Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ - Page 4 - SexBaba
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Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ

मैंने भी उसके दर्द भरे स्वर को भांपते हुए कहा- नहीं रूचि.. ऐसा नहीं है.. जब पहली बार तुमको देखा था.. मैं तो उसी दिन से ही तुम्हें चाहने लगा था.. मेरी सोच तो तुम पर ही ख़त्म हो गई थी और सोच लिया था.. कैसे भी करके तुम्हें अपना बना लूँगा। 

तो वो बोली- फिर मुझे अपने से अलग क्यों किया? 

मैंने बोला- आज जब तुमने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई.. तो मुझे बहुत बुरा लगा.. मैं अपनी ही नजरों में खुद को नीच समझने लगा था और मेरा सपना टूटा हुआ सा नज़र आने लगा था। मेरे मन में कई बुरे ख्याल घर करने लगे थे। 

तो वो तुरंत ही बोली- कैसे ख्याल? 

मैंने अपनी बात सम्हालते हुए जबाव दिया- तुमने मेरे बारे में बिना कुछ जाने ही मेरे सम्बन्ध अपनी माँ से जोड़ दिए.. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।

तो वो बोली- तुमने हरकत ही ऐसी की थी.. तुम मेरी माँ की चड्डी लिए सोते थे.. तो भला तुम ही बोलो.. मैं क्या समझती? और जब से तुम हमारे घर आ रहे थे.. मैं तब से ही ध्यान दे रही थी कि तुम और माँ एक-दूसरे के काफी करीब नज़र आते थे।

इस बात पर मैंने तुरंत ही उसको डाँटते हुए स्वर में कहा- रूचि.. तुम पागल हो क्या? तुम्हारी माँ तो तुम्हारे भाई के जैसे ही मुझे प्यार देती थी और मैं भी बिल्कुल विनोद के जैसे ही तुम्हारी माँ का ख्याल रखता था। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? और रही चड्डी की बात.. तो तुम ही बताओ कि तुम्हारे और तुम्हारी माँ के शरीर की बनावट में कोई ख़ास अंतर है क्या? 

तो वो थोड़ा सा लजा गई और मुस्कान छोड़ते हुए बोली- सॉरी राहुल.. अगर तुम्हें मेरी वजह से कोई दुःख हुआ हो तो.. और वैसे भी जब तुमने सच मुझे बताया था.. तो मैं खुद भी अपने आपको कोस रही थी.. अगेन सॉरी..

अब मैंने भी अपनी लाइन क्लियर देखते हुए बोला- फिर अब आज के बाद ऐसा कभी नहीं बोलोगी।

वो तपाक से बोली- पर एक शर्त पर..

तो मैंने पूछा- कैसी शर्त?

बोली- मेरी माँ की चड्डी तुम अपने पास नहीं रखोगे। 

तो मैं बोला- जब विनोद कमरे में आया था.. मैंने तो उसी वक़्त उसको यहाँ फेंक कर बाथरूम में चला गया था.. और प्रॉमिस.. आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी.. क्योंकि..

तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- क्योंकि क्या?

मैं बोला- क्योंकि अपनी चड्डी तुम खुद ही मुझे दिया करोगी।

तो वो हँसने लगी और मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए बोली- बहुत शैतान और चुलबुला है.. ये मेरा आशिक यार..

उसकी इस अदा पर मैं इतना ज्यादा मोहित हो गया कि उसको शब्दों में पिरो ही नहीं पा रहा हूँ।

फिर वो मेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली- जान.. अब तो मेरी माँ की चड्डी दे दो। 

तो मैंने बोला- मेरे पास नहीं है.. यहीं तो फेंककर गया था।

वो बोली- तुमने अभी नीचे कुछ नहीं पहना है क्या? 

तो मैंने बोला- नहीं.. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

वो बोली- फिर क्या तुम ऐसे ही नहाए और ऐसे ही बाहर भी आ गए?

मैंने उसे थोड़ा और खोलने के लिए शरारत भरे लहज़े में बोला- थोड़ा खुलकर बोलो न.. क्या ‘ऐसे..ऐसे..’ लगा रखा है। 

तो वो बोली- बेटा.. तुम समझ सब रहे हो.. पर अपनी बेशर्मी दिखा रहे हो.. पर मुझे शर्म आ रही है। 

अब मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और बोला- यहाँ हम दोनों के सिवा और है ही कौन.. और मुझसे कैसी शर्म? 

तो वो बोली- अरे जाने दो..

मैंने उसे आँख मारते हुए बोला- ऐसे कैसे जाने दो..

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- मेरे ‘ऐसे-ऐसे’ का मतलब था कि तुम नंगे-नंगे ही नहा लेते हो.. तुम्हें शर्म नहीं आती?
 
मैंने भी उसके दर्द भरे स्वर को भांपते हुए कहा- नहीं रूचि.. ऐसा नहीं है.. जब पहली बार तुमको देखा था.. मैं तो उसी दिन से ही तुम्हें चाहने लगा था.. मेरी सोच तो तुम पर ही ख़त्म हो गई थी और सोच लिया था.. कैसे भी करके तुम्हें अपना बना लूँगा। 

तो वो बोली- फिर मुझे अपने से अलग क्यों किया? 

