपट जाते हैं, मतलब आलिंगन करते हैं और कई बार ख़ुशी के मारे मेरे बदन को सहलाते हैं, कई बार वह बूब्स को हलके से पकड़ कर सेहला देते हैं या दबा देते हैं।
कई बार गलती करती हूँ तो वह मेरे कान मरोड़ते हैं और मेरी साडी या ड्रेस में हाथ डाल कर मेरे पेट पर चूँटी भरते हैं; और अगर मैं खड़ी होती हूँ तो मेरे पिछवाड़े को भी दबाकर चूँटी भरते हैं। मैं उन्हें रोक नहीं पाती। मैं तुम्हें बताने की कोशिश कर रही थी, पर बोल नहीं पायी। कई बार मैं सोचती हूँ को उनको रोकूं और ऐसा ना करने के लिए टोकूं। मेरी समझ में यह नहीं आता की उनकी मंशा क्या है। जब वह पढ़ाते हैं तो उनका ध्यान कभी भी मुझे पढ़ाने के अलावा कहीं नहीं जाता। मैं उनसे सट कर भी बैठती हूँ तो भी उनपर कोई असर नहीं होता। पर अचानक वह मुझसे ऐसी शरारत कर बैठते हैं। मेरी समझ में नहीं आता बताओ मैं क्या करूँ?"