मैंने बोला- आज जब तुमने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई.. तो मुझे बहुत बुरा लगा.. मैं अपनी ही नजरों में खुद को नीच समझने लगा था और मेरा सपना टूटा हुआ सा नज़र आने लगा था। मेरे मन में कई बुरे ख्याल घर करने लगे थे। 

तो वो तुरंत ही बोली- कैसे ख्याल? 

मैंने अपनी बात सम्हालते हुए जबाव दिया- तुमने मेरे बारे में बिना कुछ जाने ही मेरे सम्बन्ध अपनी माँ से जोड़ दिए.. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।

तो वो बोली- तुमने हरकत ही ऐसी की थी.. तुम मेरी माँ की चड्डी लिए सोते थे.. तो भला तुम ही बोलो.. मैं क्या समझती? और जब से तुम हमारे घर आ रहे थे.. मैं तब से ही ध्यान दे रही थी कि तुम और माँ एक-दूसरे के काफी करीब नज़र आते थे।

इस बात पर मैंने तुरंत ही उसको डाँटते हुए स्वर में कहा- रूचि.. तुम पागल हो क्या? तुम्हारी माँ तो तुम्हारे भाई के जैसे ही मुझे प्यार देती थी और मैं भी बिल्कुल विनोद के जैसे ही तुम्हारी माँ का ख्याल रखता था। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? और रही चड्डी की बात.. तो तुम ही बताओ कि तुम्हारे और तुम्हारी माँ के शरीर की बनावट में कोई ख़ास अंतर है क्या? 

तो वो थोड़ा सा लजा गई और मुस्कान छोड़ते हुए बोली- सॉरी राहुल.. अगर तुम्हें मेरी वजह से कोई दुःख हुआ हो तो.. और वैसे भी जब तुमने सच मुझे बताया था.. तो मैं खुद भी अपने आपको कोस रही थी.. अगेन सॉरी..

अब मैंने भी अपनी लाइन क्लियर देखते हुए बोला- फिर अब आज के बाद ऐसा कभी नहीं बोलोगी।

वो तपाक से बोली- पर एक शर्त पर..

तो मैंने पूछा- कैसी शर्त?

बोली- मेरी माँ की चड्डी तुम अपने पास नहीं रखोगे। 

तो मैं बोला- जब विनोद कमरे में आया था.. मैंने तो उसी वक़्त उसको यहाँ फेंक कर बाथरूम में चला गया था.. और प्रॉमिस.. आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी.. क्योंकि..

तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- क्योंकि क्या?

मैं बोला- क्योंकि अपनी चड्डी तुम खुद ही मुझे दिया करोगी।

तो वो हँसने लगी और मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए बोली- बहुत शैतान और चुलबुला है.. ये मेरा आशिक यार..

उसकी इस अदा पर मैं इतना ज्यादा मोहित हो गया कि उसको शब्दों में पिरो ही नहीं पा रहा हूँ।

फिर वो मेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली- जान.. अब तो मेरी माँ की चड्डी दे दो। 

तो मैंने बोला- मेरे पास नहीं है.. यहीं तो फेंककर गया था।

वो बोली- तुमने अभी नीचे कुछ नहीं पहना है क्या? 

तो मैंने बोला- नहीं.. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

वो बोली- फिर क्या तुम ऐसे ही नहाए और ऐसे ही बाहर भी आ गए?

मैंने उसे थोड़ा और खोलने के लिए शरारत भरे लहज़े में बोला- थोड़ा खुलकर बोलो न.. क्या ‘ऐसे..ऐसे..’ लगा रखा है। 

तो वो बोली- बेटा.. तुम समझ सब रहे हो.. पर अपनी बेशर्मी दिखा रहे हो.. पर मुझे शर्म आ रही है। 

अब मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और बोला- यहाँ हम दोनों के सिवा और है ही कौन.. और मुझसे कैसी शर्म? 

तो वो बोली- अरे जाने दो..

मैंने उसे आँख मारते हुए बोला- ऐसे कैसे जाने दो..

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- मेरे ‘ऐसे-ऐसे’ का मतलब था कि तुम नंगे-नंगे ही नहा लेते हो.. तुम्हें शर्म नहीं आती?
 
तो मैंने उससे बोला- खुद से कैसी शर्म..? क्या तुम ‘ऐसे..ऐसे..’ नहीं नहातीं?

वो बोली- न बाबा.. मुझे तो शर्म आती है।

मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखते हुए बोला- एक बार आज़मा कर देखो.. कितना मज़ा आता है।

यह सुनते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैंने उसके शरीर पर एक अजीब सी फुरकन जैसी हरकत महसूस की.. क्योंकि मेरा हाथ उसकी जाँघों पर था।
फिर वो मेरी बात काटते हुए बोली- देखेंगे कभी करके ऐसे.. लेकिन जो चड्डी तुम ले गए थे.. वो है कहाँ? 

तो मैंने भी लोअर की जेब में हाथ डाला और झटके से उसकी आँखों के सामने लहराने के साथ-साथ बोला- लो कर लो तसल्ली.. मेरी ही है कि नहीं? 

वो एकदम से बोली- अरे मेरे भोले राजा.. अब तो खुद भी तो देख लो.. या फिर नज़र कमजोर हो चली। 

मैंने जैसे ही उसके चेहरे से नज़र हटाई और चड्डी की ओर देखा.. तो वो बोली- क्या है ये?

मैंने शर्मा कर सॉरी बोलते हुए बोला- मैंने ध्यान ही नहीं दिया यार.. उस समय हड़बड़ाहट में कुछ समझ ही नहीं आया.. खैर.. ये लो.. पर मेरी चड्डी कहाँ है?

तो उसने बोला- तुम्हें मेरी खुश्बू अच्छी लगती है न.. तो मैंने उसे पहन लिया.. वैसे भी तुम्हारी ‘वी-शेप’ की चड्डी बिल्कुल मेरी ही जैसी चड्डी की तरह दिखी.. तो मैंने पहन ली.. ताकि मैं तुम्हें अपनी खुश्बू दे सकूँ और उसे अपने पास रखने में तुम्हें शर्म भी न आए..

ये सुनकर पहले तो मुझे लगा कि ये मज़ाक कर रही है, तो मैंने बोला- यार मज़ाक बाद मैं. मुझे अभी जल्दी से तैयार होकर घर के लिए भी निकलना है।

बोली- अरे.. मज़ाक नहीं कर रही मैं.. अभी खुद ही महसूस कर लेना..

ये कहती हुई वो बाथरूम में चली गई और जब निकली तो उसके हाथ में मेरी ही चड्डी थी।
पर जब तक मैं उसे पहने हुए देख न लेता.. तो कैसे समझता कि उसने पहनी ही थी। 

फिर वो मेरे पास आकर खड़ी हुई और मेरी चड्डी देते हुए बोली- लो और अब कभी भी ऐसी खुश्बू की जरुरत हो.. तो मुझे अपनी ही चड्डी दे दिया करना।
मैंने उसके हाथों से लेते ही उसको देखा तो उसके अगले भाग पर मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैंने सोचा.. लगता है रूचि कुछ ज्यादा ही गर्म हो गई थी। इसे क्यों न और गर्म कर दिया जाए ताकि ये भी अपनी माँ की तरह ‘लण्ड..लण्ड..’ चिल्लाने लगे। 
तो मैंने उसकी ओर ही देखते हुए बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके रस को सूंघने और चाटने लगा और अपनी नजरों को उसके चेहरे पर टिका दीं। 
मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसकी चूत का रस अपनी चड्डी से नहीं.. बल्कि उसकी चूत से चूस रहा होऊँ। 
खैर.. मैंने उसे ज्यादा न तड़पाने की सोचते हुए अपनी चड्डी से मुँह को हटा लिया और उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोला- वाह यार.. क्या महक थी इसकी.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद रखूँगा.. आई लव यू रूचि..
तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और शायद उसे भी अपने रस को अपने होंठों पर महसूस करना था.. इसलिए उसने कहा- अच्छा.. इतनी ही मादक खुश्बू और स्वाद था ये.. तो मुझे मालूम ही नहीं.. कि मेरी वेजिना किसी को इतना पागल कर सकती है? 
मैं उसके मुँह से ‘वेजिना’ शब्द सुनकर हँसने लगा.. तो वो बोली- मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..
मैं बोला- ऐसा नहीं है.. 
तो उसने भी प्रतिउत्तर मैं कहा- फिर कैसा है? 
‘तुम्हें क्या यही मालूम है.. या बन कर बोली थीं..?’
तो वो बोली- क्या? 
मैंने फिर से हँसते हुए कहा- वेजिना.. 
तो वो बोली- उसे यही कहते हैं.. मैं और कुछ नहीं जानती..
मैंने बोला- क्या सच मैं?
तो वो बोली- क्या लिखकर दे दूँ.. पर मुझे तुम बताओ न.. इसे और क्या कहते हैं?
मैं बोला- फिर तुम्हें भी दोहराना होगा..
तो वो तैयार हो गई.. फिर मैंने उसकी वेजिना को अपनी गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं। 
मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से ‘आआ.. आआआह..’ रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी चूत को छोड़ दूँ.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया था।
लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- राहुल.. क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू… से.. 
ये कहती हुई वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैं तपाक से बोला- मैडम सेंटेंस पूरा करो.. अभी तुमने बोला कि दोहराओगी और वैसे भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर कहो। 
तो बोली- नहीं.. फिर कभी..
मैं बोला- नहीं.. अभी के अभी बोलो.. नहीं तो मैं आज शाम को नहीं आऊँगा। 
ये मैंने उसे झांसे में लेने को बोला ही था कि उसने तुरंत ही मेरा हाथ पकड़ा और लटका हुआ सा उदास चेहरा लेकर बोली- प्लीज़ राहुल.. ऐसा मत करना.. तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी। 
मैंने बोला- प्रॉमिस? 
तो वो बोली- गॉड प्रोमिस..
शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।
तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी दो? 
तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी अच्छी है…
तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।
वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?
तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए.. 
ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ.. करोगे?
तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा पूरी हो जाएगी क्या?
ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।
 
वो मुझसे बोली- अगर तुम सच कह रहे हो कि तुम्हें मेरी चूत की खुश्बू पसंद है.. तो क्या तुम सच में मेरी चूत को भी ऐसे ही सूंघ कर दिखा सकते थे?
तो मैंने तुरंत ही कहा- हाँ.. क्यों नहीं। 
वो बोली- चल झूठे.. ऐसा भी कोई करता है क्या?
मैं समझ गया कि या तो यह इस खेल की नई खिलाड़ी है.. या तो ये खुद ही मेरे साथ खेल कर रही है.. ताकि मैं ही अपनी तरफ से पहल करूँ।
तो मैंने भी कुछ सोचते हुए बोला- क्यों तुम्हें पहले किसी ने मना किया है क्या?
बोली- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मैं तो इसलिए बोली थी.. क्योंकि वहाँ से गंदी बदबू भी आती है ना.. इसलिए। 
तब जाकर मैं समझा कि यह अभी नई है और इसे इस खेल का कोई अनुभव नहीं है। 
मैंने बोला- अरे पगली तुम नहीं समझ सकती कि एक जवान लड़की की और एक जवान लड़के के लिंग में कितनी शक्ति होती है। दोनों में ही अपनी-अपनी अलग खुशबू होती है.. जो एक-दूसरे को दीवाना बना देती है।
तो वो बोली- मैं कैसे मानूं?
मैं बोला- अब ये तुम्हारे ऊपर है.. मानो या ना मानो.. सच तो बदलेगा नहीं..
तो वो बोली- क्या तुम मुझे महसूस करा सकते हो?
मैं तपाक से बोला- क्यों नहीं.. 
तो वो झट से मेरे सामने अपना लोवर खोल कर मुझे अपनी चूत चाटने की दावत देने लगी.. शायद उस पर वासना का भूत सवार हो चुका था। 
मैं भी देरी ना करते हुए बिस्तर से उठा और फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठकर उसकी मुलायम चिकनी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर खोल दिया.. ताकि उसकी चूत ठीक से देख सकूँ। 
मैंने जैसे ही उसकी चूत का दीदार किया तो मुझे तो ऐसा लगा.. जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया हूँ.. उसकी चूत बहुत ही प्यारी और कोमल सी दिख रही थी.. जिसमें ऊपर की तरफ छोटे-छोटे रेशमी मुलायम बाल थे जो कि उसकी गोरी चूत की सुंदरता पर चार चाँद लगा रहे थे।
मेरी तो जैसे साँसें थम सी गई थीं.. क्योंकि ये मेरा पहला मौका था.. जब मैंने किसी कुँवारी लड़की की चूत को इतनी करीब से देखा था.. बल्कि ये कह लें कि इसके पहले देखा ही नहीं था।
उसकी चूत बिल्कुल कसी हुई थी.. कुछ फूली-फूली सी.. और उसके बीच में एक महीन सी दरार थी.. जो कि उसके छेद को काफ़ी संकरा किए हुए थी।
इतनी प्यारी संरचना को देखकर मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया था.. जिससे मुझे कुछ होश ही नहीं था कि मैं कहाँ हूँ.. कैसा हूँ। 
खैर.. जब मैं उसकी चूत को टकटकी लगाए कुछ देर यूँ ही देखता रहा.. तो उसने मेरे हाथ पर एक छोटी सी चिकोटी काटी.. जो कि उसकी जाँघ को मजबूती से कसे हुए था।
तो मेरा ध्यान उसकी चूत से टूटा और मैंने ‘आउच..’ बोलते हुए उसकी ओर देखा.. उसकी नजरों में लाज के साथ-साथ एक अजीब सी चमक भी दिख रही थी।
ऐसी नजरों को कुछ ज्ञानी बंधु.. वासना की लहर की संज्ञा भी देते हैं। 
 
वो अपनी आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए बोली- क्यों राहुल.. पक्का तुम यही सोच रहे होगे कि मैंने झूट क्यों बोला.. मैं कैसे किसी की गंदी जगह को सूंघ सकता हूँ.. अब फंस गए ना.. अभी तक मुझे बेवकूफ़ बना रहे थे.. चलो छोड़ो.. अगर दीदार पूरे हो गए हों तो। तुमको अगर यही देखना था.. तो पहले ही बोल देते.. मैं कमरे में घुसते ही दिखा देती। आख़िर तुम वो पहले इंसान हो जिससे मैंने प्यार किया.. तुम्हारे लिए मैं ये पहले ही कर सकती थी.. पर तुमने झूट का सहारा लिया.. अब ऐसा दोबारा ना करना। 
तभी मैंने बोला- जान.. तुम नहीं जानती कि आज मैंने अपनी पूरी जिंदगी में पहली बार चूत देखी है.. जिसे अक्सर ख़्वाबों में ही देखता था.. पर जब आज सच में सामने आई.. तो मैं देखता ही रह गया था.. क्या तुमने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया?
‘क्या..?’ वो चौंक कर बोली- यह क्या होता है? 
तो मैं उसकी चूत की कसावट को देखते हुए बोला- कोई बात नहीं.. मैं सब सिखा दूँगा और रही बात सूंघने की.. तो मैं तो सोच रहा हूँ.. इसे चाट कर सूँघूं या सूंघ कर चाटूं..।
तो वो बोली- जो भी करना.. जल्दी करो.. नहीं तो तुम्हें देर हो जाएगी जाने में.. और प्लान भी बिगड़ सकता है।
मैंने तुरंत ही उसके नितंबों को पकड़ कर बिस्तर के आगे की ओर खींचा ताकि उसकी चूत पर मुँह आराम से लगा सकूँ। 
फिर मैंने बिना देर किए हुए उसे बिस्तर के किनारे लाया और सीधा उसकी चूत पर मुँह लगा कर उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा.. जिससे उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट पड़ीं- ओह्ह..शिइई.. 
मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढके हुए थी.. पर जब उसने अपनी चूत पर मेरा मुँह नहीं महसूस किया.. तो अपनी आँख खोल कर मुझसे बोली- राहुल.. यार फिर से कर न.. मुझे बहुत अच्छा लगा.. मुझे नहीं पता था कि इसमें इतना मज़ा आता है।
तो मैं बोला- परेशान मत हो… अभी तो खेल शुरू हुआ है.. देखती जाओ.. मैं क्या-क्या और कितना मजा देता हूँ। 
वो बोली- एक बात पूछू.. मज़ाक तो नहीं बनाओगे मेरा?
तो मैं बोला- हाँ.. पूछो.. 
वो बोली- राहुल मैं चाहती हूँ.. कि जो मज़ा तुम मुझे दे रहे हो.. वो मैं भी दूँ.. क्या ये एक साथ हो सकता है? मेरा मतलब तुम मेरी वेजिना को मुँह से प्यार करो और मैं तुम्हारे पेनिस को अपने मुँह से प्यार करूँ।
मैंने अपनी ख़ुशी दबाते हुए कहा- हो सकता है..
तो वो चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल सच..
मैंने बोला- हम्म..
तो वो बोली- पर कैसे?
मैं बोला- तुम सच में कुछ नहीं जानती..
तो वो बोली- तुम्हारी कसम.. ये मेरा पहला अनुभव है।
मैंने कहा- अच्छा चलो कोई बात नहीं.. मैं तुम्हें सिखा दूंगा सब कुछ.. 
मैं मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अपने आप ही मेरा काम आसान हो गया।
मैंने तुरंत ही खड़े होकर अपने लोअर को नीचे खिसकाकर अपने शरीर से अलग कर दिया.. जिससे मेरा पहले से ही खड़ा ‘सामान’ बाहर आ कर झूलने लगा। 
 
मेरा लवड़ा देखकर रूचि बोली- यार ये बताओ.. तुम्हारा ये पेनिस मेरे मुँह तक कैसे आएगा.. जब तुम नीचे बैठोगे तभी तो मैं कुछ कर पाऊँगी
तो मैं बोला- पहले तो इसे पेनिस नहीं लण्ड बोलो.. और अपना दिमाग न लगाओ.. जैसे मैं बोलूँ.. वैसे करो।
तो वो चहक कर बोली- ठीक है.. चलो अब जल्दी से अपना ल..लण्ड मेरे मुँह में डालो और अपना मुँह मेरी च..चूत पर लगाओ.. अब मुझसे और इंतज़ार नहीं हो सकता। 
लण्ड-चूत कहने में वो कुछ हिचक रही थी.. बेचारी.. सच में उसको कुछ नहीं मालूम था कि कैसे क्या करना है.. उसे तो बस इतना ही मालूम था कि लण्ड चूत में जाता है जिससे माल निकलता है.. और लण्ड का माल चूत में भर जाता है.. जिससे बच्चा हो जाता है बस।
ये सब उसने मुझे बाद में बताया था.. 
खैर.. मैंने उसे बिस्तर पर सही से लिटाया और हम 69 अवस्था में लेट गए। यह देख कर उसके दिमाग की बत्ती जल उठी और रूचि खुश होते हुए बोली- यार वाकयी में तुम स्मार्ट के साथ-साथ होशियार भी हो.. क्या जुगाड़ निकाला है..
मैं तुरंत ही उसकी चूत के दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा और वो मेरे लण्ड को पकड़ कर खेलने लगी और थोड़ी ही देर में उसने अपनी नरम जुबान मेरे लौड़े पर रखकर सुपाड़े को चाटने लगी.. जिससे मुझे असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी। 
उसकी गीली जुबान की हरकत से मेरे अन्दर ऐसा वासना का सैलाब उमड़ा.. जिसे मैं शब्द देने में असमर्थ हूँ.. फिर मैंने भी प्रतिउत्तर में उसके दाने को अपने मुँह में भर-भर कर चूसना चालू कर दिया.. जिससे उसके मुँह से ‘अह्ह्ह ह्ह.. हाआआह… आआआ..’ की आवाज स्वतः ही निकलने लगी।
उसके शरीर में एक अजीब सा कम्पन हो रहा था.. जिसे मैं महसूस करने लगा।
चूत चुसवाने के थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगें खुद ही फ़ैलाने लगी और अपने चूतड़ों को उठा कर मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। 
अब मुझे एहसास हो गया कि रूचि को इस क्रिया में असीम आनन्द की प्राप्ति हो रही है। फिर मैंने उसके जोश को और बढ़ाने के लिए अपनी उँगलियों के माध्यम से उसकी चूत की दरार को थोड़ा फैलाया और देखता ही रह गया.. चूत के अन्दर का बिलकुल ऐसा नज़ारा था.. जैसे किसी ने तरबूज पर हल्का सा चीरा लगा कर फैलाया हो.. उसकी चूत से रिस रहा पानी उसकी और शोभा बढ़ा रहा था। 
मैंने बिना कुछ सोचे अपनी जुबान उसकी दरार में डाल दी.. और उसे चाटने लगा। 
जिससे उत्तेजित होकर रूचि ने भी मेरे लण्ड के शिश्न-मुण्ड को और अन्दर ले कर चूसते हुए ‘ओह.. शिइ… इइइइ.. शीईईई..’ की सीत्कार के साथ ‘अह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह ह्ह..’ करने लगी। 
तो मैंने वक्त की नज़ाकत देखते हुए अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के छेद में घुसेड़ दी.. जिससे उसकी एक और दर्द भरी ‘आह्ह्ह्ह ह्ह..’ छूट गई और दर्द से तड़पते हुए बोली- यार.. लग रही है ये.. क्या कर दिया.. अब तो अन्दर जलन सी होने लगी है..
तो मैंने मन में सोचा शायद इसने अपनी चूत में ऊँगली भी नहीं डाली है.. इसलिए इसे ऐसा लग रहा होगा। 
मैंने बोला- जान बस थोड़ा रुको.. अभी सही किए देता हूँ। 
 
फिर मैंने उंगली बाहर निकाली और उसकी चूत पर थूक का ढेर लगाकर.. उसके छेद को चूसते हुए.. जुबान से ही अपने थूक को उसके छेद के अन्दर ठेलने लगा.. जिससे उसका दर्द अपने आप ही ठीक होने लगा। 
‘अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. शिइइ… शहअह…’ की ध्वनि उसके मुँह से निकलने लगी। 
दोस्तो, सच में उस समय मेरी थूक ने उसके साथ बिल्कुल एंटी बायोटिक वाला काम किया और जब वो मस्तिया के फिर से मेरा लण्ड चूसने लगी.. तो मैंने फिर से उसकी चूत में उंगली डाल दी। 
इस बार वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर कुछ बोली नहीं.. शायद वो और आगे का मज़ा लेना चाहती थी.. या फिर उसे दोबारा में दर्द कम हुआ होगा।
अब मैंने धीरे-धीरे उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने और मुँह से चूसने लगा। मेरी इस हरकत से उसने भी जोश में आकर मेरे लौड़े को अपने मुँह में और अन्दर ले जाते हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी। 
उसके शरीर में हो रहे कम्पन को महसूस करते हुए मैं समझ गया कि अब रूचि झड़ने वाली है.. यही सही मौका है दूसरी उंगली भी अन्दर कर दो.. ताकि छेद भी थोड़ा और फ़ैल जाए।
इस अवस्था में इसे दर्द भी महसूस नहीं होगा.. ये विचार आते ही मेरा भी जोश बढ़ गया और मैं एक सधे हुए खिलाड़ी की तरह उसकी चूत में तेजी से उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।
अब रूचि के मुँह से भी ‘गु.. गगगग गु.. आह्ह..’ की आवाज़ निकलने लगी.. क्योंकि वो भी मेरा लौड़ा फुल मस्ती में चूस रही थी.. जैसे सारा आज ही रस चूस-चूस कर खत्म कर देगी। 
मैंने तुरंत ही अपनी उंगली अन्दर-बाहर करते हुए अचानक से पूरी बाहर निकाली और दोबारा तुरंत ही दो उँगलियों को मिलाकर एक ही बार में घुसेड़ दी.. जिससे उसके दांत मेरे लौड़े पर भी गड़ गए और उसके साथ-साथ मेरे भी मुँह से भी ‘अह्ह ह्ह्ह्ह..’ की चीख निकल गई। 
सच कहूँ दोस्तो, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आया था।
आज भी हम आपस में जब मिलते हैं तो इस बात को याद करते ही एक्साइटेड हो जाते हैं मेरा लौड़ा तन कर आसमान छूने लगता है और उसकी चूत कामरस की धार छोड़ने लगती है।
खैर.. जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो फिर से वो लण्ड को चचोर-चचोर कर चूसने लगी और अपनी टांगों को मेरे सर पर बांधते हुए कसने लगी।
वो मेरे लौड़े को बुरी तरह चूसते हुए ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह..’ के साथ ही झड़ गई। उसका यह पहला अनुभव था.. जो कि शायद 10 से 15 मिनट तक ही चल पाया था। 
 
मेरा अभी बाकी था.. पर मैंने वहीं रुक जाना बेहतर समझा.. क्योंकि ये उसके जीवन का पहला सुखद अनुभव था.. जो कि उसके शरीर की शिथिलता बयान कर रही थी।
मैंने इस तरह उसके रस को पूरा चाट लिया और छोड़ता भी कैसे.. आखिर मेरी मेहनत का माल था। 
उसकी तेज़ चलती सांसें.. मेरे लौड़े पर ऐसे लग रही थीं.. जैसे मेरे लौड़े में नई जान डाल रही हो.. और मैं भी पूरी मस्ती में उसकी बुर को चाट कर साफ करने लगा। 
जब उसकी सांसें थोड़ा सधी.. तो वो एक लम्बी कराह ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह..’ के साथ चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल.. यू आर अमेज़िंग.. सच यार.. मुझे तो तूने फुल टाइट कर दिया.. यार लव यू और ये क्या तुम्हें लगता है.. ज्यादा मज़ा नहीं आया क्योंकि तुम पहले की ही तरह नार्मल दिख रहे हो.. जबकि मैं पसीने-पसीने हो गई। 
तो मैं बोला- जान तुम्हारा डिस्चार्ज हो गया है और मेरा अभी नहीं हुआ है और असली मज़ा डिस्चार्ज होने के बाद ही आता है। 
उसने झट से बिना कुछ बोले- मेरे लण्ड को पकड़ा और दबा कर बोली- अच्छा.. तुम पहले की तरह मेरे जैसे बिस्तर पर बैठो और मैं जमीन पर बैठ कर तुम्हारी तरह करती हूँ। 
मैं तुरंत ही बैठ गया और वो उठी और मेरे सामने अपने घुटनों के बल जमीन पर बैठकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर चूसने लगी। 
बीच-बीच में वो अपनी नशीली आँखों से मुझे देख भी लेती थी.. जिससे मुझे भी जोश आने लगा।
और यह क्या.. तभी उसकी बालों की लटें उसके चेहरे को सताने लगी.. जिसे वो अपने हाथों से हटा देती।
तो मैंने खुद ही उसके सर के पीछे हाथ ले जाकर उसके बालों को एक हाथ से पकड़ लिया। 
हय.. क्या सेक्सी सीन लग रहा था.. ओह माय गॉड.. एक सुन्दर परी सी अप्सरा आपके अधीन हो कर.. आपकी गुलामी करे.. तो आपको कैसा लगे.. बिलकुल मुझे भी ऐसा ही लग रहा था। 
फिर मैंने दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को ऊपर उठाकर उसकी आँखों में झांकते हुए.. उसके मुँह में धक्के देने लगा.. जिससे उसके मुँह से ‘उम्म्म.. उम्म्म्म.. गगग.. गूँ.. गूँ..’ की आवाजें आने लगीं।
इस तरह कुछ देर और चूसने से मेरा भी माल उसके मुँह में ही छूट गया और वो बिना किसी रुकावट के सारा का सारा माल गटक गई।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है.. पहली बार में बिना किसी विरोध के कोई कैसे माल अन्दर ले सकता है?
तो मैं आपको बता दूँ कि जैसे मैंने किया था.. वैसा ही उसने किया.. क्योंकि उसे कुछ मालूम ही नहीं था।
 
फिर वो उठी और बाथरूम में जाकर मुँह धोया और वापस आकर मेरे पास बैठ गई और इस समय मैं और रूचि दोनों ही नीचे कुछ नहीं पहने थे जिससे मुझे साफ़ पता चल रहा था कि रूचि का चूत रस अभी भी बह रहा है।
तो मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा- अरे तुम तो बहुत माहिर हो लण्ड चूसने में… कहाँ से सीखा?
तो बोली- और कहाँ से सीखूँगी… बस अभी अभी सीख लिया!
तो मैं बोला- कैसे?
तो वो बोली- जैसे तुम अच्छे से बिना दांत गड़ाए मेरी चूत को अपने मुँह में भर भर कर चूस रहे थे तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसा लग रहा था कि तुम बस चूसते ही रहो… मुझे सच में बहुत अच्छा लगा और तुम्हारी उँगलियों ने तो कमाल कर दिया, जैसे तुमने अपनी उंगली नहीं बल्कि मेरे अंदर नई जान डाल दी हो! ठीक वैसे ही मैंने भी सोचा कि क्यों न तुम्हें भी तुम्हारी तरह मज़ा दिया जाये! बस मैंने तुम्हारी नक़ल करके वैसे ही किया और मुझे पता है कि तुम्हें भी बहुत मज़ा आया… पर यार, तुमने मेरी हालत ही बिगाड़ दी थी, मेरी तो सांस ही फूल गई थी पर अब दोबारा ऐसा न करना वरना… मैं नहीं करुँगी।
तो मैं बोला- फिर अभी क्यों किया?
वो बोली- क्योंकि तुमने मुझे इतनी मज़ा दिया था जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भुला सकती!
मैंने बोला- अच्छा अगर मैं इसी तरह तुम्हें मज़ा देता रहा तो क्या तुम भी मुझे मज़े देती रहोगी?
वो बोली- यह बाद की बात है पर सच में मेरे गले में दर्द होने लगा था!
मैंने बोला- अच्छा, अब आगे से ध्यान रखूँगा पर तुम्हें बता दूँ कि आने वाले दिनों में मैं बहुत कुछ देने वाला हूँ।
वो बोली- और क्या?
तब मैंने बोला- यह तो सिर्फ शुरुआत है, और अभी सब बता कर मज़ा नहीं खराब करना चाहता, बस देखती जाओ कि आगे आगे होता है क्या?
कहते हुए मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा कर उसके होंठों का रसपान करने लगा और वो भी मेरा पूर्ण सहयोग देते हुए मेरे निचले होंठ को पागलों की तरह बेतहाशा चूसे जा रही थी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं जन्नत में हूँ, मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी हो जायेगा।
खैर मैं उसके पंखुड़ी समान होंठों को चूसते हुए उसकी पीठ सहलाने लगा और रूचि की मस्ती वासना से भरने लगी।
मैंने मौके को देखते हुए उसके चूचों पर धीरे से दोनों हाथ रखकर उन्हें सहलाने लगा और हल्का हल्का सा दबा भी देता जिससे रूचि के मुख से सिसकारियाँ ‘शिइइइइइइइ’ फ़ूट पड़ती जो आग में घी का काम कर रही थी।
फिर मैंने अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट ऊपर की ओर उठाते हुए उसे किस करता रहा। तभी अचानक उसने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ लिया और बोली- यह क्या कर रहे हो? इसकी क्या जरूरत?
तो मैंने बोला- तुम्हें इसके पहले कुछ पता भी था या मुझसे सीखा?
वो बोली- तुमसे… पर तुम्हें तो मेरी चूत पसंद है न… वो तो कब की खुली है।
तो मैं बोला- जान असली मज़ा तो खुले में ही आता है न! मेरी बात मानो!
वो हल्की सी मुस्कान के साथ फिर से मेरी बाँहों में आ गई और मेरे कान के पास मुख ले जाकर फुसफुसाई- यार, मुझे शर्म आ रही है, अगर इसे न उतारा जाये तो क्या काम नहीं चलेगा?
मैं बोला- हम्म… बिल्कुल बिना टॉप उतारे वो मज़ा आ ही नहीं सकता।
तो वो बोली- क्यों?
तो मैंने मन ही मन खुश होते हुए अपने हाथों को ठीक से साध के उसके चूचों पर निशाना साधा और अचानक मैंने उसके गोल और मांसल चूचों को भींचते हुए मसक दिया जिससे उसकी दर्द भरी ‘अह्ह… ह्ह्ह्ह… आह्ह…’ निकल गई और मुझसे अलग हट कर अपने चूचों को सहलाने लगी और मुझसे गुस्सा करते हुए बोली- यार, ये क्या कर दिया तूने? मेरी तो जान ही निकल गई।
तो मैंने भी तुरंत बोला- इसी लिए तो कह रहा था कि बिना टॉप के मज़ा आता है और ऊपर से ग्रिप अच्छी नहीं बन पाती जैसा कि अभी तुमने खुद ही देखा, तुम्हें दर्द हुआ न?
तो बोली- सच में इसमें मज़ा आएगा?
तो मैंने उसको होंठों को चूसते हुए अपने होंठों को उसके कान के पास ले गया और एक लम्बी सांस छोड़ते हुए उसके कान में धीरे से बोला- खुद ही महसूस करके देख लो।
और एक बात मैंने जब सांस छोड़ी थी तो मैंने महसूस किया कि मेरी सांस ने रूचि के बदन की झुरझुरी बढ़ा दी थी जिससे उसके बदन में एक अजीब सा कम्पन महसूस हुआ था।
 
खैर फिर मैंने दोबारा धीरे से उसके कान के पास चुम्बन लेते हुए अपने हाथ उसकी टॉप में डाले और ऊपर की ओर उठाने लगा जिसमें रूचि ने भी सहयोग देते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर उठा लिए जिससे उसकी चूचियाँ तन के मेरी आँखों के सामने आ गई।
दोस्तो, क्या गजब का नज़ारा था… जैसे सफ़ेद छेने पर गाढ़ी लाल रंग की चेरी रख दी हो!
मैं तो देख कर इतना मस्त हो गया कि मुझे कुछ होश ही न रहा और मैं उसके चूचों की घुंडियों को प्यार से मसलने लगा जिससे रूचि कुछ कसमसाई तो मैंने उससे धीरे से पूछा- क्या हुआ?
तो बोली- यार अच्छा भी लग रहा है और थोड़ा अजीब सा भी!
मैंने बोला- बस थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें मज़ा आने लगेगा।
तो वो बोली- अब क्या करने वाले हो?

मैंने बिना बोले ही उसके बायें चूचे के निप्पल को अपने मुँह में भर लिया और मस्ती में चूसने लगा जैसे लोग कोल्ड ड्रिंक में स्ट्रॉ डाल कर चुस्की लगाते हैं और दूसरे चूचे को अपनी हथेली से सहलाने लगा जिससे रूचि इतना मदहोश हो गई कि पूछो ही मत… वो ऐसे सीत्कार ‘शिइइइइइइ शीईईईईई आह्ह्ह ह्ह्ह अह्ह्ह’ कर रही थी जैसे रो रही हो !
पर जब मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो नज़ारा कुछ ओर ही था, वो अपनी गर्दन को पीछे किये हुए अपनी आँखें बंद करके निचले होंठों को दांतों से दबाते हुए मंद सीत्कार कर रही थी जैसे की पक्की रंडी हो!
 
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